अर-रहीकुल मख़्तूम  पार्ट 64 उहुद की लड़ाई पार्ट-11


हज़रत तलहा रज़ि० नबी सल्ल० को उठाते हैं

पहाड़ की ओर नबी सल्ल० की वापसी के दौरान एक चट्टान पड़ गई। आपने उस पर चढ़ने की कोशिश की, मगर चढ़ न सके, क्योंकि एक तो आपका जिस्म भारी हो चुका था, दूसरे आपने दोहरा कवच पहन रखा था और फिर आपको सख्त चोटें भी आई थीं। इसलिए हज़रत तलहा बिन उबैदुल्लाह रजि० नीचे बैठ गए और आपको सवार करके खड़े हो गए। इस तरह आप चट्टान पर पहुंच गए। आपने फ़रमाया, ‘तलहा ने (जन्नत) वाजिब कर ली। 3

मुश्किों का आख़िरी हमला

जब अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम घाटी के अन्दर अपनी क्रियादतगाह (कमांडिंग रूम) में पहुंच गए, तो मुश्किों ने मुसलमानों को आखिरी नुक्सान पहुंचाने की कोशिश की ।

इब्ने इस्हाक़ का बयान है कि इस बीच कि अल्लाह के रसूल सल्ल० घाटी के अन्दर ही तशरीफ़ रखते थे, अबू सुफ़ियान और खालिद बिन वलीद के नेतृत्व में मुश्किों का एक दस्ता चढ़ आया। अल्लाह के रसूल सल्ल० ने दुआ फ़रमाई कि ऐ अल्लाह ! ये हमसे ऊपर न जाने पाएं।

फिर हज़रत उमर बिन खत्ताब रज़ि० और मुहाजिरों की एक टीम ने लड़कर उन्हें पहाड़ से नीचे उतार दिया।

मग़ाज़ी उमवी का बयान है कि मुश्कि पहाड़ पर चढ़ आए तो अल्लाह के रसूल सल्ल० ने हज़रत साद रजि० से फ़रमाया, ‘इनके हौसले पस्त करो।’ (यानी इन्हें पीछे धकेल दो)

1. इब्ने हिशाम 2/84, जादुल मआद 2/97 2. मुस्तदरक हाकिम 2/327

3. इब्ने हिशाम 2/86, तिर्मिज़ी हदीस न० 1693, (जिहाद) 3739 (मनाक़िब) मुस्नद अहमद 1/165, हाकिम ने (3/374 में) इसे सही कहा है और ज़हबी ने इसकी ताईद की है। 4.

इब्ने हिशाम 2/86

उन्होंने कहा, मैं अकेले इनके हौसले कैसे पस्त करूं ?

इस पर आपने तीन बार यही बात दोहराई।

आखिरकार हज़रत साद रजि० ने अपने तिरकश से एक तीर निकाला और एक व्यक्ति को मारा तो वह वहीं ढेर हो गया।

हज़रत साद कहते हैं कि मैंने फिर अपना तीर लिया, उसे पहचानता था और उससे दूसरे को मारा, तो उसका भी काम तमाम हो गया।

इसके बाद फिर तीर लिया, उसे पहचानता था और उससे एक तीसरे को मारा तो उसकी भी जान जाती रही।

इसके बाद मुश्कि नीचे उतर आए। मैंने कहा यह मुबारक तीर है। फिर मैंने उसे अपने तिरकश में रख लिया। यह तीर ज़िंदगी भर हज़रत साद के पास रहा और उनके बाद उनकी औलाद के पास रहा।

शहीदों का मुसला

यह आखिरी हमला था, जो मुश्किों ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के खिलाफ़ किया था, चूंकि आपके बारे में यही मालूम न था, बल्कि आपके शहीद किए जाने का लगभग यक़ीन था, इसलिए उन्होंने अपने कैम्प की ओर पलट कर मक्का वापसी की तैयारी शुरू कर दी। कुछ मुश्कि मर्द और औरतें मुसलमान शुहीदों के मुसले में लग गए, यानी शहीदों की शर्मगाहें और कान, नाक वग़ैरह काट लिए, पेट चीर दिए।

हिन्द बिन्त उत्बा ने हज़रत हमज़ा रज़ि० का कलेजा चाक कर दिया और मुंह में डाल कर चबाया। निगलना चाहा, लेकिन निगल न सकी, तो थूक दिया और कटे हुए कानों और नाकों का पाज़ेब और हार बनाया। 2

आख़िर तक लड़ने के लिए मुसलमानों की मुस्तैदी

फिर इस आखिरी वक़्त में दो ऐसी घटनाएं हुईं जिनसे यह अन्दाज़ा लगाना कठिन नहीं है कि जांबाज़ व सरफ़रोश मुसलमान आखिर तक लड़ाई लड़ने के लिए कितने मुस्तैद थे और अल्लाह की राह में जान देने का कैसा हौसला रखते थे—

1. ज़ादुल मआद 2/95 2. इब्ने हिशाम 2/90

1. हज़रत काब बिन मालिक रजि० का बयान है कि मैं उन मुसलमानों में था जो घाटी से बाहर आए थे। मैंने देखा कि मुश्किों के हाथों मुसलमान शहीदों का मुसला किया जा रहा है, तो रुक गया। फिर आगे बढ़ा, क्या देखता हूं कि एक मुश्कि जो भारी-भरकम कवच पहने शहीदों के बीच से गुज़र रहा है और कहता जा रहा है कि कटी हुई बकरियों की तरह ढेर हो गए और एक मुसलमान उसकी राह तक रहा है। वह भी कवच पहने हुए है 1

