
हज़रत फातेमा (स.अ) रब्बुल इज़्ज़त की निगाह मे
मोहसीन (हदीसों के ज्ञाता) का बयान है कि हज़रत फातेमा ( स.अ) को परवर दीगारे आलम अपनी कनीज़े ख़ास जानता था और उनकी बेहद इज़्ज़त करता था । देखा गया है कि हज़रत सैय्यदा नमाज़ में मशगूल होती थीं और फ़रिश्ते इनके बच्चों को झूला झुलाते थे और जब वह क़ुरआन पढ़ने बैठती थीं तो फ़रिश्ते उनकी चक्की पीसा करते थे। हज़रत रसूले करीम (स.व.व.अ.) ने झूला झुलाने वाले फ़रिश्ते का नाम जिब्राईल और चक्की पीसने वाले का नाम औकाबील बताया है। (मनाक़िब इब्ने शहरे आशोब, जिल्द 2 पृष्ठ 28, मुल्तान में छपी )
फातेमा (स.अ) अहदे रिसालत (स.अ.व.व.) मे
पैग़म्बरे इस्लाम (स.व.व.अ.) की हयात में फातेमा ( स. अ) की क़दरो मंज़िलत, इज़्ज़त व तौक़ीर की कोई हद न थी । इन्सान तो दर किनार मलाएका का यह हाल था कि आसमानों में उतर ज़मीन पर आते और फातेमा (स. अ) की ख़िदमत करते। कभी जन्नत के तबक़ लाये, कभी हसनैन (अ.स.) का झूला झुला कर फातेमा की मदद की। अगर उनके मुंह से ईद के मौक़े पर निकल गया कि बच्चों तुम्हारे कपड़े दरज़ी लायेगा तो जन्नत के ख़ज़ानची को दरज़ी बन कर आना पड़ा। हद है कि मलकुल मौत भी आपकी इजाज़त के बग़ैर घर में दाख़िल न हुये । अल्लामा अबदुल मोमिन हन्फ़ी लिखते हैं कि सरवरे कायनात ( स.व.व.अ.) के वक़्ते आख़िर फातेमा के जानू पर सरे रिसालत माआब था, मलकुल मौत ने आवाज़ दी और घर में आने की इजाज़त चाही, फातेमा (स.अ) ने इन्कार कर दिया, मलकुल मौत दरवाज़े पर रुक गये लेकिन मकान में दाख़िल होने की ज़िद करते रहे। फातेमा ( स.अ) के बराबर इन्कार पर मलकुल मौत ने कुछ आवाज़ बदल कर आवाज़ दी। फातेमा स. रो पड़ीं, आपके आंसू रूखसारे रिसालत पर गिरे। पैग़म्बर ( स.व.व.अ.) ने पूछा क्या
बात है? आप ने वाक़िया बताया । हुक्म हुआ? ! इजाज़त दो यो मलकुल मौत हैं। (अजायब अल क़स्स, पृष्ठ 282)
फातेमा ज़हरा रसूले इस्लाम के बाद
28 सफ़र 11 हिजरी को रसूले इस्लाम का इन्तेक़ाल हुआ। आपके इन्तेक़ाल के बाद आपके घर वालों पर ज़ुल्म व अत्याचार के पहाड़ टूट पड़े और आप इतना दुखी हुईं कि अपनी कश्तीए हयात 75 दिन से अधिक न खेंच सकीं। आपके सर पर पट्टी बंधी रहा करती थी और रात दिन अपने बाबा को रोया करती थीं। आपके लिये सरवरे कायनात का सदमा ही क्या कम था के उस पर आफ़त यह कि दुनियादारों ने रसूल (स.व.व.अ.) के घर को ग़मों का अड्डा बना दिया । होना यह चाहिये था कि बाप के इन्तेक़ाल के बाद कफ़न दफ़न की मुसिबत से दुख दर्द मारी बेटी को बे नियाज़ कर दिया जाता और हुज़ूर की तदफ़ीन, तकफ़ीन को बहुत अच्छी तरह अंजाम दिया जाता, लेकिन अफ़सोस इसके विपरीत दुनिया वालों ने रसूले इस्लाम (स.व.व.अ.) की मय्यत को यूं ही घर में छोड़ दिया और ख़ुदा और रसूल की मंशे के ख़िलाफ़ अपनी हुकूमत की बुनियाद क़ायम करने के लिये सक़ीफ़ा बनी साएदा चले गये। रसूले इस्लाम (स.व.व.अ.) की मय्यत पड़ी रही, बिल आख़िर आले मोहम्मद ( स.व.व.