चौदह सितारे पार्ट 57

गवर्नरों की तक़रूरी

पहली इस्लाह यह थी कि गवर्नर हटा दिये जायें। लोगों ने उनके इस अमल की अफ़क़त न की मगर अली (अ.स.) ने न माना और गवरनरों की तक़र्रुरी फ़रमा | आपने हालाते हाज़रा के पेशे नज़र इस ओहदे पर ज़्यादा उन लोगों को फ़ाएज़ किया जिन पर आपको कामिल एतेमाद था और जो अहदे साबिक़ में अपने हुकूके सरदारी से महरूम रखे गये थे। आपने अब्दुल्लाह को यमन का, सईद को बहरैन का, समाआ को तहामा का, औन को मियामा का, क़सम को मक्के का, क़ैस को मिस्र का, उस्मान बिन हनीफ़ को बसरे का, अम्मार को कूफ़े का और सहल को शाम का गवर्नर मुक़र्रर फ़रमा दिया। हज़रत अली (अ.स.) को सलाह दी गई कि वह माविया को अपनी जगह रहने दें मगर अली (अ.स.) ने ऐसी सलाहों पर तवज्जोह न की और क़सम खाई कि मैं रास्ते से मुन्हरिफ़ उमूर पर अमल न करूंगा। एहसान अल्लाह अब्बासी तारीख़े इस्लाम में लिखतें हैं। अली (अ.स.) ने सीधे तौर पर जवाब दिया कि मैं उम्मते रसूल स. पर बूरे लोगों को हुक्मरां नहीं रख सकता। अल्लामा जरज़ी ज़ैदान तारीख़े तमद्दुने इस्लामी में लिखते हैं, यह अम्र पहले मालूम हो चुका है कि अबू सुफियान और उसकी औलाद ने महज़ मजबूरी के आलम में इस्लाम कुबूल किया था क्यों कि उनको अपनी कामयाबी से मायूसी हो चुकि थी इस लिये माविया को खिलाफ़त की आरज़ू महज़ दुनियावी अग़राज़ की वजह से पैदा हुई । कुरैश के चन्द चीदा चीदा सरदार उनके पास जमा

हो गये। अग़राज़े नफ़सानी की बिना पर मन्सबे खिलाफ़त का ख़ानदाने बनी हाशिम में जाना उनको बहुत शाक़ गुज़र रहा था ।

आमिल हटते गये और कुछ माविया के पास शाम में और कुछ उम्मुल मोमेनीन आयशा के पास मक्के में जमा होते गये। तलहा व जुबैर मक्के जा कर उम्मुल मोमेनीन से मिले और इन्तेक़ामे उस्मान के नाम से एक तहरीक उठाई। अब्दुल्लाह इब्ने आमिर और लैला इब्ने उमय्या ने जो माज़ूल गवर्नर थे और बैतुल माल का रूपया ले कर भाग आय थे माली इम्दाद दी। तारीख़े इस्लाम जिल्द 3 सफ़ा 169 में है कि बा रवायते साहबे रौज़ातुल अहबाब व इब्ने ख़लदून, इब्ने असीर लैला ने जनाबे आयशा को साठ हज़ार ( 60,000) दीनार जो छः लाख ( 6,00,000) दिरहम होते हैं और छः सौ (600) ऊँट इस ग़रज़ से दिये कि अली (अ.स.) से लड़ने की तैय्यारी करें। उन्हीं ऊँटों में एक निहायत उम्दा अज़ीम उल जुस्सा ऊँट था जिसका नाम असकर था और जिसकी क़ीमत ब रवायत मसूदी दो सौ अशरफ़ी थी। मुवर्रिख़ीन का बयान है कि इसी ऊँट पर सवार हो कर जनाब उम्मुल मोमेनीन आयशा दामादे रसूल स. शौहरे बुतूल अली (अ.स.) से लड़ीं और इसी ऊँट की सवारी की वजह से इस लड़ाई को जंगे जमल कहा गया।

जंगे जमल

(36 हिजरी)

