
इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स.) के बाज़ करामात
आइम्मा ए अहले बैत (अ.स.) का साहेबे करामत होना मुसल्लेमात में से है। हज़रत इमाम मोहम्मदे बाक़िर (अ.स.) के करामात हदे एहसा से बाहर हैं। इस मुक़ाम पर चन्द लिखे जाते हैं।
अल्लामा जामेई रहमतुल्लाह अलैहा लिखते हैं कि एक रोज़ आप खच्चर पर सफ़र फ़रमा रहे थे और आपके हमराह एक और शख़्स गधे पर सवार था। मक्का और मदीना के दरमियान पहाड़ से एक भेड़िया बरामद हुआ आपने उसे देख कर अपनी सवारी रोक ली। वह क़रीब पहुँच कर गोया हुआ , मौला ! इस पहाड़ी में मेरी मादा है और उसे सख़्त दर्दे ज़ेह आरिज़ है आप दुआ फ़रमा दीजिए की इस मुसीबत से नजात हो जाए। आपने दुआ फ़रमा दी। फिर उसने कहा कि यह दुआअ कीजिए कि ‘‘ अज़नस्ल मन पर शीआए तौ मफ़स्तल न गिरदाना ’’ मेरी नस्ल में से किसी को भी आपके शिओं पर ग़लबा व तसल्लत न हासिल होने दे। आपने फ़रमाया मैंने दुआ कर दी। वह चला गया।
2. एक शब एक शख़्स शदीद बारिश के दौरान में आपके दौलत कदे पर जा कर ख़ामोश खड़ा हो गया और सोचने लगा कि इस न मुनासिब वक़्त में दक़्क़ुलबाब करूं या वापस चला जाऊँ। नागाह आपने अपनी लौंडी से फ़रमाया कि फ़ुलाँ शख़्स मक्के से आ कर मेरे दरवाज़े पर खड़ा है उसे बुला लो। उसने दरवाज़ा खोल कर बुला लिया।
3. रावी का बयान है कि मैं एक दिन आपके दौलत कदे पर हाज़िर हो कर इज़ने हुज़ूरी का तालिब हुआ। आपने किसी वजह से इजाज़त न दी मैं ख़ामोश खड़ा रहा। इतने में देखा कि बहुत से आदमी आए और गए। यह हाल देख कर मैं बहुत ही रंजीदा हुआ और देर तक सोचने लगा कि किसी और मज़हब में चला जाऊँ इसी ख्याल में घर चला गया। जब रात हुई तो आप मेरे मकान पर तशरीफ़ लाये और कहने लगे किसी मज़हब में मत जाओ , कोई मज़हब दुरूस्त नहीं है। आओ मेरे साथ चलो , यह कह कर मुझे अपने हमराह ले गए।
4. एक शख़्स ने आप से कहा ख़ुदा पर मोमिन का क्या हक़ है ? आपने इसके जवाब से ऐराज़ किया। जब वह न माना तो फ़रमाया कि इस दरख़्त को अगर कह दिया जाय कि चला आ , तो वह चला आऐगा , यह कहना था कि वह अपने मक़ाम से रवाना हो गया , फिर आपने हुक्म दिया वह वापस चला गया।
5. एक शख़्स ने आपके मकान के सामने कोई हरकत की , आपने फ़रमाया मुझे इल्म है , दीवार हमारी नज़रों के दरमियान हाएल नहीं होती , आइन्दा ऐसा नहीं होना चाहिये। 6. एक शख़्स ने अपने बालों के सफ़ेद होने की शिकायत की , आपने उसे अपने हाथों से मस कर दिया , वह सियाह हो गये।
