मुआविया पर लानत करना सुन्नत है हज़रत आईशा और मौला अली عَلَیهِالسَّلام की
खुद को सुन्नी कहने वाले कुछ नासबी, खारजी उलेमा लोग मुआविया मलाउन की वकालत करते हुए कहते हैं कि मुआविया हक पर था और मुआविया पर लानत करने वाला जहन्नमी है।
आइए..इसका जायज़ा लेते हैं कि मुआविया पर लानत करना दुरुस्त है या नहीं.??
अगर मुआविया पर लानत करना या बद-दुआ करना मुनाफ़िक़त या जहन्नमी होने की दलील है तो ध्यान रहे कि-
1- जब मुआविया ने हज़रत मोहम्मद बिन अबू बक्र رَضِىَ الـلّٰـهُ عَـنْهُ को शहीद करवाकर आप की लाश को मुर्दा खच्चर की खाल में रखकर आग लगा दी थी तो हज़रत मोहम्मद बिन अबू बक्र رَضِىَ الـلّٰـهُ عَـنْهُ की शहादत की खबर पाकर उसी दिन से उम्मतुल-मोमिनीन हज़रत आईशा हमेशा हर नमाज़ में मुआविया पर लानत यानि बद-दुआ करती थी।
2- जंगे सिफ़्फ़ीन के बाद से हज़रत मौला इमाम अली करमुल्लाहु वज्हुल करीम عَلَیهِالسَّلام मुआविया और इनके साथियों पर लानत करते थे।
3- कुरान की सूरह तौबा की आयत नंबर 68 के मुताबिक मुनाफ़िक मर्दों, मुनाफ़िक औरतों और काफ़िरों पर लानत भेजना अल्लाह ﷻ की सुन्नत है और सूरह बकरह की आयत नंबर 159 के मुताबिक अल्लाह ﷻ तो लानत करने वालों पर लानत करता ही है, साथ में इस सुन्नते-इलाही पर अमल करने वाले लोग भी लानत भेजते हैं।
4- इमाम इब्ने अबी सैबा (इमाम बुखारी के उस्ताद) ने मुसन्नफ़े इब्ने अबी शैबा में और इमाम हाकिम रह० ने ‘मुसतदरक अल सहियेन’ में लिखा है कि:-
अली ع हक पर हैं और हक अली ع के साथ है। अली ع कुरान के साथ और कुरान अली ع के साथ है और यह दोनों कभी एक दूसरे से जुदा ना होंगे।
जिसने अली ع को गाली दी या बुरा कहा उसने मुझे ﷺ गाली दी या बुरा कहा। जिसने अली ع को अज़ीयत दी उसने मुझे ﷺ अजीयत दी।
अली ع मुझसे ﷺ हैं और मैं ﷺ अली ع से हूं।
जिसने अली ع को छोड़ा उसने मुझे ﷺ छोड़ा।
जिसने अली ع की इताआत की उसने मेरी ﷺ इताआत की और जिसने अली ع की नाफ़रमानी की उसने मेरी ﷺ नाफ़रमानी की।
मौला अली ع के फज़ायल से मुताल्लिक यह सभी हदीसें सही है और इनका फ़ोटो मैंने यहां पर नही सेन्ड करे हैं क्योंकि इस पोस्ट का सिर्फ़ मकसद यह था कि मुआविया पर लानत करना कैसा है ना कि अली ع की फज़ीलत बयान करना है।
5- मौला अली ع का मुआविया पर लानत करना तो समझ में आ रहा है क्योंकि अली ع हक पर हैं लेकिन मुआविया का इमाम अली ع पर लानत करना या भेजना दरअसल मोहम्मद ﷺ पर लानत भेजना है इसलिए अगर मुआविया भी ऐसा करता है तो जहन्नमी है।
तारीख ऐ इब्ने कसीर [7/607], तारीख ऐ तबरी [4/279, 241],
तारीख ऐ अबुल फ़िदा [38 हिजरी का बयान ],
तज़किरातुल ख्वास [सफ़ाह 125-126]
और कंज़ुल उम्माल [जिल्द 7-8, हदीस नं 21989] के हवाले से नीचे कुछ दलील हैं, जिनको पढ़कर आप समझ सकते हैं कि सुन्नते-इलाही पर अमल करते हुए मुआविया पर अम्मा आईशा और मौला अली ع का लानत करना साबित है कि नहीं..
अब फ़ैसला आप खुद करें कि मुआविया पर लानत करने वाला लानती और जहन्नमी है या लानत ना करने वाला शख्स..!!
तारीखे ऐ तबरी में मौला अली ع का खुतबा भी है कि मुआविया इस्लाम लाने के बाद भी शराब पीने वाला मुनाफ़िक था।

