
शहीदों को जमा करके दफ़न किया गया
इस मौक़े पर अल्लाह के रसूल सल्ल० ने खुद भी शहीदों का मुआयना किया और फ़रमाया कि मैं इन लोगों के हक़ में गवाह रहूंगा। सच तो यह है कि जो व्यक्ति अल्लाह के रास्ते में घायल किया जाता है, उसे अल्लाह क़ियामत के दिन इस हालत में उठाएगा कि उसके घाव से खून बह रहा होगा। रंग तो खून ही का होगा, लेकिन खुशबू मुश्क की खुशबू होगी।12
कुछ सहाबा ने अपने शहीदों को मदीना पहुंचा दिया था। आपने उन्हें हुक्म दिया कि अपने शहीदों को वापस लाकर उनकी शहादतगाहों में दफ़न करें। साथ ही शहीदों के हथियार और पोस्तीन के पहनावे उतार लिए जाएं, फिर उन्हें नहलाए बिना जिस हालत में हों, उसी हालत में दफ़न कर दिया जाए।
आप दो-दो तीन-तीन शहीदों को एक-एक क़ब्र में दफ़ना रहे थे और दो-दो आदमियों को एक ही कपड़े में इकट्ठा लपेट देते थे और मालूम करते थे कि इनमें से किसको कुरआन ज़्यादा याद है? लोग जिस ओर इशारा करते उसे क़ब्र में आगे करते और फ़रमाते कि मैं क़ियामत के दिन इन लोगों के बारे में गवाही दूंगा।
अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन हराम और अम्र बिन जमूह एक ही कब्र में दफ़न किए गए, क्योंकि इन दोनों में दोस्ती थी। 3
हज़रत हंज़ला की लाश ग़ायब थी। खोजने के बाद एक जगह इस हालत में मिली कि ज़मीन से ऊपर थी और उससे पानी टपक रहा था। अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सहाबा किराम को बताया कि फ़रिश्ते उन्हें गुस्ल दे
इब्ने हिशाम 2/88, 89
2. वही, 2/98
3. सहीह बुखारी मय फ़हुल बारी 3/248, हदीस न० 1343, 1346, 1347, 1348, 1353, 4079, सहीह बुखारी 2/584
रहे हैं। फिर फ़रमाया, उनकी बीवी से पूछो, क्या मामला है ?
उनकी बीवी से मालूम किया गया, तो उन्होंने वाक्रिया बतलाया। यहीं से हज़रत हंज़ला का नाम ‘ग़सीलुल मलाइका’ (फ़रिश्तों के गुस्ल दिए हुए पड़ गया।
अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने चचा हज़रत हमज़ा का हाल देखा तो बड़े दुखी हुए। आपकी फूफी हज़रत सफ़िया रज़ि० तशरीफ़ लाई, वह भी अपने भाई हज़रत हमज़ा रज़ि० को देखना चाहती थीं, लेकिन अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उनके बेटे हज़रत जुबैर रज़ि० से कहा कि उन्हें वापस ले जाएं, वह अपने भाई का हाल देख न लें।
है मगर हज़रत सफिया ने कहा, आखिर ऐसा क्यों ? मुझे मालूम हो चुका कि मेरे भाई का मुस्ला किया गया है, लेकिन यह अल्लाह की राह में है, इसलिए जो कुछ हुआ, हम उस पर पूरी तरह राज़ी हैं। मैं सवाब समझते हुए इनशाअल्लाह ज़रूर सब करूंगी।