7. जिस ज़माने में इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) का इन्तेक़ाल हुआ था। आप मस्जिदे नबवी में तशरीफ़ फ़रमा थे , इतने में मन्सूर दवान्क़ी और दाऊद बिन सुलैमान मस्जिद में आए। मन्सूर आपसे दूर बैठा और दाऊद क़रीब आ गया। उसने फ़रमाया , मन्सूर मेरे पास क्यों नहीं आता ? उसने कोई उज़्र बयान किया। हज़रत ने फ़रमाया इससे कह दो तू अन्क़रीब बादशाहे वक़्त होगा और शरक़ व ग़र्ब का मालिक होगा। यह सुन कर दवान्क़ी आपके क़रीब आ गया और कहने लगा आपका रोब व जलाल मेरे क़रीब आने से माने था। फिर आपने उसकी हुकूमत की तफ़सील बयान फ़रमाई , चुनान्चे वैसा ही हुआ।
8. अबू बसीर की आंखें जाती रही थीं , उन्होंने एक दिन कि आप तो वारिसे अम्बिया हैं , मेरी आंखों की रौशनी पलटा दीजिए। आपने इसी वक़्त आंखों पर हाथ फेर कर उन्हें बिना बना दिया।
9. एक कूफ़ी ने आपसे कहा कि मैंने सुना है कि आपके ताबे फ़रिश्ते हैं जो आपको शिया और गै़र शिया बता दिया करते हैं। आपने पूछा तू क्या काम करता है ? उसने कहा गन्दुम फ़रोशी। आपने फ़रमाया ग़लत है। फिर उसने फ़रमाया कभी कभी जौं भी बेचता हूँ। फ़रमाया यह भी ग़लत है। तू सिर्फ़ ख़ुरमे बेचता है। उसने कहा आपसे यह किसने बताया है ? इमाम (अ.स.) ने फ़रमाया उसी फ़रिश्ते ने जो मेरे पास आता है। इसके बाद आपने फ़रमाया कि तू फ़ुलां बीमारी में तीन दिन के अन्दर वफ़ात कर जायेगा। चुनान्चे ऐसा ही हुआ।
10. रावी कहता है कि मैं एक दिन हज़रत की खि़दमत में हाज़िर हुआ तो क्या देखा , आप ब ज़बाने सुरयानी मुनाजात पढ़ रहे हैं। मेरे सवाल के जवाब में फ़रमाया कि यह फ़ुलां नबी की मुनाजात है।
11. हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ (अ.स.) इरशाद फ़रमाते हैं कि मेरे वालिदे बुज़ुर्गवार इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स.) एक दिन मदीने में बहुत से लोगों के दरमियान बैठे हुए थे नागाह आपने सर डाल दिया। इसके बाद आपने फ़रमाया , ऐ अहले मदीना आईन्दा साल यहां नाफ़े बिन अरज़क़ चार हज़ार जर्रार सिपाही ले कर आयेगा और तीन शबाना रोज़ शदीद मुक़ाबला व मुक़ातेला करेगा , और तुम अपना तहफ़्फ़ुज़ न कर सकोगे। सुनो जो कुछ मैं कह रहा हूँ ‘‘ हवा काएन लायद मनहू ’’ वह होके रहेगा चुनान्चे आइन्दा साल(कान अल अमर अला मक़ाल) वही हुआ जो आपने फ़रमाया था।
12. जै़द बिन आज़म का बयान है कि एक दिन ज़ैद शहीद आपके सामने से गुज़रे तो आपने फ़रमाया कि यह ज़रूर कूफ़े में ख़ुरूज करेंगे और क़त्ल होंगे और इनका सर दयार ब दयार फिराया जायेगा। (फ़कान कमाकाल) चुनान्चे वही कुछ हुआ।
(शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 185 नुरूब अबसार पृष्ठ 130 )
आपकी इबादत गुज़ारी और आपके आम हालात
