चौदह सितारे पार्ट 96

इमाम हुसैन (अ. स.) की नबर्द आज़माई

मोहाएदे के मुताबिक़ आपसे लड़ने के लिये लश्करे शाम से एक एक शख़्स आने लगा और आप उसे फ़ना के घाट उतारने लगे। सब से पहले जो शख़्स मुक़ाबले के लिये निकला वह ख़मीम इब्ने क़हतबा था आपने इस पर बरक़ ख़ातिफ़ की तरह हमला किया और उसे तबाह व बरबाद कर डाला। यह सिलसिला ए जंग थोड़ी देर जारी रहा और मुद्दते क़लील में कुश्तों के पुश्ते लग गए और मक़तूलीन की तादाद हदे शुमार से बाहर हो गई। यह देख कर उमरे साद ने लश्कर वालों को पुकार कर कहा क्या देखते हो सब मिल कर यक बारगी हमला कर दो। यह अली का शेर है इससे इनफ़ेरादी मुक़ाबले में कामयाबी क़त्अन न मुम्किन है। उमरे साद की इस आवाज़ ने लश्कर के हौसले बुलन्द कर दिये और सब ने मिल कर यक बारगी हमले का फ़ैसला किया। आपने लश्कर के मैमना और मैसरा को तबाह कर दिया। आपके पहले हमले में एक हज़ार नौ सौ पचास दुश्मन क़त्ल हुए और मैदान ख़ाली हो गया। अभी आप सुकून न लेने पाए थे कि अठ्ठाइस हज़ार दुश्मनों ने फिर हमला कर दिया। इस तादाद मे चार हज़ार कमान दार थे। अब सूरत यह हुई कि सवार प्यादे और कमान दारों ने हम आहंग व हम हमल हो कर मुसलसल मुतावातिर हमले शुरू कर दिये। इस मौक़े पर आपने जो शुजाअत का जौहर
दिखाया इसके मुताअल्लिक़ मुवर्रेख़ीन का कहना है कि सर बरसने लगे, धड़ गिरने

लगे और आसमान थरथराया, ज़मीं कांपी, सफ़े उल्टी, परे दरहम बरहम हो गए। अल्लाह रे हुसैन का वो आख़री जिहाद, हर वार पर अली ए वली दे रहे थे दाद कभी मैसरा को उलटते थे कभी मैमना को तौड़ते हैं कभी कल्बे लश्कर में दरआते हैं कभी जिनाहे लश्कर पर हमला फ़रमाते हैं। शामी कट रहे हैं कूफ़ी गिर रहे हैं। लाशों के ढेर लग रहे हैं। हमले करते हुए फ़ौजों को भगाते हुए नहर की तरफ़ पहुँच जाते हैं। भाई की लाश तराई पर पड़ी नज़र आती है। आप पुकार कर कहते हैं, ऐ अब्बास तुम ने यह हमले न देखे, यह सफ़ आराई न देखी अफ़सोस तुम ने मेरी तन्हाई न देखी ।

अल्लामा असफ़रानी का कहना है कि इमाम हुसैन (अ. स.) दुश्मनों पर हमला करते थे तो लशकर इस तरह से भागता था जिस तरह से टिड्डियां मुन्तशिर हो जाती हैं। नूरूल एैन में एक मुक़ाम पर लिखा है कि इमाम हुसैन (अ.स.) बहादुर शेर की तरह हमला फ़रमाते और सफ़ों को दरहम बरहम कर देते थे और दुश्मनों को इस तरह काट कर फेंक देते थे जिस तरह तेज़ धार आले से खेती कटती है।

अल्लामा अरबली लिखते हैं कि आँ हज़रत हमलागरां अफ़गन्द हर कि बाद कशीद शरबते मर्ग नोशीद व बहर जानिब कि ताख़त गिरोहे रा बख़ाक अन्दाख़्त 66 कोई आपके अज़ीमुश्शान हमले की कोई ताब न ला सकता था, जो आपके सामने “
आता था शरबते मर्ग से सेराब होता था और आप जिस जानिब हमला करते थे गिरोह के गिरोह को ख़ाक में मिला देते थे। (कशफ़ुल ग़म्मा)

