
ख़ानदानी महत्व
सैय्यद ख़ानदान का एक विशेष सम्मान
यह भी है कि हुजूर के महान पूर्वजगण ने कभी दूसरे ख़ानदान में ब्याहशादियां नहीं की हैं। और नेशापूरी सैय्यदवंश के मान-सम्मान को सुरक्षित रखा है। आपके परदादा सैय्यद करमुल्लाह साहब के तीन पुत्र सैय्यद बशारत अली साहब, सैय्यद सलामत अली साहब और सैय्यद शेर अली साहब थे। आपके पिता क़ुरबान अली साहब का विवाह उनके चाचा शेर अली की पुत्री से हुआ था। इस प्रकार आप दोनों पक्षों से हुसैनी होने का विशेष सम्मान प्राप्त करते हैं।
अवध के महान लोगों, शरीफ़ों में आपके ख़ानदान को विशेष स्थान और सम्मान प्राप्त था । आपके पूर्वज वाह्य ज्ञान तथा आन्तरिक ज्ञान में निपुण होने के कारण विशेष सम्मानित रहे । आपके ख़ानदान के श्रेष्ट पूर्वज मख़दूम अलाउद्दीन आला बुजुर्ग नसीरूद्दीन चिराग़ देहलवी के ख़लीफ़ा थे। और शिक्षा में अबुल बरकात व शेख़ यहिया के शिष्य थे। आपके पूर्वज हर ज़माने में नेक, पवित्र और सम्मानित रहे। अच्छे सन्त और फ़कीर सदैव ही आपके ख़ानदान में होते रहे हैं और साधारण जनता उन फ़क़ीरों के यश से लाभान्वित होती रही है।
भारत वर्ष में सर्वप्रथम आपके पूर्वज ने रसूलपुर कन्तूर में निवास किया है। यहीं से एक बुजुर्ग अब्दुल अहद साहब ने देवा की भूमि को पवित्र किया। यहाँ देवा में आपकी ५ पुशतें बीती और सरकार वारिस पाक ने जन्म लेकर अपने कमलवत चरणों से इस भूमि को गौरवमयी और पवित्र कर दिया। आज भारत तथा संसार में ये कस्बा देवा शरीफ के नाम से पुकारा जाता है। सहस्त्रों लोग दर्शनार्थ संसार के कोने-कोने से पधारते हैं ।

दूध पीने का ज़माना
हुज़ूर वारिस पाक की पैदाइश रमज़ान के महीने में हुई। आपने दिन में कभी दूध नहीं पिया। यह चर्चा औरतों में फैल गई और चारों ओर घरों में स्त्रियां इस बात से अचम्भित थीं, देखा गया कि आपने दिन में रोज़े रखे और रात्रि में दूध ग्रहण किया। यहाँ तक कि आपने मोहर्रम की दसवीं तारीख को कभी दूध नहीं ग्रहण किया। यह सब कुछ होते हुए भी आप अपने समकालीन शिशुओं से अधिक स्वस्थ थे। शारीरिक बढ़ाव तेज़ी पर था। अन्य बच्चों से दुगने मोटे ताजे दिखाई पड़ते थे। आपका पवित्र सिर सदैव अन्य बच्चों से ऊँचा दिख पड़ता था। आपका सम्मान आपकी माता द्वारा भी अधिक था। माताजी बिना वजू (हाथ पाँव धोये) कभी आपको दूध नहीं पिलाती थीं। यहाँ तक कि कभी आप की ओर पीठ करके न खड़ी होती न बैठती थीं।

