
मक्के मोअज़्ज़मा में इमाम हुसैन (अ.स.) की जान बच न सकी
यह वाक़ेया है कि इमाम हुसैन (अ. स.) मदीना ए मुनव्वरा से इस लिये आज़िमे मक्का हुए थे कि यहां उनकी जान बच जायेगी लेकिन आपकी जान लेने पर ऐसा सफ़्फ़ाक दुश्मन लगा हुआ था जिसने मक्का ए मोअज़्ज़मा और काबा ए मोहतरम में भी आपको महफ़ूज़ न रहने दिया और वह वक़्त आ गया कि इमाम हुसैन (अ. स.) मक़ामे अमन को महले ख़ौफ़ समझ कर मक्का ए मोअज़्ज़मा छोड़ने पर मजबूर हो गये और मजबूरी इस हद तक बढ़ गई कि आप हज तक न कर सके । यह मुसल्लेमात से है कि शयातीने बनी उमय्या के तीस खूंखार हज के लिबास में इमाम हुसैन (अ.स.) के साथ हो गये और क़रीब था कि आपको आलमे हज व तवाफ़ में क़त्ल कर दें। इमाम हुसैन (अ.स.) को जैसे ही साज़िश का पता लगा आपने फ़ौरन हज को उमरे में बदला और आठ जिल्हिज 60 हिजरी को जनाबे मुस्लिम के ख़त पर भरोसा कर के आज़िमे कूफ़ा हो गये। अभी आप रवाना न होने पाये थे कि अज़ीज़ व अक़रेबा ने कमाले हमदर्दी के साथ कूफ़े के सफ़र को न करने की दरख़्वास्त की। आपने फ़रमाया कि अगर मैं चूंटी के बिल में भी छुप जाऊँ तो भी क़त्ल ज़रूर किया जाऊँगा और सुनो मेरे नाना ने फ़रमाया है कि हुरमते मक्का एक दुम्बे के क़त्ल से बरबाद होगी। मैं डरता हूँ कि वह दुम्बा मैं ही न क़रार पाऊँ। मेरी ख़्वाहिश है कि मैं मक्का से बाहर चाहे एक ही बालिश्त पर
क्यों न ही क़त्ल किया जाऊँ। (तारीख़े कामिल जिल्द 4 पृष्ठ 20, नियाबुल मोअद्दता पृष्ठ 236, सवाएक़े मोहर्रेक़ा) यह वाकेया है कि यज़ीद का इरादा बहर सूरत इमाम हुसैन (अ.स.) को क़त्ल करना और इस्तेहसाले बनी फ़ात्मा था। (कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 87) यही वजह है कि जब इमाम हुसैन (अ.स.) के मक्के मोअज़्ज़मा से रवाना होने की इत्तेला वालीए मक्का उमर बिन सआद को हुई तो उसने पूरी ताक़त से वापस लाने की सई की और इसी सिललिसे में उसने यहिया बिन सईद इब्ने अल आस को एक गिरोह के साथ आपको रोकने के लिये भेज दिया। ” फ़ा क़ालू लहू अन सरफ़ा अयना तज़हब इन लोगों ने आपको रोका और कहा कि आप यहां से कहां ” निकले जा रहे हैं फ़ौरन लौटिये। आपने फ़रमाया ऐसा हरगिज़ नहीं होगा। यह रोकना मामूली न था जिसमें मार पीट की भी नौबत आई। (दमाउस साकेबा पृष्ठ 316) मक़सद यह है कि वालिये मक्का यह नहीं चाहता था कि इमाम हुसैन (अ.स.) इसके हुदूदे इक़्तेदार से निकल जायें और यज़ीद के मन्शा को पूरा न कर सकें क्यों कि उसके पेशे नज़र वालीए मदीना की बरतरफ़ी या तअतुल था। वह देख चुका था कि हुसैन (अ.स.) के मदीने से सालिम निकल आने पर वालीए मदीना बर तरफ़ कर दिया गया था।
