चौदह सितारे पार्ट 90



शबे आशूर

नवीं का दिन गुज़रा, आशूर की रात आई, इलतवाए जंग के बाद इमाम हुसैन (अ. स.) को जिस चीज़ की ज़्यादा फ़िक्र थी वह यह थी कि अपने असहाब को मौत से बचा लें। आपने रात के वक़्त अपने असहाब और रिश्तेदारों को जमा कर के फ़रमाया, इसमें शक नहीं कि तुम से बेहतर रिश्तेदार और असहाब किसी को नसीब नहीं हुए लेकिन देखो चूंकि यह सिर्फ़ मुझी को क़त्ल करना चाहते हैं इस लिये मैं तुम्हारी गरदनों से तौक़े बैएत उतारे लेता हूँ। तुम रात के अंधेरे में अपनी जाने बचा कर निकल जाओ, यह सुन्ना था कि हज़रते अब्बास, फ़रज़न्दाने मुस्लिम बिन अक़ील, मुस्लिम इब्ने औसजा, ज़ोहर इब्ने क़ैन, साद इब्ने अब्दुल्लाह खड़े हो गये और अर्ज़ करने लगे, मौला आपने यह क्या फ़रमाया, ” अरे लानत है उस ज़िन्दगी पर जो आपके बाद बाक़ी रहे (इब्न अल वर्दी जिल्द 1 ” पृष्ठ 173, इरशाद पृष्ठ 297 व दमए साकेबा पृष्ठ 324 जला उल उयून 199 इन्सानियत मौत के दरवाज़े पर पृष्ठ 72)

ख़ुत्बे के बाद आपने हज़रते अब्बास को पानी लाने का हुक्म दिया। आप 30 सवारों और 20 प्यादों समेत नहर पर तशरीफ़ ले गए और बड़ी देर जंग करने के बवजूद पानी न ला सके। (तज़किराए ख़्वास अल उम्मता पृष्ठ 141) उसके बाद इमाम हुसैन (अ. स.) मौक़ा ए जंग देखने के लिये मैदान की तरफ़ ले गये। वापसी में ख़ैमा ए जनाबे ज़ैनब में गए, जनाबे ज़ैनब ने पूछा भय्या आपने असहाब का इम्तेहान ले लिया है या नहीं? आपने इत्मिनान दिलाया। फिर हिलाल इब्ने नाफ़ए जनाबे ज़ैनब को मुतमईन किया । (दमए साकेबा पृष्ठ 325) जनाबे ज़ैनब से गुफ़्तुगू के बाद आपने फिर एक ख़ुत्बा फ़रमाया और आइज़्ज़ा व असहाब से मिस्ले साबिक़ कहा कि यह लोग मेरी जान चाहते हैं तुम लोग अपनी जाने न दो। यह सुन कर असहाब व रिश्तेदारो ने बड़ा दिलेराना जवाब दिया। (नासिख़ जिल्द 6 पृष्ठ 227) इसके बाद इमाम हुसैन (अ.स.) ने अपने असहाब को जन्नत दिखला दी । (वसाएले मुज़फ़्फ़री पृष्ठ 394 )

अल्लामा कन्तूरी लिखते हैं कि पानी न होने की वजह से खेमे में शदीद इज़तेराब पैदा हो गया और जनाबे ज़ैनब के गिर्द 20 लड़के और लड़कियां जमा हो कर फ़रयाद करने लगीं। (मातीं जिल्द 1 पृष्ठ 318) यह हालत बुरैर हमदानी को मालूम हो गई। वह कुछ साथियो को ले कर नहर पर पहुँचे। ज़बरदस्त जंग हुई। हज़रत अब्बास मदद को भेजे गए। चंद जाबाज़ काम आ गये। ग़ालेबन इसी मौके पर हज़रत अब्बास (अ.स.) के एक भाई अब्बास अल असग़र भी शहीद हुए हैं। (नासिख़ जिल्द 6 पृष्ठ 289 ) अल ग़र्ज़ बुरैर हमदानी बहुत मुश्किल से एक मश्क़ खेमे तक ले ही आये। बच्चे बेताबी की वजह से इस मश्क़ पर जा गिरें और मश्क़ का

मुंह खुल गया, पानी बह गया। बच्चों और औरतों के साथ बुरैर ने भी मुंह पीट लिया और इन्तेहाई हसरत और अफ़सोस के साथ कहा, हाय आले मोहम्मद (स.व.व.अ.) की प्यास न बुझ सकी । (मायतीन जिल्द 1 पृष्ठ 316) अल्लामा काशफ़ी लिखते हैं कि पानी की जद्दो जेहद की नाकामी के बाद इमाम हुसैन (अ.स.) ने हुक्म दिया कि सब अपने अपने खेमों में जा कर इबादत में मशगूल हो जायें । ( रौज़तुल शोहदा पृष्ठ 312)

मुजाहेदीने करबला की आख़री सहर

इमाम हुसैन (अ.स.) और आपके अस्हाब व आईज़्ज़ा मशगूले इबादत हैं। सफ़ैद ए सहरी नमूदार होने को है। ज़िन्दगी की आख़री सुबह होने वाली है। नागाह इमाम हुसैन (अ.स.) की आंख लग गई, आपने ख़्वाब में देखा कि बहुत से कुत्ते आप पर हमला आवर हैं और इन कुत्तों में ए अबलक़ मबरूस कुत्ता है जो बहुत ही सख़्ती कर रहा है। (दमए साकेबा पृष्ठ 326)

अल्लामा दमीरी लिखते हैं कि इमाम हुसैन (अ.स.) को शिम्र ने शहीद किया है जो मबरूस था । (हयातुल हैवान जिल्द 1 पृष्ठ 51)

काशफ़ी का बयान है कि जब सुबह का इब्तेदाई हिस्सा ज़ाहिर हो गया तो आसमान से आवाज़ आई या ख़लील उल्लाह अरक़बी, ऐ अल्लाह के बहादुर सिपाहियों तैय्यार हो जाओ, मौक़ा ए इम्तेहान और वक़्ते मौत आ रहा है। उसके

बाद सुबह हो गई। (रौज़तुल शोहदा पृष्ठ 312, महीजुल एहज़ान पृष्ठ 102)

Leave a comment