इसके बाद वह हज़रत हमज़ा रज़ि० के पास आईं, उन्हें देखा, उनके लिए दुआ की । इन्ना लिल्लाहि पढ़ी और अल्लाह से माफ़ी की दुआ की। फिर अल्लाह के रसूल सल्ल० ने हुक्म दिया कि उन्हें हज़रत अब्दुल्लाह बिन जहश के साथ दफ़न कर दिया जाए। वह हज़रत हमज़ा के भांजे थे और दूध शरीक भाई भी ।
हज़रत इब्ने मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु का बयान है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हज़रत हमज़ा बिन अब्दुल मुत्तलिब पर जिस तरह रोए, उससे बढ़कर रोते हुए हमने आपको कभी नहीं देखा। आपने उन्हें क़िब्ले की ओर रखा, फिर उनके जनाज़े पर खड़े हुए और इस तरह रोए कि आवाज़ बुलन्द हो गई 12
वास्तव में शहीदों का दृश्य था ही बड़ा हृदय विदारक और हिला देने वाला। चुनांचे हज़रत खब्बाब बिन अरत्त का बयान है कि हज़रत हमज़ा के लिए एक काली धारियों वाली चादर के सिवा कोई कफ़न न मिल सका। यह चादर सर पर डाली जाती तो पांव खुल जाते और पांव पर डाली जाती तो सर खुल जाता, आखिरकार चादर से सर ढक दिया गया और पांव पर इज़खर घास डाल
1. जादुल मआद 2/94
2. यह इब्ने शाख़ान की रिवायत है, देखिए मुख्तसरुस्सीर, शेख अब्दुल्लाह, पृ० 255 3. यह बिल्कुल मूज के शक्ल की एक खुशबूदार घास होती है। बहुत-सी जगहों पर चाय में डाल कर पकाई भी जाती है। अरब में इसका पौधा हाथ-डेढ़ हाथ से ज़्यादा लम्बा
दी गई। 1
हज़रत अब्दुर्रहमान बिन औफ़ का बयान है कि मुसअब बिन उमैर रज़ि० की शहादत हुई, और वह मुझसे बेहतर थे, तो उन्हें एक चादर के अन्दर कफ़नाया गया। हालत यह थी कि अगर उनका सर ढांका जाता तो पांव खुल जाते और पांव ढांपे जाते तो सर खुल जाता था।
उनकी यही स्थिति हज़रत खब्बाब रज़ि० ने भी बयान की है और इतना और बढ़ा दिया है कि (इस स्थिति को देखकर) नबी सल्ल० ने हमसे फ़रमाया कि चादर से उनका सर ढांक दो और पांव पर इज़खर डाल दो।”
रसूलुल्लाह सल्ल० अल्लाह का गुणगान करते और उससे दुआ करते हैं
इमाम अहमद की रिवायत है कि उहुद के दिन जब मुश्रिक वापस चले गए तो रसूलुल्लाह सल्ल० ने सहाबा किराम रजि० से फ़रमाया, बराबर हो जाओ, ज़रा मैं अपने रब का गुणगान कर लूं। इस हुक्म पर सहाबा किराम ने आपके पीछे सफ़े बांध लीं और आपने यों फ़रमाया-
‘ऐ अल्लाह ! तेरी ही सारी प्रशंसाएं हैं। ऐ अल्लाह ! तू जिस चीज़ को फैला दे, उसे कोई तंग नहीं कर सकता और जिस चीज़ को तू तंग कर दे, उसे कोई फैला नहीं सकता। जिस व्यक्ति को तू गुमराह कर दे, उसे कोई हिदायत. नहीं दे सकता और जो चीज़ तू दे दे, उसे कोई रोक नहीं सकता। जिस चीज़ को तू दूर कर दे उसे कोई क़रीब नहीं कर सकता, और जिस चीज़ को तू क़रीब कर दे, उसे कोई दूर नहीं कर सकता। ऐ अल्लाह ! हमारे ऊपर अपनी बरकतें, रहमतें, मेहरबानी और रोज़ी फैला दे ।
