चौदह सितारे पार्ट 86

खंडे हज़रत मुस्लिम ने दिन मस्जिद में गुज़ारा और रात को मस्जिद से निकल कर हुए। जनाबे मुस्लिम की हालत भूख और प्यास से ऐसी हो गई थी कि रास्ता चलना दूभर था। आप इसी हालत में एक महल्ले में सर गरदां फिर रहे थे कि आपकी नज़र एक ज़ईफ़ा (बूढ़ी औरत ) पर पड़ी, आप उसके क़रीब गये और उससे पानी मांगा। उसने पानी दे कर ख़्वाहिश की कि जल्दी अपनी राह लगें क्यों कि यहां फ़िज़ा बहुत मुकद्दर है। आपने फ़रमाया कि ऐ हो वह कहां जाये। उसने पूछा कि आप कौन हैं? ” तौआ ” जिसका कोई घर न फ़रमाया मोहम्मद मुस्तफ़ा (स.व.व.अ.) और अली ए मुर्तुज़ा का भतीजा और इमाम हुसैन (अ.स.) का चचा जाद भाई हूँ। यह सुन कर “तौआ ” ने आपको अपने घर में जगह दी। आपने रात गुज़ारी लेकिन सुबह होते ही दुश्मन का लशकर आ पहुँचा क्यों कि पिसरे तौआ ने माँ से पोशिदा इब्ने ज़ियाद से चुग़ल ख़ोरी कर दी थी। लशकर का सरदार मोहम्मद बिन अशअस था जो इमाम हसन (अ.स.) की क़ातेला जादा बिन्ते अशअस का सगा भाई था। हज़रत मुस्लिम ने जब तीन हज़ार घोड़ों की टापों की आवाज़ सुनी तो तलवार ले कर घर से बाहर निकल पड़े और सैकड़ों दुश्मनों को त तेग़ कर दिया। बिल आखिर इब्ने अशअस ने और फ़ौज मांगी। इब्ने ज़ियाद ने कहला भेजा कि एक शख़्स के लिये तीन हज़ार फ़ौज कैसे न काफ़ी है। उसने जवाब दिया कि शायद तूने यह समझा है कि किसी बनिये बक़्क़ाल से लड़ने के लिये भेजा है। ग़र्ज़ कि जब मुस्लिम पर किसी तरह क़ाबू न पाया जा सका तो
एक खस पोश गढ़े में आपको गिरा दिया गया, फिर गिरफ़्तार कर के इब्ने ज़ियाद के सामने पेश कर दिया।

इसने हुक्म दिया कि इन्हें कोठे से ज़मीन पर गिरा कर इनका सर काट लिया जाऐ। आपने कुछ वसीयतें की और कोठे से गिरते वक़्त “ अस्सलामो अलैका या ” अबा अब्दिल्लाह कहा और नीचे तशरीफ़ लाये। आपका सर काटा गया। उलमा का बयान है कि आपका और हानी का सर काट कर दमिश्क़ भेज दिया गया और तन बाज़ारे कसाबा में दार पर लटका दिया गया।

एक रवायत में है कि दोनों के पैरों में रस्सी बांध कर बाज़ारों में फिरा रहे थे कि क़बीला ए मुज़हज ने काफ़ी जंगो जिदाल कर के लाशें हासिल कर लीं और दफ़्न कर दिया। मुलाहेज़ा हो ( रौज़तुल शोहदा पृष्ठ 260 से 276 तक व कशफुल ग़म्मा पृष्ठ 68 व ख़ुलासतुल मसाएब पृष्ठ 46 )

आपकी शहादत 9 ज़िल्हिज 60 हिजरी को वाक़े हुई है।

(अनवारूल मजालिस बाब 9 मजालिस 2 प्रकाशित ईरान)

