चौदह सितारे पार्ट 76

माविया सजदा ए शुक्र में

मरवान हाकिमे मदीना ने जोदा बिन्ते अशअस के ज़रिए से अपनी कामयाबी की इत्तेला माविया को दी। माविया ख़बरे शहादत पाते ही ख़ुशी के मारे अल्लाहो अकबर कह कर सजदे में गिर पड़ा और उस के देखा देखी सारे दरबार वाले ख़ुशी मनाने के लिये नाराए तकबीर बलन्द करने लगे। उनकी आवाजें फ़ात्मा बिन्ते क़रज़आ के कानों में पहुँची जो माविया की बीवी थी, वो कहने लगी यह किस चीज़ की ख़ुशी है? माविया ने जवाब दिया इमाम हसन की शहादत हो गई है। इस ख़ुशी में मैंने नारा तकबीर बलन्द कर के सज्दाए शुक्र अदा किया है। फ़ात्मा बेइन्तेहा रंजीदा हुई और कहने लगीं अफ़सोस फ़रज़न्दे रसूल (स.व.व.अ.) क़त्ल किया जाये और दरबार में ख़ुशी मनाई जाये। (तारीख़ अबुल फ़िदा जिल्द 1 पृष्ठ 182, अक़्दुल फ़रीद जिल्द 2 पृष्ठ 211, ओकली पृष्ठ 336, रौज़तुल मनाज़िर जिल्द 11 पृष्ठ 133, तारीख़े खमीस जिल्द 2 पृष्ठ 328, हयातुल हैवान जिल्द 1 पृष्ठ 51, नूजूलुल अबरार पृष्ठ 5, अरजहुल मतालि पृष्ठ 357 व अख़बारूल तवाल पृष्ठ 400 ) इब्ने क़तीबा ने इब्ने अब्बास के दरबारे माविया में पहुँच कर इस मौक़े की ज़बर दस्त गुफ़्तगू लिखी है। (अल इमामत वल सियासत)

इमाम हसन (अ.स.) की तजहीज़ों तकफ़ीन

अल ग़रज़ इमाम हसन (अ.स.) की शहादत के बाद इमाम हुसैन (अ.स.) ने गुस्लो कफ़न का इन्तेज़ाम फ़रमाया और नमाज़े जनाज़ा पढ़ी गई । इमाम हसन (अ.स.) की वसीयत के मुताबिक़ उन्हें सरवरे कायनात ( स.व.व.अ.) के पहलू में दफ़्न करने के लिये अपने कंधों पर उठा कर ले चले। अभी पहुँचे ही थे कि बी उमय्या ख़ुसूसन मरवान वग़ैरा ने आगे बढ़ कर पहलू रसूल (स.व.व.अ.) में दफ़्न होने से रोका  (तारीख़े अबुल फ़िदा जिल्द 1 पृष्ठ 183, रौज़तुल मनाज़िर जिल्द 11 पृष्ठ 133 ) मरवान ने आले मोहम्मद (अ.स.) पर तीर बरसाए । किताब रौज़ातुल पृष्ठ जिल्द 3 पृष्ठ 7 मे है कि कई तीर इमाम हसन (अ.स.) के ताबूत में पेवस्त हो गये। किताब ज़िकरूल अब्बास पृष्ठ 51 में है कि ताबूत में सत्तर तीर पेवस्त हुए थे। तारीख़े इस्लाम जिल्द 1 पृष्ठ 28 में है कि नाचार लाशे मुबारक को जन्नतुल बक़ी में ला कर दफ़्न कर दिया गया। तारीखे कामिल जिल्द 3 पृष्ठ 182 में है कि शहादत के वक़्त आपकी उम्र 47 साल की थी।

आपकी अज़वाज और औलाद

आपने मुख़्तलिफ़ अवक़ात में 9 नौ बीवियां की। आपकी औलाद में आठ बेटे और सात बेटियां थीं। यही तादाद इरशादे मुफ़ीद पृष्ठ 208 और नूरूल अबसार पृष्ठ 112 प्रकाशित मिस्र में है। अल्लामा तल्हा शाफ़ेई मतालेबुस सूऊल के पृष्ठ 239 पर लिखते हैं कि इमाम हसन (अ.स.) की नस्ल जैद और हसने मुसन्ना से चली है। इमाम शिब्लन्जी का कहना है कि आपके तीन फ़रज़न्द अब्दुल्लाह, क़ासिम और उमरो करबला में शहीद हुए हैं। (नूरूल अबसार पृष्ठ 112)

जनाबे ज़ैद बड़े जलीलुल क़द्र और सदक़ाते रसूल (स.व.व.अ.) के मुतावल्ली थे उन्होंने 120 हिजरी में 90 साल की उम्र में इन्तेक़ाल फ़रमाया ।

जनाबे हसने मुसन्ना निहायत फ़ाज़िल, मुत्तक़ी और सदक़ाते अमीरल मोमेनीन (अ.स.) के मुतवल्ली थे। आपकी शादी इमाम हुसैन (अ.स.) की बेटी जनाबे फात्मा से हुई थी। आपने करबला की जंग में शिरकत की थी और बेइंतेहां ज़ख़्मी हो कर मक़तूलों में तब गये थे। जब सर काटे जा रहे थे तब उनके मामू अबू हसान ने आपको ज़िन्दा पा कर उमरे साद से ले लिया था। आपको ख़लीफ़ा सुलैमान बिन अब्दुल मलिक ने 97 हिजरी में ज़हर दे दिया था जिसकी वजह से आपने 52 साल की उम्र में इन्तेक़ाल फ़रमाया। आपकी शहादत के बाद आपकी बीवी जनाबे फ़ात्मा एक साल तक क़ब्र पर खेमा जन रहीं । (इरशादे मुफ़ीद पृष्ठ 211 व नूरूल अबसार पृष्ठ 269)