ऐ अल्लाह ! मैं तुझसे से बाक़ी रहने वाली नेमत का सवाल करता हूं, जो न टले और न खत्म हो। ऐ अल्लाह ! मैं तुझसे ग़रीबी में मदद का और खौफ़ में अम्न का सवाल करता हूं। ऐ अल्लाह ! जो कुछ तू ने हमें दिया है उसके शर से और जो कुछ नहीं दिया है, उसके भी शर से तेरी पनाह चाहता हूं। ऐ अल्लाह ! हमारे नज़दीक ईमान को प्रिय बना दे और उसे हमारे दिलों में खुशनुमा बना दे
नहीं होता, जबकि भारत में एक मीटर से भी लम्बा होता है।
1. मुस्नद अहमद, मिश्कात 1/140
2. सहीह बुखारी, 2/579, 584, मय फत्हुल बारी 3/170, हदीस न० 1276, 3897, 3913, 3914, 4047, 4082, 6432, 6448
और फ़िस्क़ और नाफरमानी को नागवार बना दे और हमें हिदायत पाए हुए कुञ्ज, लोगों में कर दे। ऐ अल्लाह ! हमें मुसलमान रखते हुए वफ़ात दे और मुसलमान ही रखते हुए ज़िंदा रख और रुसवाई और फ़िले से दो चार किए बग़ैर भले लोगों में शामिल फ़रमा। ऐ अल्लाह। तू इन काफ़िरों को मार और इन पर सख्ती और अज़ाब कर, जो तेरे पैग़म्बरों को झुठलाते और तेरी राह से रोकते हैं। ऐ अल्लाह ! उन काफ़िरों को भी मार जिन्हें किताब दी गई, ऐ सच्चे खुदा।’
मदीने की वापसी
शहीदों के दफन करने के बाद और अल्लाह के गुणगान और दुआ के बाद अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मदीने का रुख फ़रमाया । जिस तरह लड़ाई के दौरान सहाबा से मुहब्बत और वीरता की अनोखी घटनाएं घटित हुई थीं, उसी तरह रास्ते में सहाबी औरतों से सच्चाई और जान लगा देने की विचित्र घटनाएं घटीं।
चुनांचे रास्ते में प्यारे नबी सल्ल० की मुलाक़ात हज़रत हमना बिन्त जहश से हुई। उन्हें उनके भाई अब्दुल्लाह बिन जहश की शहादत की ख़बर दी गई। उन्होंने ‘इन्ना लिल्लाहि’ पढ़ी और मड़िफ़रत की दुआ की। फिर उनके मामूं हज़रत हमज़ा बिन अब्दुल मुत्तलिब की शहादत की ख़बर दी गई। उन्होंने फिर इन्नालिल्लाह पढ़ी और मफ़िरत की दुआ की। इसके बाद इनके शौहर मुसअब बिन उमैर रज़ि० की शहादत की खबर दी गई, तो तड़प कर चीख उठीं, और धाड़ें मार-मार कर रोने लगीं ।
रसूलुल्लाह सल्ल० ने फ़रमाया, औरत का शौहर उसके यहां एक विशेष स्थान रखता है। 2
इसी तरह आपका गुज़र बनू दीनार की एक महिला के पास से हुआ, जिसके , भाई और पिता तीनों शहीद हो चुके थे। जब उन्हें इन लोगों की शहादत की खबर दी गई तो कहने लगीं कि अल्लाह के रसूल सल्ल० का क्या हुआ ?
