
हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की फूफी और हज़रत हमज़ा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की हक़ीकी बहन हज़रत सफिया रज़ियल्लाहु तआला अन्हा की तक़ीबन साठ साल की उम्र शरीफ़ थी। जबकि गजवए खंदक (खंदक की लड़ाई) के मौके पर हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सब औरतों को एक क़िले में बंद फ़रमा दिया था । हज़रत हस्सान बिन साबित रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को बतौर मुहाफिज़ उनमें मुक़र्रर फ़रमा दिया था । यहूदियों ने इस मौके को ग़नीमत जाना कि हुजूर तो सहाबा समेत मदीना मुनव्वरा से बाहर तशरीफ़ फ्रमा हैं और औरतें किले में तंहा हैं। इस ख़्याल से यहूदियों की एक जमाअत ने औरतों पर हमला का इरादा किया। एक यहूदी हालात मालूम करने के लिये किले पर पहुंचा। हज़रत सफ़िया ने कहीं से देख लिया और हज़रत हस्सान से कहा कि यह यहूदी मौका देखने के लिये आया है। तुम किले से बाहर निकलो और उसे मारो । हज़रत हस्सान रज़ियल्लाहु तआला अन्हु बूढ़े थे। बुढ़ापे की वजह से निकल न सके तो हज़रत सफिया ने खेमे का एक कोड़ा अपने हाथ में लिया। खुद निकल कर उस यहूदी का सर कुचल दिया। फिर किले में आकर हज़रत हस्सान से कहा कि चूंकि यहूदी मर्द था । नामहरम होने की वजह से मैंने उसका सामान और कपड़े नहीं उतारे तुम जाओ उसके कपड़े उतार लाओ और सर भी काट लाओ। हज़रत हस्सान रज़ियल्लाहु तआला अन्हु अपने बुढ़ापे की वजह से हिम्मत न फ्रमा सके तो दोबारा तशरीफ ले गयीं और उसका सर काट लायीं। दीवार पर से सर को यहूदियों के मजमे में फेंक दिया। यहूदियों ने अपने मुखबिर का सर कटा हुआ देखा तो सहम गये। कहने लगे कि हमने ग़लत समझा है। मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम औरतों को बिल्कुल तंहा नहीं छोड़ गये हैं। ज़रूर इनके मुहाफिज़ (हिफाज़त करने वाले) बहुत से मर्द भी अंदर मौजूद हैं।

