
सुबह ग्यारह मुहर्रम
वाक़्या यह है कि अली (अ.स.) की बेटियां रसूल (स.व.व.अ.) की नवासियां बे महमिल व अमारी के नाक़ों पर सवार कर के दरबारे कूफ़ा में दाखिल की गईं, फिर एक हफ़्ता उन्हें कूफ़े के क़ैद ख़ाने में रखा गया। इसके बाद इन ग़रीबों को बारह रबीउल अव्वल 61 हिजरी यौमे चहार शम्बा को शाम पहुँचा दिया गया और वहां एक साल क़ैद में रखा गया। फिर वहां से रिहाई के बाद आले रसूल (स.व.व.अ.) 20 सफ़र 62 हिजरी करबला होते हुए आठ रबीउल अव्वल 62 हिजरी वारिदे मदीना मुनव्वरा हुए ।
इस इजमाल की मुख़्तसर अलफ़ाज़ में तफ़सील यह है कि ग्यारहवीं मोहर्रम यौमे शम्बा को शिम्र बिन जिलजौशन ने हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ. स.) से कहा कि अब तुम्हें औरतों और बच्चों समेत दरबारे इब्ने ज़ियाद में चलना होगा जो कूफ़े मे है । इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) ने फ़रमाया कि मैं सानीये ज़हरा से अर्ज़ करता हूँ। चुनान्चे उन्होंने फूफी से अर्ज़ कि । ज़ैनब बिन्ते अली (अ.स.) को जलाल आ गया। फ़ौरन भाई की वसीअत याद आ गई सर झुका कर कहा, बेटा हर मुसीबत बर्दाश्त करूंगी।
फिर रवानगी का बन्दो बस्त शुरू हो गया बे महमिल व अमारी के नाक़ों पर सर बरैहना मुदेराते अस्मत व तहारत सवार की गईं। सरों को ब रवायते नैजों पर
बुलन्द किया गया और शोहदा के लाशों को ज़मीने गर्म पर छोड़ कर काफ़ला कूफ़ा के लिये रवाना हो गया। बाज़ारो कूफ़ा में दाख़ले के वक़्त हज़रत ज़ैनब ( स.व.व.अ.) की फ़रियादी आवाज़ को मानन्द करने के लिये बाजों की आवाज़ तेज़ करा दी गई। ब रवायते हज़रत ज़ैनब ने मातम शुरू कर दिया फिर इनके हाथ पसे गरदन से बांध दिये गए। कूफ़े में दाखिला हुआ। बाज़ारे कूफ़ा में हज़रत ज़ैनब व उम्मे कुलसूल, हज़रत फ़ात्मा बिन्ते हुसैन और हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ. स.) ने ज़बरदस्त तक़रीर की और वाक़िये पर भरपूर रौशनी डाली। दारूल अमारा के दरवाज़े पर सरे मुस्लिम बिन अक़ील (अ.स.) लटका हुआ देखा गया। इब्ने ज़ियाद ने मुख़्तार को क़ैद ख़ाने से बुलाया और सरे हुसैन (अ. स.) तश्ते तिला में रख कर उनके सामने लाया गया, फिर छड़ी से दनदाने मुबारक इमाम हुसैन (अ.स.) के साथ बे अदबी की गई। एक हफ़्ता कूफ़े के क़ैद ख़ाने में मुख़राते अस्मत व तहारत को क़ैद रखने के बाद हुसैनी काफ़ले को शाम के लिये रवाना कर दिया गया। जो ब रवायते 36 दिन में और ब रवाएते 16 रबीउल अव्वल 61 हिजरी चहार शम्बा के दिन शाम पहुँचा। जब शाम की राजधानी दमिश्क़ में जहां यज़ीद का दरबार लगता था दाखले का मौका आया तो तीन दिन तक इस काफ़ले को 66 ” बाब अल साअत पर ठहराया गया क्यों कि दरबार के सजने में तीन दिन की ज़रूरत बाक़ी थी। फिर दरबार में दाखिला हुआ। हज़ारों कुर्सी नशीन आले मोहम्मद (स.व.व.अ.) की मुख़्दद्देरात (औरतों) का तमाशा देखने के लिये जमा थे।
