
हजरत निजमुद्दीन औलिया के यहां लंगर होता था बहुत ही जोर दार लंगर दूर दूर से आने वाले आपके लंगर खाने से लंगर खा कर अपना पेट भरते
तभी कुछ बादशाह के सिपाहियों ने बादशाह के कान भरना शुरू कर दिए की सरकार राशन पानी आपका और लंगर खाने में नाम होता है निज़ामुद्दीन का तभी बादशाह उनकी बातो में आ गया
और अपने सिपाहियों से कहा कि जाओ निज़ामुद्दीन औलिया से कहना कि आज से बादशाह लंगर खाने में कोई चन्दा नहीं देगा
बस फिर बादशाह का सिपाही निज़ामुद्दीन औलिया की बारगाह में आया और बोला कि आज से लंगर खाने में बादशाह की तरफ से जो चन्दा अता है वो बंद
निज़ामुद्दीन औलिया को जलाल आया और बोले अपने बादशाह से कह देना की तेरे बादशाह का चन्दा बंद हुआ है
निज़ामुद्दीन औलिया का लंगर बंद नहीं होगा आज तक एक टाइम चलता था आज से दो टाइम चलेगा
अब सिपाही और मुरीद सब हैरान की एक टाइम के लंगर के लिए चंदे की जरूरत होती थी ये दो टाइम कहा से चलेगा
जब मुरीदों को हैरान परेशान देखा तो अपने फरमाया की घबराते क्यू हो जितना पैसा चाइए मेरे मुसाल्लेे के नीचे से निकाल लेना अल्लाहु अकबर ये है अल्लाह वाले जिस जगह इबादत करले खुदा की कसम उस जगह को भी सोना बनादे
खैर लंगर तो बंद नहीं हुआ लेकिन दूसरे दिन खबर आई कि बादशाह का पेशाब बंद हो गया सारे हकीमों को दिखाया लेकिन कोई फायदा नहीं अबे जिसे निज़ामुद्दीन बंद करदे उसे कोई हकीम कैसे खोले
जब बादशाह की मा को सारा माजरा पता चला तो बादशाह की मा हजरत निजामद्दीन औलिया के दरबार में गई और अर्ज़ करने लगी हुजूर मै मानती हूं मेरा बेटा गुस्ताख है मै मानती हू मेरे बेटे ने गलती की है
लेकिन है तो वो मेरा बेटा अगर वो ठीक ना हुआ तो मै आपके दरवाज़े पे सर पटक पटक के अपनी जान दे दूंगी
हजरत निजामुद्दीन औलिया मुस्कुराए और कहा ठीक है तेरा बेटा ठीक हो जाएगा लेकिन मेरी एक शर्त है बुढ़िया ने कहा क्या शर्त है हजरत निजामुद्दीन औलिया ने कागज और कलम दिया और कहा कि अपने बेटे से कहना कि सारी सल्तनत मेरे नाम लिखदे
बुढ़िया ने कलम कागज लिया और अपने बेटे के पास गई और कहा बेटा बाबा ने पर्चा दिया है और कहा है सारी सल्तनत मेरे नाम लिखदे अब मरता क्या नहीं करता उसकी जान पे बनी है उसने फौरन कहा मा जल्दी पर्चा ला और पर्चा लेकर उसमें लिख दिया मेरी सारी सल्तनत निज़ामुद्दीन औलिया के नाम जैसे ही लिख कर साइन करी वैसे ही पेशाब चालू हो गया बादशाह की जान में जान आई
बुढ़िया ने पर्चा लिया और फौरन निज़ामुद्दीन औलिया की बारगाह में गई और कहा बाबा लो पर्चा मैंने सब लिखवा लिया है निज़ामुद्दीन औलिया ने पर्चा देखा आप मुस्कुराए और पर्चा फाड़ के फेक दिया
बुढ़िया कहने लगी बाबा जब फाड़ना था तो लिखवाया क्यू और जब लिखवा लिया था तो फाड़ा क्यू
हजरत निजामुद्दीन औलिया ने फरमाया कि ये इसलिए क्या की तेरे बेटे का गुरूर ख़तम हो जाय और वो। ये जान ले की हुकूमत उसके बाप की नहीं बल्कि हुकूमत कल भी हमारी थी और आज भी हमारी है
सुभानल्लाह क्या शान हे अल्लाह के वालियों की

