
आठवीं मोहर्रमुल हराम
यौमे चार श्म्बा की शब को खे़मा ए आले मोहम्म्द (अ.स.) व आले मोहम्मद (स.अ.) से पानी बिल्कुल ग़ाएब हो गया। इस प्यास की शिद्दत ने बच्चों को बेचैन कर दिया। इमाम हुसैन (अ.स.) ने हालात को देख कर हज़रत अब्बास (अ.स.) को पानी लाने का हुक्म दिया। आप चन्द सवारों को ले कर तशरीफ़ ले गये और बड़ी मुश्किलों से पानी लाये। वज़लका समीउल अब्बास सक्क़ा इसी सक्क़ाई वजह से अब्बास (अ.स.) को सक़्क़ा कहा जाता है। (अख़बारूल तवाल सफ़ा 253, जलाउल ऐन सफ़ा 198 व दमए साकेबा सफ़ा 323) रात गुज़रने के बाद जब सुबह हुई तो यज़ीद इब्ने हसीन सहराई ने ब इजाज़त इमाम हुसैन (अ.स.), इब्ने साद को फ़हमाईश की लेकिन कोई नतीजा बरामद न हुआ। इसने कहा यह कैसे हो सकता है कि हुसैन को पानी दे कर हुकूमते ‘‘ रै ’’ छोड़ दूँ। (नासिख़ुल तवारीख़ जिल्द 3 सफ़ा 338) इमाम शिब्ली लिखते हैं कि इब्ने हसीन और इब्ने साद की गुफ़्तुगू के बाद इमाम हुसैन (अ.स.) ने अपने ख़ेमे के गिर्द ख़न्दक़ खोदने का हुक्म दिया। (नूरूल अबसार सफ़ा 117) इसके बाद हज़रत अब्बास (अ.स.) को हुक्म दिया कि कुएं खोद कर पानी बरामद करो। आपने कुआं तो खोदा लेकिन पानी न निकला। (मक़तल अबी मख़नफ़ सफ़ा 27)

नवीं मोहर्रमुल हराम
यौमे पंज शम्बा की शब को इमाम हुसैन (अ.स.) और उमरे साद में आख़री गुफ़्तुगू हुई। आपके हमराह हज़रत अब्बास (अ.स.) और अली अकबर (अ.स.) भी थे। आप ने गुफ़्तुगू में हर क़िस्म की हुज्जत तमाम कर ली। (दमए साकेबा सफ़ा 323) नवीं की सुबह को आपने हज़रत अब्बास (अ.स.) को फिर कुंआ खोदने का हुक्म दिया लेकिन पानी बरामद न हुआ। (नासिख़ुल तवारीख़ जिल्द 6 सफ़ा 245) थोड़ी देर के बाद इमाम हुसैन (अ.स.) ने बच्चों की हालत के पेशे नज़र फिर हज़रत अब्बास (अ.स.) से कुआं खोदने की फ़रमाईश की। आपने सई बलीग़ शुरू कर दी। जब बच्चों ने कुंआ खुदता हुआ देखा तो सब कुज़े ले कर आ पहुँचे। अभी पानी निकलने न पाया था कि दुश्मन ने आ कर उसे बन्द कर दिया। फ़हर बत अतफ़ाले ख़्याम दुश्मन को देख कर बच्चे ख़मों में जा छुपे। फिर थोड़ी देर बाद हज़रत अब्बास (अ.स.) ने कुंआ खोदा वह भी बन्द कर दिया गया। हत्ताहफ़रा अरबन यहां तक कि चार कुंए खोदे और पानी हासिल न कर सके। ब रवाएते पांचवीं मरतबा पानी बरामद हुआ। सकीना ने कुज़ा भरा और दुश्मन के ख़ौफ़ से ख़ेमे की तरफ़ भागीं तनाबे ख़ेमा में पांव उलझे और आप गिर पड़ीं पानी जाता रहा और दुश्मन ने कुंआ बन्द कर दिया, सकीना प्यासी की प्यासी रहीं। (ख़ुलासेतुल मसाएब सफ़ा 112 तबा नवल किशोर सफ़ा 1876) इसके बाद इमाम हुसैन (अ.स.) एक नाक़े पर सवार हो कर दुश्मन के क़रीब गए और अपना ताअर्रूफ़ कराया लेकिन कुछ न बना। (कशफ़ुल ग़म्मा सफ़ा 70) मुवर्रेख़ीन लिखते हैं कि नवीं तारीख़ को शिम्र कूफ़ा वापस गया और उसने उमरे साद की शिकायत कर के इब्ने ज़ियाद से एक सख़्त हुक्म हासिल किया जिसका मक़सद यह था कि अगर हुसैन (अ.स.) बैअत नहीं करते तो उन्हें क़त्ल कर के उनकी लाश पर घोड़ें दौड़ा दें और अगर तुझ से यह न हो सके तो शिम्र को चार्ज दे दे हम ने उसे हुक्मे तामील हुक्मे यज़ीद दिया है। (रौज़तुल शोहदा सफ़ा 306 व दम ए साकेगा सफ़ा 323)े इब्ने ज़ियाद का हुक्म पाते ही इब्ने साद तामील पर तैय्यार हो गया, इसी नवीं तारीख़ को शिम्र ने हज़रत अब्बास (अ.स.) और उनके भाईयों को अमान की पेशकश की उन्होंने बड़ी देर से उसे ठुकरा दिया। (जलाउल ऐन सफ़ा 198, तबरी सफ़ा 237 जिल्द 6) तफ़सील के लिये मुलाहेज़ा हों ज़िकरूल अब्बास सफ़ा 176 से 182 तक। इसी नवीं की शाम आने से पहले शिम्र की तहरीक से इब्ने साद ने हमले का हुक्म दे दिया। इमाम हुसैन (अ.स.) ख़ेमे में तशरीफ़ फ़रमा थे। आपको हज़रते ज़ैनब फिर हज़रते अब्बास (अ.स.) ने फिर दुश्मन के आने की इत्तेला दी। हज़रत ने फ़रमाया मुझे अभी निंद सी आ गई थी, मैंने आं हज़रत (स.अ.) को ख़्वाब में देखा उन्होंने फ़रमाया कि अनका तरो ग़दा हुसैन तुम कल मेरे पास पहुँच जाओगे। (दमए साकेबा 322) जनाबे ज़ैनब रोने लगीं और इमाम हुसैन (अ.स.) ने हज़रते अब्बास से फ़रमाया कि भय्या तुम जा कर उन दुश्मनों से एक शब की मोहलत ले लो। हज़रत अब्बास तशरीफ़ ले गए और लड़ाई एक शब के लिये मुलतवी हो गई। (तारीख़े इस्लाम 272 तबा गोरखपुर 1931 ई0) जंग के रोकने की ग़रज़ क्या थी उसके लिये मुलाहेज़ा हो ज़िकरूल अब्बास सफ़ा 186)