यह मुसल्लेमा हक़ीक़त है कि हज़रत अली (अ.स.) क़त्ले उस्मान के बाद 18 जिलहिज्जा 35 हिजरी को तख़्ते खिलाफ़त पर मुतमक्किन हुये और आपने अनाने हुकूमत संभालने के बाद सब से पहला जो काम किया वह क़त्ले उस्मान की तहक़ीक़ात से मुताअल्लिक़ था। नायला ज़वजए उस्मान अगरचे कोई शहादत न दे सकीं और किसी का नाम न बता सकीं नीज़ उनके अलावा भी कोई चश्म दीद गवाह न मिल सका, जिसकी वजह से फ़ौरी सज़ाएं दी जायें लेकिन हज़रत अली (अ.स.) तहक़ीक़ाते यक़ीनीया का अज़मे समीम कर चुके थे। अभी आप किसी नतीजे पर न पहुँचने पाये थे कि मक्के में साजिशें शुरू हो गईं। हज़रत आयशा जो हज से फ़राग़त के बाद मदीने के लिये रवाना हो चुकी थीं और खिलाफ़ते अली (अ. स.) की ख़बर पाने के बाद फिर मक्के में जा कर फ़रोकश हो गईं थीं। उन्होंने चार यारान, तल्हा, ज़ुबैर, अब्दुल्लाह, अबुल याअली के मशवेरे से इन्तेक़ामे ख़ूने उस्मान के नाम से एक साजिशी तहरीक की बुनियाद डाल दी और क़त्ले उस्मान का इल्ज़ाम हज़रत अली (अ.स.) पर लगा कर लोगों को भड़काना शुरू कर दिया और इसका ऐलाने आम करा दिया कि जिसके पास अली (अ.स.) से लड़ने के लिये मदीना जाने के वास्ते सवारी न हो वह हमें इत्तेला दे, हम सवारी का बन्दो बस्त करेंगे। उस वक़्त अली (अ.स.) के दुश्मनों की कमी नहीं थी। किसी को आप से बुग़ज़े लिल्लाही था, कोई जंगे बद्र में अपने किसी अज़ीज़ के मारे जाने से मुतास्सिर था, किसी को प्रोपेगन्डे ने मुतास्सिर कर दिया गया था। ग़रज़ के एक

हज़ार अफ़राद हज़रत आयशा की आवाज़ पर मक्के में जमा हो गये और प्रोग्राम बनाया गया कि सब से पहले बसरे पर छापा मारा जाय । चुनान्चे आप इन्हीं मज़कूरा चारों अफ़राद के मैमने और मैसरे पर मुशतमिल लशकर ले कर बसरे की तरफ़ रवाना हो गईं। आपके साथ अज़वाजे नबी में से कोई भी बीबी नहीं गई। हज़रत आयशा का यह लशकर जब मुक़ामे जातुल अरक़ में पहुँचा तो मुगीरा और सईद इब्ने आस ने लश्कर से मुलाक़ात की और कहा कि तुम अगर ख़ूने उस्मान का बदला लेना चाहते हो तो तल्हा और जुबैर से लो क्यो कि उस्मान के सही क़ातिल यह हैं और अब तुम्हारे तरफ़दार बन गये हैं। इतिहास में है कि रवानगी के बाद जब मक़ामे हव्वाब पर हज़रत आयशा की सवारी पहुँची और कुत्ते भौंकने लगे तो उम्मुल मोमेनीन ने पूछा कि यह कौन सा मुक़ाम है? किसी ने कहा इसे हवाब कहते हैं। हज़रत आयशा ने उम्मे सलमा की याद दिलाई हुई हदीस का हवाला हो दे कर कहा कि मैं अब अली (अ.स.) से जंग के लिये नहीं जाऊँगी क्यों कि रसूल अल्लाह स. ने फ़रमाया था कि मेरी एक बीवी पर हवाब के कुत्ते भौकेंगे और वह हक़ पर न होगी लेकिन अब्दुल्लाह इब्ने जुबैर के जिद करने से आगे बढ़ीं, बिल आखिर बसरे जा पहुँचीं और वहां के अलवी गर्वनर उस्मान बिन हनीफ़ पर रातो रात हमला किया और चालीस आदमियों को मस्जिद में क़त्ल करा दिया और उस्मान बिन हनीफ़ को गिरफ़्तार करा के उनके सर, डाढ़ी, मूंछ, भवें और पलकों के बाल नुचवा डाले और उन्हें चालीस कोडे मार कर छोड़ दिया । उनकी

मद्द के लिये हकीम इब्ने जब्लता आये तो उन्हें भी सत्तर आदमियों समेत क़त्ल करा दिया गया। इस के बाद बैतुल मार पर क़ब्ज़ा न देने की वजह से सत्तर आदमी और शहीद हुए, यह वाक़ेया 25 रबीउस सानी, 36 हिजरी का है। (तबरी)

