अर-रहीकुल मख़्तूम  पार्ट 64 उहुद की लड़ाई पार्ट-12



अबू सुफ़ियान की बकवास और हज़रत उमर रज़ि० का जवाब मुश्रिकों ने वापसी की तैयारी पूरी कर ली तो अबू सुफ़ियान उहुद पहाड़ पर नमूदार हुआ और ऊंची आवाज़ से बोला, क्या तुममें मुहम्मद हैं ?

लोगों ने कोई जवाब नहीं दिया।

उसने फिर कहा, क्या तुममें अबू क़हाफ़ा के बेटे (अबूबक्र रज़ि०) हैं? लोगों ने कोई जवाब नहीं दिया।

उसने फिर सवाल किया, क्या तुममें उमर बिन खत्ताब हैं?

लोगों ने इस बार भी कोई जवाब न दिया, क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सहाबा किराम को जवाब देने से मना फ़रमा दिया था।

अबू सुफ़ियान ने इन तीन के सिवा किसी और के बारे में न पूछा, क्योंकि उसे और उसकी क़ौम को मालूम था कि इस्लाम इन्हीं तीनों से क़ायम है। बहरहाल जब कोई जवाब न मिला तो उसने कहा, चलो, इन तीनों से फुर्सत हुई।

यह सुनकर हज़रत उमर रज़ि० बेक़ाबू हो गए और बोले, ओ अल्लाह के दुश्मन ! जिनका तूने नाम लिया है, वे सब ज़िंदा हैं और अल्लाह ने अभी तेरी रुसवाई का सामान बाक़ी रखा है।

इसके बाद अबू सुफ़ियान ने कहा, तुम्हारे क़त्ल किए गए लोगों का मुसला हुआ है, लेकिन मैंने न उसका हुक्म दिया है, और न उसका बुरा मनाया है। फिर नारा लगाया, ‘हुबल बुलन्द हो ।’

नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया, तुम लोग जवाब क्यों नहीं देते ?

सहाबा ने अर्ज़ किया, क्या जवाब दें ?

आपने फ़रमाया, कहो ‘अल्लाह बुलन्द व बरतर है।’

फिर अबू सुफ़ियान ने नारा लगाया, ‘हमारे लिए उज़्ज़ा है और तुम्हारे लिए उज़्ज़ा नहीं।’

अस्सीरतुल हलबीया 2/30

2. इब्ने हिशाम 2/87

नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया, जवाब क्यों नहीं देते ? सहाबा ने पूछा, क्या जवाब दें ?

आपने फ़रमाया, कहो, ‘अल्लाह हमारा मौला है, और तुम्हारा कोई मौला नहीं ।’ इसके बाद अबू सुफ़ियान ने कहा, कितना अच्छा कारनामा रहा। आज का दिन बद्र की लड़ाई के दिन का बदला है और लड़ाई डोल है।

हज़रत उमर रजि० ने जवाब में कहा, बराबर नहीं। हमारे मारे गए लोग जन्नत में हैं और तुम्हारे मारे गए लोग जहन्नम में।

इसके बाद अबू सुफ़ियान ने कहा, उमर ! मेरे क़रीब आओ ।

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया, जाओ, देखो, क्या कहता है ?

वह क़रीब आए, तो अबू सुफ़ियान ने कहा, उमर! मैं ख़ुदा का वास्ता देकर पूछता हूं क्या हमने मुहम्मद सल्ल० को क़त्ल कर दिया है ?

हज़रत उमर रज़ि० ने कहा, अल्लाह की क़सम ! नहीं। बल्कि इस वक़्त वह तुम्हारी बातें सुन रहे हैं

अबू सुफ़ियान ने कहा, तुम मेरे नज़दीक इब्ने कुम्मा से ज़्यादा सच्चे हो । 2

बद्र में एक और लड़ाई का वायदा

इब्ने इस्हाक़ का बयान है कि अबू सुफ़ियान और उसके साथी वापस होने लगे, तो अबू सुफ़ियान ने कहा, अगले साल बद्र में लड़ने का इरादा है।

अल्लाह के रसूल सल्ल० ने एक सहाबी से फ़रमाया, कह दो, ठीक है। अब यह बात हमारे और तुम्हारे दर्मियान तै हो गई। 3

मुश्रिकों के विचारों की जांच

इसके बाद अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हज़रत अली बिन अबी तालिब रज़ियल्लाहु अन्हु को रवाना किया और फ़रमाया, क़ौम के पीछे-पीछे जाओ और देखो वे क्या कर रहे हैं? और उनका इरादा क्या है ? अगर उन्होंने घोड़े पहलू में रखे हों और ऊंटों पर सवार हों और ऊंट हांक कर ले

1. यानी कभी एक फ़रीक़ ग़ालिब आता है और कभी दूसरा, जैसे खींचता है, कभी कोई ।

डोल कभी कोई

2. इब्ने हिशाम 2/93, 94, ज़ादुल मआद 2/94, सहीह बुखारी 2/579

3. इब्ने हिशाम 2/94

जाएं तो मदीने का इरादा है। फिर फ़रमाया, उस ज्ञात की क़मस ! जिसके हाथ में मेरी जान है ! अगर उन्होंने मदीने का इरादा किया, तो मैं मदीना में जाकर उनसे दो-दो हाथ करूंगा ।

हज़रत अली रज़ि० का बयान है कि इसके बाद मैं उनके पीछे निकला तो देखा, उन्होंने घोड़े पहलू में कर रखे हैं, ऊंटों पर सवार हैं और मक्के का रुख है।’

शहीदों और घायलों की देखभाल

कुरैश की वापसी के बाद मुसलमान अपने शहीदों और घायलों की खोज-खबर लेने के लिए निकले।

हज़रत ज़ैद बिन साबित रज़ियल्लाहु अन्हु का बयान है कि उहुद के दिन अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मुझे भेजा कि मैं साद बिन रुबीअ को खोजूं और फ़रमाया कि अगर वह दिखाई पड़ जाएं, तो उन्हें मेरा सलाम कहना और यह कहना कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मालूम कर रहे हैं कि तुम अपने आपको कैसा पा रहे हो ?

