चौदह सितारे पार्ट 97

शामे ग़रीबा

शहादते इमाम हुसैन (अ.स.) के बाद अस्पे वफ़ा दार ने अपनी पेशानी इमाम हुसैन (अ.स.) के ख़ून मे रंगीन कर के अहले हरम में ख़बरे शहादत पहुँचा दी थी

जिसकी वजह से ख़ेमें में कोहरामे अज़ीम बपा ही था कि दुश्मनों ने खेमों का रूख किया और पहुँचते ही ख़ैमों में आग लगा दी और सामान लूटना शुरू कर दिया। अहले बैते रसूल (स.व.व.अ.) फ़रियादों फ़ुग़ां की आवाज़े बलन्द कर रहे थे और कोई फ़रयाद रस और पुरसाने हाल न था। तमाम बीबीयों के सरों से चादरें छीन लीं। फ़ात्मा बिन्ते हुसैन (अ.स.) के पैरों से छागलें उतार लीं और हज़रत ज़ैनब व उम्मे कुलसूम के कानों से गोशवारे खींच लिये। सय्यदे सज्जाद (अ.स.) के नीचे से बिस्तर खींच कर उन्हें ज़मीन पर डाल दिया। ग़रज़ कि एक ऐसा हशर बरपा कर दिया गया जो न किसी के हाथ कभी रवा रखा गया था और न इससे क़ब्ल सुनने में आया था। इन हालात को देख कर एक औरत जो क़बीला ए बकर इब्ने वाएल से थी एक तलवार का टुकड़ा ले कर इन मुख़ालिफ़ों पर हमलावर हुई जो आले रसूल (स.व.व.अ.) को लूट रहे थे। बाज़ रवायतों में है कि एक बच्चे के कुर्ते में आग लगी हुई थी और वह बाहर की तरफ़ भाग रहा था, जैसे हवा लगती थी आग भड़क जाती थी, यह हाल देख कर एक दुश्मन ने तरस खाया, और बढ़ कर दामन से आग बुझा दी, नौनिहाल ने जब उसे अपने ऊपर मेहरबान पाया तो पूछने लगा कि ऐ शेख नजफ़ का रास्ता किधर है? उसने कहा ऐ फ़रज़न्द इस कमसिनी में नजफ़ का रास्ता क्यों पूछते हो? फ़रमाया मैं अपने नाना के पास जा कर उनके सामने फ़रयाद करूंगा। (किताब तौज़ीह में यह वाक़ेया जनाबे सकीना की तरफ़ मन्सूब है)
अल ग़रज ज़ल्मों जौर की इन्तेहा हो रही थी किसी बीबी की पुश्त पर ताज़याने लगाए जा रहे थे किसी के रूखसार पर तमाचे लगा रहे थे किसी की पीठ पर नैज़े की अनी चुभोई जा रही थी। जब सब कुछ लूटा जा चुका, ख़ैमे जल चुके और शाम आ गई तो वहीं के जले भुने गल्ले के दानों से और ब रवाएते हुर की बीवी दाना पानी लाई और फ़ाक़ा शिकनी की गई।

इसके बाद हज़रत ज़ैनब ने जनाबे उम्मे कुलसूम से फ़रमाया कि बहन अब त हो चुकी है, तारीकी छाई हुई है, तुम सब औरतों और बच्चों को एक जगह जमा करो, उनकी हिफ़ाज़त में मैं रात भर पहरा दूंगी। हज़रत उम्मे कुलसूम ने सब बीबीयों को जमा कर लिया लेकिन उन्हें जनाबे सकीना न मिलीं, आपने जनाबे ज़ैनब से अर्जे वाक़िया किया, जनाबे ज़ैनब मक़तल की तरफ़ हज़रत सकीना को तलाश करने के लिये निकलीं। एक नशेब से सकीना के रोने की आवाज़ आई, जा कर देखा कि सकीना बाप के सीने से लिपटी हुई गिरया कर रही है। जनाबे जैनब उन्हें खेमे में ले आईं। जनाबे सकीना का बयान है कि उस वक़्त बाबा की कटी गरदन से यह आवाज़ आ रही थी

शिअती मा अन शरबतुम, मा अज़बे फ़ाज़ करूनी

औ समअतुम बेग़रीब ओ शहीद फ़ानद बूनी

व अनल सिब्तल लज़ी, मन ग़ैरे जुर्मिन क़तलूनी
व मजब्र द्दल ख़ल्ल बाअदल क़त्ल सहक़ूनी

ताकुम फ़ी यौमे आशूरा, जमीआ तन्ज़रूनी कैफ़ा असतसक़ी लुतफ़ली फ़ा बवाअन यरहमूनी

तरजुमाः ऐ मेरे शियों ! जब ठन्डा पानी पीना तो मुझे याद करना और जब किसी ग़रबी या शहीद के वाक़ेआत सुनना तो मुझ पर गिरया करना । ऐ मेरे दोस्तों सुनो मैं रसूल (स.व.व.अ.) का वह मज़लूम नवासा हूँ जिसे बिला जुर्म व ख़ता दुश्मनों ने क़त्ल कर दिया और फिर क़त्ल के बाद उसकी लाश पर घोड़े दौड़ा दिये। ऐ मेरे शियों ! काश तुम आज आशूरा के दिन होते तो यह रूह फ़रसा मनाज़िर देखते कि मैं अपने प्यासे बच्चे अली असग़र के लिये किसी तरह पानी मांग रहा था और यह संग दिल किस दिलेरी और बेबाकी से इन्कार कर रहे थे।

