रसूल अल्लाह ﷺ के बाद अहले बैत पर ज़ुल्म-ओ-सितम.

रसूल अल्लाह ﷺ के बाद अहले बैत पर ज़ुल्म-ओ-सितम: इतिहास का एक ख़ून भरा अध्याय
रसूल अल्लाह हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा ﷺ का देहांत उम्मत-ए-मुस्लिमा के लिए महज़ एक धार्मिक हानि नहीं था, बल्कि यह आपके पवित्र परिवार, अहले बैत (सलाम अल्लाह अलैहिम), के लिए बेमिसाल आज़माइशों, नाइंसाफ़ियों और दर्दनाक ज़ुल्म-ओ-सितम के एक लंबे दौर का शुरुआती बिंदु भी साबित हुआ।
जिन हस्तियों की मोहब्बत को क़ुरआन ने अज्र-ए-रिसालत (आयत-ए-मवद्दत) क़रार दिया था और जिन्हें रसूल अल्लाह ﷺ ने अपनी उम्मत के लिए नजात की कश्ती क़रार दिया था, उनके साथ उम्मत के एक बड़े हिस्से ने दुश्मनी, नाइंसाफ़ी और बेवफ़ाई का रास्ता अपनाया।
१. शुरुआती नाइंसाफ़ियाँ और विरासत के हक़ से महरूमी
नबी अकरम ﷺ के देहांत के फ़ौरन बाद ही अहले बैत पर मुसीबत का सिलसिला शुरू हो गया।
  विरासत के हक़ की पामाली: सैय्यदतुन निसा-अल-आ़लमीन, हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (सलाम अल्लाह अलैहा), को उनके वालिद-ए-गिरामी की विरासत, ख़ास तौर पर बाग़-ए-फ़िदक, से ज़बरदस्ती महरूम कर दिया गया, जिसका ग़म आपको आख़िर दम तक रहा और आप उसी रंज में दुनिया से जल्द रुख़सत हो गईं।
  ख़िलाफ़त के हक़ से दूरी: रसूल अल्लाह ﷺ के वसी, चचाज़ाद भाई और दामाद, हज़रत अली इब्ने अबी तालिब (अलैहिस्सलाम) को उम्मत की क़यादत और हक़-ए-ख़िलाफ़त से अलग कर दिया गया, हालाँकि रसूल अल्लाह ﷺ ने कई मौक़ों पर आपकी विलायत और जानशीनी का ऐलान फ़रमाया था।
२. मौला-ए-काएनात हज़रत अलीؑ और आंतरिक युद्ध
35 हिजरी में जब हज़रत अलीؑ ने ख़िलाफ़त संभाली तो उन्हें एक सुकून भरी हुकूमत के बजाय, गंभीर आंतरिक फ़ितनों और सैन्य विरोधों का सामना करना पड़ा।
  युद्ध और फ़ितना-अंग्रेज़ी: जिन्हें इस्लामी हुकूमत को एकजुट करना था, उन्हें अपने ही लोगों से तीन बड़ी जंगें लड़नी पड़ीं:
    जंग-ए-जमल: इसमें ना-आक़िबत अंदेश गिरोहों ने हज़रत अलीؑ के ख़िलाफ़ बगावत की और हज़ारों मुसलमानों का ख़ून बहाया गया।
    जंग-ए-सिफ़्फ़ीन: अमीर-ए-शाम के साथ होने वाली इस लंबी जंग में भी लाखों मुसलमान मारे गए और यह जंग एक धोखे पर ख़त्म हुई जिसने ख़िलाफ़त-ए-इस्लामी को कमज़ोर कर दिया।
    जंग-ए-नहरवान: आपको ख़ारजियों के ख़िलाफ़ भी तलवार उठानी पड़ी।
  दर्दनाक शहादत: आख़िरकार, अमीरुल मोमिनीनؑ को उम्मत के सबसे बड़े दुश्मनों (ख़ारजियों) में से एक ने मस्जिद-ए-कूफ़ा में नमाज़ की हालत में शहीद कर दिया, जो कि उम्मत के लिए सबसे बड़ी त्रासदी थी।
३. इमाम हसन मुजतबा़ؑ पर ज़ुल्म और ज़हर से शहादत
हज़रत अलीؑ की शहादत के बाद, उनके बड़े बेटे, नबी ﷺ के बड़े नवासे, हज़रत इमाम हसन मुजतबा़ (अलैहिस्सलाम) ने ख़िलाफ़त संभाली।
  ग़द्दारी और ज़बरन सुलह: उन्हें अपनी ही फ़ौज की ग़द्दारी, हुकू़मती मुनाफ़िक़त और बड़े पैमाने पर फ़ितना-अंग्रेज़ी का सामना करना पड़ा। जब हालात इस हद तक पहुँचा दिए गए कि आगे जिहाद का मतलब उम्मत का पूरी तरह तबाह होना था, तो इमाम हसनؑ ने इस्लामी एकता और अपने ख़ानदान की बक़ा की ख़ातिर, एक दिखावटी सुलह पर मजबूर होकर ख़िलाफ़त अमीर-ए-शाम के हवाले कर दी, हालाँकि यह आपके साथ सबसे बड़ी नाइंसाफ़ी थी।
