चौदह सितारे पार्ट 84



इमाम हुसैन (अ.स.) की मुनाजात और ख़ुदा की तरफ़ से
जवाब

अल्लामा इब्ने शहरे आशोब और अल्लामा मजलिसी लिखते हैं कि हज़रत इमाम हुसैन (अ. स.) एक रात को जनाबे ख़दीजा (अ.स.) की क़ब्र पर तशरीफ़ ले गये । आपके हमराह अनस इब्ने मालिक सहाबिए रसूल भी थे। आपने मज़ारे ख़दीजा (अ.स.) पर नमाज़ें पढ़ीं और आप बारगाहे ख़ुदावन्दी में महवे मुनाजात हो गये, मुनाज में आपने 6 अशआर पढ़े जिनमें पहला शेर यह है। या रब या रब ऐ मेरे रब ऐ मेरे रब, अन्ता मौला फ़ा रहम अबीदन इलैका मलजाहा ” तरजुमा – ” तू ही मेरा मौला और आक़ा है। ऐ मालिक तू अपने ऐसे बन्दे पर रहम फ़रमा जिसकी बाज़ गश्त सिर्फ़ तेरी ही तरफ़ है। अभी आपकी मुनाजात तमाम न होने पाई थी कि हाति गैबी की मनजूम आवाज़ आई । जिसका पहला शेर है कि

लब्बैक अब्दी वा अन्ता फ़ी कन्फ़ी, व कलमा क़लत क़द अलमनहा

तरजुमा ऐ मेरे बन्दे मैं तेरी सुन्ने के लिये मौजूद हूँ और तू मेरी बारगाह में आया हुआ है। तूने जो कुछ कहा है मैंने अच्छी तरह से सुन लिया है। (मनाक़िब जिल्द 4 पृष्ठ 78 व बेहार जिल्द 1 पृष्ठ 144)

जंगे सिफ़्फ़ीन में इमाम हुसैन (अ.स.) की जद्दोजेहद

अगरचे मुवर्रेख़ीन का तक़रीबन इस पर इत्तेफ़ाक़ है कि इमाम हुसैन (अ. स.) अहदे अमीरल मोमेनीन (अ.स.) के हर मारके में मौजूद रहे लेकिन महज़ इस ख़्याल से कि यह रसूले अकरम ( स.व.व.अ.) की ख़ास अमानत हैं। उन्हें किसी जंग में लड़ने की इजाज़त नहीं दी गई। (अनवारूल हुसैनिया पृष्ठ 44 ) लेकिन अल्लामा शेख मेहदी माज़ नदरानी की तहक़ीक़ के मुताबिक़ आपने बन्दिशे आब तोड़ने के लियेय सिफ़्फ़ीन में नबर्द आज़माई फ़रमाई थी। (शजरा ए तूबा, प्रकाशित नजफ़े अशरफ़ 1354 हिजरी व बेहारल अनवार जिल्द 10 पृष्ठ 257 प्रकाशित ईरान) अल्लामा बाक़र खुरासानी लिखते हैं कि इस मौक़े पर इमाम हुसैन (अ.स.) के हमराह हज़रते अब्बास भी थे। ( किबरियत अल अहमर पृष्ठ 25 व जिकरूल अब्बास पृष्ठ 26)

हज़रत इमाम हुसैन (अ. स.) गिरदाबे मसाएब में ( वाक़िए करबला का आग़ाज़ )

हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) जब पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा ( स.व.व.अ.) की ज़िन्दगी के आख़री लम्हात से ले कर इमाम हसन (अ. स.) की हयात के आख़री अय्याम तक बहरे मसाएब व आलाम के साहिल से खेलते हुए
ज़िन्दगी के इस अहद में दाखिल हुए जिसके बाद आपके अलावा पंजेतन में कोई बाक़ी न रहा तो आपका सफ़ीना ए हयात ख़ुद गिरदाबे मसाएब में आ गया। इमाम हसन (अ.स.) की शहादत के बाद माविया की तमाम तर जद्दोजेहद यही रही कि किसी तरह इमाम हुसैन (अ.स.) का चिराग़ ज़िन्दगी भी इसी तरह गुल कर दें जिस तरह हज़रत अली (अ.स.) और इमाम हसन (अ.स.) की शम्मा ए हयात बुझा चुका है और उसके लिये वह हर क़िस्म का दाँव करता रहा और इससे उसका मक़सद यह था कि यज़ीद की खिलाफ़त के मनसूबे को परवान चढ़ाये। बिल आखिर उसने 56 हिजरी में एक हज़ार की जमाअत समेत यज़ीद के लिये बैअत लेने की ग़रज़ से हिजाज़ का सफ़र इख़्तेयार किया और मदीना ए मुनव्वरा पहुँचा । वहां इमाम हुसैन (अ. स.) से मुलाक़ात हुई उसने बैएते यज़ीद का ज़िक्र किया। आपने साफ़ लफ़्ज़ों में उसकी बदकारी का हवाला दे कर इनकार कर दिया। माविया को आपका इन्कार खला तो बहुत ज़्यादा लेकिन चंद उलटे सिधे अल्फ़ाज़ कहने के सिवा और कुछ कर न सका। इसके बाद मदीना और फिर मक्का में बैएते यज़ीद ले कर शाम को वापस चला गया।

अल्लामा हुसैन वाएज़ काशफ़ी लिखते हैं कि माविया ने जब मदीने में बैएत का सवाल उठाया तो हुसैन बिन अली (अ.स.) अब्दुल रहमान बिन अबी बक्र, अब्दुल्लाह इब्ने उमर अब्दुल्लाह इब्ने जुबैर ने बैएते यज़ीद से इन्कार कर दिया । उसने बड़ी कोशिश की लेकिन यह लोग न माने और रफ़्ए फ़ितना के लिये इमाम
हुसैन (अ.स.) के अलावा और वहां उन पर दबाव डाला लेकिन कामयाब न हुआ। आखिर कार शाम वापस चला गया। (रौज़तुल शोहदा पृष्ठ 243) माविया बड़ी तेज़ी के साथ बेएते यज़ीद लेता रहा, और बक़ौल अल्लामा इब्ने क़तीबा इस सिलसिले में उसने टको में लोगों के दीन भी ख़रीद लिये। अल ग़रज़ रजब 60 हिजरी में माविया रख़्ते सफ़र बांध कर दुनिया से चल बसा। यजीद जो अपने बाप के मिशन को कामयाब करना ज़रूरी समझता था। सब से पहले मदीने की तरफ़ मुतवज्जे हो गया और उसने वहां के वाली वलीद बिन उक़बा को लिखा कि इमाम हुसैन (अ. स.), अब्दुर रहमान इब्ने अब बक्र, अब्दुल्लाह इब्ने उमर और इब्ने जुबैर से मेरी बैएत ले ले, और अगर यह इन्कार करें तो उनके सर काट कर मेरे पास भेज दे। इब्ने अक़बा ने मरवान से मशविरा किया उसने कहा कि सब बैएत कर लेंगे लेकिन इमाम हुसैन (अ.स.) हरगिज़ बैएत न करेंगे और तुझे उनके साथ पूरी सख़्ती का बरताव करना पड़ेगा ।

