
हज़रत रसूले करीम ( स.व.व.अ.) शोएबे अबी तालिब में (मोहर्रम 7 बेअसत )
मुवर्रेख़ीन का बयान है कि जब कुफ़्फ़ारे क़ुरैश ने देखा कि इस्लाम रोज़ ब रोज़ तरक़्क़ी करता चला जा रहा है तो बहुत परेशान हुये। पहले तो कुछ क़ुरैश दुश्मन थे अब सब के सब मुख़ालिफ़ हो गये और बा रवायते इब्ने हश्शाम व इब्ने असर व तबरी, अबू जेहल बिन हश्शाम, शेबा अतबा बिन रबिया, नसर बिन हारिस, आस बिन वाएल और अक़बा बिन अबी मूईत एक गिरोह के साथ रसूले ख़ुदा (स.व.व.अ.) के क़त्ल पर कमर बांध कर हज़रत अबू तालिब के पास आये और साफ़ लफ़्ज़ों में कहा कि मोहम्मद ने एक नये मज़हब की शुरूआत की है और हमारे ख़ुदाओं को हमेशा बुरा भला कहा करते हैं लिहाज़ा उन्हें हमारे हवाले कर दो, हम उन्हें क़त्ल कर दें या फिर आमादा ब जंग हो जाओ। हज़रत अबू तालिब ने उन्हें उस वक़्त टाल दिया और वह लोग वापस चले गये और रसूले करीम (स.व.व.अ.) अपना काम बराबर करते रहे। कुछ दिनों के बाद दुश्मन फिर आये और उन्होंने आ कर शिकायत की और हज़रत के क़त्ल पर ज़ोर दिया। हज़रत अबू तालिब ने आं हज़रत से वाक़िया बयान किया, उन्होंने फ़रमाया कि ऐ चचा मैं जो कहता हूँ कहता रहूँगा मैं किसी की धमकी से डर नहीं सकता और न मैं किसी लालच में फंस सकता अगर मेरे एक हाथ पर आफ़ताब और दूसरे पर महताब रख दिया जाये तब भी मैं अल्लाह के हुक्म को पहुँचाने में न रूकूगां। मैं जो करता हूँ अल्लाह के हुक्म से करता हूँ वह मेरा मुहाफ़िज़ है। यह सुन कर हज़रत अबू तालिब ने फ़रमाया कि बेटा तुम जो करते हो करते रहो मैं जब तक ज़िन्दा हूँ तुम्हारी तरफ़ कोई नज़र उठा कर नहीं देख सकता। कुछ समय के बाद बा रवायत इब्ने हश्शाम व इब्ने असीर कुफ़्फ़ार ने अबू तालिब (अ.स.) से कहा कि तुम अपने भतीजे को हमारे हवाले कर दो हम उसे क़त्ल कर दें और उसके बदले में एक नवजवान हम से बनी मख़जूम में से ले लो। हज़रत अबू तालिब ने फ़रमाया कि तुम बेवकूफ़ी की बातें करते हो, यह कभी नहीं हो सकता। यह क्यो कर मुम्किन है कि तुम्हारे लड़के को ले कर उसकी परवरिश करूं और हमारे बेटे को ले कर क़त्ल कर दो। यह सुन कर उनका गुस्सा और बढ़ गया और उनको सताने पर भरपूर तुल गये। हज़रत अबू तालिब (अ. स.) ने उसके रद्दे अमल में बनी हाशिम और बनी मुत्तलिब से मदद चाही और दुश्मनों से कहला भेजा कि काबा व हरम की क़सम अगर मोहम्मद (स.व.व.अ.) के पांव में कांटा भी चुभा तो मैं सब को क़त्ल कर दूगां। हज़रत अबू तालिब के इस कहने पर दुश्मनों के दिलों में आग लग गई और वह आं हज़रत (स.व.व.अ.) के क़त्ल पर पूरी ताक़त से तैय्यार हो गये । हज़रत अबू तालिब ने जब आं हज़रत ( स.व.व.अ.) की जान को ग़ैर महफ़ूज़
देखा तो फ़ौरत उन लोगों को लेकर जिन्होंने हिमायत का वायदा किया था जिनकी तादाद बरवायते हयातुल कुलूब चालीस थी, मोहर्रम 7 बेअसत में शोएबे अबू तालिब के अन्दर चले गये और उसके ऐतराफ़ को महफ़ूज़ कर दिया।
कुफ़्फ़ारे क़ुरैश ने अबू तालिब के इस अमल से मुताअस्सिर हो कर एक अहद नामा मुरत किया जिसमें बनी हाशिम और बनी मुत्तलिब से मुकम्मल बाईकाट का फ़ैसला था। तबरी में है कि इस अहद नामे को मन्सूर बिन अकरमा बिन हाशिम ने लिखा था जिसके बाद ही उसका हाथ शल (बेकार ) हो गया था ।
तवारीख़ में है कि शोएब का दुश्मनों ने चारों तरफ़ से भरपूर घिराव कर लिया था और उनको मुकम्मल क़ैद कर दिया था इस क़ैद ने अहले शोएब पर बड़ी मुसिबतें डालीं, जिसमानी और रूहानी तकलीफ़ के अलावा रिज़्क़ की तंगी ने उन्हें तबाही के किनारे पर पहुँचा दिया और नौबत यहां तक पहुँची कि वह दींदार (धर्म पालक) पेड़ों के पत्ते खाने लगे। नाते कुनबे वाले अगरचे चोरी छुपे कुछ खाने पीने की चीजें पहुचा देते और उन्हें मालूम हो जाता तो सख़्त सज़ाऐं देते। इसी हालत में तीन साल गुज़र गये। एक रवायत में है कि जब अहले शोएब के बच्चे भूख से बेचैन हो कर चीखते और चिल्लाते थे तो पड़ोसियों की नींद हराम हो जाती थी। इस हालत में भी आप पर वही नाज़िल होती रही और हुज़ूर कारे रिसालत अंजाम देते रहे।