अ.) और दीगर चन्द मानने वालों ने इस फ़रीज़े को अदा किया। यह वाकेया भुलाने के क़ाबिल नहीं जब की हज़रत अबू बक्रख़लीफ़ा बन कर और हज़रत उमर ख़लीफ़ा बना कर वापस लौटे तो सरवरे कायनात (स.व.व.अ.) की लाशे मुतहर सुपुर्दे ख़ाक की जा चुकी थी । इन हज़रात ने इस तरफ़ ध्यान न दिया और किसी ग़म व अफ़सोस का इज़हार न किया और सब से पहले जिस चीज़ की कोशिश शुरू की वह हज़रत अली अ0 से बैअत लेने की थी। हज़रत अली (अ.स.) और कुछ महत्वपूर्ण एंव आदरणीय सहाबा जिन में कुल बनी हाशिम, जुबैरस अतबआ बिन अबी लहब, ख़ालिद बिन सईद, मिक़दाद बिन उमर, सलमाने फ़ारसी, अबू ज़रे ग़फ़्फ़ारी, अम्मारे यासिर, बरा बिन आज़िब, इब्ने अबी क़अब, और अबू सुफ़ियान क़ाबिले ज़िक्र हैं।
(तारिखे अबुल फ़िदा, जिल्द 1 पृष्ठ 375)
यह लोग चूकिं ख़िलाफ़ते मन्सूसा के मुक़ाबले में सक़ीफ़ाई ख़िलाफ़त को तसलीम न करते थे लेहाज़ा लिहाज़ा जनाबे फातेमा (स.अ ) के घर में गोशा नशीन हो गये। इस पर हज़रत उमर आग और लकड़ियां लेकर आये और कहा घर से निकलों वरना हम घर में आग लगा दें गे। यह सुन कर हज़रत फातेमा ज़हरा (स.अ) दरवाज़े के क़रीब आईं और फ़रमाया कि इस घर में रसूल (स.अ) के नवासे हसनैन भी मौजूद हैं। कहा होने होने दीजिये ।
(तारिख़ तबरी, वल इमामत वल सियासत, जिल्द 1 पृष्ठ 12)
इसके बाद बराबर शोर गुल होता रहा और अली (अ.स) को घर से बाहर निकालने की बात होती रही। मगर अली (अ.स) न निकले, फातेमा ( स.अ) के घरको आग लगा दी गई । ( 1 ) जब शोले बलन्द होने लगे तो फातेमा ( स.अ) दौड़ कर दरवाज़े के क़रीब आईं और फ़रमाया, अरे अभी मेरे बाप का कफ़न भी मैला न होने पाया कि यह तुम क्या कर रहे हो? यह सुन कर फातेमा (स.अ) के उपर दरवाज़ा गिरा दिया गया जिसकी वजह से फातेमा ( स.अ) के पेट पर चोट लगी और फातेमा (स.अ) के पेट में मोहसिन नाम का बच्चा शहीद हो गया ।
(किताब अल मिलल वन्नहल शहरिस्तानी, मिस्र में छपी पृष्ठ 202)
अल्लामा मुल्ला मूईन काशफ़ी लिखतें हैं कि फातेमा इसी ज़रबे उमर से रेहलत कर गईं।
(मुलाज़ा हो मआरिजुन नुबूवा, पैरा 4, भाग 3 पृष्ठ 42 )
इसके बाद यह लोग हज़रत फातेमा (स.अ) के घर में बेधड़क घुस आये और अली (अ.स) को गिरफ़तार कर के उनके गले में रस्सी बांधी इब्ने अबील हदीद, 3, और लेकर दरबारे खिलाफ़त में पहुंचे और कहा बैअत करो, वरना ख़ुदा की क़सम तुम्हारी गरदन मार देंगे। रौज़तुल अहबाब हज़रत अली (अ.स) ने कहा, तुम क्या कर रहे हो और किस क़ायदे और किस बुनियाद पर मुझ से बैअत ले रहे हो। यह कभी नहीं हो सकता। अल इमामत वल सियासत, जिल्द 1 पृष्ठ 13 बाज़ इतिहास कारों का बयान है कि उन लोंगो ने सैय्यदा के घर में घुस कर धमा चौकड़ी मचा दी बिल आखिर इबने वाज़े के अनुसार “फ़ख़जत फ़ात्मतः फ़ाक़ालत वल्लाहुल तजज़ जिन औला कशफ़न शआरी वल अजजन इल्ललाह फातेमा बिन्ते रसूल ” (स.अ) सहने ख़ाना में निकल आईं और कहने लगीं ख़ुदा की क़सम घर से निकल जाओ वरना मैं अपने सर के बाल खोल दूंगी और ख़ुदा की बारगाह में सख़्त फ़रियाद करूगीं।
