
वलीद बिन यज़ीद और सादिक़े आले मोहम्मद (अ स)
हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक (अ.स.) के वालिदे माजिद हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स.) को सन् 114 में शहीद करने के बाद हश्शाम बिन अब्दुल मलिक बिन मरवान 125 हिजरी में वासिले जहन्नम हुआ। उसके मरने के बाद वलीद बिन यज़ीद बिन अब्दुल मलिक बिन मरवान ख़लीफ़ा ए बनाया गया। यह ख़लीफ़ा ऊबाश , इख़्लाक़ी औसाफ़ से कोसों दूर , बे शर्म , मुन्हियात का मुरतकिब निहायत फ़ासिक़ो फ़ाजिर और अय्याश था। मय नोशी और लवाता में ख़ास शोहरत रखता था। निहायत जब्बार और कीना वर , जिस हांडी में खाता उसी मे सूराख़ करता। यह अपने बाप की कनीज़ों को भी इस्तेमाल किया करता था। एक दिन उसकी जमीला लड़की एक ख़ादेमा के पास बैठी थी उसने उसे पकड़ लिया और उसकी बुकारत (इज़्ज़त लूटना) ज़ायल कर दी। ख़ादेमा ने कहा कि यह तो मजूस का काम है। उसने जवाब दिया कि मलामत का ख़्याल करने वाले मग़मूम मर जाते हैं।
एक दिन हज के ज़माने में यह ख़ाना ए काबा की छत पर मय नोशी के लिये भी गया था। तारीख़ का यह मशहूर वाक़ेया है कि एक दिन उसने क़ुरआने मजीद से फ़ाल खोली , उसमें आयत ‘‘ ख़ाबा कल जब्बार अनीद ’’ निकला यह देख कर उसने ग़ुस्से में क़ुरआने मजीद को फेंक दिया , फिर उसे टांग कर तीरों से टुकड़े टुकड़े कर डाला और कहा ऐ क़ुरआन ! जब ख़ुदा के पास जाना तो कह देना ‘‘ मज़क़नी अल वलीद ’’ मुझे वलीद ने पारा पारा किया है।
एक दिन वलीद अपनी कनीज़ के साथ बैठा शराब पी रहा था। इतने में अज़ान की अवाज़ कान में आई। यह फ़ौरन मुबाशेरत (सम्भोग) में मशग़ूल हो गया। जब लोगों ने नमाज़ पढ़ाने के लिये कहा तो उस कनीज़ को अपना लिबास पहना कर शराब के नशे और जनाबत की हालत में नमाज़ पढ़ाने के लिये मस्जिद में भेज दिया और उसने नमाज़ पढ़ा दी।(तारीख़े ख़मीस , हबीब उस सैर , हज्जुल करामा , सिद्दीक़ हसन) यह ज़ाहिर है कि जो दीनो ईमान , नमाज़ व मस्जिद व क़ुरआने मजीद का एहतेराम न करता हो वह आले मोहम्मद (स अ व व ) का क्या एहतेराम कर सकता है। यही वजह है कि उसने अपने मुख़्तसर अहद में उनके साथ कोई रियायत नहीं की। तारीख़ में है कि हज़रत ज़ैद शहीद (र. अ.) के बेटे जनाबे यहीया को इसी के अहद में बुरी तरह शहीद किया गया और उनका सर वलीद के दरबार में लाया गया और जिस्म ख़ुरासान में सूली पर लटकाया गया।(तारीख़े इस्लाम जिल्द 1 पृष्ठ 48 )
हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) और जनाबे अबू हनीफ़ा नोमान बिन साबित कूफ़ी
फ़रज़न्दे रसूल (स अ व व ) हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) जो आलीमे इल्मे लदुन्नी थे। आपके फ़ैज़े सोहबत से अरबाबे अक़ल ने उलूम हासिल किये। आपकी ही एक कनीज़ ‘‘ हुसैनिया ’’ का ज़िक्र ज़बान ज़द ख़्वासो आम है कि उसने बादशाहे वक़्त के दरबार में चालीस उलेमा ए इस्लाम को चुप कर के दम बा खुद कर दिया था। आप ही के फ़ैज़े सोहबत से जनाबे नोमान बिन साबित ने इल्मी मदारिज हासिल किये थे और आपके लिये मनक़बते अज़ीम है।(हदाएक़ उल हनफ़िया पृष्ठ 18 प्रकाशित लखनऊ 1906 ई 0 )
जनाबे नोमान बिन साबित 80 हिजरी में बा मक़ाम कूफ़ा पैदा हुए। आपकी कुन्नियत अबू हनीफ़ा थी। आप अजमी नस्ल के थे। आपको हारून रशीद अब्बासी के अहद में काफ़ी उरूज हासिल हुआ।(तारीख़े सग़ीर बुख़ारी सन् 174 व सीरतुन नोमान , शिब्ली पृष्ठ 17 )
आपको हश्शाम बिन अब्दुल मलिक बिन मरवान के ज़माने में ‘‘ इमामे आज़म ’’ का खि़ताब मिला। जब कि उन्होंने 123 हिजरी में जनाबे ज़ैद शहीद की बैयत की और हुकूमत की मुख़ालेफ़त कर के मोआफ़ेक़त की थी।
किताब मुस्तफ़ा शरह मौता में है कि अकाबिरे मोहद्देसीन मिस्ल अहमद बुख़ारी , इमाम मुस्लिम , तिरमिज़ी , निसाई , अबू दाऊद , इब्ने माजा ने आपकी रवायत पर भरोसा नहीं किया। आपकी वफ़ात 150 हिजरी में हुई है।(तारीख़े सग़ीर पृष्ठ 174 )
इसी तारीख़े सग़ीर में बा रवायत नईम बिन हमाद , मरवी है कि मैं सुफ़ियान सौरी की खि़दमत में हाज़िर था कि नागाह अबू हनीफ़ा साहब की वफ़ात की ख़बर सुनी गई तो सुफ़ियान ने ख़ुदा का शुक्र अदा किया और कहा कि वह शख़्स इस्लाम को तोड़ कर चकना चूर करता था। ‘‘ मा वल्द फ़िल इस्लाम अश्शाम मिन्हा ’’ इस्लाम में इस्से ज़्यादा शूम कोई पैदा नहीं हुआ।