मुवर्रीख़ इब्ने असीर का बयान है कि जब इमाम हुसैन (अ.स.) को यौमे आशुरा दाहिने और बाएँ जानिब से घेर लिया गया तो आपने दाईं जानिब हमला कर के सब को भगा दिया। फिर पलट कर बाईं जानिब हमला करते हुए तो सब को मार कर हटा दिया। ख़ुदा की क़सम हुसैन (अ. स.) से बढ़ कर किसी शख़्स को ऐसा क़वी दिल, साबित क़दम बहादुर नहीं देखा गया जो शिकस्ता दिल हो, सदमे उठाए हुए हो, बेटों अज़ीज़ों और दोस्त अहबाब के दाग़ भी खाए हुए हो और फिर हुसैन (अ.स.) की सी साबित क़दमी और बे जिगरी से जंग कर सके। ब ख़ुदा दुश्मनों की फ़ौज के सवार और प्यादे हुसैन (अ.स.) के सामने इस तरह भागते थे जिस तरह भेड़ बकरियों के ग़ल्ले शेर के हमले से भागते हैं। हुसैन (अ. स.) जंग कर रहे थे इज़न ख़रजता ज़ैनब कि जनाबे ज़ैनब खेमे से निकल आईं और फ़रमाया, काश आसमान ज़मीन पर गिर पड़ता। ऐ उमरे साद तू देख रहा है और अबू अब्दुल्लाह क़त्ल किये जा रहे हैं। यह सुन कर उमरे साद रो पड़ा। आंसू दाढ़ी पर बहने लगे और उसने मुंह फेर लिया। इमाम हुसैन (अ. स.) उस वक़्त ख़ज का झुब्बा पहने हुए थे, सर पर अमामा बंधा हुआ था और वसमा का ख़िज़ाब लगाए हुए थे। हुसैन (अ. स.) ने घोड़े से गिर कर भी उसी तरह जंग फ़रमाई जिस तरह जंग जू बहादुर सवार जंग करते थे, हमलों को रोकते थे और सवारों के पैरों पर हमले फ़रमाते थे। ” ८८
ऐ ज़ालिमों ! मेरे क़त्ल पर तुम ने ऐका कर लिया है। क़सम ख़ुदा की तुम मेरे क़त्ल से ऐसा गुनाह कर रहे हो जिसके बाद किसी के क़त्ल से भी इतने गुनाह गार न होगे। तुम मुझे ज़लील कर रहे हो और ख़ुदा मुझे इज़्ज़त दे रहा है और सुनो वह दिन दूर नहीं कि मेरा ख़ुदा तुम से अचानक बदला ले लेगा। तुम्हें तबाह कर देगा, तुम्हारा ख़ून बहाएगा, तुम्हें सख़्त अज़ाब में मुब्तिला कर देगा। (तारीखे कामिल जिल्द 4 पृष्ठ 40)

