मिश्कत ए हक़्क़ानिया जीवनी वारिस पाक-22

इश्क की पराकाष्ठा

अनुराग में आपका स्थान चरम सीमा पर था। इश्क ही वह मुकाम या स्थान है जिसमें आपने अपना जीवन व्यतीत किया है। बचपन से ही इश्क के नशे में आप मस्त थे, आपके खेलों में प्रेम का रंग छाया रहता था। बाल्यावस्था में ही जब कोई मदीना मुनौव्वरा की बातें ब्यान करता तो आप एक चीख मारते और अचेतन अवस्था में हो जाते थे। आपकी आँखें सदैव आंसूओं से भरी रहती थीं। चेहरे का रंग बदल जाता था बातें कम करते थे। भोजन नहीं के बराबर ही लेते थे, सुख सम्पदा से घृणा थी । सदैव चुप रहते थे। भ्रमण करना ही पसन्द करते थे। अल्लाह पर भरोसा करना, ईश्वर के अलावा संसार में किसी की फिक्र ना करना सब से लापरवाह रहना, आपका मुख्य स्वभाव था।

हुजूर वारिस पाक के जूता त्याग करने में एक घटना देखी गयी है। जब आप अजमेर शरीफ पधारें तो ख्वाजा गरीब नवाज के मजार (समाधि) पर जाते समय अपनी जूतियों को रूमाल में लपेट लिया। यह देखकर एक आजाद फ़कीर ने कहा- मियाँ साहबजादे! क्या यह चपातियाँ (पतली रोटी) हैं? आपने लपेटी हुई जूतियों को उसकी ओर फेंक दिया और कहा अगर चपातियाँ हैं, तो यह लो काम आयेंगी।’ उस दिन से जीवन भर फिर कभी पाँव में जूते न डाले। जाहिर में तो यह घटना थी किन्तु हकीकत यह थी कि आप को प्रेम-पथ में नंगे पद चलना था।

****** हुजूर वारिस पाक की प्रत्येक बातों से इश्क और मुहब्बत अथवा प्रेम का रहस्य समझ में आता था। आप प्रेम में इतना विलीन थे कि प्रेम के विरूद्ध कोई बात सुनना असह्य था। सम्पूर्ण कार्यों पर प्रेम को वरीयता देते थे। यही आपकी शिक्षादीक्षा थी। मौलाना शायक वारसी रह० तोहफ्तुलअसफिया में लिखते हैं कि सैय्यद अब्दुल अली साहब नग्राम निवासी, नेम-धर्म पर चलने वाले व्यक्ति थे उनसे और काजी अब्दुल करीम साहब बरेलवी से काफी रस्म-व्यवहार था। काजी साहब के मानने वाले मिलाद की सभा करते और खड़े होकर सलाम पढ़ते। दूसरी ओर सैय्यद अब्दुल अली साहब कहते यह तरीका इस्लाम से बाहर है। दोनों में बहस तकरार होती रहती थी। रब्बीउल अव्वल (अरबी मास) १२८२ हिजरी मुताबिक १८६२ ई० को संयोग से सरकार वारिस पाक नग्राम पधारे हुए थे। आपके आगमन पर सैय्यद साहब तथा काजी साहब दोनों आदमी ने राय किया कि हुजूर से इस सवाल को पूछा जाए। दोनों हुजूर की खिदमत में हाजिर हुए। बिना कहे सुने स्वयं सरकार ने सैय्यद अब्दुल अली साहब की ओर ध्यान देकर कहा ‘मीर साहब

आशिक जो कुछ माशूक के सम्बन्ध में कहे वह उचित और ठीक है। जितना सम्मान दे. मुनासिब है। ज्ञान कुछ है और प्रेम कुछ और है।’ जबकि रसूल मकबूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने ज्ञान की बड़ाई ब्यान किया है किन्तु मकतबे इश्क में (प्रेम की पाठशाला) यह बहुत बड़ा पर्दा है। ये भी फरमाया है कि अधिकांश उलमा की बातें गवांरों के लिए मधु और प्रेमियों के लिए विष मात्र होती हैं। जैसे मौलाना रूम ने उस आकाशवाणी को जो चखा है, के सम्बन्ध में हुई इस प्रकार लिखा है: १. मूसिया आदाबे दाना दीगरन्द सोखता जाँ दर्द दर्मा दीगरन्द |