  ज़हर के ज़रिए शहादत: सुलह के बावजूद ज़ालिम हुक्मरान को इमाम हसनؑ का वजूद क़बूल न था, इसलिए उन्हें एक साज़िश के तहत ज़हर देकर शहीद कर दिया गया।
  जनाज़े की बे-हुरमती: यहाँ तक कि जब आपकी वसीयत के मुताबिक़, आपको नाना रसूल अल्लाह ﷺ के पहलू में दफ़्न करने की कोशिश की गई तो कुछ ज़ालिमों ने तीरों की बारिश करके आपके जनाज़े की बे-हुरमती की।
४. सानेहा-ए-कर्बला: ज़ुल्म की इंतहा
इमाम हसनؑ की शहादत के बाद, यज़ीद बिन मुआविया का राज़-तिलक होना ज़ुल्म की एक नई तारीख़ लेकर आया। रसूल अल्लाह ﷺ के दूसरे नवासे, हज़रत इमाम हुसैन (अलैहिस्सलाम) ने फ़ासिक़-ओ-फ़ाजिर यज़ीद की बैअत से इंकार करके इस्लाम के उसूलों को बचाने का फ़ैसला किया।
  मुस्लिम बिन अक़ील की क़ुर्बानी: इमाम हुसैनؑ ने अपने चचाज़ाद भाई हज़रत मुस्लिम बिन अक़ील और उनके दो मासूम बच्चों को कूफ़ा की स्थिति जानने भेजा। वहाँ के लोगों ने ग़द्दारी की, मुस्लिम को गिरफ़्तार किया गया और उन्हें और उनके बच्चों को बेरहमी से शहीद कर दिया गया।
  कर्बला का घेराव और पानी की बंदी: इमाम हुसैनؑ को उनके अहले ख़ाना और 72 वफ़ादार साथियों के साथ कर्बला के मैदान में घेर लिया गया। उन पर पानी बंद कर दिया गया, जिसमें छोटे बच्चे और महिलाएँ भी शामिल थीं।
  शहादत-ए-उज़्मा: 10 मुहर्रम (यौम-ए-आशूर) को इमाम हुसैनؑ और आपके साथियों को प्यास की हालत में, अत्यंत बेरहमी से शहीद किया गया, जिनमें आपके जवान बेटे अली अकबरؑ, भाई हज़रत अब्बास अलमदारؑ, और छह माह के शिशु अली असग़रؑ शामिल थे। इमाम हुसैनؑ को शहीद करके सिर-ए-मुबारक तन से जुदा किया गया।
  ख़ानदान-ए-रसूल की क़ैद: शहादत के बाद, ज़ालिम फ़ौजों ने ख़ेमों को जलाया, और रसूल अल्लाह ﷺ के ख़ानदान की महिलाओं (जिनमें हज़रत ज़ैनबؑ और हज़रत उम-ए-कुलसूमؑ शामिल थीं) और बच्चों को क़ैदी बनाकर कूफ़ा और दमिश्क़ के दरबारों में बे-हुरमती के साथ पेश किया गया। शहीदों के सिरों को नेज़ों पर उठाया गया ताकि अहले बैत की बेइज़्ज़ती की जा सके।
५. बाद के इमामों पर लगातार ज़ुल्म
कर्बला की तबाही के बाद भी ज़ालिम हुक्मरानों ने अहले बैत को चैन नहीं लेने दिया।
  इमाम ज़ैनुल आ़बिदीनؑ: आपको क़ैद-ओ-बंद की सख़्तियाँ सहनी पड़ीं और आपने अपनी बाक़ी ज़िंदगी रंज-ओ-ग़म में गुज़ारी, दुआओं के ज़रिए इस्लाम की सच्ची शिक्षाओं को ज़िंदा रखा।
  ज़हर और क़ैद-ओ-बंद: इमाम हुसैनؑ के बाद आने वाले सभी इमामों (इमाम बाक़िरؑ से इमाम हसन अस्करीؑ तक) को अलग-अलग दौर के ज़ालिम हुक्मरानों की तरफ़ से लगातार तकलीफ़ें दी गईं। उनमें से ज़्यादातर को क़ैद-ख़ानों में डाला गया या ज़हर देकर शहीद कर दिया गया।
नतीजा और सबक़
अहले बैत-ए-रसूल अल्लाह ﷺ पर ज़ुल्म-ओ-सितम का यह सिलसिला इस्लाम के इतिहास का सबसे दर्दनाक और ख़ून भरा अध्याय है। यह ख़ानदान-ए-नबुव्वत पर होने वाले ज़ुल्म, उम्मत की बेवफ़ाई, दुनिया-परस्ती और ग़फ़लत का स्पष्ट प्रमाण हैं।
यह ऐतिहासिक घटनाएँ ईमान वालों के लिए हमेशा एक सबक़ रहेंगी, जो हमें यह शिक्षा देती हैं कि रसूल अल्लाह ﷺ की मोहब्बत और हुक्म के मुताबिक़, अहले बैतؑ के साथ सच्ची मोहब्बत, इज़्ज़त और वफ़ादारी का रास्ता अपनाया जाए, क्योंकि इसी में दीन और दुनिया की नजात है