सब मदीने से चले गये। माविया उनके पीछे मक्के पहुँचा

साहेबे तफ़सीरे हुसैनी अल्लामा हुसैन वाएज़ काशफ़ी लिखते हैं कि वलीद ने एक शख़्स अब्दुल्लाह इब्ने उमर बिन उस्मान को इमाम हुसैन (अ. स.) और इब्ने जुबैर को बुलाने के लिये भेजा । क़ासिद जिस वक़्त पहुँचा दोनों मस्जिद में महवे गुफ़्तुगू थे। आपने इरशाद फ़रमाया कि तुम चलो हम आते हैं। क़ासिद वापस चला गया और यह दोनों आपस में बुलाने के सबब पर तबादला ए ख़्याल करने लगे। इमाम हुसैन (अ.स.) ने फ़रमाया कि मैंने आज एक ख़्वाब देखा है जिससे मैं समझता экс
कि माविया ने इन्तेक़ाल किया और यह हमें बैएते यज़ीद के लिये बुला रहा है। अभी यह हज़रात जाने न पाये थे कि क़ासिद फिर आ गया और उसने कहा कि वलीद आप हज़रात के इन्तेज़ार में है । इमाम हुसैन (अ.स.) ने फ़रमाया कि जल्दी क्या है जा कर कह दे कि हम थोड़ी देर में आ जायेंगे। इसके बाद इमाम हुसैन (अ. स.) दौलत सरा में तशरीफ़ लाये और 30 बहादुरों को हमराह ले कर वलीद से मिलने का क़स्द फ़रमाया, आप दाखिले दरबार हो गये और बहादुराने बनी हाशिम बैरूने ख़ाना दरबारी हालात का मुतालेआ करते रहे। वलीद ने इमाम हुसैन (अ. स.) की मुकम्मल ताज़ीम की और माविया के मरने की ख़बर सुना ने के बाद बैएत का ज़िक्र किया। आपने फ़रमाया कि मसला सोच विचार का है तुम लोगों को जमा करो और मुझे भी बुला लो मैं “ अली रूसे अल शहाद ” आम मजमे में इज़हारे ख़्याल करूंगा। वलीद ने कहा बेहतर है। फिर कल तशरीफ़ लाइयेगा । अभी आप जवाब न देने पाये थे कि मरवान बोल उठा, ऐ वलीद ! अगर हुसैन इस वक़्त तेरे क़ब्ज़े से निकल गये तो फिर हाथ न आयेंगे। उनको इसी वक़्त मजबूर कर दे और अभी बैएत ले ले, और अगर यह इन्कार करें तो हुक्मे यज़ीद के मुताबिक़ सर से उतार ले। यह सुन्ना था कि इमाम हुसैन (अ.स.) को जलाल आ गया। आपने फ़रमाया यब्ने ज़रका किस्में दम है जो हुसैन को हाथ लगा सके, तुझे नहीं ” ” मालूम हम आले मोहम्मद (स.अ.व.व.) हैं। फ़रिश्तें हमारे घरों में आते जाते रहते हैं। हमें क्यों कर मजबूर किया जा सकता है कि हम यज़ीद जैसे फ़ासिक़ व
फ़ाजिर और शराबी की बैएत कर लें। इमाम हुसैन (अ. स.) की आवाज़ बुलन्द होना था कि बहादुराने बनी हाशिम दाखिले दरबार हो गये और क़रीब था कि ज़बर दस्त हंगामा बरपा कर दें लेकिन इमाम हुसैन (अ.स.) ने उन्हें समझा बुझा कर ख़ामोश कर दिया। इसके बाद इमाम हुसैन (अ.स.) वापस दौलत सरा तशरीफ़ ले गये। वलीद ने सारा वाकेया लिख कर भेज दिया। उसने जवाब में लिखा कि इस ख़त के जवाब में इमाम हुसैन (अ.स.) का सर भेज दो। वलीद ने यज़ीद का ख़त इमाम हुसैन (अ.स.) के पास भेज कर कहला भेजा कि फ़रज़न्दे रसूल मैं यज़ीद के कहने पर किसी सूरत से अमल नहीं कर सकता, लेकिन आप को बा ख़बर करता हूँ और बताना चाहता हूँ कि यज़ीद आपका ख़ून बहाने के दरपै है । इमाम हुसैन (अ.स.) ने सब्र के साथ हालात पर ग़ौर किया और नाना के रौज़े पर जा कर दरदे दिल बयान किया और बेइन्तेहा रोये। सुबह सादिक़ के क़रीब मकान वापस आये और दूसरी रात को फिर रौज़ा ए रसूल (स.अ.व.व ) पर तशरीफ़ ले गये और मुनाजात के बाद रोते रोते सो गये। ख़्वाब में आं हज़रत ( स.अ.व.व.) को देखा कि आप हुसैन (अ.स.) की पेशानी का बोसा ले रहे हैं और फ़रमा रहे हैं कि ऐ नूरे नज़र अन्क़रीब उम्मत तुम्हें शहीद कर देगी। बेटा तुम भूखे और प्यासे होंगे, तुम फ़रयाद करते होंगे और कोई तुम्हारी फ़रियाद रसी न करेगा। इमाम हुसैन (अ.स.) की आंख खुल गई, आप दौलत सरा वापस तशरीफ़ लाये और अपने आइज़्ज़ा को जमा कर के फ़रमाने लगे कि अब इसके सिवा कोई चारा कार नहीं है कि मैं मदीना छोड़ दूँ।



Leave a comment