मिस्टर जेम्स कारकरन इमाम हुसैन (अ.स.) की बहादुरी का ज़िक्र करते हुए वाक़ेए करबला के हवाले से लिखते हैं कि “ दुनियां में रूस्तम का नाम बहादुरी मे मशहूर है लेकिन कई शख़्स ऐसे गुज़रे हैं कि इनके सामने रूस्तम का नाम लेने के क़ाबिल नहीं। चुनान्चे अव्वल दर्जे में हुसैन इब्ने अली (अ.स.) हैं क्यों कि मैदाने करबला में गर्म रेत पर और भूख के आलम में जिस शख़्स ने ऐसा ऐसा काम किया हो, उसके सामने रूसतम का नाम वही शख़्स लेता है जो तारीख़ से वाक़िफ़ नहीं है। किसके क़लम को क़ुदरत है कि इमाम हुसैन (अ.स.) का हाल लिखे, किसकी ज़बान मे ताक़त है कि इन बहत्तर बुजुर्गवारों की साबित क़दमी और तेवरे शुजाअत और हज़ारों खू ख़्वार सवारों के जवाब देने और एक एक के हलाक हो जाने के बाब में ऐसी तारीफ़ करे, जैसी होनी चाहिये । किस के बस की बात है जो इन पर वाक़े होने वाले हालात का तसव्वुर कर सके। लश्कर में घिर जाने के बाद से शहादत तक के हालात अजीब व ग़रीब क़िस्म की बहादुरी को पेश करते हैं। यह
सच है कि एक की दवा, दो मशहूर हैं और मुबालगा की यही हद है कि जब किसी हाल में यह कहा जाता है कि तुम ने चार तरफ़ से घेर लिया लेकिन हुसैन (अ. स.) और बहत्तर तन को आठ क़िस्म के दुश्मनों ने तंग किया था। चार तरफ़ से यज़ीदी फ़ौज जो आंधी की तरह तीर बरसा रही थी। पांचवा दुश्मन अरब की धूप, छठा दुश्मन गर्म रेत जो तनूर के ज़र्रात की मानिन्द जान लेवा हरकतें कर रहे थे। पस जिन्होंने ऐसे मारके में हज़ारों काफ़िरों का मुक़ाबला किया हो इन पर बहादुरी का ख़ात्मा हो चुका, ऐसे लोगों से बहादुरी में कोई फ़ौक़ीयत नहीं रखता । ” ( तारीख़े चीन दफ़्तर दोम बाब 16 जिल्द 2 )

इमाम हुसैन (अ.स.) अपने मक़तूल बहादुरों को पुकारते हुए

भूख और प्यास के आलम में नबर्द आज़माई की भी कोई हद होती है। आखिर कार जब इमाम हुसैन (अ.स.) का जिस्मे मुबारक तीरों से मिस्ले साही हो गया और आप बेहद ज़ख़्मी हो गए तो आप अपने बहादुर मक़तूलों की तरफ़ मुतवज्जा हो कर फ़रमाने लगे, ” ऐ बहादुर शेरो उठो और हुसैन की मद्द करो, बेशक तुम ने बड़ी मद्द की और तुम मेरी हिमायत में सर से गुज़र गए हो, जान से बे नियाज़ हो गए हो लेकिन सुनो अब वक़्त व हालात का तक़ाज़ा यह है कि इस वक़्त मेरी मद्द करो ” लेकिन अफ़सोस जान से गुज़र जाने वाले हयाते ज़ाहिरी से ” महरूम क्यों कर मद्द करते। बाज़ रवायतों में है कि आपकी आवाज़ पर ज़ाफ़र
जिन ने लब्बैक कही और इमदाद की दरख्वास्त की । आपने यह कह कर उसे मुस्तरद कर दिया कि मैं इम्तिहान देने के लिये आया हूँ और इतमामे हुज्जत के लिये सदाए इम्दाद बुलन्द की है वरना मुझे मद्द की ज़रूरत नहीं है। एक रवायत में है कि फिर फ़रिश्तों ने मदद करना चाही उन्हें भी जवाब दे दिया। एक और रवायत में है कि हुसैन (अ.स.) की इस आख़री पुकार पर कटी हुई गरदनों से लब्बैक की आवाज़ आई।

