
फ़सतात का क़िला
इस्लामी फ़ौज ने हज़रत उमरू बिन आस रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की सरदारी में जब मुल्के मिस्र का रुख किया तो छोटे छोटे इलाके फतह करते हुए फ़सतात पहुंचे और क़िले को घेर लिया। किला बहुत मज़बूत था । अपनी हिफ़ाज़त के ख़्याल से क़िला बंद हो गये। इधर मुसलमानों के पास सामाने रसद और फ़ौज भी कम थी, दोबारा ख़िलाफ़त से मदद । हज़रत उमरू ने दस हज़ार सिपाही और चार अफ़सर मदद के लिये रवाना किये। यह लिखकर एक ख़त भी रवाना किया कि चार अफ़सरों में हर एक एक हज़ार सवार के बराबर है जब यह मदद फ़सतात पहुंची हज़रत उमरू बिन आस रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने हज़रत जुबैर के रुत्बे का ख़्याल करके घेराबंदी करने वाली फ़ौज का हाकिम बना दिया। हज़रत जुबैर ने घोड़े पर सवार होकर पहले किले के चारों तरफ चक्कर लगाया और जिन जिन जगहों पर मुनासिब समझा, फ़ौज के दस्ते मुर्कार कर दिये। इस तरह सात महीने तक किले का घेराव रहा लेकिन हार जीत का कोई फैसला न हो सका । आख़िर एक दिन उकता कर हज़रत जुबैर ने कहा आज मैं इस्लाम पर फ़िदा होता हूं। यह कहकर एक सीढ़ी लगाकर किले की दीवार पर चढ़ गये और ऊपर जाकर ज़ोर से नारा-ए-तकबीर बुलंद किया। इधर नीचे फाटक के सामने जो फ़ौज थी उसने भी इतने ज़ोर से नारे तक्बीर बुलंद किया कि वह क़िले की ज़मीन दहल गयी। अहले क़िला समझे कि मुसलमान अंदर घुस आये। वह परेशान होकर इधर उधर भागने लगे। मौके को गनीमत जानकर हज़रत जुबैर ने नीचे उतरकर किले का दरवाज़ा खोल दिया। पूरी फ़ौज अंदर घुस आयी। लोग घबराकर इधर उधर भागने लगे। हाकिमे शहर मुकूक़स ने अमन की दरख्वास्त की और फ़ौरन अमन दे दिया गया। इस तरह हज़रत जुबैर की अक्लमंदी और बहादुरी से यह ज़बरदस्त क़िला भी मुसलमानों के कब्ज़े में आ गया। (तारीखे इस्लाम )
सबक : सहाबए किराम ने अल्लाह की राह में अपनी जानें कुरबान करने में भी झिझक न फ़माई। इसी जज़्बे के साथ वह सारी दुनिया पर छा गये। फिर आज जो लोग अल्लाह की राह में कुरबानी का एक बकरा भी कुरबान करने को तैयार नहीं होते सौ-सौ किस्म के बहाने करते हैं। कुरबानी देने के ख़िलाफ़ मज़मून लिखते हैं, वह बराए नाम मुसलमान न हुए तो क्या हुए ? हिकायत-२१५ Na

