
Sheikh Akbar Muhyiddin Ibn Arabi R.A



अल्लामा शेख़ तरही और अल्लामा मजलिसी रक़म तराज़ हैं कि बलख़ का रहने वाला एक दोस्त दारे आले मोहम्मद (अ.स.) हमेशा हज किया करता था और जब हज को आता था तो मदीने जा कर इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) की ज़ियारत का शरफ़ भी हासिल किया करता था। एक मरतबा हज से लौटा तो उसकी बीवी ने कहा कि तुम हमेशा अपने इमाम की खि़दमत मे तोहफ़े ले जाते हो मगर उन्होंने आज तक तुम को कुछ न दिया। उसने कहा तौबा करो तुम्हारे लिये यह कहना सज़ावार नहीं है , वह इमामे ज़माना हैं। वह मालिके दीनो दुनियां हैं। वह फ़रज़न्दे रसूल (स. अ.) हैं। वह तुम्हारी बातें सुन रहे हैं। यह सुन कर वह ख़ामोश हो गई। अगले साल जब वह हज से फ़राग़त कर के इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) की खि़दमत में पहुँचा और सलाम व दस्त बोसी के बाद आपके पास बैठा तो आप ने खाना तलब फ़रमाया। हुक्मे इमाम (अ.स.) से मजबूर हो कर उसने इमाम (अ.स.) के साथ खाना खाया। जब दोनों खाना खा चुके तो इमाम के दोस्त बलख़ी ने हाथ धुलाना चाहा। आपने फ़रमाया तू महमान है , यह तेरा काम नहीं। उसने इसरार किया और हाथ धुलाना शुरू कर दिया। जब तश्त भर गया तो आपने पूछा यह क्या है। उसने कहा ‘‘ पानी ’’ हज़रत ने फ़रमाया नहीं ‘‘ याक़ूते अहमर ’’ हैं। जब उसने ग़ौर से देखा तो वह तश्त ‘‘ याकूते सुर्ख ’’ से भरा हुआ था। इसी तरह ‘‘ ज़मुर्रदे सब्ज़ ’’ और ‘‘ दुरे बैज़ ’’ से भर गया। यानी तीन बार ऐसा ही हुआ यह देख कर वह हैरान हो गया और आपके हाथों का बोसा देने लगा। हज़रत ने फ़रमाया इसे लेते जाओ और अपनी बीवी को दे देना और कहना कि हमारे पास और कुछ माले दुनिया से नहीं है। वह शख़्स शरमिन्दा हो कर बोला , मौला आपको हमारी बीवी की बात किसने बता दी ? इमाम (अ.स.) ने फ़रमाया हमें सब मालूम हो जाता है। उसके बाद वह इमाम (अ.स.) से रूख़सत हो कर बीवी के पास पहुँचा। जवाहेरात दे कर सारा वाक़ेया बयान किया। बीवी ने कहा आइन्दा साल मैं भी चल कर ज़ियारत करूँगी। जब दूसरे साल बीवी हमराह रवाना हुई , तो रास्ते में इन्तेक़ाल कर गई। वह शख़्स हज़रत की खि़दमत में रोता पीटता हाज़िर हुआ। हज़रत ने दो रकअत नमाज़ पढ़ कर फ़रमाया , जाओ तुम्हारी बीवी भी ज़िन्दा हो गई है। उस ने क़याम गाह पर लौट कर बीवी को ज़िन्दा पाया। जब वह हाज़िरे खि़दमत हुई तो कहने लगी , ख़ुदा की क़सम इन्होंने मुझे मलकुल मौत से कह कर ज़िन्दा किया था और उस से कहा था कि यह मेरी ज़ायरा है। मैंने इसकी उम्र तीस साल बढ़वा ली है।
(अल मुन्तखि़ब वल बिहार)
इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) चूंकि फ़रज़न्दे रसूल (स. अ.) थे इस लिये आप में सीरते मोहम्मदिया का होना लाज़मी था। अल्लामा मोहम्मद इब्ने तल्हा शाफ़ेई लिखते हैं कि एक शख़्स ने आपको बुरा भला कहा , आपने फ़रमाया , भाई मैंने तो तेरा कुछ नहीं बिगाड़ा अगर कोई हाजत रखता हो तो बता ताकि मैं पूरी करूं। वह शरमिन्दा हो कर आपके अख़लाख का कलमा पढ़ने लगा।
(मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 267 )
अल्लामा हजरे मक्की लिखते हैं , एक शख़्स ने आपकी बुराई आपके मुंह पर की , आपने उस से बे तवज्जीही बरती। उसने मुख़ातिब कर के कहा मैं तुम को कह रह हूँ। आप ने फ़रमाया मैं हुक्मे ख़ुदा ‘‘ वा अर्ज़ अनालन जाहेलीन ’’ जाहिलों की बात की परवाह न करो , पर अमल कर रहा हूँ।(सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 120 )
अल्लामा शिब्लन्जी लिखते हैं कि एक शख़्स ने आप से आ कर कहा कि फ़लां शख़्स आपकी बुराई कर रहा था। आपने फ़रमाया कि मुझे उसके पास ले चलो , जब वहां पहुँचे , तो उस से फ़रमाया भाई जो बात तूने मेरे लिये कही है , अगर मैंने ऐसा किया हो तो खु़दा मुझे बख़्शे और अगर नहीं किया तो ख़ुदा तुझे बख़्शे कि तूने बोहतान लगाया।
एक रवायत में है कि आप मस्जिद से निकल कर चले तो एक शख़्श आपको सख़्त अल्फ़ाज़ में गालियां देने लगा। आपने फ़रमाया कि अगर कोई हाजत रखता है तो मैं पूरी करूँ , ‘‘ अच्छा ले ’’ यह पांच हज़ार दिरहम। वह शरमिन्दा हो गया।
एक रवायत में है कि एक शख़्स ने आप पर बोहतान बांधा। आपने फ़रमाया मेरे और जहन्नम के दरमियान एक खाई है अगर मैंने उसे तय कर लिया तो परवाह नहीं , जो जी चाहे कहो और अगर उसे पार न कर सकूं तो मैं इस से ज़्यादा बुराई का मुस्तहक़ हूँ जो तुमने की।(नूरूल अबसार पृष्ठ 126- 127 )
अल्लामा दमीरी लिखते हैं कि एक शामी हज़रत अली (अ.स.) को गालियां दे रहा था। इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) ने फ़रमाया , भाई तुम मुसाफ़िर मालूम होते हो , अच्छा मेरे साथ चलो , मेरे यहां क़याम करो और जो हाजत रखते हो बताओ ताकि मैं पूरी करूं। वह शरमिन्दा हो कर चला गया।(हयातुल हैवान जिल्द 1 पृष्ठ 121 )
अल्लामा तबरिसी लिखते हैं कि एक शख़्स ने आपसे बयान किया कि फ़लां शख़्स आपको गुमराह और बिदअती कहता है। आपने फ़रमाया अफ़सोस है कि तुम ने उसकी हम नशीनी और दोस्ती का कोई ख़्याल न रखा और उसकी बुराई मुझसे बयान कर दी। देखो यह ग़ीबत है अब ऐसा कभी न करना।(एहतेजाज पृष्ठ 304 )
जब कोई सायल आपके पास आता तो ख़ुश व मसरूर हो जाते थे और फ़रमाते थे कि ख़ुदा तेरा भला करे कि तू मेरा ज़ादे राहे आख़ेरत उठाने के लिये आ गया है।(मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 263 )
इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) सहीफ़ा ए कामेला में इरशाद फ़रमाते हंै , ख़ुदा वन्दा मेरा कोई दरजा न बढ़ा , मगर यह कि इतना ही खुद मेरे नज़दीक मुझको घटा और मेरे लिये कोई ज़ाहिरी इज़्ज़त न पैदा कर मगर यह कि ख़ुद मेरे नज़दीक इतनी ही बातनी लज़्ज़त पैदा कर दे।
किताब सहीफ़ा ए कामेला आपकी दुआओं का मजमूआ है। इसमें बेशुमार उलूम व फ़ुनून के जौहर मौजूद हैं। यह पहली सदी की तसनीफ़ है।(मआलिम अल उलेमा पृष्ठ 1 तबआ ईरान) इसे उलेमा ए इस्लाम ने ज़ुबूरे आले मोहम्मद (स अ व व ) और इन्जीले अहलेबैत (अ.स.) कहा है।(नेयाबुल मोअद्दता पृष्ठ 499 व फ़ेहरिस्त कुतुब ख़ाना ए तेहरान पृष्ठ 36 ) और उसकी फ़साहत व बलाग़त मआनी को देख कर उसे कुतुबे समाविया और सहफ़े लौहिया व अरशिया का दरजा दिया गया है।(रियाज़ुल सालीक़ैन पृष्ठ 1 ) इसकी चालीस हज़ार शरहें हैं जिनमें मेरे नज़दीक रियाज़ुल सालीकैन को फ़ौकी़यत हासिल है।
अब्दुल मलिक बिन मरवान के अहदे खि़लाफ़त में हज़रते मुख़्तार बिन अबू उबैदा सक़फी क़ातेलाने हुसैन से बदला लेने के लिये मैदान में निकल आये।
अल्लामा मसूदी लिखते हैं कि इस मक़सद में कामयाबी हासिल करने के लिये उन्होंने इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) की बैअत करनी चाही मगर आपने बैअत लेने से इन्कार कर दिया।(मरूजुल ज़हब जिल्द 3 पृष्ठ 155 ) अल्लामा नुरूल्लाह शूस्तरी शहीदे सालिस तहरीर फ़रमाते हैं कि अल्लामा हिल्ली ने मुख़्तार को मक़बूल लोगों में शुमार किया है। इमाम मोहम्मद बाक़र (अ.स.) ने उन पर नुक़ता चीनी करने से रोका है और इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) ने उनके लिये रहमत की दुआ की है।(मजालेसुल मोमेनीन जिल्द 346 )
अल्लामा मजलिसी लिखते हैं कि हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) ने उनकी कार गुज़ारी के लिससिले में ख़ुदा का शुक्र अदा किया है।
(जिलाउल उयून)
आप कूफ़े के रहने वाले थे। जनाबे मुस्लिम इब्ने अक़ील को आप ही ने सब से पहले मेहमान रखा था। आपको इब्ने ज़ियाद ने आले मोहम्मद (अ.स.) से मोहब्बत के जुर्म में कै़द कर दिया था। वहां से छूटने के बाद आप ने ख़ूने हुसैन (अ.स.) का बदला लेने का अज़मे बिल जज़म कर लिया था। चुनान्चे 26 हिजरी में एक बड़ी जमाअत के साथ बरामद हो कर कूफ़े के हाकिम बन बैठे और आपने किताब , सुन्नत और इन्तेक़ामे ख़ूने हुसैन (अ.स.) पर बैअत ले कर बड़ी मुस्तैदी से इन्तेक़ाम लेना शुरू कर दिया। शिम्र को क़त्ल कर दिया , ख़ूली को क़त्ल कर के आग में जला दिया , उमर बिन सअद और उसके बेटे हफ़स को क़त्ल किया।(तारीख़ अबुल फ़िदा)
