
سَمِعْتُ أَبَا ذَرٍّ، يَقُولُ: وَهُوَ آخِذٌ بِبَابِ الْكَعْبَةِ: أَيُّهَا النَّاسُ، مَنْ عَرَفَنِي فَأَنَا مَنْ عَرَفْتُمْ، وَمَنْ أَنْكَرَنِي فَأَنَا أَبُو ذَرٍّ سَمِعْتُ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ يَقُولُ: *«مَثَلُ أَهْلِ بَيْتِي مَثَلُ سَفِينَةِ نُوحٍ* مَنْ رَكِبَهَا نَجَا، وَمَنْ تَخَلَّفَ عَنْهَا غَرِقَ» هَذَا حَدِيثٌ صَحِيحٌ عَلَى شَرْطِ مُسْلِمٍ وَلَمْ يُخْرِجَاهُ “”
*सहाबी ए रसूलﷺ हजरत सैय्यदना अबू ज़र गिफ्फारीرع काबातुल्लाह🕋* के दरवाज़े को थाम कर फरमा रहें थे “जो शक्स मुझे पहचानता है तो मैं वही हूं जिसको वो जानता हैं और जो शक्स मुझे नहीं पहचानता वो जान ले के मैं अबू ज़र गिफ्फारी हूं, मैंने *रसूल अल्लाहص* का ये फरमान सुना है, आप ने फरमाया *मेरे अहले बैत की मिसाल नूहع की कश्ती की तरह,* जो इस पर सवार हो गया वोह *निज़ात* पा गया और जो पीछे रह गया वो गर्क होगया!
📖 मुस्तद्रकलील हाक़िम 3312