तारीख़ अल याक़ूबी जिल्द 2 पृष्ठ 116 एक रवायत में है कि जब हज़रत अली (अ.स) को गिरफ़तार कर के ले जाया जा रहा था तो हज़रत फातेमा बिन्ते रसूल (स.अ) ने फ़रियाद करते हुए कहा था कि अबुल हसन को छोड़ दो वरना अपने सर के बाल खोल दूंगी। तबरी कहते हैं कि इस कहने पर मस्जिदे नबवी की दीवार कट्टे आदम बुलन्द हो गई थी । ( 2 ) इसके बाद हज़रत फातेमा को सूचना मिली के आपकी वह जायदाद जिसका नाम फ़दक़ था जो बहुक्मे ख़ुदा रसूल (स.व.व.अ.) के हाथों आई थी और जिसकी आमदनी फ़क़ीरों, अनाथों पर हमेशा से ख़र्च होती आई जिसका महले वक़ू मदीना मुनव्वरा से शुमाल की तरफ़ सौ मील है पर ख़लीफ़ा ए वक़्त ने क़ब्ज़ा कर लिया है। मोअज्जम अलबदान सही बुख़ारी अल फ़ारूख़ जिल्द 2 पृष्ठ 288, यह मालूम कर के आप हद् दर्जा ग़ज़ब नाक हुईं बुख़ारी और यह मालूम कर के और ज़्यादा दुखी हुईं कि एक फ़रज़ी हदीस ग़सबे फिदक के जवाज़ में गढ़ ली है। अल ग़रज़ आप ने दरबारे खिलाफ़त में अपना मुतालबा पेश किया और इनकारे सुबह पर बतौरे सबूत हज़रत अली (अ.स), हज़रत हमामे हसन (अ.स), इमामे हुसैन (अ.स), उम्मे ऐमन और रबाह को गवाही में पेश कियालेकिन सब की गवाहियां रद्द कर दी गईं और कहा गया अली शहर हैं हसनैन बेटे हैं उम्मे ऐमन वग़ैरा कनीज़ व गुलाम हैं, इनकी गवाही नहीं मानी जा सकती । किताब अल कशफ़ा, इन्सान अल उयून व सवाएक पृष्ठ 32, एक रवायत की बिना पर हज़रत अबू बकर ने हेबा का तस्दीक़ नामा लिख कर फातेमा ( स.अ) को दे दिया था वह ले कर जाने ही वाली थीं कि अचानक हज़रत उमर आये, पूछा क्या है ? कहा तसदीके हेबा नामा, आप ने वह ख़त हाथ से ले कर चाक कर डाला और बा रवायत ज़मीन पर फेक कर उस पर थूक दिया और पांव से रगड़ डाला। (सीरते हलबिया पृष्ठ 185, और मुक़दमा ख़ारिज करा दिया, इनसान अल उयून जिल्द 3 पृष्ठ 400 सबा मिस्त्र), इसी सिलसिले में आपका ख़ुतबा लम्मा ख़ास अहमियत रखता है। इसके थोड़े दिन बाद हज़रत अबू बक्र और हज़रत उमर, अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली (अ.स) की खिदमत मे हाजिर हुए और अजर् की कि हम ने फातेमा को नाराज़ किया है, हमारे साथ चलिए हम उन से माफ़ी मांग लें। हज़रत अली (अ.स) उनको हमराह ले कर आए और फ़रमाया ऐ फातेमा यह दोनों पहले आए थे और तुमने उन्हें अपने मकान में घुसने नहीं दिया अब मुझे ले कर आएं हैं इजाज़त दो कि दाखिले खाना हो जाऐं । हुक्मे अली (अ.स) से इजाज़त तो दे दी लेकिन जब यह दाखिले खाना हुए तो फातेमा ने दीवार की तरफ़ मुंह फेर लिया और सलाम का जवाब तक न दिया और फ़रमाया ख़ुदा की क़सम ता जिन्दगी नमाज़ के बाद तुम दोनों पर बद दुआ करती रहूंगी। ग़रज़ की फातेमा ने माफ़ न किया और यह लोग मायूस वापिस हो गये। अल इमामत वल सियासत मुअल्लेफ़ा इब्ने अबी क़तीबा मतूफ़ी 276 हिजरी जिल्द 1 पृष्ठ 14 इमाम बुख़ारी कहते हैं कि फातेमा नेता हयात उन लोगों से बात नहीं की और ग़ज़ब नाक ही दुनिया से उठ गईं।
1 रौज़ातुल अल मनाज़िर हासिया कामिल 11 पृष्ठ 113 32 व एहतिजाज तबरी 2 मुआक़ी अल अख़बार पृष्ठ 206 4, एतिजाज 1 पृष्ठ 112.