मैं कुछ क़दम और बढ़कर उसके पीछे हो लिया, फिर खड़े होकर आंखों ही आंखों में काफ़िर और मुस्लिम को तौलने लगा। महसूस हुआ कि काफ़िर अपने डील-डोल और साज़ व सामान दोनों पहलुओं से बेहतर है। अब मैं दोनों का इन्तिज़ार करने लगा। आखिरकार दोनों में टक्कर हो गई और मुसलमान ने काफ़िर को ऐसी तलवार मारी कि वह पांव तक काटती चली गई। मुश्कि दो टुकड़े होकर गिरा ।

फिर मुसलमान ने अपना चेहरा खोला और कहा, ओ काब ! कैसी रही ? मैं अबू दुजाना हूं ।1

2. लड़ाई के खात्मे पर कुछ मुसलमान औरतें जिहाद के मैदान में पहुंचीं । चुनांचे हज़रत अनस रजि० का बयान है कि मैंने हज़रत आइशा बिन्त अबूबक्र रज़ि० और उम्मे सुलैम को देखा कि पिंडली के पाज़ेब तक कपड़े चढ़ाए पीठ पर मशक लाद-लादकर ला रही थीं और क़ौम के मुंह में उंडेल रही थीं। 2

हज़रत उमर रज़ि० का बयान है कि उहुद के दिन हज़रत उम्मे सलीत रज़ि० हमारे लिए मशक भर-भरकर ला रही थीं।

इन्हीं औरतों में हज़रत उम्मे ऐमन भी थीं। उन्होंने जब हार खाए मुसलमानों को देखा कि मदीने में घुसना चाहते हैं, तो उनके चेहरों पर मिट्टी फेंकने लगीं और कहने लगी, वह सूत कातने का तकला लो और हमें तलवार दो ।”

इसके बाद तेज़ी से लड़ाई के मैदान में पहुंची और घायलों को पानी पिलाने

1. अल-विदाया वन्निहाया 4/17

2. सहीह बुखारी 1/403, 2/581

3. सहीह बुखारी 1/403

4. सूत कातना औरतों का खास काम था। इसलिए सूत कातने का तकला यानी फिरकी औरतों का वैसा ही खास सामान था, जैसे हमारे देश में चूड़ी। इस मौक़े पर उक्त मुहावरे का ठीक वही अर्थ है जो हमारी भाषा के इस मुहावरे का है कि ‘चूड़ी लो और तलवार दो’ ।

लगीं। इन पर हिबान बिन अरका ने तीर चलाया। वह गिर पड़ीं और परदा खुल गया। इस पर अल्लाह के दुश्मन ने भरपूर ठठ्ठा लगाया।

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर यह बात बहुत बोझ महसूस हुई। आपने हज़रत साद बिन अबी वक़्क़ास रज़ि० को एक बेरेश तीर देकर फ़रमाया, इसे चलाओ।

हज़रत साद ने चलाया तो वह तीर हिबान के हलक़ पर लगा और वह चित गिरा। उसका परदा खुल गया। इस पर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम इस तरह हंसे कि जड़ के दांत दिखाई देने लगे। फ़रमाया, साद ने उम्मे ऐमन का बदला चुका लिया, अल्लाह उनकी दुआ कुबूल करे ।’

घाटी में चैन मिलने के बाद

जब अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को घाटी के अन्दर अपनी जगह पर तनिक सुकून मिला, तो हज़रत अली बिन अबी तालिब रज़ि० महरास से अपनी ढाल में पानी भर लाए। (कहा जाता है कि महरास पत्थर में बना हुआ वह गढ़ा होता है, जिसमें ज़्यादा पानी आ सकता हो और कहा जाता है कि यह उहुद में एक चश्मे का नाम है ।) बहरहाल हज़रत अली रजि० ने वह पानी नबी सल्ल० की खिदमत में पीने के लिए पेश किया।

आपने कुछ उसमें नागवार गंध महसूस की, इसलिए उसे पिया तो नहीं, अलबत्ता उससे चेहरे का खून धो लिया और सर पर भी डाल लिया। इस हालत में आप फ़रमा रहे थे, उस व्यक्ति पर अल्लाह का बड़ा प्रकोप है, जिसने उसके नबी के चेहरे को खून से भर दिया। 2

हज़रत सहल रज़ि० फ़रमाते हैं, मुझे मालूम है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का घाव किसने धोया ? पानी किसने बहाया ? और इलाज किस चीज़ से किया ? आपकी प्यारी बेटी आपका घाव धो रही थीं, हज़रत अली रज़ि० ढाल से पानी बहा रहे थे। जब हज़रत फ़ातिमा ने देखा कि पानी की वजह से खून बढ़ता ही जा रहा है, तो चटाई का एक टुकड़ा लिया और उसे जलाकर चिपका दिया, जिससे खून रुक गया।

इधर हज़रत मुहम्मद बिन मस्लमा रज़ियल्लाहु अन्हु मीठा और स्वादिष्ट पानी

1. अस्सीरतुल हलबीया 2/22 2. इब्ने हिशाम 2/85 3. सहीह बुखारी 2/584

लाए। नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उसे पिया और दुआ दी ।’ घाव की वजह से नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने जुहर की नमाज़ बैठे-बैठे पढ़ी और सहाबा किराम रजि० ने भी आपके पीछे बैठकर नमाज़ पढ़ी

Leave a comment