बारगाहे अहदीयत में इमाम हुसैन (अ.स.) के दिल की अवाज़ झुन्ड हुसैन (अ.स.) यको तन्हा, बे यारो मद्दगार, जलती हुई ज़मीन पर दुश्मनों के में खड़े हैं और नाना रसूले ( स.व.व.अ.) अरबी का अमामा जिसके पेच कटे हुए ख़ून से भरा हुआ सर पर है, पै रहने अहमदी ज़ैबे तन है लेकिन तीरों से छलनी और ख़ून से रंगीन है। क़बा का दामन अली अकबर के ख़ून से लाल, चेहरा ए अनवर अली असग़र के ख़ून से गुलनार है, पेशानी मुबारक से ख़ून टपक रहा है और अब्बास (अ.स.) के ग़म से कमर टूट चुकी है। प्यास से कलेजा फुक रहा है, अन्सार की लाशें सामने पड़ीं हैं, बराबर का बेटा कड़ियल जवान, शबीहे पयम्बर सीने पर बर्फी खाए ख़ून से नहाए सो रहा है। भाई की निशानी क़ासिम इब्ने हसन (अ. स.) ख़ून की मेंहदी लगाए उरूसे मौत से हम कनार आराम कर रहा है। बहन के लाडले दाग़ दे कर चले जा चुके हैं। लश्कर की जीनत, बच्चों की ढारस, सकीना
का सक्का, अली का शेर, कुव्वते बाज़ू, शाने कटाए नहर की तराई पर पड़ा है। 6 माह की जान तीरे सेह शोबा की नज़र हो चुकी है। क़त्ल गाह मेना का नक़्शा पेश कर रहा है, ख़्याम से भूखे प्यासे बच्चों के रोने बिल बिलाने की जिगर सोज़ आवाजें आ रही हैं। बीबीयों के रोने और फ़रियाद करने की आवाजें दिल को जला रही हैं लेकिन अल्लाह रे हुसैन (अ.स.) का जज़्बा ए कुर्बानी, यह इश्क़े ख़ुदा का मतवाला, इस्लाम का फ़रेफ़ता, तौहीद का शेफ़ता, सब्रो रज़ा का मुजस्समा, यादे ख़ुदा में महो और मुनाजात में मशगूल है। जैसे जैसे मसाएब व आलाम बढ़ते जाते हैं चेहरा शगुफ़्ता होता जाता है। आप फ़रमाते हैं, मेरे पालने वाले मैं अपनी ज़िन्दगी से उस मौत को पसन्द करता हूँ जो तेरी राह में हो। मेरे मौला मुझे इसमें ख़ुशी महसूस होती है कि मैं सत्तर मरतबा तेरी बारगाह में शहीद किया जाऊ और इस क़त्ल पर फ़ख़ करता हूं जिस में तेरे दीन की नुसरत का राज़ मुज़मिर हो। इसके बाद आप अर्ज़ करते हैं, तरकतुल नास तरानी हवाक व अतीमतुल अयाल लकी अराक 1. मेरे मालिक तू जानता है और बेहतर जानता है कि मैंने तेरी मोहब्बत में सब से हाथ उठा लिया है और फ़क़त तेरे दीदार के शौक़ में अहलो अयाल को छोड़ दिया और बच्चों को यतीम बना दिया। 2. मालिक अगर तेरे दीदारे इश्क़ में मेरे टुकड़े कर दिए जाएं तब भी मेरा दिल तेरे सिवा किसी और की तरफ झुक नहीं सकता। यह कह कर आपने तलवार नियाम में रख ली क्यों कि सदा ए आसमानी आ गई थी कि ” ” अपना वादा ए तिफ़ली पूरा करो आपक
हाथों का रूकना था कि सारा लश्कर मुसलसल हमले पर आमादा हो गया और चालीस हज़ार अफ़राद ने आपको घेरे में ले कर वार करना शुरू कर दिया।

