




























*कर्बला के वह आंकड़े जो शायद आप को न पता हों…*
➡ यज़ीद की बैअत से इन्कार से लेकर आशूर तक इमाम हुसैन का आंदोलन 175 दिनों तक चला।
1) – 12 दिन मदीने में,
2) – 4 महीने 10 दिन मक्के में,
3) – 23 दिन मक्के और कर्बला के रास्ते में
4) – और 8 दिन कर्बला में।
➡ कूफे से इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को 12000 खत लिखे गये थे।
➡ कूफे में इमाम हुसैन के दूत मुस्लिम बिन अक़ील की बैअत करने वालों की तादाद 18000 या 25000 या 40000 बतायी गयी है।
➡ अबू तालिब की नस्ल से कर्बला में शहीद होने वालों की संख्या 30 है, 17 का नाम “ज़ेयारत नाहिया” में आया है 13 का नहीं।
➡ इमाम हुसैन की मदद की वजह से शहीद होने वाले कूफियों की संख्या 138 थी जिनमें से 15 ग़ुलाम थे।
➡ शहादत के वक्त इमाम हुसैन अलैहिस्सलमा की उम्र 57 साल थी।
➡ शहादत के बाद उनके बदन पर भाले के 33 घाव और तलवार के 34 घाव थे। तीरों की संख्या अनगिनत बताया गया है कि शहादत तक इमाम हुसैन के बदन पर कुल 1900 तक घाव थे।
➡ इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की लाश पर दस घुड़सवारों ने घोड़े दौड़ाए थे।
➡ कूफे से इमाम हुसैन के खिलाफ जंग के लिए कर्बला जाने वाले सिपाहियों की तादाद 33 हज़ार थी। कुछ लोगों ने संख्या और अधिक बतायी है।
➡ दसवीं मुहर्रम को इमाम हुसैन ने 10 शहीदों के लिए मर्सिया पढ़ा, उनके बारे में बात की और दुआ की – हज़रत अली अकबर, हज़रत अब्बास, हज़रत क़ासिम, अब्दुल्लाह इब्ने हसन, अब्दुल्लाह, मुस्लिम बिन औसजा, हबीब इब्ने मज़ाहिर, हुर बिन यज़ीद रियाही, ज़ुहैर बिन क़ैन और जौन।
➡ इमाम हुसैन कर्बला के 7 शहीदों के सिरहाने पैदल और दौड़ते हुए गये – मुस्लिम बिन औसजा, हुर, वासेह रूमी, जौन, हज़रत अब्बास, हज़रत अली अकबर और हज़रत क़ासिम।
➡ दसवी मुहर्रम को यज़ीद के सिपाहियों ने तीन शहीदों के सिर काट कर इमाम हुसैन की तरफ फेंका – अब्दुल्लाह बिन उमैर कलबी, उमर बिन जनादा, आस बिन अबी शबीब शाकेरी।
➡ दसवी मुहर्रम को 3 लोगों को यज़ीदी सिपाहियों ने टुकड़े – टुकड़े कर दिया – हज़रत अली अकबर, हज़रत अब्बास और अब्दुर्रहमान बिन उमैर
➡ कर्बला के 9 शहीदों की माओं ने अपनी आंख से अपने बच्चों को शहीद होते देखा
➡ कर्बला में 5 नाबालिग बच्चों को शहीद किया गया – अब्दुल्लाह इब्ने हुसैन, अब्दुल्लाह बिन हसन, मुहम्मद बिन अबी सईद बिन अकील, कासिम बिन हसन, अम्र बिन जुनादा अन्सारी
➡ कर्बला में शहीद होने वाले 5 लोग पैग़म्बरे इस्लाम के सहाबी थे – अनस बिन हर्स काहेली, हबीब इब्ने मज़ाहिर, मुस्लिम बिन औसजा, हानी बिन उरवा और अब्दुल्लाह बिन बक़तर उमैरी
➡ दसवी मुहर्रम को इमाम हुसैन के 2 साथियों को गिरफ्तार करने के बाद शहीद किया गया – सवार बिन मुनइम और मौक़े बिन समामा सैदावी।