मोहम्मद और इब्राहीम की शहादत

मुर्रेख़ीन का बयान है कि शहादते हज़रत मुस्लिम के बाद लोगों ने इब्ने ज़ियाद को जनाबे मुस्लिम के दोनों कमसिन लड़कों के कूफ़े में मौजूद होने की ख़बर दी जिनका नाम मोहम्मद व इब्राहीम था । इब्ने ज़ियाद ने इनकी गिरफ़्तारी
का हुक्म नाफ़िज़ कर दिया। पिसराने मुस्लिम क़ाज़ी शुरए के घर में पोशीदा थे। सरकारी ऐलान के बाद क़ाज़ी ने बच्चों से कहा कि हमारी और तुम्हारी दोनों की जान अब ख़तरे में है बेहतर यह है कि तुम्हें किसी सूरत से मदीने पहुँचा दिया जाय। बच्चों ने इसे क़ुबूल किया। क़ाज़ी ने अपने बेटे असद को हुक्म दिया कि इन बच्चों को दरवाज़े अराकेन के बाहर जो काफ़ला मदीना जाने के लिये ठहरा हुआ है उसमें छोड़ आ । असद उन बच्चों को ले कर जब रात के वक़्त वहां पहुँचा तो काफ़ला रवाना हो चुका था लेकिन इस मक़ाम से नज़र आ रहा था। असद ने बच्चों को उसी काफ़ले के रास्ते पर लगा दिया और घर वापस आया। कमसिन बच्चे थोड़ी दूर चले थे कि काफ़ला नज़रों से ग़ायब हो गया और सुबह हो गई । बच्चे हैरान व सरगरदान फिर रहे थे कि नागाह सरकारी आदमियों ने उन्हें गिरफ़्तार कर लिया और उन्हें इब्ने ज़ियाद के पास पहुँचा दिया। उसने उन्हे क़ैद ख़ाने में बन्द कर के यज़ीद को बच्चों की गिरफ़्तारी की इत्तेला दे दी । क़ैद ख़ाने का दरबान इत्तेफ़ाक़न मुहिब्बे आले मोहम्मद ( स.व.व.अ.) था। उसने रात के वक़्त बच्चों को छोड़ दिया और राहे क़ादसिया पर लगा कर एक अंगूठी दी और कहा कि क़ादसिया में मेरे भाई से मिलना और इस अंगूठी के ज़रिये से ताअर्रुफ़ के बाद उनसे कहना कि वह तुम्हें मदीना पहुँचा दें। बच्चे तो रवाना हो गये लेकिन सुबह होते ही दरबान जिसका नाम मशकूर था क़त्ल कर दिया गया। उससे पूछा 66 ” गया कि तूने मुस्लिम के बेटों को क्यों छोड़ दिया? उसने कहा कि ख़ुशनूदिये ख़ुदा
के लिये। इब्ने ज़ियाद ने पाँच सौ (500) कोड़े मारने का हुक्म दिया। मशकूर की