अर-रहीकुल मख़्तूम  पार्ट 64 उहुद की लड़ाई पार्ट-9

अल्लाह के रसूल सल्ल० के पास सहाबा के इकट्ठा होने की शुरूआत.

यह सारी घटना कुछ ही क्षणों में बिल्कुल अचानक और बड़ी तेज़ रफ्तारी से घटी, वरना नबी सल्ल० के चुने हुए सहाबा किराम जो लड़ाई के दौरान पहली पंक्ति में थे, लड़ाई की स्थिति को बदलते ही या नबी सल्ल० की आवाज़ सुनते ही आपकी ओर बेतहाशा दौड़ कर आए कि कहीं आपको कोई अप्रिय घटना का सामना न करना पड़ जाए।

मगर ये लोग पहुंचे तो प्यारे नबी सल्ल० जख्मी हो चुके थे। छः अंसारी शहीद हो चुके थे, सातवें घायल होकर गिर चुके थे और हज़रत साद और हज़रत तलहा रजि० जान तोड़ कर प्रतिरक्षा कर रहे थे।

इन लोगों ने पहुंचते ही अपने जिस्मों और हथियारों से नबी सल्ल० के चारों ओर एक बाड़ तैयार कर दी और दुश्मन के ताबड़ तोड़ हमलों को रोकने में बड़ी वीरता से काम लिया। लड़ाई की पंक्ति से पलट कर आने वाले सबसे पहले सहाबी आपके ग़ार के साथी हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु थे।

इब्ने हब्बान ने अपनी सहीह में हज़रत आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत की है कि अबूबक्र रज़ियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया, उहुद के दिन सारे लोग नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से पलट गए थे, (यानी रक्षकों के अलावा तमाम

1. मुख्तसर तारीखे दमिश्क़ 7/82, 2. सहीह बुखारी, 2/580, अल-मुस्लिम : फ़ज़ाइल हदीस न० 46, 47 (4/1802)

सहाबा आपको आपके ठहरने की जगह पर छोड़कर लड़ाई की अगली पंक्तियों में चले गए थे, फिर घेराव की घटना के बाद) मैं पहला व्यक्ति था, जो नबी सल्ल० के पास पलट कर आया। देखा तो आपके सामने एक आदमी था, जो आपकी ओर से लड़ रहा था और आपको बचा रहा था। मैंने (जी ही जी में) -कहा, तुम तलहा हो, तुम पर मेरे मां-बाप फिदा हों, तुम तलहा हो, तुम पर मेरे मां-बाप फिदा हों।’ (चूंकि मुझसे यह क्षण फ़ौत हो गया था, इसलिए मैंने कहा कि मेरी क़ौम ही का एक आदमी हो, तो यह ज़्यादा पसन्दीदा बात है ।)