लोगों ने कहा, फ़्लां की मां ! हुजूर सल्ल० खैरियत से हैं और अल्लाह का शुक्र है जैसा तुम चाहती हो, वैसे ही हैं।
महिला ने कहा, ज़रा मुझे दिखा दो। मैं भी आपका मुबारक चेहरा देख लूं । लोगों ने उन्हें इशारे से बताया। जब उनकी नज़र आप पर पड़ी, तो
बुखारी, अदबुल मुफ्रद, मुस्नद अहमद 3/324
2. इब्ने हिशाम 2/98
बे-अख्तियार पुकार उठी, ‘आपके बाद हर मुसीबत बे-क़ीमत है।”
रास्ते ही में हज़रत साद बिन मुआज रज़ियल्लाहु अन्हु की मां आपके पास दौड़ती हुई आई, उस वक़्त हज़रत साद बिन मुआज रजि० अल्लाह के रसूल के घोड़े की लगाम थामे हुए थे। कहने लगे, ऐ अल्लाह के रसूल सल्ल० ! मेरी मां हैं।
आपने फ़रमाया, इन्हें मुबारक हो। इसके बाद उनके स्वागत के लिए रुक गए। जब वह क़रीब आ गईं तो आपने उनके सुपुत्र अम्र बिन मुआज की शहादत पर शोक व्यक्त किया और उन्हें तसल्ली दी और सब्र की नसीहत फरमाई।
है । कहने लगी, जब मैंने आपको देख लिया, तो मेरे लिए हर मुसीबत बे-क़ीमत
फिर अल्लाह के रसूल सल्ल० ने उहुद के शहीदों के लिए दुआ फ़रमाई और फ़रमाया, ऐ उम्मे साद ! तुम खुश हो जाओ और शहीदों के घरवालों को खुशखबरी सुना दो कि उनके शहीद सब के सब एक साथ जन्नत में हैं और अपने घरवालों के बारे में उन सबकी शफ़ाअत कुबूल कर ली गई है।
कहने लगीं, ऐ अल्लाह के रसूल सल्ल० ! उनके छोड़े हुए लोगों के लिए भी दुआ फ़रमा दीजिए।
• आपने फ़रमाया, अल्लाह उनके दिलों का ग़म दूर कर, उनकी मुसीबत का बदला दे और बचे हुए लोगों की बेहतरीन देखभाल फ़रमा । 2
अल्लाह के रसूल सल्ल० मदीने में
उसी दिन, यानी शनिवार 7 शव्वाल सन् 03 हि० को शाम ही को अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मदीना पहुंचे। घर पहुंच कर अपनी तलवार हज़रत फ़ातिमा को दी और फ़रमाया, बेटी ! इसका खून धो दो। खुदा की क़सम ! यह आज मेरे लिए बहुत सही साबित हुई ।
खून फिर हज़रत अली रज़ि० ने भी तलवार लपकाई और फ़रमाया, इसका भी धो दो। अल्लाह की क़सम ! यह भी आज बहुत सही साबित हुई। इस पर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया, अगर तुमने बे-लाग लड़ाई लड़ी है, तो तुम्हारे साथ सहल बिन हुनैफ़ और अबू दुजाना ने भी बे-लाग लड़ाई लड़ी है। 3
1. इब्ने हिशाम 2/99 2. अस्सीरतुल हलबीया 2/47 3. इब्ने हिशाम 2/100
अधिकतर रिवायतें एक मत हैं कि मुसलमान शहीदों की तायदाद 70 थी, जिनमें बड़ी संख्या अंसार की थी, यानी उनके 65 आदमी शहीद हुए थे, 41 खज़रज से और 24 औस से। एक आदमी यहूदियों में से क़त्ल हुआ था और मुहाजिर शहीदों की तायदाद कुल 4 थी ।
बाक़ी रहे कुरैश के मारे गए लोग, तो इब्ने इस्हाक़ के बयान के मुताबिक़ उनकी तायदाद 22 थी, लेकिन लड़ाइयों के माहिर और सीरत लिखने वालों ने इस लड़ाई का जो विवेचन किया है और जिनमें छुट-पुट लड़ाई के अलग-अलग मरहलों में क़त्ल होने वाले मुश्किों का उल्लेख किया है, उन पर गहरी नज़र रखते हुए पूरी बारीकी के साथ हिसाब लगाया जाए, तो यह तायदाद 22 नहीं, बल्कि 37 होती है। (ख़ुदा बेहतर जाने।) 1
मदीने में आपातकाल
मुसलमानों ने उहुद की लड़ाई से वापस आकर (8 शव्वाल 03 हि० शनिवार, रविवार के बीच की) रात आपातकाल में बिताई। लड़ाई ने उन्हें चूर-चूर कर रखा था, इसके बावजूद वे रात भर मदीने के रास्तों और राजमार्गों पर पहरा देते रहे और अपने सेनापति रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की विशेष रक्षा पर तैनात रहे, क्योंकि उन्हें हर ओर से शंकाएं थीं।

