
हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब ग़ज़वा-ए-तबूक से वापस तशरीफ लाये और सहाबाए किराम समेत मदीना मुनव्वरा में दाखिल हुए तो मदीना वालों में खुशी की एक लहर दौड़ गयी। हुजूर के इस्तिक़बाल के लिये सब आगे बढ़े उस वक्त हज़रत अब्बास रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने आगे बढ़कर अर्ज़ किया या रसूलल्लाह ! मेरी ख़्वाहिश है कि मैं हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मुतअल्लिक् कुछ नातिया अशआर अर्ज करूं । या रसूलुल्लाह! मुझे नअत-ख़्वानी की इजाजत दीजिये । हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमायाः
“कहो जो कहना है। अल्लाह तुम्हारे मुंह को सलामत रखे ।” हज़रत अब्बास रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने बारगाहे नब्बी से इजाज़त पाकर शुरू में नअत-ख़्वानी की। हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को मुखातिब करके इन ख़्यालात आलिया ( बेहतरीन ख़्यालात) का इज़हार फ़रमाया: या रसूलल्लाह! आप क़ब्ले पैदाइश भी पाक व साफ़ थे और नूर थे। हज़रत नूह अलैहिस्सलाम की किश्ती पर भी आप रौनक अफ़रोज़ थे। हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की पुश्त में भी आपका नूर जल्वागर था । जब वह आग में डाले गये थे। जब आप पैदा हुए तो आपके नूर से ज़मीन व आसमान मुनव्वर हो गये। आपकी अज़मत व बुजुर्गी बड़े बड़े आली नसब वालों पर हावी है। हुजूर हम आप ही के नूर और आप ही की रौशनी में हैं। आप ही के नूर की बदौलत हम हिदायत में तरक्की कर रहे हैं।
हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हज़रत अब्बास रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की इस नअत-ख़्वानी से बड़े खुश हुए। (मवाहिब जिल्द १ सफा १७५)