इमाम हुसैन (अ.स.) अर्शे ज़ीन से फ़रशे ज़मीन पर

आप पर मुसलसल वार हो रहे थे कि नागाह एक पत्थ पेशानिये अक़दस पर लगा इसके फ़ौरन बाद अबवाल हतूफ़ जाफ़ई मलऊन ने जबीने मुबारक पर तीर मारा आपने उसे निकाल कर फेंक दिया और ख़ून पोछने के लिये आप अपना दामन उठाना ही चाहते थे कि सीना ए अक़दस पर एक तीरे सह शोबा पेवस्त हो गया, जो ज़हर में बुझा हुआ था। इसके बाद सालेह इब्ने वहब लईन ने आपके पहलू पर अपनी पूरी ताक़त से एक नेज़ा मारा जिसकी ताब न ला कर आप ज़मीने गर्म पर दाहिने रूख़सार के भल गिरे, ज़मीन पर गिरने के बाद आप फिर उठ खड़े हुए, वरआ इब्ने शरीक लईन ने आपके दायें शाने पर तलवार लगाई और दूसरे मलऊन ने दाहिने तरफ़ वार किया। आप फिर ज़मीन पर गिर पड़े, इतने में सिनान बिन अनस ने हज़रत के 66 ” तरकूह हसली पर नैज़ा मारा और उसको खैंच कर दूसरी दफ़ा सीना ए अक़दस पर लगाया। फिर इसी ने एक तीर हज़रत के गुलू ए मुबारक पर मारा इन पैहम ज़रबात से हज़रत कमाले बेचैनी से उठ बैठे और आपने तीर को अपने हाथो से खींचा और ख़ून रीशे मुबारक पर मला। इसके बाद मालिक बिन नसर कन्दी लईन ने सरपर तलवार लगाई और वरह इब्ने शरीक
शाने पर तलवार का वार किया। हसीन बिन नमीर ने दहने अक़दस पर तीर

मारा। अबू अय्यूब ग़नवी ने हलक़ पर हमला किया। नसर बिन हरशा ने जिस्म पर तलवार लगाई इब्ने वहब ने सीना ए मुबारक पर नैज़ा मारा। यह देख कर उमरे साद ने आवाज़ दी अब देर क्या है इनका सर फ़ौरन काट लो। सर काटने के लिये शीस इब्ने रबी बढ़ा। इमाम हुसैन (अ. स.) ने इसके चेहरे पर नज़र की उसने हुसैन (अ.स.) की आंखों में रसूल ( स.व.व.अ.) की तसवीर देखी और कांप उठा । फिर सिनान बिन अनस आगे बढ़ा। इसके जिस्म में राशा पड़ गया। वह भी सरे मुबारक न काट सका। यह देख कर शिमरे मलऊन ने कहा, यह काम सिर्फ़ मुझसे हो सकता है और वह ख़न्जर लिये हुए इमाम हुसैन (अ. स.) के क़रीब आ कर सीना ए मुबारक पर सवार हो गया। आपने पूछा तू कौन है? उसने कहा मैं शिम्र हूँ। फ़रमाया, तू मुझे नहीं पहचानता ? इसने कहा “ अच्छी तरह जानता हूँ ” तुम अली व फ़ात्मा के बेटे और मोहम्मद (स.व.व.अ.) के नवासे हो। आपने फ़रमाया फिर मुझे क्यों ज़बह करता है? इसने जवाब दिया इस लिये कि मुझे यज़ीद की तरफ़ से मालो दौलत मिलेगा । (कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 79)

