चौदह सितारे पार्ट 32

हज़रत फातेमा (स.अ) का निज़ामे अमल

शौहर के घर जाने के बाद आप ने जिस निज़ामे ज़िन्दगी का नमूना पेश किया वह तबका ए निसवां के लिए एक मिसाली हैसीयत रखता है। आप घर का तमाम काम अपने हाथों से करती थीं। झाडू देना, खाना पकाना, चरखा कातना, चक्की पीसना और बच्चों की तरबीयत करना यह सब काम और अकेली सय्यादा ए आलम, लेकिन न कभी तेवरी पर बल आते थे और न कभी शौहर से मददगार न ख़ादमा की फ़रमाईश की। फिर जब 7 हिजरी में पैग़म्बरे ख़ुदा ( स.व.व.अ.) ने एक ख़ादमा अता की जो फ़िज़्ज़ा के नाम से मशहूर हैं, तो रसूल अल्लाह ( स.व.व.अ. ) की हिदायत के अनुसार सैय्यदाए आलम फ़िज़्ज़ा के साथ एक कनीज़ का सा नहीं, बल्कि एक अज़ीज़ रफ़ीक़ कार जैसा बरताव करती थीं और एक दिन घर का काम ख़ुद करती थीं। दरअस्ल यह मसावाते मोहम्मदी की आला मिसाल हैं। (सैय्यदा की अज़मत, मुसन्नेफ़ मौलाना कौसर नियाज़ पृष्ठ 5 )

फातेमा (स.अ ) और पर्दा

आप ने औरतों की मेराज पर्दादारी को बताया है और ख़ुद भी हमेशा इस पर आमिल रही हैं और इतनी सख़्ती के साथ कि मस्जिदे रसूल (स.व.व.अ.) बिल्कुल मुतास्सिल क़याम रखने और मस्जिद के अन्दर घर का दरवाज़ा होने के बावजूद कभी अपने वालिदे बुज़ुर्गवार के पीछे नमाज़े जमाअत में शिरकत या आपके मौवाएज़ के सुनने के लिए भी मस्जिद में तशरीफ़ नहीं लाईं। एक मरतबा पैग़म्बर (स.व.व.अ.) ने मिम्बर पर यह सवाल पेश फ़रमा दिया कि औरत के लिये सब से बेहतर क्या चीज़ है? यह बात जनाबे सैय्यदा (स.अ) तक पहुंची, आपने जवाब दिया, औरत के लिये सब से बेहतर यह बात है कि न इसकी नज़र किसी ग़ैर मर्द
पर पड़े और न किसी ग़ैर मर्द की नज़र उस पर पड़े। रसूल (स.व.व.अ.) के सामने यह जवाब पेश हुआ आपने फ़रमाया, क्यों न हो फातेमा मेरा ही एक जुज़ है।

जनाबे सैय्यदा (स.अ) का जिहाद

इस्लाम में औरत का जिहाद मर्द से अलग है इस लिए सैय्यदा (स.अ) ने कभी मैदाने जंग में क़दम नहीं रखा मगर रसूल (स.व.व.अ.) जब कभी ज़ख़्मी हो कर घर वापस तशरीफ़ लाते थे तो पैग़म्बर (स.व.व.अ.) के ज़ख़्मों को धुलाने वाली, और अली अ0 जब ख़ून में डूबी तलवार ले कर आते थे तो उनकी तलवार को साफ़ करने वाली फातेमा ज़हरा ही होती थीं। एक मरतबा नुसरते इस्लाम के लिए मैदान में गईं मगर उस पुर अमन मामले में जो नसारा के मुक़ाबले में हुआ था और जिस में सिर्फ़ रूहानी फ़तेह का सवाल था। इस जिहाद का नाम मुबाहेला है और इस में पर्दा दारी के तमाम इमकानी तक़ाज़ों की पाबन्दी के साथ सैय्यदा ए आलम बाप बेटों और शौहर के बीच मरकज़ी हैसीयत रखती थी।

(वसाएल अल शिया जिल्द 3 पृष्ठ 61)

हज़रत फातेमा (स.अ) और उमूरे ख़ानादारी

औरतों का जौहरे जाती शौहरों की ख़िदमत और अमूर ख़ाना दरी में कमाल हासिल करना है। फातेमा ज़हरा ( स.अ ) ने अली (अ.स) की ऐसी ख़िदमत की कि मुश्किल से इसकी मिसाल मिल सकेगी। हर मुसीबत और तकलीफ़ में फ़रमा बरदारी पर नज़र रखी और अगर मैं यह कहूं तो बेजा न होगा कि जिस तरह ख़दीजा (स.अ) ने इस्लाम और पैग़म्बरे इस्लाम की ख़िदमत की, इसी तरह बिन्ते रसूल (स.अ ) ने इस्लाम और अली अ0 की ख़िदमत की, यही वजह है कि जिस तरह रसूले करीम (स.व.व.अ.) ने ख़दीजा (स.अ) की मौजूदगी में दूसरा अक़द नहीं किया हज़रत अली अ0 ने भी फातेमा (स.अ.) की मौजूदगी में दूसरा अक़द नहीं किया। (सवाएक़े मोहर्रेका पृष्ठ 85 व मुनाक़िब पृष्ठ 8 ) हज़रत अली अ0 से किसी ने पूछा के फातेमा (स.अ) आप की नज़र में कैसी थीं? फ़रमाया ख़ुदा की क़सम वह जन्नत का फूल थीं। दुनियां से उठ जाने के बाद मेरा दिमाग़ उनकी ख़ुशबू से मुअत्तर है।

उमूरे ख़ानदानी में जनाबे सैय्यदा आप ही अपनी नज़र थीं। 7 हिजरी तक आप के पास कोई कनीज़ न थी। कनीज़ न होने की सूरत में घर का सारा काम ख़ुद करती थीं, झाडू देती थीं, पानी भरती, चक्की पीसती थीं, आटा छानती थीं, आटा गंधी थी, तनूर जलाकर रोटी पकाती थीं। हज़रत अली (अ.स) सवेरे उठ कर मस्जिद चले जाते थे और वहां से मज़दूरी की फ़िक्र में लग जाते थे। फ़िज़्ज़ा के
आ जाने के बाद काम बांट लिया गया था। बल्कि बारी बांट ली थी। एक दफ़ा सरकारे दो आलम ( स.व.व.अ.) ख़ाना ए सैय्यदा स में तशरीफ़ लाये। देखा कि सैय्यदा गोद में बच्चे को लिये चक्की पीस रही हैं, फ़रमाया बेटी एक काम फ़िज़्ज़ा के हवाले कर दो। अर्ज़ की बाबा जान ! आज फ़िज़्ज़ा की बारी का दिन नहीं है। ( मनाक़िब पृष्ठ 14)

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