
एक दिन हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रत हसन और हज़रत हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हुम के रोने की आवाज़ सुनी तो आप जल्दी से घर तशरीफ़ ले गये और हज़रत फ़ातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा से फ़रमाया मेरे बेटे क्यों रो रहे हैं? हज़रत फ़ातिमा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा ने अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह! इन्हें प्यास लग रही है। इस वक़्त पानी यहां मौजूद नहीं है। हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ्रमाया इन्हें इधर लाओ। चुनांचे हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पहले हसन को उठाया और अपनी जुबान मुबारक उनके मुंह में डाल दी। हज़रत हसन ने हुजूर की जुबान चूसना शुरू की और उनकी प्यास जाती रही और चुप हो गये। फिर आपने हज़रत हुसैन को उठाया। उनके मुंह में भी जुबान डाली और वह भी जुबान मुबारक चूस कर चुप हो गये ।
(हुज्जतुल्लाहु अलल-आलमीन सफा ६८१ ) सबक : हज़रात हसनैन (यानी हसन व हुसैन) रज़ियल्लाहु तआला अन्हुम को किसी किस्म की तकलीफ़ हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को तकलीफ देती थी फिर जिन ज़ालिमों ने हज़रत हसनैन को सताया और शहीद किया तो उन्होंने हुजूर को किस केंद्र रंज पहुंचाया। यह भी मालूम हुआ कि हुजूर सर से पा तक भौजिजा हैं कि अपनी जुबाने मुबारक चुसाकर ही प्यास बुझा दी। आज जो लोग हुजूर की मिस्ल बनते हैं वह तो अपने नवासे के मुंह में जरा जुबान डालकर दिखायें बहुत मुमकिन है कि वह उस गुस्ताख़ की जुबान ही चबा डाले।