इमाम हुसैन (अ.स.) की मक्के से रवानगी अल ग़रज़ इमाम हुसैन (अ. स.) अपने जुमला आईज़्ज़ा और अक़रेबा व अनसारे जां निसार को हमराह ले कर जिनकी तादाद बक़ौल इमाम शिब्ली 72 थी मक्के से रवाना हो गये। आप जिस वक़्त मंज़िले पृष्ठ पर पहुँचे तो फ़रज़दक़ शायर से मुलाक़ात हुई । वह कूफ़े से आ रहा था। इसरार पर उसने बताया कि चाहे लोगों के दिल आपके साथ हों लेकिन इनकी तलवारें आपके खिलाफ़ हैं। आपने अपनी रवानगी की वजहं बयान फ़रमाईं और आप वहां से आगे बढ़े फिर मंज़िले हाजिज़ के एक चश्मे पर उतरे और वहां अब्दुल्लाह इब्ने मुती से मुलाक़ात हुई उन्होंने भी कूफ़ियों की बे वफ़ाई का ज़िक्र किया, इसके बाद आप मंज़िले बतन अल रहमा पहुँचे और वहां से मंज़िले जातुल अर्क पर डेरा डाला। वहां एक शख़्स बशीर इब्ने ग़ालिब से मुलाक़ात हुई उसने भी कूफ़ियों की ग़द्दारी का तज़किरा किया। फिर आप वहां से आगे बढ़े। एक मक़ाम पर एक खेमा नस्ब देखा। पूछा इस जगह कौन ठहरा है। मालूम हुआ कि ज़ोहरे इब्ने क़ैन । आपने उन्हें बुलवा भेजा। जब वह आये तो आपने अपनी हिमायत का ज़िक्र किया। उन्होंने क़ुबूल कर के अपनी बीवी को बा रवायत अपने भाई के साथ घर रवाना कर दिया और ख़ुद इमाम हुसैन (अ. स.) के साथ हो गये। फिर आप वहां से रवाना हो कर मंज़िले जबाला ” में पहुँचे वहां आपको हज़रते मुस्लिम व हानी और मोहम्मद बिन यक़तर जैसे दिलेरों की शहादत की ख़बर मिली। आपने 66 ” कसीर और अब्दुल्लाह बिन 66 निन्ना लिल्लाहे व इन्ना
इलैहे राजेऊन “फ़रमाय और दाखिले खेमा हो कर हज़रत मुस्लिम की बच्चियों को कमाले मोहब्बत के साथ प्यार किया और बे इन्तेहा रोये। उसके बाद बक़ौले अल्लामा अरबली, आपने ब वक़्ते शब एक ख़ुतबा दिया जिसमें हालात की वजाहत के बाद इरशाद फ़रमाया कि मेरा क़त्ल यक़ीनी है। मैं तुम लोगों की गरदनों से तौक़ै बैएत उतारे लेता हूँ। तुम्हारा जिधर जी चाहे चले जाओ। दुनियां दार तो वापस हो गये लेकिन सब दींदार साथ ही रहे। फिर वहां से रवाना हो कर मंज़िले क़सर बनी मक़ातिल पर उतरे। वहां पर अब्दुल्लाह इब्ने हजर जाफ़ेई से मुलाक़ात हुई । आपके इसरार के बवजूद वह बक़ौले वाएज़ काशफ़ी आपके साथ न हुआ। फिर आप मंज़िले साअलबिया पर पहुँचे वहां जनाबे ज़ैनब की आगोश में सर रख कर सो गये। ख़्वाब में रसूले ख़ुदा को देखा कि बुला रहे हैं। आप रो पड़े उम्मे कुलसूम रोने की वजह पूछी आपने ख़्वाब का हवाला दिया और ख़ानदान की तबाही का असर ज़ाहिर किया। अली अकबर (अ.स.) ने अर्ज़ कि बाबा हम हक़ पर हैं हमें मौत से कोई डर नहीं। उसके बाद आप ने मंज़िले क़तक़तानिया पर ख़ुतबा दिया और वहां से रवाना हो कर क़बीला ए बनी सुकून में ठहरे। आपकी यहां सुकून की इत्तेला इब्ने ज़ियाद को दी गई। उसने एक हज़ार या दो हज़ार के लशकर समैत हुर बिन यज़ीदे रिहाइ को इमाम हुसैन (अ.स.) की गिरफ़्तारी के लिये रवाना कर दिया। इमाम हुसैन (अ.स.) अपनी क़याम गाह से निकल कर कूफ़े की तरफ़ ब दस्तूर रवाना हो गये। रास्ते मे बनी अकरमा का एक शख़्स मिला, उसने कहाक़ादसिया में ग़दीब तक सारी ज़मीन लश्कर से पटी पड़ी है। आपने उसे दुआए ख़ैर ” ” दी और ख़ुद आगे बढ़ कर मंज़िले शराफ़ पर क़याम किया। वहां आपने मोहर्रम 61 हिजरी का चांद देखा और आप रात गुज़ार कर बहुत सवेरे रवाना हो गये।