इतने में अबू उबैदा बिन जर्राह मेरे पास आ गए, वह इस तरह दौड़ रहे थे, मानो चिड़िया (उड़ रही है, यहां तक कि गुझसे आ मिले। अब हम दोनों नबी सल्ल० की ओर दौड़े। देखा, तो आपके आगे तलहा बिछे पड़े हैं।.

आपने फ़रमाया, अपने भाई को संभालो, इसने जन्नत वाजिब कर ली।

हज़रत अबूबक्र रजि० का बयान है कि (हम पहुंचे तो) नबी सल्ल० का मुबारक चेहरा ज़ख्मी हो चुका था और खुद की दो कड़ियां आंख के नीचे गालों में धंस चुकी थीं। मैंने उन्हें निकालना चाहा, तो अबू उबैदा ने कहा, ख़ुदा का वास्ता है, मुझे निकालने दीजिए।

इसके बाद उन्होंने मुंह से एक कड़ी पकड़ी और धीरे-धीरे निकालनी शुरू की, ताकि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को पीड़ा न पहुंचे और आखिरकार एक कड़ी अपने मुंह से खींच कर निकाल दी। लेकिन (इस कोशिश में) उनका एक निचला दांत गिर गया।

अब दूसरी मैंने खींचनी चाही, तो अबू उबैदा ने फिर कहा, अबूबक्र ! ख़ुदा का वास्ता देता हूं, मुझे खींचने दीजिए। इसके बाद दूसरी भी धीरे-धीरे खींची, लेकिन उनका दूसरा निचला दांत भी गिर गया।

फिर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया, अपने भाई तलहा को संभालो । (उसने जन्नत) वाजिब कर ली।

हज़रत अबूबक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि अब हम तलहा की ओर फिरे और उन्हें संभाला, उनको दस से ज़्यादा घाव लग चुके थे। तहज़ीब तारीख दमिश्क में है कि हम उनके पास कुछ क्षणो में आए तो क्या देखते हैं कि उन्हें नेज़े, तीर और तलवार के कम व बेश साठ घाव लगे हुए हैं और उनकी

1. तहज़ीब तारीखे दमिश्क 7/77, तलहा बिन उबैदुल्लाह भी हज़रत अबूबक्र के क़बीला बनू तीम से थे।.

2. जादुल मआद 2/95

उंगली कट गई है। हमने किसी हद तक उनका हाल ठीक किया। (इससे भी अन्दाज़ा होता है कि हज़रत तलहा ने उस दिन प्रतिरक्षा और लड़ाई में कैसी जांबाज़ी और बे-जिगरी से काम लिया था ।)

फिर इन्हीं सबसे नाज़ुक क्षणों के दौरान अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के आस-पास जांबाज़ सहाबा की एक टीम भी आ पहुंची, जिनके नाम ये हैं-

1. अबु दुजाना, 2. मुसअब बिन उमैर 3. अली बिन अबी तालिब, 4. सहल बिन हुनैफ़, 5. मालिक बिन सिनान (अबू सईद खुदरी के पिता), 6. उम्मे अम्मारा नुसैबा बिन्त काब माज़िनीया, 7. क़तादा बिन नोमान 8. उमर बिन खत्ताब, 9. हातिब बिन अबी बलतआ, और 10. अबू तलहा रज़ियल्लाहु अन्हुम अजमईन०