ऐ मूसा बुद्धिमानों का अदब और हैं और दिल जलों के दर्द की दवा और है। २. तू बराये वस्ल करदन आमदी नै बराये फस्लकरदन आमदी ।

आप लोगों को ईश्वर से मिलाने आये हैं, न कि अलग करने आये हैं। ३. दर हके ऊमदह दर हक्के जिम्म दर हके उ शहद दर हक्के तू सम्म । उसके हक में वह बात बड़ाई है तेरे हक में वही बुराई है । उसके लिए तो वह मधु है और तेरे लिए विष है। ४. दर हके उ नूर दर हक्के तू नार दर हके ऊ वरद हक्के तू खार

उसके लिए वही प्रकाश है और तेरे लिए आग है ।

उसके हक में गुलाब का फूल है तेरे लिए कष्ट दायक कांटा ।

वारिस पाक ने इस कथन से सैय्यद अब्दुल अली साहब को पूरी शान्ति मिली। पुन: कोई प्रश्न उन्होंने नहीं किया। चूंकि मिलाद की महफिल प्रेमियों के लिए पूर्ण ईमान है। कुछ आलिमों (धार्मिक पण्डितों) को इसके बारे में विरोध है। यही कारण था कि वारिस पाक ने इसकी वास्तविकता को खोल दिया। आपकी दृष्टि में मुहब्बत और प्रेम के समान संसार में कोई वस्तु नहीं थी। अतः आपकी बातों में मुहब्बत और प्रेम की शिक्षा थी। हुजूर वारिस पाक की इश्क व मुहब्बत को कितना ऊँचा पद प्राप्त था। आपके निकट इश्क की क्या विशेषता थी? दर्शाने से पहले एक घटना अंकित है जिससे यह विदित होता है कि हुजूर की भाषा में इश्क क्या है ?

मौलाना शायक वारसी रह० अपनी पुस्तक ‘तोहफ्तुल असफिया’ में लिखते हैं कि हुजूर पाक लखनऊ में विद्यमान थे। एक हिदायत चाहने वाला आपकी सेवा में उपस्थित हो कर अर्ज़ किया कि मेरा सम्पूर्ण जीवन आवारगी और पाप में व्यतीत हुआ। मैं इच्छुक हूँ कि आप मुझे शिक्षा दें। आप ने कहा, ‘इश्क व मुहब्बत का ने सबक पढ़ो।’ उस व्यक्ति ने भोलेपन से कहा, मेरी आयु इस समय तक इश्क व मुहब्बत में बीती है, किन्तु प्रेम में दुनिया और आख़िरत का ह्रास है। आप ने पुनः

कहा ‘तुम इश्क की हकीकत से बेखबर हो।’ उसने कहा कि मैं स्वयं हैरान हूँ। इश्क तीन अक्षरों से मिश्रित है-ऐन, शीन और काफ। अक्षर ‘ऐन’ ईश्वर की बन्दगी की ओर संकेत करता है। ‘शीन’ इस्लाम के नियमों (शरीअत) को पूरा करने पर जोर डालता है। ‘काफ’ बलिदान या न्यौछावर होने (कुरबानी) के प्रति जागरूक करता है कि मनुष्य अपने तईं सच्ची उमंग और अभिलाषा के साथ न्यौछावर कर दे । इश्क एक बेमिसाल माशूक है। महबूब की मुहब्बत के प्रभाव उसमें कीमियां की खासियत रखते हैं जिसको माशूक चाहता है इश्क की बेड़ी में जकड़ लेता है मौलाना रूम कहते हैं :