हज़रत ज़ैद रज़ि० कहते हैं कि मैं शहीदों के दर्मियान चक्कर लगाते हुए उनके पास पहुंचा तो उनकी आखिरी सांस आ-जा रही थी। उन्हें नेज़े, तलवार और तीर के सत्तर से ज़्यादा घाव आए थे। मैंने कहा, ऐ सांद! अल्लाह के रसूल सल्ल० आपको सलाम कहते हैं और मालूम करना चाहते हैं कि बताओ, अब आप अपने को कैसा पा रहे हो ?

उन्होंने कहा, अल्लाह के रसूल सल्ल० को सलाम। आपसे अर्ज़ करो कि ऐ अल्लाह के रसूल सल्ल० ! जन्नत की खुशबू पा रहा हूं और मेरी क़ौम अंसार से कहो कि अगर तुममें से किसी की एक आंख भी हिलती रही और दुश्मन अल्लाह के रसूल सल्ल० तक पहुंच गया, तो तुम्हारे लिए अल्लाह के नज़दीक कोई उज्र न होगा और उसी वक़्त उनकी रूह जिस्म से जुदा हो गई। 2

लोगों ने घायलों में उसैरिम को भी पाया, जिनका नाम अम्र बिन साबित था । इनमें थोड़ी-सी जान बाक़ी थी। इससे पहले उन्हें इस्लाम की दावत दी जाती थी, मगर वह कुबूल नहीं फ़रमाते थे, इसलिए लोगों ने (आश्चर्य के साथ) कहा कि

1. इब्ने हिशाम, 2/94। हाफ़िज़ इब्ने हजर ने फ़हुल बारी (7/347) में लिखा है कि मुश्किों के इरादों का पता लगाने के लिए हज़रत साद बिन अबी वक़्क़ास रज़ियल्लाहु अन्हु तशरीफ़ ले गए थे। 2. जादुल मआद, 2/96

यह उसैरिम कैसे आया है? उसे तो हमने इस हालत में छोड़ा था कि वह दीन का इंकारी था। चुनांचे उनसे पूछा गया कि तुम्हें यहां क्या चीज़ ले आई ? क़ौम का साथ देने का जोश या इस्लाम से चाव ?

उन्होंने कहा, इस्लाम से चाव। सच तो यह है कि मैं अल्लाह और उसके रसूल सल्ल० पर ईमान ले आया और उसके बाद अल्लाह के रसूल सल्ल० की हिमायत में लड़ाई में शरीक हुआ, यहां तक कि अब इस हालत से दोचार हूं जो आप लोगों की आंखों के सामने है और उसी वक़्त उनकी जान निकल गई।

लोगों ने अल्लाह के रसूल सल्ल० से इसका ज़िक्र किया, तो आपने फ़रमाया, वह जन्नतियों में से है ।

हज़रत अबू हुरैरह रज़ि० कहते हैं, जबकि उसने अल्लाह के लिए एक वक़्त की भी नमाज़ नहीं पढ़ी थी। (क्योंकि इस्लाम लाने के बाद अभी किसी नमाज़ का वक़्त आया ही न था कि शहीद हो गए ।)

इन्हीं घायलों में कुज़मान भी मिला। उसने इस लड़ाई में बड़ी वीरता दिखाई थी और अकेले सात या आठ मुश्रिकों को क़त्ल किया था। वह जब मिला तो धावों से चूर था। लोग उसे उठा कर बनू ज़ुफ़र के मुहल्ले में ले गए तो मुसलमानों ने खुशखबरी सुनाई ।

कहने लगा, अल्लाह की क़सम ! मेरी लड़ाई तो सिर्फ अपनी क़ौम की नाक के लिए थी। अगर यह बात न होती, तो मैं लड़ता ही नहीं। इसके बाद जब उसके घावों में और उभार आया तो उसने अपने आपको ज़िब्ह करके आत्महत्या कर ली ।

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से जब भी उसका ज़िक्र किया जाता तो फ़रमाते, वह जहन्नमी है। 2 (और इस घटना ने आपकी भविष्यवाणी पर मुहर लगा दी) सच तो यह है कि अल्लाह के कलिमे को बुलन्द करने के बजाए क़ौम या किसी भी दूसरी राह में लड़ने वालों का अंजाम यही है, चाहे वे इस्लाम के झंडे तले, बल्कि रसूल सल्ल० और सहाबा की फ़ौज में शरीक होकर क्यों न लड़ रहे हों।

इसके बिल्कुल विपरीत मारे जाने वालों में बनू सालबा का एक यहूदी था। उसने उस वक़्त जबकि लड़ाई के बादल उमड़-घुमड़कर आ रहे थे, अपनी क़ौम से कहा, ऐ यहूदियो ! ख़ुदा की क्रमस, तुम जानते हो कि मुहम्मद (सल्ल॰) की मदद तुम पर फ़र्ज़ है।

ज़ादुल मआद 2/94, इब्ने हिशाम 2/90 ज़ादुल मआद 2/97, 98, इब्ने हिशाम 2/88

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