❌मेरे बाद कोई नबी होता तो (ऐहले’सुन्नत के दोम/2 ख़लीफ़ा) उमर बिन खत्ताब होते! यह झूठी/कमज़ोर हदीस है।❌
❌ऐहले’सुन्नत के अक़ाबिरों ने इस हदीस को झूठा/कमज़ोर करार दिया है।❌
अगर मेरे बाद कोई नबी होता तो वोह उमर बिन खत्ताब होते!
इस हदीस की सेहत और इस पर मेरा एक सवाल!!!!!
उमर बिन खत्ताब के फज़ायल में गढ़ी गई हदीसों में से यह भी एक मनगढ़ंत हदीस है कि नबी-ऐ-क़रीम ﷺ ने फ़रमाया कि मेरे बाद अगर कोई नबी होता तो वोह उमर बिन खत्ताब होते।
यह हदीस सुनन तिर्मिज़ी में है और इमाम तिर्मिज़ी ने इस हदीस को ‘गरीब’ कहा है। तिर्मिज़ी के अलावा यह हदीस बहुत सी कुतबों में है।
यह हदीस सिर्फ़ एक ही सनद से आयी है वोह भी इसमें एक रावी मिसरह बिन हाआन है। इस रावी के बारे में इमाम ज़हबी ने लिखा है कि इमाम इब्ने हिब्बान ने इसे “लईन” यानी लानती करार दिया है और जब क़ाबा शरीफ़ पर हमला हुआ तो यह उस लश्कर में भी शामिल था।
जामे तिर्मिज़ी, जिल्द 2, हदीस नम्बर 3688,
शरह ऐ मिश्कात, जिल्द 7, सफ़ाह नम्बर 415, हदीस नम्बर 5789,
मजमू उज ज़वायद, जिल्द 9, सफ़ाह नम्बर 657, हदीस नम्बर 1433,
मीज़ान उल ऐतदलाल, जिल्द 7, सफ़ाह नम्बर 422, हदीस नम्बर 8555,
मीज़ान उल ऐतदलाल, जिल्द 5, सफ़ाह नम्बर 418, हदीस नम्बर 6756,
फज़ायल ऐ सहाबा, सफ़ाह नम्बर 221, हदीस नम्बर 675-676,
अब इस हदीस की सेहत जानने के बाद भी अगर कोई नही मानता तो मेरा उन लोगों से सवाल है कि:-
अगर यह हदीस सही है तो फ़िर इसमें कोई शक नहीं कि उमर बिन खत्ताब की फज़ीलत सारे सहाबियों पर साबित है तो फ़िर नबी-ऐ-क़रीम ﷺ के बाद लोगों को सकीफ़ा में जमा होने की क्या ज़रुरत थी? लोगों को मिलकर इन्हें पहला खलीफ़ा बना देना चाहिए था और ना बनाकर लोगों ने बहुत बड़ी ग़लती की है!!!!! क्योंकि मोहम्मद मुस्तफ़ा ﷺ के बाद अगर यह नबी नहीं बन सकते वोह भी सिर्फ़ इसलिए कि मोहम्मद मुस्तफ़ा ﷺ खातिमुन्नबी हैं, वरना इन्ही का नम्बर/दर्जा था तो सिलसिला ऐ नबूवत नहीं तो सिलसिला ऐ खिलाफ़त में तो इन्हीं का नम्बर/दर्जा है।
जैसे फ़र्ज़ी खलीफ़ा वैसे फ़र्ज़ी-फ़र्ज़ी लोगों से हदीसें लेकर खुद फ़ंस गये।
❌ऐहले’सुन्नत के अक़ाबिरों ने इस हदीस को झूठा/कमज़ोर करार दिया है।❌ 👇































