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यकीन
उहुद की लड़ाई शुरू थी। एक शख़्स खजूरें खाते हुए हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास हाज़िर हुआ । अर्ज़ कीः या रसूलल्लाह! अगर मैं जिहाद करूं और मरा जाऊं तो मैं कहां जाऊंगा? हुजरू सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ्रमायाः ‘जन्नत में’ उस शख़्स ने उसी वक्त खजूरें हाथ से डाली और तलवार हाथ में पकड़कर कुफ़्फ़ार के साथ जिहाद करने लगा और इस हद तक लड़ा की शहीद हो गया ।
(बुख़ारी शरीफ जिल्द २, सफा ५७६ )
सबक : सहाबए किराम जज़्बए जिहाद से भरे हुए थे । हुजूर सल्लल्लाहु • अलैहि वसल्लम के हर वायदे पर उनका यक़ीन कामिल था।