➡ कर्बला में 4 लोग इमाम हुसैन की शहादत के बाद शहीद किये गये – सअद बिन हर्स, उनके भाई अबू अलखनूफ, सुवैद बिन अबी मुताअ और मुहम्मद बिन अबी सअद बिन अक़ील, सुवैद बिन अबी मुताअ घायल होकर बेहोश हो गये तो, होश आया तो इमाम शहीद हो चुके थे, यह देख कर उन्होंने सिपाहियों पर हमला कर दिया और शहीद हो गये।
➡ सअद बिन हर्स, उनके भाई अबू अलखनूफ यज़ीदी सिपाही थे, इमाम हुसैन की शहादत देख कर उनसे बर्दाश्त न हुआ और तौबा करके यज़ीदी सिपाहियों पर हमला कर दिया और शहीद हो गये।
➡ मुहम्मद बिन अबी सअद बच्चे थे इमाम हुसैन की शहादत के बाद जब बीबियां रोने लगीं तो वह खेमे के दरवाज़े पर खड़े हो गये और एक यज़ीदी सिपाही ने उन्हें शहीद कर दिया।
➡ कर्बला के 7 शहीद अपने बाप के सामने शहीद हुए।
➡ कर्बला में 5 महिलाओं ने खैमों से निकल कर दुश्मनों पर हमला किया और उन्हें बुरा भला कहा।
➡ कर्बला में शहीद होने वाले महिला, अदुल्लाह बिन उमैर कलबी की पत्नी और वहब की मां थीं।
➡ आबिस बिन शबीब, को यज़ीदी सिपाहियों ने पत्थर मार – मार कर शहीद किया।
➡ नाफे बिन हिलाह को कूफियों ने पकड़ लिया और बंदी बनाने के बाद शहीद कर दिया।
➡ इमाम हुसैन के हाथों मारे जाने वाले यज़ीदी सिपाहियों की तादाद 1800 से 1950 तक बतायी गयी है।
➡ बनी हाशिम के पहले शहीद हज़रत अली अकबर
➡ सहाबियों में पहले शहीद मुस्लिम बिन औसजा
➡ उबैदुल्लाह हुर जाफी को इमाम हुसैन की क़ब्र का पहला ज़ायर कहा जाता है।
➡ पहली बार अब्बासी शासन काल में हारुन रशीद के आदेश पर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की क़ब्र का निशान मिटा दिया गया और वहां की ज़मीन की जुताई कर दी गयी।
➡ मामून के ज़माने में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की क़ब्र पर उनका रौज़ा बनाया गया।
➡ अब्बासी खलीफा, मुतवक्किल के काल में इमाम हुसैन की क़ब्र और आस – पास के घरों को ध्वस्त कर दिया गया और वहां की ज़मीन की जुताई करा दी गयी और फिर नदी का पानी बहा दिया गया लेकिन क़ब्र पर पानी नहीं चढ़ा।
➡ इमाम हुसैन के रौज़े को तबाह करने की ज़िम्मेदारी, नये नये मुसलमान बने इब्राहीम दीज़ज नाम के यहूदी को दी गयी थी।
➡ बसरा और कूफे के लोगों ने फिर से रौज़ा बनाया लेकिन सन 247 हिजरी में मुतवक्किल ने फिर से रौज़ा ध्वस्त कराके जुताई करा दी लेकिन उसके बेटे मुन्तसिर के दौर में रौज़ा दोबारा बनाया गया।
लब्बैक🇮🇳या🇮🇳हुसैन🇮🇳

24जिलहज
ईद ऐ मुबाहिला
जब ये आयत नाज़िल हुवी