आप अपने आबाओ अजदाद की तरह बेपनाह इबादत करते थे। सारी रात नमाज़े पढ़नी और सारा दिन रोज़े से गुज़ारना आपकी आदत थी। आपकी ज़िन्दगी ज़ाहिदाना थी। बोरीए पर बैठते थे। हदाया जो आते थे उसे फ़ुक़राओ मसाकीन पर तक़सीम कर देते थे। ग़रीबों पर बे हद शफ़क़्क़त फ़रमाते थे। तवाज़े और फ़रोतनी , सब्र और शुक्र ग़ुलाम नवाज़ी सेलह रहम वग़ैरा में अपनी आप नज़ीर थे। आपकी तमाम आमदनी फ़ुक़राओ पर सर्फ़ होती थी। आप फ़क़ीरों की बड़ी इज़्ज़त करते थे और उन्हें अच्छे नाम से याद करते थे।(कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 95 ) आपके एक ग़ुलाम अफ़लह का बयान है कि एक दिन आप काबे के क़रीब तशरीफ़ ले गए , आपकी जैसे ही काबे पर नज़र पड़ी आप चीख़ मार कर रोने लगे मैंने कहा कि हुज़ूर सब लोग देख रहे हैं आप आहिस्ता से गिरया फ़रमायें। इरशाद किया ऐ अफ़लह शायद ख़ुदा भी उन्हीं लोगों की तरह मेरी तरफ़ देख ले और मेरी बख़्शिश का सहारा हो जाय। इसके बाद आप सजदे में तशरीफ़ ले गये और जब सर उठाया तो सारी ज़मीन आँसुओं से तर थी।(मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 271 )
हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स.) और हश्शाम बिन अब्दुल मलिक
तवारीख़ में है कि 96 हिजरी में वलीद बिन अब्दुल मलिक फ़ौत हुआ(अबुल फ़िदा) और उसका भाई सुलैमान बिन अब्दुल मलिक ख़लीफ़ा मुक़र्रर किया गया।(इब्ने वरा) 99 हिजरी में उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ ख़लीफ़ा हुआ।(इब्नुल वरा) उसने ख़लीफ़ा होते ही इस बिदअत को जो 41 हिजरी में बनी उमय्या ने हज़रत अली (अ.स.) पर सबो शितम की सूरत में जारी कर रख थी। हुकमन रोक दिया।(अबुल फ़िदा) और रूकू़मे ख़ुम्स बनी हाशिम को देना शुरू कर दिया।(किताब उल ख़राएज अबू युसूफ़) यह वह ज़माना था जिसमें अली (अ.स.) के नाम पर अगर किसी बच्चे का नाम होता था तो वह क़त्ल कर दिया जाता था और किसी को भी ज़िन्दा न छोड़ा जाता था।(तदरीक अल रावी , सयूती) इसके बाद 101 हिजरी में यज़ीद इब्ने अब्दुल मलिक ख़लीफ़ा बनाया गया।(इब्नुल वरदी) 105 हिजरी में हश्शाम इब्ने अब्दुल मलिक बिन मरवान बादशाहे वक़्त मुक़र्रर हुआ।(इब्नुल वरदी)
हश्शाम बिन अब्दुल मलिक चुस्त , चालाक , कंजूस , मुताअस्सिब , चाल बाज़ , सख़्त मिज़ाज , कजरौ , ख़ुद सर , हरीस , कानों का कच्चा और हद दरजा शक्की था। कभी किसी का ऐतबार न करता था। अक्सर सिर्फ़ शुब्हे पर सलतनत के लाएक़ मुलाज़िमों को क़त्ल करा देता था। यह ओहदों पर उन्हीं को फ़ाएज़ करता था जो ख़ुशामदी हों। उसने ख़ालिद बिन अब्दुल्लाह क़सरी को 105 हिजरी से 120 हिजरी तक ईराक़ का गर्वनर रखा। क़सरी का हाल यह था कि हश्शाम को रसूल अल्लाह (स. अ.) से अफ़ज़ल बताता और उसी का प्रोपेगन्डा किया करता था।(तारीख़े कामिल जिल्द 5 पृष्ठ 103 ) हश्शाम आले मोहम्मद (स. अ.) का दुश्मन था। इसी ने ज़ैद शहीद को निहायत बुरी तरह क़त्ल किया था।(तारीख़े इस्लाम जिल्द 1 पृष्ठ 49 ) इसी ने अपने ज़माना ए वली अहदी में फ़रज़दक़ शायर को इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) की मदह के जुर्म में बा मक़ाम असक़लान क़ैद किया था।(सवाएक़े मोहर्रेक़ा)

