
नामहरम औरत को छूना –
एक वाक्या है, जो काफी बड़ा है लेकिन, मैं अपने अल्फाज़ में मुख़्तसर तौर पर बयान कर रहा हूँ ताकि उसके महफूम से सीख हासिल की जा सके। एक सहाबी थे जो हज़रत अली अलैहिस्सलाम के वफादार थे और इमामत ओ विलायत पर भी ईमान रखते थे, एक दफ़ा मौला अली अलैहिस्सलाम की ख़िदमत में हाज़िर हुए और सलाम अर्ज़ किया, हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने जवाब दिया लेकिन मुँह फेर लिया। वो सहाबी रज़िअल्लाह, दूसरी तरफ गए लेकिन हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने दोबारा मुँह फेर लिया। वो सहाबी घबरा , ग़मगीन हो गए और फरमाने लगे, “या मौला! मैं आप अलैहिस्सलाम के दीदार की तलब लेकर आया हूँ और आप मुझसे नाराज़ लग रहे हैं। या मौला ! बताइए मेरी ख़ता क्या है?”, मौला अली अलैहिस्सलाम ने फरमाया, “तू नाजिस हो चुका है और ऐसी नजात, अहलेबैत अलैहिस्सलाम से बर्दाश्त नहीं होती ।”, सहाबी कहने लगे, “मेरे मौला ! मैं घर से गुस्ल करके निकला था, जिस्म को पाक साफ़ किया था, यहाँ तक कपड़े भी पाक व सा पहने हैं, फिर कैसी नजासत?”
मौला अली अलैहिस्सलाम ने फरमाया, “ये बता की जब तू घर से निकला और रास्ते में था, तो तूने एक औरत से हाथ मिलाया था या नहीं?, तू उसके साथ चला था या नहीं?”, वो सही कहने लगे, “वो औरत मेरी चची (चाची ) थी, मेरे वालिद का इंतकाल मेरे बचपन में ही हो गया था तबसे लेकर मैं जवान होने तक उन्हीं के घर में रहकर पला-बढ़ा हूँ, इसलिए मैंने चची को देखा तो उनसे हाथ मिलाया और उनके साथ चलने लगा । “, मौला अली अलैहिस्सलाम ने फरमाया, “चाची थी तो क्या हुआ, थीं तो नामहरम ही । तूने ये कैसे समझ लिया की आल