ग़रज़ कि हज़रत ज़ैनब जनाबे सकीना को बाप के सीने से समझा बुझा कर उठा लाईं और उन्हें जनाबे उम्मे कुलसूम के सिपुर्द कर के तिलाया फिरना शुरू कर दिया। (दमए साकेबा)

रात का काफ़ी हिस्सा गुज़रने के बाद जनाबे ज़ैनब ने देखा कि एक सवार घोड़ा बढ़ाये चला आ रहा है। आपने बढ़ कर उससे कहा कि हम आले रसूल (स.व.व.अ.) हैं हमारे छोटे बड़े, बूढ़े, जवान जब आज ही क़त्ल किये जा चुके हैं। अब हमारे छोटे छोटे बच्चे अभी रोते रोते सो गए हैं। ऐ सवार अगर तुझे हम को ज़्यादा
लूटना मक़सूद है तो सुबह आ जाना और जो कुछ हमारे पास रह गया है उसे भी लूट लेना, लेकिन देख इन बच्चों को न सता और उन्हें सोने दे। ख़ुदा के लिये इस वक़्त चला जा, लेकिन सवार ने एक न सुनी और घोड़े के क़दम बराबर बढ़ते ही रहे। आखिर ज़ैनब भी शेरे ख़ुदा की बेटी थीं, उन्हें जलाल आ गया और उन्होंने लजामे फ़रस पर बढ़ कर हाथ डाल दिया, और कहा कि मैं क्या कहती हूँ और तू क्या करता है। यह हाल देख कर सवार घोड़े से उतर पड़ा और ज़ैनब को सीने से लगा कर कहने लगा, ऐ बेटी मैं तेरा बाप अली हूँ, बेटी तेरी हिफ़ाज़त के लिये आया हूँ, ऐ जाने पदर तू बच्चों में जा मैं तेरी हिफ़ाज़त करूंगा। ज़ैनब ने फ़रियादो फ़ुग़ा शुरू कर दी और तमाम वाक़ियात बयान किये। अल ग़रज़ जब यह अश्र आफ़रीं रात तमाम हुई तो हुक्मे उमरे साद से लशकरियों ने आ कर आले रसूल ( स.व.व.अ.) को घेर लिया और बिला महमिल व कजावे के नाक़ों पर सवार होने को कहा। चारो नाचार रसूल ज़ादियां नाक़ों पर सवार हुईं। हाल यह था कि सर खुले हुए थे, बाल बिखरे हुए थे और आंखों से आंसू जारी थे। इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) की अलालत की वजह से चूंकि ताबो तवां न रखते थे, इस लिये सवार होने से परेशानी थी। शिम्र ने ताज़ियाने से अज़ीयत पहुँचाई और फ़िज़्ज़ा ने दौड़ कर इमाम (अ.स.) को मदद दी और आप नाक़े पर सवार हो गए लेकिन ताक़त न होने की वजह से नाक़े की पुश्त पर संभलना दुश्वार था इस लिये दुश्मनाने इस्लाम ने आप के पैरों को नाके के पेट से मिला कर बांध दिया।
( असरारूल शहादत)

फिर उसके बाद उस काफ़िले को ले कर कूफ़े के लिये रवाना हुए और ग़ज़ब यह किया कि इन रसूल ज़ादियों को मक़तल की तरफ़ से गुज़ारा । मुवर्रेख़ीन का बयान है कि जैसे ही यह हुसैनी काफ़िला मक़तल में पहुँचा हश्र का समा पेश हो गया। ज़ैनब ने अपने को नाके से गिरा दिया और फ़रयादों फ़ुगां करने लगीं। आपने कहा ऐ मोहम्मद मुस्तफ़ा ( स.व.व.अ.) जिन पर मलाएका आसमान से दुरूद भेजते हैं देखिये यह हुसैन (अ.स.) ख़ाको ख़ून में आलूदा टुकड़े टुकड़े हो कर चटीयल मैदान में पड़े हैं। आपकी बेटियां और नवासियां क़ैदी हैं। आप की अवलाद मक़तूल है और हवा उन पर खाक उड़ा रही है।

यह दर्दनाक मरसिया सुन कर दोस्त व दुश्मन कोई ऐसा न था जो रोने न लगा हो। उस वक़्त उन लोगों को महसूस हुआ कि वह किस क़द्र शदीद गुनाह के मुरतकिब हुए हैं लेकिन अब क्या हो सकता था। (अल हुसैन अबू नसर पृष्ठ 155 ) दम उस साकेबा में है कि जनाबे ज़ैनब की फ़रियाद से जानवर भी रोने लगे और उनकी आखों से आंसू टपक रहे थे। इस तरह हज़रत उम्मे कुलसूम भी नौहा ओ फ़रियाद कर रही थीं और जनाबे सकीना भी महवे गिरयाओ मातम थीं। बिल आखिर दुश्मनों के तशद्दुद से यह काफ़ेला आगे बढ़ गया और आले रसूल की लाशें बे गोरो कफ़न ज़मीने गर्म करबला पर पड़ी रहीं। चंद दिनों के बाद बनी असद ने उन पर नमाज़ें पढ़ीं और उन्हें सिपुर्दे ख़ाक कर दिया ।