तीन साल के बाद हश्शाम बिन उमर बिन हरस के दिल में यह ख़्याल आया कि हम और हमारे बच्चे खाते पीते और ऐश करते हैं और बनी हाशिम और उनके बच्चे भूखे रह रहे हैं, यह ठीक नहीं है। फिर उसने और कुछ आदमियों को हम ख़्याल बना कर क़ुरैश के जलसे में इस सवाल को उठाया अबू जहल और उसकी
बीवी उम्मे जमील जिसे ब ज़बाने क़ुरआन हिमा लतल हतब कहा जाता है ने विरोध (मुख़ालेफ़त) किया लेकिन अवाम के दिल पसीज उठे। इसी दौरान में हज़रत अबू तालिब आ गये और उन्होंने कहा कि मोहम्मद ( स.व.व.अ.) ने बताया है कि तुमने जो अहदनामा लिखा है उसे दीमक खा गई है और कागज़ के उस हिस्से के सिवा जिस पर अल्लाह का नाम है सब ख़त्म हो गया है। ऐ क़ुरैश बस ज़ुल्म की हद हो गई, तुम अपने अहद नामे को देखो अगर मोहम्मद का कहना सच हो तो इन्साफ़ करो और अगर झूठ हो तो जो चाहे करो ।
हज़रत अबू तालिब के इस कहने पर अहद नामा मंगवाया गया और हज़रत रसूले करीम (स.व.व.अ.) का इरशाद इसके बारे में बिल्कुल सच साबित हुआ जिसके बाद कुरैश शर्मिन्दा हो गये और शोएब का घिराव टूट गया। उसके बाद हश्शाम बिन उमर बिन हरस और उसके चार साथी, जुबैर बिन अबी, उमय्या मख़्मी और मुतअम बिन अदी, अबुल बख़्तरी बिन हश्शाम, ज़माअ बिन असवद बिन अल मुत्तलिब बिन असद शोएबे अबू तालिब में गये और उन तमाम लोगों को जो उसमें क़ैद थे उनके घरों में पहुँचा दिया । (तारीखे तबरी, तारीखे कामिल, रौज़तुल अहबाब) मुवर्रिख़ इब्ने वाज़े जिनका देहांत 292 में हुआ का बयान है कि इस घटना के बाद अस्लम यू मस्ज़िदिन ख़लक़ मिनन नास अज़ीम बहुत से काफ़िर
मुसलमान हो गये। (अल याक़ूबी जिल्द 2 पृष्ठ 25 मुद्रित नजफ़ 1384 हिजरी)
रूमियों की हार पर आं हज़रत ( स.व.व.अ.) की कामयाब पेशीन गोई ( 8 बेअसत) मुर्रेख़ीन लिखते हैं कि 8 बेअसत में ईरानियों ने रूमियों को हरा दिया और चूंकि ईरानी आतिश परस्त और रूमी ईसाई अहले किताब थे इस लिये कुफ़्फ़ारे मक्का को इस वाक़िये से ख़ुशी हुई और मुसलमानों को दुख हुआ । मुसलमानों के दुख को हज़रत रसूल अल्लाह ( स.व.व.अ.) ने अपनी तसल्ली से दूर किया और उनसे बतौर पेशीन गोई फ़रमाया कि घबराओ नहीं 3 और 9 साल के दरमियान रूमी ईरानियों को शिकस्त दे कर कामयाब हो जायेगें चुनान्चे ऐसा ही हुआ 9 बेअसत गुज़रने से पहले रूमी ईरानियों पर ग़ालिब आये इस पेशीन गोई का ज़िक्र क़ुराने मजीद में मौजूद है। मेरे नज़दीक इस पेशीन गोई की सेहत ने हक़ीक़ते क़ुरान और हक़ीक़ते रिसालत को उजागर कर दिया है।
गिबन और दीगर ईसाई मुवर्रेख़ीन ने लिखा है कि वह लड़ाई जिसमें ईरानियों ने फ़तेह पाई थी 611 ई0 से 617 ई0 तक जारी रही और जिसमें रूमियों ने फ़तेह पाई वह 622 ई0 से 628 ई0 तक रही । ईरानियों ने 617 ई0 तक तमाम एशियाई कोचक और मिस्र फ़तेह कर लिया था और कुसतुनतुनिया से एक मील की दूरी पर पड़ाव डाल दिया था और आगे बढ़ने का ईरादा कर रहे थे सिर्फ़ अबनाए फ़ासक़रस हदे फ़ासिल था मगर 623 ई0 में रूमियों ने ईरानियों को भारी शिकस्त दे कर अपने इलाके वापिस लेने शुरू कर दिये ।
तारीख़े तबरी जिल्द 2 पृष्ठ 360 में है कि इस घटना के सम्बन्ध में क़ुरान में लफ़ज़ बज़ा सनीन आया है जिसके मानी दस के हैं यानि फ़तेह दस साल के हुआ। अन्दर होगी चुनान्चे ऐसा ही