हज़रत अली (अ.स.) को जब इत्तेला मिली तो आपने भी तैय्यारी शुरू कर दी, अभी आप बसरे की तरफ़ रवाना न होने पाये थे कि मक्के से उम्मुल मोमेनीन हज़रत उम्मे सलमा का ख़त आ गया। जिसमें लिखा था कि आयशा हुक्मे ख़ुदा व रसूल स. के खिलाफ़ आपसे लड़ने के लिये मक्के से रवाना हो गई हैं, मुझे अफ़सोस है कि मैं औरत हूँ, हाजिर नहीं हो सकती, अपने बेटे उमर बिन अबी सलमा को भेजती हूँ इसकी खिदमत क़ुबूल फ़रमायें ।

(आसिम कूफ़ी)

हज़रत अली (अ.स.) आखिर रबीउल अव्वल 36 हिजरी में अपने लशकर समेत मदीने से रवाना हुए। आपने लश्कर की अलमदारी मोहम्मदे हनफिया के सिपुर्द की और मैमने पर इमाम हसन (अ. स.) और मैसरे पर इमाम हुसैन (अ.स.) को मुताअय्यन फ़रमाया, और सवारों की सरदारी अम्मारे यासिर और पियादों की नुमाइन्दगी मौहम्मद इब्ने अबी बक्र के हवाले की और मुक़दमा तुल जैश का सरदार अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास को क़रार दिया। मुक़ामे ज़ब्दा में आपने क़याम फ़रमाया और वहां से कूफ़े के वाली अबू मूसा अशअरी को लिखा कि फ़ौज रवाना
करे, लेकिन चुंकि वह आयशा के ख़त से पहले ही मुतास्सिर हो चुका था लेहाज़ा उसने फ़रमाने अली (अ.स.) को टाल दिया। हज़रत को मक़ामे ज़ीक़ारा पर हालात की इत्तेला मिली, आपने उसे माज़ूद कर के क़रज़ा इब्ने काब को अमीर नामज़द कर दिया और मालिके अशतर के ज़रिये से दारूल इमाराह ख़ाली करा लिया। (तबरी)

इसके बाद इमाम हसन (अ.स.) के हमराह 7000 ( सात हज़ार) कूफ़ी और मालिके अशतर के हमराह 12000 (बारह हज़ार) कूफ़ी 6 दिन के अन्दर जीकार पहुँच गये। इसी मुक़ाम पर उवैसे करनी ने भी पहुँच कर बैयत की। इसी मुक़ाम पर उन ख़ुतूत के जवाब आये जो रबज़ा से हज़रत ने ( तल्हा व जुबैर ) को लिखे थे जिनमें उनकी हरकतों का तज़किरा किया था और लिखा था कि अपनी औरतों को घर में बिठा कर नामूसे रसूल स. को जो दर बदर फिरा रहे हो इससे बाज़ आओ। जवाबात में इस्कीम के मातहत क़त्ले उस्मान की रट थी। इसके बाद इमाम हसन (अ. स.) ने एक ख़ुतबे में तलहा और जुबैर के क़ातिले उस्मान होने पर रौशनी डाली। हज़रत अभी मक़ामे ज़ीक़ार ही में थे कि मज़लूम उस्मान बिन हनीफ़ आपकी खिदमत में जा पहुँचे। हज़रत ने उस्मान का हाल देख कर बेहद अफ़सोस किया और फ़ौरन बसरे की तरफ़ रवाना हो गये। मुसन्निफ़ तारीख़े आइम्मा लिखते हैं कि आयशा के लशकर की आख़री तादाद 30,000 (तीस हज़ार) और हज़रत अली (अ.स.) के लशकर की तादाद 20,000 ( बीस हज़ार) थी। सफ़ा 265 अल्लामा