” पैग़म्बरﷺइल्म (क़ुरान) के आ जाने के बाद भी अगर लोग तुम से (ईसा के बारे में) कट हुज्जती करें तो उनसे कह दीजिए कि (अच्छा मैदान में) आओ हम अपने फ़रज़न्द (बेटों को बुलाएं, तुम अपने बेटों को बुलाओ), हम अपनी औरतों को बुलाएं तुम अपनी औरतों को बुलाओ और हम अपने नफ़्सों (जानों) को बुलायें तुम अपनी नफ़्सों (जानों) को बुलाओ फिर ख़ु़दा की बारगाह में (सब मिलकर) दुआ करें और झूठों पर ख़ु़दा की लाअनत क़रार दें “
– सूरह आले इमरान, आयत न. 61
इस आयत में अल्लाह ने रसुलल्लाह ﷺ को हुक्म हुवा की नज़रान के ईसाई ओ के सामने अपनी औरतो को और बच्चो को ले जाओ तो रसुलल्लाह ﷺ मौला ऐ कायनात अली अ.स., हसनैन करीमैन अ.स. और सैयदा ऐ कायनात स.अ. को लेकर गए।
1) तफ़्सीर इब्न कसीर – सूरह आले इमरान, आयत न. 61
अेहले सुन्नत की सब से मोअतबर तफ़्सीर में लिखा है की ईसाई ओ के साथ मुबाहिले के लिए रसुलल्लाह ﷺ के साथ मौला ऐ कायनात अली अ.स. थे, हसनैन करीमैन अ.स. को रसुलल्लाह ﷺ अपनी चादर में लिए हुवे तशरीफ़ लाये और पीछे सैयदा ऐ कायनात स.अ. आ रही थी।
और इसमें लिखा है हज़रत जाबिर फरमाते है “अनफुसना से मुराद रसुलल्लाह ﷺ और मौला ऐ कायनात अली अ.स. है, अबना-अना से मुराद हसनैन करीमैन है और निसा-अना से मुराद सैयदा फातिमा स.अ. है। ”
2) जामें तिर्मिज़ी – हदीस न. 3724
इस हदीस में साद इब्न अभी वकास को जब मुआविया, मौला अली अस पर लानत करने के लिए हुक्म देता है तो साद उसे केहते है “मैनें 3 फ़ज़ीलत मौला अली अ.स. के बारे में खुद रसुलल्लाह ﷺ से सुनी उसमें से एक भी मेरे लिए सुर्ख ऊंट से बेहतर है” और
फिर उन तीन फ़ज़ीलत में से एक फ़ज़ीलत बताते है की यह आयत (आले इमरान, 61) नाज़िल हुवी तो अल्लाह के रसुल ﷺ ने अली, फातिमा, हसन और हुसैन को बुलाकर कहा “अय अल्लाह, ये मेरे अेहलेबैत है ”
3) सहीह मुस्लिम – हदीस न. 6220
ये वही रिवायत है जो ऊपर मुस्लिम में बयान हुवी है।
यहाँ एक बात गौर करने वाली है की कुरान में हुक्म हुवा अपनी औरतो को लेकर जाओ और सब अज़वाज हयात है लेकिन रसुलल्लाह ﷺ किसी को ना ले गए बल्कि मलिका ऐ दो जहाँ सैयदा ताहिरा बीबी फातिमा स.अ. को लेकर गये। कहा अपने बेटो को ले जाओ तो अली, हसन और हुसैन अलैहिसलाम को लेकर गये और किसी को लेकर नहीं गये।
और नजरान के ईसाईओ ने ये पसमंज़र देखा की सामने से कौन आ रहा है वो डर कर मैदान छोड़ कर भागे।


Hazrat Abdullah ibne Masud RadiAllahu Anhu farmate hai ke Aaqa SallAllahu Alaihi wa Aalihi wa Sallam ke Zamana-e-Aqdas me hum Surah Maida ki Aayat 67 ko yun padha karte:
“Ya Ayyuhar Rasool Balligh Ma Unzila Ilaika Mir Rabbika Anna Aliyyam Maulal Mu’mineen”
“Ay (Barguzeedah) Rasool! Jo kuch Aapki Taraf Aapke Rab ki Janib se nazil kiya hai usey (logo tak) pahuncha dijiye ke Ali tamam Mominon ke Maula hai.
Ad Durrul Mansoor, Imam Jalaluddin Suyuti Rehmatullah Alaih