शहादत के बाद उसे उमर इब्ने अल हारिस ने दफ़्न कर दिया। पिसराने मुस्लिम बिन अक़ील, मशकूर की मेहरबानी से रिहा हो कर क़ादसिया जा रहे थे। हुदूदे कूफ़ा के अन्दर ही रास्ता भूल गये और सारी रात चक्कर लगा कर सुबह को अपने को कूफ़े में ही पाया। सुबह हो चुकि थी दुश्मन के ख़तरे से दोनों एक दरख़्त पर चढ़ गये । इत्तेफ़ाक़न एक औरत उस जगह पानी भरने आई उसने पानी में परछाई देख कर पूछा कि तुम कौन हो? उन्होंने इतनान करने के बाद कहा कि हम मुस्लिम के फ़रज़न्द हैं। उस औरत ने अपनी मलका को ख़बर दी। वह सरोपा बरहैना दौड़ कर आई और इन बच्चों को ले गईं और मकान की एक ख़ाली जगह पर इनको ठहरा दिया। थोड़ी रात गुज़री थी कि इस मोमिना का हारिस बिन उरवा सर गर्दा व परेशान घर में आया तो मोमिना ने पूछा शौहर ” ” कि आज बड़ी रात कर दी ख़ैर तो है? उसने कहा, मशकूर दरबान ने मुस्लिम के बेटों को क़ैद से रिहा कर दिया जिनकी तलाश के लिये इनाम व इकराम इब्ने ज़ियाद की तरफ़ से मुक़र्रर किया गया है। मैं भी अब तक उनकी तलाश में फिर रहा था। हारिस खाना खा कर बिस्तर पर लेट गया। अभी आंख न लगी थी कि बच्चों की सांस की आवाज़ को महसूस कर के उठ खड़ा हुआ, बिवी से पूछा कि यह किस के सांस की आवाज़ आती है? उसने कोई जवाब न दिया । यह उस तहख़ाने की तरफ़ चला जिसमें नौनिहालाने रिसालत जलवा अफ़रोज़ थे। उसकी
आहट पा कर एक भाई ने दूसरे को जगा कर कहा कि भय्या अभी मोहम्मद मुस्तफ़ा (स.व.व.अ.) अली मुर्तुज़ा (अ. स.) फ़ात्मा ज़हरा ( स.व.व.अ.) हसने मुजतबा (अ. स.) और इमाम हुसैन (अ. स.) और मेरे बाबा ख़्वाब में तशरीफ़ लाये थे और उन्होंने फ़रमाया कि हम तुम्हारें इन्तेज़ार में हैं। इतने में हारिस अन्दर दाखिल हो गया। उन्हें पकड़ कर कहा कि तुम कौन हो ? उन्होंने फ़रमाया कि हम तेरे नबी की “❝ ” अवलाद हैं। हर बना मिनल सजन क़ैद ख़ाने से भाग कर आये हैं और तेरे घर में पनाह ली है। उसने कहा कि तुम क़ैद से भाग कर मौत के मुंह में आ गये हो । उसके बाद उसने उन यतीमों के रूख़सारों ( गालों) पर ज़ोर से तमाचे मारे कि यह मुंह के बल गिर पड़े। फिर उसने उनके बाज़ुओं को कस कर बांधा और हाथ पाओ बांध कर डाल दिया । यह बेचारे सारी रात अपनी बेबसी और बे कसी पर रोते रहे। जब सुबह हुई तो उन्हें नहर पर क़त्ल करने के लिये ले चला। बीवी ने फ़रियाद की, उसे एक तलवारी मारी। गुलाम ने रोका तो उसे क़त्ल कर दिया। बेटे ने मना किया तो उसे भी क़त्ल कर दिया। अलग़रज़ नहरे फ़ुरात पर ले जा कर क़त्ल करना ही चाहा था कि बच्चों ने कहा कि ऐ शेख़ 1. हमें ज़िन्दा इब्ने ज़ियाद के पास ले चल | 2 हमें बाज़ार में बेच डाल । 3. हमारी कम सिनी पर रहम कर। 4. हमें दो रकअत नमाज़ पढ़ने की इजाज़त दे । उसने कहा कि क़त्ल के सिवा कोई चारा कार नहीं। अलबत्ता अगर नमाज़ पढ़ते हो तो पढ़ लो लेकिन कोई फ़ायदा नहीं है। अल ग़रज़ बच्चों ने वुज़ू किया और दो दो रकअत नमाज़ अदा कि और दुआ
” के लिये हाथ उठाये। इस मलऊन ने बड़े भाई की गरदन पर तलवार लगाई। सरे मुबारक दूर जा कर गिरा। छोटे भाई ने दौड़ कर सरे मुबारक उठाया लिया और भाई के ख़ून में लौटने लगा। इस ज़ालिम ने बड़े भाई की लाश पानी में डाल दी और छोटे का सर भी काट लिया। जब दोनों लाशें पानी में पहुँची तो बाहम बग़लगीर हो कर डूब गईं। रावी का बयान है कि हारिस ने जिस वक़्त इब्ने ज़ियाद के सामने फ़रज़न्दे मुस्लिम के सर पेश किये ” क़ाम सुम क़दो फ़ल ज़ालेका सलासन तो वह तीन मरतबा उठा और बैठा। फिर हुक्म दिया कि यह सर उसी पानी में डाल दिये जायें जिस जगह इनके तन डाले गयें हैं। चुनान्चे एक मुहिब्बे आले मोहम्मद (अ. स.) ने इन सरों को फ़रात में डाल दिया। कहा जाता है कि सरों के पानी में पहुँचते ही डूबे हुए जिस्म सतह आब पर उभर आये और अपने सरों समैत तह नशीन हो गये। अल्लामा हुसैन वाएज़ काशफ़ी तहरीर फ़रमाते हैं कि वह शख़्स जो मुस्लिम के बेटों के सरों को पानी में डाल ने के लिये लाया था उसका नाम मक़ातिल था। उसने दोनों सरों को पानी में डालने के बाद हारिस मलऊन 66 ” को मक़तूल गुलाम और बेटे की लाशों को बाबे बनी ख़ज़ीमा में दफ़्न कर दिया। (रौज़तुल शोहदा पृष्ठ 276 से पृष्ठ 285 व ख़ुलासतुल मसाएब पृष्ठ 421) अल्लामा अरबेली लिखते हैं कि जनाबे मुस्लिम इब्ने अक़ील हानी इब्ने उरवा व मोहम्मद इब्ने कसीर और फ़रज़न्दाने मुस्लिम को ठिकाने लगाने के बाद उमर इब्ने साअद और इब्ने ज़ियाद के माबैन ” रै” का मोहयदा हो गया और तय पाया कि हुर इब्न
यज़ीद रियाही को सब से पहले दो हज़ार सवारों समैत रवाना कर के इमाम हुसैन (अ.स.) को गिरफ़्तार कराया जाए और उन्हें कूफ़े ला कर क़त्ल कर दिया जाय। (कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 68)