अब्बासी लिखते हैं कि हज़रत अली (अ.स.) तलहा, जुबैर और आयशा के तमाम हालात देख रहे थे लेकिन यही चाहते थे कि लड़ाई न हो। जब बसरे के क़रीब आप पहुँचे तो क़आक़ा इब्ने उमरो को उन लोगों के पास भेजा और सुलह की पेशकश की। क़आक़ा ने जो रिर्पोट वापस आकर पहुँचाई इससे वह लोग तो मुतास्सिर हुए जो ज़ेरे क़यादत आसम इब्ने क़लीब अली (अ.स.) के पास बतौरे सफ़ीर आये हुए थे और उनकी तादाद 100 (सौ) थी, लेकिन आयशा वगैरा पर कोई ख़ास असर न हुआ। आसम वग़ैरा ने अली (अ.स.) की बैयत कर ली और अपनी क़ौम से जा कर कहा कि अली (अ.स.) की बातें नबियों जैसी हैं। ग़रज़ कि दूसरे दिन अली (अ.स.) बसरा पहुँच गये। उसके बाद जमल वाले बसरा से निकल कर मुक़ामे ज़ाबुका या ख़रबिया में जा ठहरे और वहां से अली (अ.स.) के मुक़ाबले के लिये हज़रत आयशा ऊंट पर सवार हो कर खुद निकल पड़ीं। हज़रत अली (अ.स.) ने अपने लशकर को हुक्म दिया कि आयशा और उनके लशकर पर हमला न करें, न उनका जवाब दें। ग़रज़ कि वह जंग की कोशिश कर के वापस गईं। उसके बाद अली (अ.स.) ने ज़ैद इब्ने सूहान को उम्मुल मोमेनीन के पास भेज कर जंग न करने की ख़्वाहिश की मगर कोई नतीजा बरामद न हुआ ।

15 जमादिल आखिर 36 हिजरी यौमे पंजशम्बा बा वक़्ते शब तल्हा व ज़ुबैर ने शबयूँ मार कर हज़रत अली (अ.स.) को सोते में क़त्ल कर डालना चाहा लेकिन

अली (अ.स.) बेदार थे और तहज्जुद में मशगूल थे। हज़रत को हमले की ख़बर दी गई, आपने हुक्मे जंग दे दिया। इस तरह जंग का आग़ाज़ हुआ ।

मैदाने कारज़ार

हज़रत आयशा को तल्हा व जुबैर लोहे व चमड़े से मढ़े हुये हौदज में बैठा कर मैदान में लाये और अलमदारी का मनसब भी उन्हीं के सिपुर्द किया और उसकी सूरत यह की कि हौदज में झन्डा नस्ब कर के मेहारे नाक़ा अस्कर लायली के सिपुर्द कर दी। यह देख कर हज़रत अली (अ.स.) रसूल अल्लाह स. के घोड़े दुलदुल पर सवार हो कर दोंनो लश्करों के दरमियान आ खड़े हुये, और ज़ुबैर को बुला कर कहा कि तुम लोग क्या कर रहे हो, अब भी सोचो और उस पर ग़ौर करो कि रसूल अल्लाह स. ने तुम से क्या कहा था। ऐ जुबैर क्या तुम्हें मुझ से जंग करने के लिये मना नहीं किया था। यह सुन कर जुबैर शरमिन्दा हुए और वापस चले आये लेकिन अपने लड़के अब्दुल्लाह के भड़काने से आयशा की तरफ़दारी में नबरद आज़माई से बाज़ न आये ।

अलग़रज़ हज़रत अली (अ.स.) ने जब देखा कि यह जमल वाले ख़ैरेज़ी से बाज़ न आयेंगे तो अपनी फ़ौज को ख़ुदा की तरसी की तलक़ीन फ़रमाने लगे, आपने कहा:- 1. बहादुरों सिर्फ़ दफ़ये दुश्मन की नियत रखना। 2. इब्तेदाए जंग न करना । 3. मक़तूलो के कपड़े न उतारना । 4. सुलह की पेशकश मान लेना और पेशकश
करने वाले के हथियार न लेना। 5. भागने वालों का पीछा न करना। 6. ज़ख़्मी बीमार और औरतों व बच्चों पर हथियार न उठाना। 7. फ़तेह के बाद किसी के घर में न घुसना ।

इसके बाद आयशा से फ़रमानो लगे, तुम अनक़रीब पशेमान होगी और अपने लोगों की तरफ़ मुतावज्जे हो कर कहा तुम में कौन ऐसा है जो क़ुरआन के हवाले से जंग करने से बाज़ रखे। यह सुन कर मुस्लिम नामी एक जांबाज़ इस पर तैयार हुआ और क़ुरआन ले कर उनके मजमे में जा घुसा। तल्हा ने उसके हाथ कटवा दिये, और फिर शहीद करा दिया।

