
संसार से विरक्ति बैराग
तसलीम व रज़ा की तरह संसार को छोड़ने में भी हुजूर वारिस पाक बहुत ही ऊँची शान और मर्यादा की अद्वितीय मिसाल हैं। हुजूर वारिस पाक ने संसार की प्रत्येक वस्तु का परित्याग जिस दशा में किया उसकी मिसाल भी बहुत कम मिलती है। आपने एक सुख-सम्पदा से भरे-पूरे घर में जन्म लिया तथा सम्पन्न भी थे। सोने चाँदी की कमी भी आपके पास नहीं थी किन्तु होश सम्हालते ही आपने सभी धन
दौलत और अशर्फ़ियों को कौड़ीयों की तरह लुटा दिया। अपनी सारी सम्पत्ति और जायदाद हीन-नात में बांट दिया जो इस समय भी मौजूद हैं। एक खानदानी पुस्ताकालय भी था, जिसकी भी परवाह आपने नहीं किया। पूरा जीवन अविवाहित ही रहे। जब लोगों ने बहुत आग्रह किया तो आपने क़ुरआन मजींद की आयत (श्लोक) ब्यान किया-
या अय्युहल्लजीना आमनू इन मिन अजवाजेकुम व अवलादे कुम
अट्ठल लकुम फ़ अहजरोहुम
‘एै ईमान लाने वालों! तुम्हारी औरतें और तुम्हारी औलादें तुम्हारे लिए शत्रु हैं। अतः तुम उनसे बचो अथवा परहेज़ करो।’
वास्तविकता यह है कि आप माँ के पेट से ही वली जन्म लिये थे। आपकी नजर में ख़ुदा का वह अनूप रूप बसा हुआ था जिसके सम्मुख नश्वर संसार का नाशवान रूप अति ही तुच्छ था। सरकार वारिस पाक को केवल विवाह से ही घृणा नहीं थी बल्कि वे जीवन सम्बन्धी सभी सामग्रियों से घृणा करते थे। आपने कभी किसी वस्तु को पसन्द नहीं किया। आपका देश में रहना ही सफ़र था और सभाओं में होना ही एकान्तवास था।
शाह मक़सूद अली शाह वारसी रह० एक मस्त बुजुर्ग थे। जब हुजूर की सेवा में उपस्थित होते तो अपनी उमंग और मस्ती में कहा करते थे कि हमारे पीर दस्तगीर का लगाव विशेष कर मसीही ढब पर है। जिस तरह ईसा मसीह ने संसारिक बन्धनों से विरक्त होने को मंजिल तय किया है, वही यह वारसी मंजिल है। हुजूर मुस्कुराते हुए कहते थे ‘फ़कीर का कोई घर नहीं और सभी घर फ़कीर के हैं।’
हुजूर वारिस पाक की यह वाणी ऐसी सार्थक हुई कि भारतवर्ष में सैकड़ों मकानात हुजूर के नाम से बने हैं। अधिक संख्या में बाग़ान और गाँव आपके नाम से मशहूर हैं जैसे-वारिस नगर, वारिस बाग़, वारिस मंजिल इत्यादि। अमीरों ने तो नया मकान बनाकर हुजूर के ठहरने के लिए रख छोड़ा और गरीबों ने जब कभी नया मकान बनवाया तो अपनी शक्ति के अनुसार एक कोठरी ही हुजूर के नाम से सुरक्षित कर दिया। बहुधा स्त्रियों ने आपके इश्क व मुहब्बत में विवाह का परित्याग कर वस्त्र तथा आभूषणों को त्याग दिया। सत्य की खोज में घोर कष्टों, असह्य दुखों को झेलने की अभ्यस्त हो गयीं जिनमें बहुतों ने ईश्वर-भक्ति में ख्याति भी पाई । A
जब आप घरों में पर्दापण करते तो महिलायें चारों ओर से आपको घेर लेती, आपके सिर में तेल डालतीं, पाँव दबाने लगतीं, किन्तु कितनी सबल और दृढ़ थी,
आपकी भगवान विलीनता कि आपने कभी किसी की ओर नज़र उठाकर नहीं देखा, सत्य है –
काजल दूँ तो किरकिर करे, सुरमा दिया न जाय । जिन नयनन मा पिव बसे, दूजा कौन समाये ॥