यज़ीद ने हज़रते ज़ैनब से कलाम करना चाहा। जनाबे फ़िज़्ज़ा ने मज़हमत की । फिर यज़ीद की ताना ज़नी पर बिन्ते अली ने दुख दर्द से भरे हुए अलफ़ाज़ में ज़बरदस्त तक़रीर की। दरबार में हलचल मची और मुद्देराते असमत व तहारत को ऐसे क़ैद खाने में भेज दिया गया जिसमें धूप और औस से बचाव का कोई इन्तेज़ाम न था फिर इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ. स.) ने मस्जिदे दमिश्क़ में यादगार ख़ुतबा दिया जो अज़ान के ज़रिए से मुनक़ेता कर दिया गया। (बिहार जिल्द 10 पृष्ठ 233)
अल ग़रज़ यह हुसैनी काफ़िला तक़रीबन एक साल इस क़ैद ख़ाने में पड़ा रहा। इसी दौरान में हज़रत सकीना का इन्तेक़ाल भी हो गया । कुतूबे मक़ातिल से क़ैद ख़ाने में हिन्दा जौजा ए यज़ीद के आने का भी पता मिलता है। काफ़ी वक़्त गुज़रने के बाद यह काफ़िला रिहा किया गया। एक ख़ाली मकान में मुख़्ते तहारत ने एक हफ़्ता नौहा व मातम किया और शाम की औरतों से ताज़ीयत क़ुबूल की। फिर बशीर बिन जज़लम की रहनुमाई में यह काफ़िला 20 सफ़र 62 हिजरी को करबला पहुँचा। हज़रत जाबिर बिन अब्दुल्लाह अन्सारी जो सहाबिये रसूल और क़ब्रे हुसैन (अ.स.) के मुजाविरे अव्वल थे उन्होंने फ़रयादो फ़ुग़ा की हालत में इन्तेहाई रंजो ग़म के साथ इस काफ़िले का इस्तकबाल किया। ज़ैनब ने क़ब्रे इमाम हुसैन (अ. स.) पर अपने को गिरा दिया। बरावएते तीन दिन तक फ़रयादो फ़ुग़ा और नौहा मातम के बाद यह काफ़ला मदीना ए मुनव्वरा को रवाना हुआ। क़रीबे
मदीना काफ़िला ठहरा। बशीर ने ख़बरे ग़म अहले मदीना तक पहुँचाई, ज़ूक़ दर ज़ूक़ अहले मदीना क़ाफ़िले के मुस्तक़र पर सरो पा बरैहना रोते पीटते जमा हो गए। मोहम्मद हनफ़िया भी आए, अब्दुल्लाह बिन जाफ़र भी आए और उम्मे सलमा भी आईं। उम्मे सलमा के एक हाथ में फ़ात्मा सुग़रा का हाथ था और एक हाथ में वह शीशी थी जो रसूले ख़ुदा दे गए थे और इसमें करबला की मिट्टी ख़ून हो गई थी। काफ़िला दाखिले मदीना हुआ। हज़रत उम्मे कुलसूम ने मरसिया पढ़ा जिसका पहला शेर यह है।
मदीनात जना ला तक़बलीना,
फ़बल हसराते वाहज़ान जैना
तरजुमा:- ऐ हमारे नाना के मदीने तू हमें क़ुबूल न कर ( क्यों कि हम कुबूल किए जाने के क़ाबिल नहीं हैं) हम यहां हसरतों मुसीबतों और अन्दोह ग़म के साथ वापस आए हैं।
मदीने में दाखिले के बाद रौज़ा ए रसूल (स. व. व.अ.) पर बेपनाह फ़रयादो फ़ुग़ां की गई 15 शबाना रोज़ बनी हाशिम के घरों में चुल्हा नहीं जला और इनके घरो से धुआं नहीं उठा। इस वाकेए हाल के बाद हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ. स.) चालिस साल ज़िन्दा रहे और शबो रोज़ गिरया ओ ज़ारी फ़रमाते रहे। यही हाल हज़रत ज़ैनब, उम्मे कुलसूम और हज़रत फ़ात्मा नीज़ दीगर तमाम शुरका गिरदाब व मसाएब का रहा ता ज़िन्दगी इनके आंसू सूखे नहीं ।