हज़रत अली (अ.स.) के लशकर पर तीरों की बारिश शुरू हो गई। बारवायत तबरी आपने फ़रमाया अब इन लोगों से जंग जायज़ है। आपने मौहम्मद बिन हनफिया को हुक्म दिया, मौहम्मद काफ़ी लड़ कर वापस आये। हज़रत अली (अ. स.) ने अलम ले कर एक ज़बर दस्त हमला किया और कहा बेटा इस तरह लड़ते हैं। फिर अलम मौहम्मद बिन हनफिया के हाथ में दे कर कहा हां बेटा आगे बढ़ो, मौहम्मद हनफिया अन्सार ले कर यहां तक कि हौदज तक मारते हुय जा पहुँचे, बिल आखिर सात दिन के बाद हज़रत अली (अ.स.) खुद मैदान में निकल पड़े और दुश्मन को पसपा कर डाला। मरवान के ज़हर आलूद तीर से तल्हा मारे गये और जुबैर मैदाने जंग से भाग निकले। रास्ते मे वादीउस्सबा के क़रीब उमर बिने ज़रमोज़ ने उनका काम तमाम कर दिया। उसके बाद हज़रते आयशा बारह

हज़ार जर्रार समेत आख़िरी हमले के लिये सामने आ गईं। अलवी लशकर ने इस क़दर तीर बरसाए कि हौदज पुश्ते साही के मानिन्द हो गया। हज़रत आयशा ने क़ाअब इब्ने असवद को क़ुरआन दे कर हज़रत अली (अ.स.) के लशकर की तरफ़ भेजा। मालिके अशतर ने उसे रास्ते ही में क़त्ल कर दिया। उसके बाद आयशा के ना को पैय कर दिया गया। ऊँट हौदज समेत गिर पड़ा और लोग भाग निकले। हज़रत अली (अ.स.) ने मौहम्मद बिन अबी बक्र को हुक्म दिया कि हौदज के पास जा कर उसकी हिफ़ाज़त करें। उसके बाद ख़ुद पहुँच कर कहने लगे, आयशा तुम ने हुरमते रसूल बरबाद कर दी। फिर मौहम्मद से फ़रमाया कि इन्हें अब्दुल्लाह इब्ने हनीफ़ ख़ज़ाई बसरी के मकान में ठहरायें। हज़रत ले कुशतों को दफ़्न करने का हुक्म दिया, और ऐलाने आम कराया कि जिसका सामान जंग में रह गया हो तो जामेउल बसरा में आ कर ले जाय। मसूदी ने लिखा है कि इस जंग में 13,000 ( तेराह हज़ार ) आयशा के और 5,000 (पांच हज़ार) हज़रत अली (अ.स.) के लशकर वाले मारे गये।

( मुरूज जुज़हब, जिल्द 5 सफ़ा 177)

मुर्रेख़ीन का बयान है कि फ़तह के बाद अब्दुल रहमान इब्ने अबी बक्र ने हज़रते अली (अ.स.) की बैयत कर ली। मसूदी और आसम कूफ़ी ने लिखा है कि हज़रत अली (अ.स.) ने आयशा को मुताअदद्धि आदमियों से कहला भेजा कि जल्द से जल्द मदीने वापस चली जाओ, लेकिन उन्होंने एक न सुनी। आखिर में
बारवायते रौज़तुल अहबाब व हबीब उस सैर व आसम कूफ़ी, इमाम हसन (अ.स.) के ज़रिये से कहला भेजा अगर तुम अब जाने में ताख़ीर करोगी तो मैं तुम्हे ज़वजियते रसूल स. से तलाक़ दे दूँगा। यह सुन कर वह मदीने जाने के लिये तैय्यार हो गईं। हज़रते अली (अ.स.) ने चालीस (40) औरतों को मरदों के सिपाहियाना लिबास में हज़रते आयशा की हिफ़ाज़त के लिये साथ कर दिया, और खुद भी बसरे के बाहर तक पहुँचाने गये। (अलखिज़री जिल्द 2 सफ़ा 90) और मौहम्मद बिन अबी बक्र को हुक्म दिया कि इन्हें मंजिले मक़सूद तक जा कर पहुँचा आओ। एयरविंग लिखता है कि आयशा को अली (अ.स.) के हाथों सख़्त बरताव की उम्मीद हो सकती थी लेकिन वह आली हौसला शख़्स ऐसा न था जो एक गिरे हुए दुशमन पर शान दिखाता। उन्होंने इज्ज़त दी और चालीस आदमियों के साथ मदीने के तरफ़ रवाना कर दिया।