The Power and Importance of Attention Alliance (Tawajju Ittehadi) in Spirituality


Shaykh Faqeer Tabish Kamal said:

Attention (Tawajju) alliance is the most powerful, superior, and enduring. In it, the Shaykh, with complete focus, imparts his spiritual perfections into the soul of the seeker. In this way, both souls become united, and the conflict of “I” and “you” ends. Unfortunately, in this tumultuous era, while such givers of attention are rare, true seekers with genuine capacity are also seldom found. Alhamdulillah, my Shaykh, in a special and memorable meeting, embraced me and removed all veils, saying:

“Remember, I have blessed you with attention alliance (Tawajju Ittehadi).”

By nature, the Shaykh was generous, and many companions initially benefited, but very few progressed rapidly, and only a few fortunate ones attained perseverance. Without consistency in practice along with passion, the journey of spirituality is not true Sufism but mere pretense.

With continuous effort and consistent actions, by the command of Allah, progress in spiritual ranks is certain. During this journey, not only does the seeker feel a constant sense of spiritual ecstasy, but they also, as per the saying “Those who are absorbed in your remembrance,” can better perform their duties in the world. Therefore, one should not neglect or be lazy regarding the remembrance of Allah (Dhikr). The primary purpose of Dhikr of the Divine Name, the purification of the spiritual centers (Lataif), meditations (Muraqabah), and the stages of spiritual journey is to transform the soul from the commanding self (Nafs-e-Ammara) to the reproaching self (Nafs-e-Lawwama) and the contented self (Nafs-e-Mutma’inna), eventually reaching the level of the satisfied self (Nafs-e-Radiya). This is the stage of complete submission, where one says, “Whatever You command, whatever You desire,” and remains pleased with Allah’s will in every condition.

Sayr-ul-Aflak, p. 54