ताज़ियादारी न तो किसी बादशाह के शुरू करने से शुरू हुई है न किसी रज़ा खानी या वहाबी के बंद करने से बंद होगी ये वो रूहानी यादगार और पाकीज़ा अमल या फेल है जिसमे पाक पंजतन का फ़ैज़ शामिल है, जब अहमद रज़ा खान बरेलवी ने रिसाला ताज़ियादारी में लिखा के ताज़िया शिर्क व बिदअत है और ताज़ियादार जहन्नुमी कुत्ते हैं तो हिंदुस्तान ही नहीं दुनिया के तमाम सूफियों के दिल पर इक चोट सी लगी लिहाज़ा उस दौर के एक बहुत बड़े बुजुर्ग हस्ती(जिन से इफ्तेखारिया सिलसिला मनसूब है ) सूफी हज़रत मौलाना इफ्तेखारुलहक़ सुम्मुल कलकतवी र.अ. ने action लेते हुवे किताब जवाज़े ताज़िया तहरीर की जिस में ताज़िया व ताज़ियादारी को तमाम दलीलों से सही व जायज़ साबित कर दिया,जब जवाज़े ताज़िया का अहमद रज़ा खान से जवाब नहीं बन पड़ा तो अपनी तक़रीरों और तहरीरों के ज़रिए हज़रत मौलाना इफ़्तेख़ारुलहक़ र.अ. को भला बुरा कहने लगे यहां तक के बद ज़बानी पर भी उतर आए तब हज़रत मौलान इफ्तेखारुलहक़ र.अ. ने एक किताब तहरीर की जिसका नाम हामिज़ुन असनान है उस किताब में सिर्फ कलमा लाइलाह इल्लल्लाह पर 79 सवाल किये और सफ़हये अव्वल पर लिखा के ख़सुसन(ख़ास तौर से) अहमद रज़ा खान बरेलवी और अमूमन( आम तौर से ) दुनिया के तमाम ओलेमा अगर इल्म रखते हैं तो मेरे सवालों का जवाब दें अगर जवाब न बन पड़े तो आइंदा किसी सूफी से उलझने की कोशिश ना करें जब किताब मन्ज़रे आम पर आई तो अहमद रज़ा खान के साथ सभी मसलक के ओलेमा को सांप सूंघ गेया न किसी से जवाब बन पड़ा और ना ही किसी ने जवाब दिया अहमद रज़ा खान का सारा इल्म धरा का धरा रह गेया अगर रज़ा खानियों को लगता है के जवाब अब भी दिया जा सकता है तो किताब मौजूद है उस वक़्त न सही अब सही.
इमसाल रज़ाखानी ओलमा ताज़िया शरीफ बन्द कराने के लिये छोटा बड़ा गरोह बनाकर मैदान में उतरे हुए थे जगह जगह जहां ताज़िये बनाये जारहे थे जाकर उन्हें रोका जा रहा था, ऐसा नहीं के उनकी ये कोशिश किसी एक शहर के लिए थी बलके उनका ये मुहिम पूरे हिंदुस्तान में चल रहा था इस मुहिम के ज़रिए जहां वो लोग सूफियों के अक़ाएद पर हमला आवर थे वहीं जनाब सरवर चिश्ती और जनाब कामरान चिश्ती साहबान अजमेर की तहरीक और पैग़ाम को नाकाम व बे असर भी करना चाहते थे मगर नतीजा इसके बरअक्स निकला यानी लोगों में ताज़ियादारी के लिए इस क़दर जोश व जज़्बा पैदा हुआ के ताज़िया की तादाद पहले से कहीं ज़्यादा हो गई, अब रज़ा खानी ओलमा कह रहे हैं के अहमद रज़ा खान ने ताज़िया की मुखालिफत नहीं कि है वो ताज़िया को जायज़ समझते थे, अगर ऐसी बात है तो रज़ाखानी हज़रात अपने मरकज़ी एदारा बरेली से एलान करें के ताज़िया जाएज़ ही नहीं हर उम्मते मोहम्मदिया के लिए ज़रूरी भी है जिस में अना मिनल हुसैन का राज़ पोशीदा है और ये भी एलान करें के अबु सुफियान, हिन्दा, और मोआविया से बेज़ारी ज़ाहिर करते हुए हुज़ूर स.अ. के चचा हज़रत अबू तालिब अलैहिस्सलाम के ईमान पर ईमान रखते हैं अगर ऐसा होता है तब हम सुन्नी सूफी कुछ सोच सकते हैं अगर ऐसा नहीं होता है तो उनका हर क़ौल व फ़ेल फरेब समझा जाएगा.
बेदम यही तो पांच हैं मक़सूदे कायनात
खैरुन्निसा, हुसैनो, हसन,मुस्तफा,अली





जो लोग कहते हैं कि ग़म ए हुसैन अलैहिस्सलाम क्यों मनाते हों،सोग तो सिर्फ तीन दिन का होता है उनको बताता चलूं कि मौला मुहम्मद ﷺ इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम कि शहादत के बाद मौला मुहम्मद ﷺ ग़म ए हुसैन अलैहिस्सलाम से हालत क्या थी
मुलाहिजा फरमाएं “बुखारी” के उस्ताद “अहमद बिन हमबल रदी अल्लाहू अनहू ने अपनी मुसनद में सहीह रिवायत दर्ज की है 👇👇👇
۔ (۱۲۴۲۳)۔ عَنِ ابْنِ عَبَّاسٍ قَالَ: رَأَیْتُ النَّبِیَّ صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَسَلَّمَ فِیمَایَرَی النَّائِمُ بِنِصْفِ النَّہَارِ وَہُوَ قَائِمٌ أَشْعَثُ أَغْبَرُ، بِیَدِہِ قَارُورَۃٌ فِیہَا دَمٌ، فَقُلْتُ: بِأَبِی أَنْتَ وَأُمِّییَا رَسُولَ اللّٰہِ، مَا ہٰذَا؟ قَالَ: ((ہٰذَا دَمُ الْحُسَیْنِ وَأَصْحَابِہِ۔)) لَمْ أَزَلْ أَلْتَقِطُہُ مُنْذُ الْیَوْمِ، فَأَحْصَیْنَا ذٰلِکَ الْیَوْمَ، فَوَجَدُوہُ قُتِلَ فِی ذٰلِکَ الْیَوْمِ۔ (مسند احمد: ۲۵۵۳)
सैय्यदना अब्दुल्लाह बिन अब्बास रदी अल्लाहू अनहू से रिवायत है,,वह कहते हैं कि:-
मेने दोपहर के वक्त ख्वाब में नबी करीम ﷺ को देखा कि आप रसूल अल्लाह ﷺ खड़े थे और आप रसूल अल्लाह ﷺ के सर के बाल बिखरे हुए और गुबार आलूद है और आप के हाथ में एक शीशी है जिस में खून था-
मेंने कहा: ए अल्लाह के रसूल ﷺ मेरे मां बाप आप पर फिदा हो,,,ये क्या हैं?
आप मौला मुहम्मद ﷺ ने फ़रमाया ये हुसैन और उसके साथियों का खून है,,,जिसे मैं आज जमा कर रहा हूं –
हम ने उस दिन का हिसाब लगाया तो वह वहीं दिन था जिस दिन सैय्यदना हुसैन अलैहिस्सलाम शहीद हुए थे
Musnad Ahmed#12423
کتاب الفضائل