उसके बाद हज़रत अली (अ.स.) ने बसरे के बैतुल माल का जायज़ा लिया, 6,00,000 (छः लाख) दुर्रे आबदार बरामद हुये, आपने सब अहले मारेका पर तकसीम कर दिये और अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास को वहां का गवर्नर मुक़र्रर कर के रोज़ सोमवार 16 रजब 36 हिजरी को कूफ़े की तरफ़ रवाना हो गये और वहां पहुँच कर कुछ दिनों क़याम किया और दौराने क़याम में कूफ़ा, ईराक़, ख़ुरासान, यमन, मिस्र और हरमैन का इन्तेजाम किया। ग़रज़ शाम के सिवा तमाम मुमालिके इस्लामी पर हज़रत का तसल्लुत हो गया और क़ब्ज़ा बैठ गया और इस अन्देशे से
कि माविया ईराक़ पर क़ब्ज़ा न कर ले कूफ़े को दारूल खिलाफ़ा बना लिया। इब्ने ख़ल्दूर लिखता है कि जमल के बाद सिस्तान में बग़ावत हुई, हज़रत ने रज़ी इब्ने कास अम्बरी मो भेज कर उसे फ़रो कराया।
ख़ुरासान का लाना में रफ़ए बग़ावत के लिये अलवी फ़ौज की जंग और जनाबे शहर बानों

तरीख़े इस्लाम में है कि अहदे उस्मानी में अहले फ़ारस ने बग़ावत व सरकशी कर के अब्दुल्लाह इब्ने मोअम्मर वालीए फ़ारस को मार डाला और हुदूदे फ़ारस से लशकरे इस्लाम से निकाल दिया। उस वक़्त फ़ारस की लशकरी छावनी मक़ामे असतख़र था। ईरान का आखिरी बादशा यज़द जरद इब्ने शहरयार इब्ने किसरा अहले फ़ारस के साथ था। हज़रत उस्मान ने अब्दुल्लाह इब्ने आमिर को हुक्म दिया कि बसरा और अमान के लशकर को मिला कर फ़ारस पर चढ़ाई करे । उसने तामीले इरशाद की । हुदूदे अस्तख़ा में ज़बरदस्त जंग हुई मुसलमान कामयाब हो गये और अस्तख़र फ़तेह हो गया।

अस्तख़र के फ़तेह होने के बाद 31 हिजरी में यज़द जरद मक़ामे रै और फिर वहां से ख़ुरासान और ख़ुरासान से मरव जा पहुँचा और वहीं सुकूनत इख़्तेयार कर ली। इसके हमराह चार हज़ार आदमी थे। मरव मे वह ख़ाक़ाने चीन की साज़िशी इमदाद की वजह से मारा गया और शाहाने अजम के गोरिस्तान अस्तख़र में दफ़्न कर दिया गया।

जंगे जमल के बाद ईरान, ख़ुरासान के इसी मक़ाम मरव में सख़्त बग़ावत हो गयी उस वक़्त ईरान में बारवायत इरशाद मुफ़ीद व रौज़तुल सफ़ा हरस इब्ने जाबिर जाअफ़ी गवर्नर थे। हज़रते अली (अ.स.) ने मरव के कज़िया न मरजिया को ख़त्म करने के लिये इमदादी तौर पर ख़लीद इब्ने क़रआ यरबोई को रवाना किया। वहां जंग हुई और हरीस इब्ने जाबिर जाफ़ी ने यज़द जरद इब्ने शहरयार इब्ने कसरा (जो अहदे उस्मानी में मारा जा चुका था ) की दो बेटियां आम असीरों में हज़रते अली (अ.स.) की खिदमत में इरसाल कीं। एक का नाम शहर बानो और दूसरी का नाम केहान बानो था। हज़रत ने शहर बानों इमाम हुसैन (अ.स.) को और केहान बानों, मौहम्मद इब्ने अबी बक्र को अता फ़रमाईं। (जामेउल तवारीख़ सफ़ा 149, कशफ़ल ग़म्मा सफ़ा 89, मतालेबुल सेवेल सफ़ा 261, सवाएके मोहर्रेका सफ़ा 120, नूरूल अबसार सफ़ा 126, तोहफ़ए सुलैमानिया शरह इरशादिया सफ़ा 391 प्रकाशित ईरान)



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