मुल्ला मुबीन लिखते हैं कि शिम्र को क़त्ल कर के उसकी लाश को उसी तरह घोड़ों की टापों से पामाल कर दिया जिस तरह उसने इमाम हुसैन (अ.स.) की लाशे मुबारक को पामाल किया था।(वसीलतुन नजात) 67 हिजरी में इब्ने ज़ियाद को गिरफ़्तार करने के लिये इब्राहीम इब्ने मालिके अशतर की सरकरदगी में एक बड़ा लशकर मूसल भेजा जहां का वह उस वक़्त गर्वनर था। शदीद जंग के बाद इब्राहीम ने उसे क़त्ल किया और उसका सर मुख़्तार के पास भेज कर बाक़ी बदन नज़रे आतश कर दिया।(अबुल फ़िदा) फिर मुख़्तार के हुक्म से कै़स इब्ने अशअस की गरदन मारी गई। बजदल इब्ने सलीम (जिसने इमाम हुसैन (अ.स.) की उंगली एक अंगूठी के लिये काटी थी) के हाथ पाओं काटे गये। फिर हकीम इब्ने तुफ़ैल पर तीर बारानी की गई। उसने अलमदारे करबला हज़रत अब्बास (अ.स.) को शहीद किया था। इसी के साथ यज़ीद इब्ने सालिक , इमरान बिन ख़ालिद , अब्दुल्लाह बिजली , अब्दुल्लाह इब्ने क़ैस ज़रआ इब्ने शरीक , सबीह शामी और सनान बिन अनस तलवार के घाट उतारे गये।(हबीब उल सैर) उमर बिन हज्जाज भी गिरफ़्तार हो कर क़त्ल हुआ।(रौज़तुल सफ़ा)
मिन्हाल बिन उमर का कहना है कि मैं इसी दौरान में हज के लिये गया तो हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) से मुलाक़ात हुई। आपने पूछा हुरमुला बिन काहिल असदी का क्या हश्र हुआ ? मैंने कहा वह तो सालिम था। आपने आसमान की तरफ़ हाथ उठा कर फ़रमाया , ख़ुदाया उसे आतशे तेग़ का मज़ा चखा। जब मैं कूफ़े वापस आया और मुख़्तार से मिला और उन से वाक़ेया बयान किया तो वह इमाम (अ.स.) की बद दुआ की तकमील पर सजदा ए शुक्र अदा करने लगे।ग़र्ज़ कि आपने बेशुमार क़ातेलाने हुसैन (अ.स.) को तलवार के घाट उतार दिया।
क़ाज़ी मेबज़ी ने शरहे दीवाने मुतर्ज़वी में लिखा है कि मुख़्तारे आले मोहम्मद(स. अ.) के हाथों से क़त्ल होने वालों की तादाद अस्सी हज़ार तीन सौ तीन (80,303) थी।
मुवर्रेख़ीन का बयान है कि जनाबे मुख़्तार के सामने जिस वक़्त इब्ने ज़ियाद मलऊन का सर रखा गया था तो एक सांप आ कर उसके मुंह में घुस कर नाक से निकलने लगा। इसी तरह देर तक आता जाता रहा। वह यह भी लिखते हैं कि हज़रते मुख़्तार ने इब्ने ज़ियाद का सर हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) की खि़दमत में मदीना ए मुनव्वरा भेज दिया। जिस वक़्त वह सर पहुँचा तो आपने शुक्रे ख़ुदा अदा किया और मुख़्तार को दुआएं दीं। मुवर्रेखी़न का यह भी बयान है कि उसी वक़्त औरतों ने बालों में कंघी करनी और सर में तेल डालना और आंखों में सुरमा लगाना शुरू किया जो वाक़ेए करबला के बाद से इन चीज़ों को छोड़े हुये थीं।(अक़दे फ़रीद जिल्द 2 पृष्ठ 251, नुरूल अबसार पृष्ठ 124, मजालिसे मोमेनीन , बेहारूल अनवार) ग़र्ज़ कि जनाबे मुख़्तार ने इन्तेक़ामे ख़ूने शोहदा लेने के सिलसिले में कारहाय नुमायां किये। बिल आखि़र 14 रमज़ान 67 हिजरी को आप कूफ़े के दारूल इमाराह के बाहर शहीद कर दीये गये। ‘‘ इन्ना लिल्लाहे व इन्ना इलैहे राजेऊन ’’(तफ़सील के लिये मुलाहेज़ा हो किताब मुख़्तार आले मोहम्मद (स. अ.) मोअल्लेफ़ा हक़ीर मतबूआ लाहौर)