इसके बाद आपने अपने दोस्तों को याद फ़रमाया और सलामे आख़री के जुमले अदा किये। ऐ शिम्र मुझे इजाज़त दे दे कि मैं अपने ख़ालिक़ की आख़री नमाज़े अस्र अदा कर लूँ। इसने इजाज़त दी, आप सजदे में तशरीफ़ ले गए। ( रौज़तुल शोहदा पृष्ठ 277) और शिम्र ने आपके गुलू ए मुबारक को कुन्द ख़न्जर की बारह ज़ब से
क़ता कर के सरे अक़दस को नैज़े पर बुलन्द कर दिया। हज़रत ज़ैनब ख़ैमे से निकल पड़ीं, ज़मीन कांपने लगी, आलम में तारीकी छा गई, लोगों के बदन में कप कपीं पड़ गई। आसमान ख़ू के आंसू रोने लगा। जो शफ़क़ की सूरत में रहती दुनियां तक क़ायम रहेगा। (सवाएके मोहर्रेका पृष्ठ 116) इसके बाद उमरे साद ने खूली बिन यज़ीद और हमीद बिन मुस्लिम के हाथों सरे मुबारक करबला से कूफ़े इब्ने ज़ियाद के पास भेज दिया । ( अल हुसैन अज उमर बिन नसर पृष्ठ 154) इमाम हुसैन (अ.स.) के सरे बुरिदा के बाद आपका लिबास लूटा गया । अखिनस बिन मुरसिद अमामा ले गया, इस्हाक़ इब्ने हशूआ क़मीस पैराहन ले गया। अबहर बिन क़ा पैजामा ले गया। असवद बिन ख़ालिद नालैन ले गया, अब्दुल्लाह बिन असीद कुलाह ले गया, बज़दल बिन सलीम अंगुशतरी ले गया। क़ैस बिन अशअस पटका ले गया। उमर बिन साद जिरह ले गया, जमीह बिन ख़लक़ अज़दी तलवार ले गया। अल्लाह रे ज़ुल्म एक कमर बन्द के लिये जमाल मलऊन ने हाथ क़ता कर दिया। एक अंगूठी के लिये बुज़दिल ने उंगली काट डाली ।

इसके बाद दीगर शोहदा के सर काटे गाए, और लाशों पर घोड़े दौड़ाने के लिये उमरे साद ने लशकरियों को हुक्म दिया दस अफ़राद इस अहम जुर्म खुदाई के लिये तैयार हो गए। जिनके नाम यह है, इस्हाक बिन हवीया, अखनस बिन मरसद, हकीम बिन तुफ़ैल, उमरो बिन सबीह, सालिम बिन खसीमह, सालेह बन वहब, वाएज़ बिन ताग़म, हानि बिन मसबत, असीद बिन मालिक । तवारीख़ में कि फ़ला सवाअल हुसैन ब हवाफ़र ख़ैवलाहुम हत्ती रजू अज़हरा वहमदहू ” इमाम हुसैन (अ.स.) की लाश को इस तरह घोड़ों की टापों से पामाल किया कि आपका सीना और पुश्त टुकड़े टुकड़े हो गई। बाज़ मुवर्रेख़ीन का कहना है कि जब इन लोगों ने चाहा कि जिस्म को इस तरह पामाल कर दें कि बिल्कुल ना पैद हो जाए तो जंगल से एक शेर निकला और उसने लाशा पामाल होने से बचा लिया। (दम साकेबा पृष्ठ 350) अल्लामा इब्ने हजर मक्की लिखते हैं कि हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) की शहादत के फ़ौरन बाद, जो मिट्टी रसूले ख़ुदा ( स.व.व.अ.) जनाबे उम्मे सलमा को दे गए थे ख़ून से लाल हो गई। (सवाएके मोहर्रेका पृष्ठ 115) और रसूले ख़ुदा उम्मे सलमा के ख़्वाब में मदीने पहुँचे, उनकी हालत यह थी कि वह बाल बिखरा ए हुए, सर पर ख़ाक डाले हुए थे। उम्मे सलमा ने पूछा कि आप का यह क्या हाल है फ़रमाया शहादता क़तलन हुसैना अनफ़ा मैं अभी अभी हुसैन के ” क़त्ल गाह में था और अपनी आंखों से उसे ज़बह होते हुए देखा है। (सही तिरमिज़ी जिल्द 2 पृष्ठ 306, मुस्तदरिक हाकिम जिल्द 4 पृष्ठ 19 तहज़ीबुल तहज़ीब जिल्द 2 पृष्ठ 356 ज़ख़ाएरूल ओक़बा पृष्ठ 148 )



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