१. मिल्लते इश्क बज हमाँ मिल्लत जुदास्त, इश्क अस्तरलाबे इसरारे खुदास्त : इश्क का धर्म तमाम धर्मों से अलग है, इश्क भगवान के भेदों को उठाने वाला यन्त्र है। २. मनचेसाजम इश्करा शरह ब बयाँ, कै शनासद इश्करा जुज आशिका | मैं इश्क की व्याख्या क्या कर सकता हूँ, आशिकों के अतिरिक्त इश्क को पहचान सकता है ३. इश्क आँ- न बु- बद कि बर मर्दुम बु-बद, ई फसाद अज खुर्द ने गन्दुम

? बुवद

इश्क वह नहीं होता जो साधारण लोगों को होता है,

ये फसाद गेहूँ के खाने से होता है। ४. इश्क हाये कि-ज पये रंगे बुबद, इश्क न बुवद आकबत तंगे बुवद | जो इश्क रंग के लिए होता है, वह इश्क नहीं होता तंगी होती है। इश्क ओं बगुजीं कि जुमला औलिया, याफतन्द अज फैजेऊ कारो कया। वह इश्क अपनाओ जिसके द्वारा सभी औलिया ने कार्यों की क्षमता और पवित्रता प्राप्त किया है।

६. गरचे तफशीरे जुबाँ रोशन गरअस्त, लेक इश्के बेजुबाँ रोशन तरस्त । यदि जुबान की तफसीर अधिक रोशन है,

लेकिन बेजुबान इश्क उससे अधिक रोशन है। ७. आफताब आमद दलीले आफताब, गर दलीलत बायद अज-बैं रू मताब । सूर्य की दलील सूर्य का उदय होना है, यदि तुझे इश्क की दलील चाहिए तो उससे मुँह न फेर। इन पदों को पढ़कर हुजूर पाक ने कहा कि तुम हजरत मखदूम बख्तियार काकी रह० के कथन देखो उसमें लिखा है कि एक दिन हज़रत राबिया बसरी रह० की सभा में, हसन बसरी रह० मालिक दीनार तथा शफीक बलखी रह० पधारे। राबिया बसरी ने पूछा ‘इश्क का कमाल क्या है ?’ हज़रत हसन बसरी ने कहा कि यदि माशूक आशिक को मुसीबत में डाल दे तो आशिक को चाहिए कि मजबूती के साथ प्राण दे दे। हजरत मालिक दीनार ने कहा कि आशिक माशूक के अत्याचारों से प्रभावित न हो। शफीक बलखी ने कहा कि यदि माशूक आशिक के टुकड़े-टुकड़े कर दे तो भी आशिक शिकायत की बात जुबान पर न लाए और इश्क से मुंह न फेरे। फिर राबिया बसरी ने कहा ‘आशिक वह है जो अपने जीवन से गुजर जाए, मुर्दा हो जाए, स्वयं को जीवित न समझे ।’ आशिक के आरम्भ में अक्षर ‘ऐन’ है और शरअ के अन्त में ‘ऐन’ है, यह संकेत इस बात की ओर है कि जो शरअ की सीढ़ियां न तय करे इश्क में कमाल को नहीं पहुंचता । इश्क का कमाल यह है कि आशिक माशूक हो जाए। आशिक वही है जो माशूक में विलीन हो जाए। हुजूर वारिस पाक के इस प्रभावशाली भाषण से हिदायत चाहने वाले को हिदायत मिली तथा उपस्थित गण की दशा विचित्र हो गयी। आगे उस व्यक्ति से कहा कि कुछ दिनों तक ईश्वर भक्तों की संगति में रहो। आप अधिकतर पढ़ा करते थे कि मा किस्सये सिकन्दरो दारा न खानदेम | अज मा बजुज़ हिकायते मेहरोवफा मपुर्स। अर्थ है: हमने सिकन्दर और बादशाह दारा की कथाएं नहीं पढ़ा है, मुझसे मुहब्बत और वफा के अतिरिक्त कुछ न पूछो।

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