86 हिजरी में अब्दुल मलिक इब्ने मरवान के इन्तेक़ाल के बाद उसका बेटा वलीद बिन अब्दुल मलिक ख़लीफ़ा बनाया गया। यह हज्जाज बिन यूसुफ़ की तरह निहायत ज़ालिमों जाबिर था। इसके अहदे ज़ुल्मत में उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ जो कि चचा ज़ाद भाई था , हिजाज़ का गर्वनर मुक़र्रर हुआ। यह बड़ा मुनसिफ़ मिजाज़ और फ़य्याज़ था। उसी के अहदे गर्वनरी का एक वाक़ेया यह है कि 87 हिजरी में सरवरे कायनात के रौज़े की एक दीवार गिर गई थी। जब उसकी मरम्मत का सवाल पैदा हुआ और उसकी ज़रूरत महसूस हुई कि किसी मुक़द्दस हस्ती के हाथ से इसकी इब्तेदा की जाय तो उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ ने हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) ही को सब पर तरजीह दी।(वफ़ा अल वफ़ा जिल्द 1 पृष्ठ 386 ) इसी ने फ़िदक वापस किया था और अमीरल मोमेनीन (अ.स.) पर से तबर्रा की वह बिदअत जो माविया ने जारी की थी बन्द कराई थी।
Mustdrak al hakim -2653
Hazrat Ikramah رضی اللہ عنہ farmatay hain: Ibn Abbas رضی اللہ عنہما ne mujhe aur apne betay Ali se kaha: Tum dono Abu Saeed Khudri رضی اللہ عنہ ke paas chale jao aur unse Khawarij ke mutaliq koi hadith sun kar aao. Hum dono chal diye, Hazrat Abu Saeed Khudri رضی اللہ عنہ apne bagh mein kaam kar rahe thay. Jab unho ne humein dekha to apni chadar durust kar ke humse baatain karne lag gaye hatta ke masjid ke mutaliq baat chal nikli, woh kehne lage: Hum ek ek eent utha rahe thay jabke Ammar do do eentein utha rahe thay, jab Rasool e Akram ﷺ ne unko dekha to unke sar se mitti jhaarte huay bole: “Aey Ammar! Apne dosray sathiyon ki tarah tum bhi ek ek eent kyun nahi utha rahe?” Ammar ne jawab’an kaha: “Main Allah Ta’ala ki bargah mein ajar ka talabgaar hoon.” (Abu Saeed) farmatay hain: “Rasool e Akram ﷺ phir unke sar se mitti jhaarne lag gaye aur farmaya: ‘Aey Ammar! Afsos hai ke tujhe ek baghi giroh qatal kar dega.'” Abu Ammar bole: “Main fitnon se Allah ki panah mangta hoon.”
Ye hadith Imam Bukhari رحمۃ اللہ علیہ ke mayaar ke mutabiq sahih hai lekin Shaykhain ne isay in alfaaz ke hamrah naql nahi kiya.