परी भी हो तो नजरों में भला क्यों कर समाती है ॥
(आसी रह० अ०) आप महिलाओं को माता जी, बहन जी कहकर सम्बोधित करते थे और बेधड़क बातें करते थे। परन्तु ये स्वाभाविक बातें ठीक अबोध बालकों जैसी होती थीं। घर के लोगों का नाम ले-लेकर कुशल पूछते तथा सब पर सहानुभूति दर्शाते थे। जो महिलायें दूसरे गुरुजनों से गुरुमुख होतीं, वह भी आपके सम्मुख बेहिचक उपस्थित होतीं।
१८७३ ई०/१२९३ हिजरी की बात है कि हुजूर पैंतेपुर तशरीफ लाये तो आपके आगमन का समाचार पाकर हकीम सलामत अली साहब भी पैंतेपुर के सम्मानित लोगों के साथ दर्शनार्थ हुजूर की सेवा में उपस्थित हुए। आप उस समय मकान में थे, औरतों की भीड़ थी। दर्शनार्थियों के पहुंचने पर पर्दा हो गया, औरतें हट गयीं। सभी लोग हाजिर हुए। हज़रत वारिस अली पाक पर वज्द की हालत छाई हुई थी। पाठकगण ‘वज्द’ एक ऐसा शब्द है जिसका अर्थ लिखने से बाहर है मेरे ख्याल में थोड़ा सा संकेत काफी होगा। वह दशा जो अपनत्व (खुदी) को नष्ट कर देती है और जिसपर ये अवस्था आती है वह ईश्वर की ज्योति के दर्शन में विलीन हो जाता है। आपके नेत्र लालिमापूर्ण थे। आपका प्रकाश युक्त मुख तमतमा रहा था। जब मिलने वाले लोग बिदा होकर चले गये तो रास्ते में उन लोगों में कुछ बातें होती जाती थीं। हकीम सलामत अली साहब आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से कहने लगे कि ब्रह्मचर्य की शक्ति विचित्र होती है। औरतों की संगत और पाक दामनी की सहन शक्ति यही कारण है कि हुजूर के नेत्र और पवित्र मुख लालिमा से भर उठा था। रास्ते में हाजी मनसब अली शाह रह० अलै० पढ़ते थे सभी लोग उनके दर्शनार्थ उपस्थित हुए। सलामत अली हकीम साहब को देखते उक्त शाह साहब क्रोधित हो उठे। कहने लगे हकीम साहब फ़कीरों के मामले में हिकमत की क्या पहुंच है जब आपका यही हाल है तो अक़ल को ठीक कर लीजिये और मेरे पास न आइये।
हकीम साहब ये सुनकर खिसके। रास्ते में अपने साथियों से कहने लगेफ़कीरों का विचित्र मामला है। एक फ़कीर की बात का ज्ञान दूसरे फ़कीर को कैसे हो जाता है। फिर वह डर गये और इतने प्रभावित हुए कि हमेशा वह फ़कीरों का अदब करते रहे। कहने का तात्पर्य ये है कि सरकार वारिस पाक की प्रत्येक बातें ही विचित्र और निराली थीं। एक बार हुजूर ने विशेष मुद्रा में कहा फ़कीरी ख़ुटका पर है। सुनने वालों को अचम्भा हुआ, बात कुछ समझ में न आई। हुजूर ने स्वयं इसकी व्याख्या करते हुए कहा शक्ति होते हुए भगवान के लिए एक विशेष अंग बेकार कर दो और उससे काम न लो, शैतान को बग़ल में रखकर ख़ुदा को याद करना बड़ा काम है, अपनी आत्मा द्वारा राह चलना बहुत कठिन काम है। आपने किसी अवसर पर लंगोट बन्द की यह तारीफ़ की हैं, लंगोट बन्द वह है जो सभी स्त्रियों को अपनी माता तथा बहन समझे और देखे। इसी भांति किसी स्त्री को स्वप्न में वासना के निमित न देखे।

