चौदह सितारे पार्ट 74

उमवी अहद की तारीख़ के मुताअल्लिक़ मुसतशरक़ीने यूरोप की राय

अमेरीका का मशहूर मुवर्रिख़ फिल्पि के० हिट्टी अपनी तसनीफ़ ( तारीख़े अरब) में लिखता है कि मुसलमान अरब के दो फ़िरक़ जब कभी कोई मज़हबी, सियासी या समाजी निज़ा होती थी तो हर एक फ़रीक़ अपनी ताईद में रसूल अल्लाह ( स.व.व.अ.) की हदीस पेश करता, ख़्वाह वह हदीसें सही हों या मौजूआ और झूठी, इस लिये अली (अ.स.) और अबू बक्र की सियासी मुखालेफ़त अली (अ.स.) और माविया का झगड़ा, बनी अब्बास और बनी उमय्या की बाहमी अदावत वगैरा मुताअदि झूठी हदीसों के बनने के बाएस हुए। इसके अलावा उलमा की कसीर तादाद के लिये यह दौलत कमाने और रूप्या पैदा करने का ज़रिया बन गया ।

प्रोफ़ेसर सिमेन किले कैम्बरेज यूनीवर्सिटी मतूफ़ी 1720 ई0 अपनी तारीख़ सारा सेनेज़ में लिखते है: अरबो ने तारीख़ नवीसी का ग़लत तरीक़ा इख़्तेयार कर के हम को इस मसर्रत और फ़ायदे से महरूम कर दिया जो हम को इनकी लिखी हुई किताबों से हासिल हो सकता था। मुवर्रिख़ के फ़राएज़ और हुकूक़ क्या होते हैं उन्होंने कमा हक़्क़ा न समझा इस लिये इन फ़राज़ और हुक़ूक़ को नज़र अन्दाज़ कर दिया। हमारे लिये इनकी लिखी हुई तारीखों का मुतालेआ करना और उनसे सही तारीख़ी वाक़ेयात का अख़ज़ करना बहुत मुश्किल हो गया ।

यह इन तारीख़ी किताबो की बे एतेमादी और उनकी कोताहियों का आलम है जिनमें इमाम हसन (अ. स.) जैसे मुरताज़ इमाम की कसरते अज़वाज का अफ़साना मुरतब किया गया है।

जब हम कसरते अज़वाज और कसरते तलाक़ के अफ़साने पर ग़ौर करते हैं तो हमें साफ़ नज़र आता है कि ऐसा वाक़िया हरगिज़ नहीं हुआ क्यों कि अगर ऐसा होता तो इनत माम औरतों के नाम इल्मे रिजाल की तारीख़ की किताबों में ज़रूर होते। हमें कुतुबे रिजाल में जो नाम मिलते हैं उनकी इन्तेहा सिर्फ़ 9 तक होती है। यह हक़ीक़त है कि आपने वक़तन फ़ावक़तन इसी तरह नौ 9 बीवियां अपने अद में रखीं। जिस तरह से रसूल अल्लाह ( स.व.व.अ.) की नौ 9 बीवियां थी। आपकी

बीवियों के नाम यह हैं । 1. उम्मे फ़रवा, 2. खूला, 3. उम्मे बशीर, 4. सक़फ़िया, 5. रम्ला, 6. उम्मे इसहाक़, 7. उम्मुल हसन, 8. बिन्ते उमराउल क़ैस, 9. जोदा बिन्ते अशअस (सीरतुल हसन, अबसारूल ऐन)

एडर्वड गिबन मशहूर मारूफ़ तारीख़ तन्ज़ील व इनकेताए सलतनते रोम में लिखते हैं।

यह हज़रात आले मोहम्मद (अ.स.) हालाते हर्ब, मालो ज़र सियासी न रखते थे, इस पर लोग इसकी इज़्ज़त, वक़अत और ताज़ीम करते थे। जो चीज़ हुक्मरान ख़ुलफ़ा के दिलों मे रश्क व हसद की आग भड़काती थी, इनके मज़ाराते मुक़सा जो मदीने, फ़रात के किनारे और ख़ुरासान में मौजूद हैं। अब तक इन के शियों की ज़्यारत गाह हैं। इन बुजुर्गवारों पर हमेशा बग़ावत और ख़ाना जंगियों का इल्ज़ाम लगाया जाता था, हालां कि यह शाही ख़ानदान के औलिया अल्लाह, दुनिया को हमेशा हक़ीर समझते थे। मशियते इजैदी के मुताबिक़ सरे तसलीम ख़म करते हुये और इन्सानों के मज़ालिम बरदाश्त करते हुये उन्होंने उमूरे दीनी तालीम व तलक़ीन में अपनी उमरें सर्फ कर दीं। यह समझने की बात है कि जो हज़रात दुनिया को हक़ीर समझते हों उनकी तरफ़ कसरते अज़वाज और कसरते तलाक़ का इन्तेसाब अफ़साने से ज़्यादा क्या वुक़अत हासिल कर सकता है।

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