हजरत निजमुद्दीन औलिया के यहां लंगर होता था बहुत ही जोर दार लंगर दूर दूर से आने वाले आपके लंगर खाने से लंगर खा कर अपना पेट भरते
तभी कुछ बादशाह के सिपाहियों ने बादशाह के कान भरना शुरू कर दिए की सरकार राशन पानी आपका और लंगर खाने में नाम होता है निज़ामुद्दीन का तभी बादशाह उनकी बातो में आ गया
और अपने सिपाहियों से कहा कि जाओ निज़ामुद्दीन औलिया से कहना कि आज से बादशाह लंगर खाने में कोई चन्दा नहीं देगा
बस फिर बादशाह का सिपाही निज़ामुद्दीन औलिया की बारगाह में आया और बोला कि आज से लंगर खाने में बादशाह की तरफ से जो चन्दा अता है वो बंद
निज़ामुद्दीन औलिया को जलाल आया और बोले अपने बादशाह से कह देना की तेरे बादशाह का चन्दा बंद हुआ है
निज़ामुद्दीन औलिया का लंगर बंद नहीं होगा आज तक एक टाइम चलता था आज से दो टाइम चलेगा
अब सिपाही और मुरीद सब हैरान की एक टाइम के लंगर के लिए चंदे की जरूरत होती थी ये दो टाइम कहा से चलेगा
जब मुरीदों को हैरान परेशान देखा तो अपने फरमाया की घबराते क्यू हो जितना पैसा चाइए मेरे मुसाल्लेे के नीचे से निकाल लेना अल्लाहु अकबर ये है अल्लाह वाले जिस जगह इबादत करले खुदा की कसम उस जगह को भी सोना बनादे
खैर लंगर तो बंद नहीं हुआ लेकिन दूसरे दिन खबर आई कि बादशाह का पेशाब बंद हो गया सारे हकीमों को दिखाया लेकिन कोई फायदा नहीं अबे जिसे निज़ामुद्दीन बंद करदे उसे कोई हकीम कैसे खोले
जब बादशाह की मा को सारा माजरा पता चला तो बादशाह की मा हजरत निजामद्दीन औलिया के दरबार में गई और अर्ज़ करने लगी हुजूर मै मानती हूं मेरा बेटा गुस्ताख है मै मानती हू मेरे बेटे ने गलती की है
लेकिन है तो वो मेरा बेटा अगर वो ठीक ना हुआ तो मै आपके दरवाज़े पे सर पटक पटक के अपनी जान दे दूंगी
हजरत निजामुद्दीन औलिया मुस्कुराए और कहा ठीक है तेरा बेटा ठीक हो जाएगा लेकिन मेरी एक शर्त है बुढ़िया ने कहा क्या शर्त है हजरत निजामुद्दीन औलिया ने कागज और कलम दिया और कहा कि अपने बेटे से कहना कि सारी सल्तनत मेरे नाम लिखदे
बुढ़िया ने कलम कागज लिया और अपने बेटे के पास गई और कहा बेटा बाबा ने पर्चा दिया है और कहा है सारी सल्तनत मेरे नाम लिखदे अब मरता क्या नहीं करता उसकी जान पे बनी है उसने फौरन कहा मा जल्दी पर्चा ला और पर्चा लेकर उसमें लिख दिया मेरी सारी सल्तनत निज़ामुद्दीन औलिया के नाम जैसे ही लिख कर साइन करी वैसे ही पेशाब चालू हो गया बादशाह की जान में जान आई
बुढ़िया ने पर्चा लिया और फौरन निज़ामुद्दीन औलिया की बारगाह में गई और कहा बाबा लो पर्चा मैंने सब लिखवा लिया है निज़ामुद्दीन औलिया ने पर्चा देखा आप मुस्कुराए और पर्चा फाड़ के फेक दिया
बुढ़िया कहने लगी बाबा जब फाड़ना था तो लिखवाया क्यू और जब लिखवा लिया था तो फाड़ा क्यू
हजरत निजामुद्दीन औलिया ने फरमाया कि ये इसलिए क्या की तेरे बेटे का गुरूर ख़तम हो जाय और वो। ये जान ले की हुकूमत उसके बाप की नहीं बल्कि हुकूमत कल भी हमारी थी और आज भी हमारी है
सुभानल्लाह क्या शान हे अल्लाह के वालियों की
Amirul Momenin Ali a.s ki Ata’at Sab logo par Wajeeb
📚 *Mustarak Al Hakeem*
*Hadees .no. 4617*
Hazrat Abu Zar R.A ne Kaha ..Rasool s.a.w ne farmaya… *Jisne Meri Ata’at ki Isne Allah ki Ata’at ki*
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📚 *Mustarak Al Hakeem*
*Hadees .no. 4617*
Jild 4
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