
हज़रत अली (अ.स.) के जंगी कारनामे
उलेमा का इत्तेफ़ाक है कि इल्म और शुजाअत इकठ्ठा नहीं हो सकते लेकिन हज़रत अली (अ.स.) की ज़ात ने इसे वाज़े कर दिया कि मैदाने इल्म और मैदाने जंग दोनों पर क़ाबू किया जा सकता है बशरते इन्सान में वही सलाहियतें हों जो कुदरत की तरफ़ से हज़रत अली (अ.स.) को मिली थीं। 2 हिजरी से ले कर अहदे वफ़ाते पैग़म्बरे इस्लाम तक नज़र डाली जाय तो अली (अ.स.) के जंगी कारनामे अवरा तारीख़े पर नज़र आयेंगे। जंगे ओहद हो या जंगे बद्र, जंगे ख़ैबर हो या जंगे ख़न्दक़, जंगे हुनैन या कोई और मारेका हर मन्जिल में हर मौकिफ़ पर अली (अ.स.) की ज़ुल्फिकार चमकती हुई दिखाई देती है। तारीख़ शाहिद है कि अली (अ.स.) के मुक़ाबले में कोई बहादुर टिका ही नहीं। आपकी तलवार ने मरहब, अन्तर, हारिस व उम्रो बिन अब्दवुद जैसे बहादुरों को दमे ज़दन में फ़ना के घाट उतार दिया। (जंग के वाकियात गुज़र चुके हैं ) याद रखना चाहिये कि अली (अ.स.) से मुक़ाबला जिस तरह इन्सान नहीं कर सकते थे, उसी तरह जिन भी आपसे नहीं लड़ सकते थे।
जंगे बेरूल अलम
मनाकिब इब्ने आशोब जिल्द 2 पृष्ठ 90 व कनज़ुल वाएज़ीन मुलला सालेह बरग़ानी में बा हवाला, इमामुल मोहक़्क़ीन अलहाज मौहम्मद तक़ी अल क़रदीनी बतवस्सुल हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) व अबू सईद ख़दरी व हुज़ैफ़ा यमानी लिखते हैं कि रसूले ख़ुदा स. जंगे सिकारसिक से वापसी में एक उजाड़ वादी से गुज़रें आपने पूछा यह कौन सा मकाम है, उम्र बिन अमिया ज़मरी ने कहा इसे वादी कसीबे अरज़क़ कहते हैं। इस जगह एक कुआं है जिसमें वह जिन रहते हैं जिन पर जनाबे सुलैमान (अ.स.) को क़ाबू नहीं हासिल हो सका। इधर से तेगे यमानी गुज़रा था उसके दस हज़ार सिपाही इन्हीं जिनों ने मार डाले थे। आपने फ़रमाया कि अगर ऐसा है तो फिर यही ठहर जाओ। काफिला ठहरा, आपने फ़रमाया दस आदमी जा कर जिनों के कुऐं से पानी लायें। जब यह लोग कुएं के पास पहुँचे तो एक ज़बरदस्त इफ़रीयत बरामद हुआ और उसने एक ज़बरदस्त आवाज़ दी। सारा जंगल आग का बन गया। धरती कांपने लगी, सब सहाबी भाग निकले लेकिन अबुल आस सहाबी पीछे हटने के बजाए आगे बढ़े। और थोड़ी देर में जंगल जल कर राख हो गये। इतने में जिब्रईल नाजिल हुए और उन्होंने सरवरे कायनात स. से कहा कि किसी और को भेजने के बजाय आप अलम दे कर अली इब्ने अबी तालिब (अ.स.) को भेजिये। अली (अ.स.) रवाना हुए, रसूल स. ने दस्ते दुआ बलन्द किया, अली (अ.स.) पहुँचे इफ़रीयत बरामद हुआ और बड़े गुस्से में रजज़ पढ़ने लगा। आपने फ़रमाया मैं अली इब्ने अबी तालिब मेरा शेवा मेरा अमल सरकशों की सर कोबी है। यह सुन कर उसने आप पर ज़बरदस्त करतबी हमला किया। आप ने वार ख़ाली दे कर उसे ज़ुल्फिकार से दो टुकड़े कर डाला । उसके बाद आग के शोले और धुएं के तूफ़ान कुऐं से बरामद हुए और ज़बरदस्त शोर मचा और बेशुमार डरावनी शक्लें सामने आ गईं, अली (अ.स.) ने बरदन व सलामन कहा और चन्द आयतें पढ़ीं। आग बुझने लगी धुवां हवा होने लगा। हज़रतअली (अ.स.) कुएँ की जगत पर चढ़ गए, और डोल डाल दिया। कुऐं से डोल बाहर फ़ेंक दिया। हज़रत अली (अ.स.) ने रजज़ पढ़ा और कहा मुक़ाबले के लिये आ जाओ। यह सुन कर एक इफ़रीयत बरामद हुआ। आपने उसे क़त्ल किया, फिर कुऐं में डोल डाला वह भी बाहर फेक दिया गया, ग़रज़ कि इसी तरह तीन बार हुआ । आखिर में आपने असहाब से कहा कि मैं कमर में रस्सी बांध कर कुएं में उतरता तुम रस्सी पकड़े रहो । असहाब ने रस्सी पकड़ ली और अली (अ.स.) कुएं में उतरे, थोड़ी देर बाद रस्सी कट गई और अली (अ.स.) और असहाब के बीच रिश्ता टूट गया। असहाब बहुत परेशान हुए और रोने लगे। इतने में कुऐ से चीख़ पुकार की आवाज़ें आने लगीं। उसके बाद यह सदा आईः अली हमें पनाह दो। आपने फ़रमाया क़ता व बुरीद और ज़रबे शदीद कलमें पर मौकूफ़ है। कलमा पढ़ो, अमान लो। ग़रज़ की कलमा पढ़ा गया। इसके बाद रस्सी डाली गई और अमीरूल मोमेनीन 20,000 ( बीस हज़ार) जिनों को क़त्ल कर के और 24,000 ( चौबीस हज़ार) क़बाएल को मुसलमान बना कर कुऐं से बाहर आये । असहाब ने ख़ुशी का इज़हार किया और सब के सब आं हज़रत स. की खिदमत में हाजिर हुए। हुज़ूरे अकरम स. ने अली (अ.स.) को सीने से लगाया, उनकी पेशानी का बोसा दिया और मुबारकबाद से हिम्मद अफ़ज़ाई फ़रमाई। फिर एक रात क़याम के बाद मदीने को रवानगी हुई। (अद्दमतुस् साकेबा पृष्ठ 176 ईरान में छपी व शवाहेदुन नबूवत अल्लामा जामी रूक्न 6 पृष्ठ 165, लखनऊ में 1920 ई0 में छपी)