ये लोग कैसे-कैसे अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम तक पहुंचे होंगे, इसका एक हल्का-सा अन्दाज़ा हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु के इस बयान से हो सकता है कि उहुद के दिन जब लोग अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से हताश हो गए तो मैंने क़त्ल किए हुए लोगों में देखा, अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम नज़र न आए। मैने जी में कहा, अल्लाह की क़सम ! आप भाग नहीं सकते और क़त्ल किए गए लोगों में आपको देख नहीं रहा हूं, इसलिए मैं समझता हूं कि हमने जो कुछ किया है, उससे अल्लाह ने ग़ज़बनाक होकर अपने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को उठा लिया है। इसलिए मेरे लिए इससे बेहतर कोई शक्ल नहीं कि लड़ते-लड़ते शहीद हो जाऊं। फिर क्या था मैंने तलवार की म्यान तोड़ दी और कुरैश पर इस ज़ोर का हमला किया कि उन्होंने जगह खाली कर दी। अब क्या देखता हूं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उनके दर्मियान (घेरे में) मौजूद हैं। 2

मुश्रिकों के दबाव में बढ़ौत्तरी

इधर मुश्किों की तायदाद भी हर क्षण बढ़ती जा रही थी, जिसके नतीजे में उनके हमले बड़े सख्त होते जा रहे थे और उनका दबाव बढ़ता जा रहा था, यहां तक कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उन कुछ गढ़ों में से एक गढ़े में जा गिरे, जिन्हें अबू आमिर फ़ासिक़ ने इस क़िस्म की शरारत के लिए

1. तहज़ीब तारीखे दमिश्क 7/78 2. मुस्नद अबी याला 1/416, हदीस न० 546,

खोद रखा था, और उसके नतीजे में आपका घुटना मोच खा गया।

चुनांचे हज़रत अली रज़ि॰ ने आपका हाल थामा और तलहा बिन उबैदुल्लाह ने (जो खुद भी घावों से चूर थे) आपको गोद में लिया, तब आप बराबर खड़े हो सके।

नाफ़ेअ बिन जुबैर कहते हैं, मैंने एक मुहाजिर सहाबी को सुना, फ़रमा रहे थे, मैं उहुद की लड़ाई में हाज़िर था। मैंने देखा कि हर ओर से अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर तीर बरस रहे हैं और आप तीरों के बीच में हैं, लेकिन सारे तीर आपसे फेर दिए जाते हैं। (यानी आगे घेरा डाले हुए सहाबा उन्हें रोक लेते थे) और मैंने देखा कि अब्दुल्लाह बिन शिहाब जोहरी कह रहा था, मुझे बताओ, मुहम्मद कहां है ? अब या तो मैं रहूंगा या वह रहेगा ?

हालांकि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उसके बाजू में थे। आपके साथ कोई भी न था, फिर वह आपसे आगे निकल गया। इस पर सफ़वान ने उसे मलामत की।

जवाब में उसने कहा, ख़ुदा की क़सम ! मैंने उसे देखा ही नहीं। खुदा की क़सम ! वह हमसे सुरक्षित कर दिया गया है। इसके बाद हम चार आदमी यह संकल्प लेकर चले कि उन्हें क़त्ल कर देंगे, लेकिन उन तक न पहुंच सके। 1

अपूर्व वीरता

बहरहाल इस मौक़े पर मुसलमानों ने ऐसी अपूर्व वीरता दिखाई और ज़बरदस्त कुर्बानियों से काम लिया, जिसकी मिसाल तारीख में नहीं मिलती। चुनांचे अबू तलहा रज़ियल्लाहु अन्हु ने अपने आपको अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के आगे ढाल बना लिया। वह अपना सीना ऊपर उठा लिया करते थे, ताकि आपको दुश्मन के तीरों से सुरक्षित रख सकें।

हज़रत अनस रज़ि० का बयान है कि उहुद के दिन लोग (यानी आम मुसलमान) हार कर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास (आने के बजाए इधर-उधर भाग गए और अबू तलहा आपके आगे अपनी एक ढाल लेकर सपर बन गए। वह माहिर तीरंदाज़ थे, बहुत खींच कर तीर चलाते थे, चुनांचे उस दिन दो या तीन कमानें तोड़ डालीं।

नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास से कोई आदमी तीरों का तिरकश लिए गुज़रता तो आप फ़रमाते कि इन्हें अबू तलहा के लिए बिखेर दो।

1. ज़ादुल मआद 2/97

नबी सल्ल० क़ौम की ओर सर उठा कर देखते तो अबू तलहा कहते, मेरे मां-बाप आप पर कुर्बान ! आप सर उठा कर न झांकें। आपको क़ौम का कोई तीर न लग जाए। मेरा सीना आपके सीने के आगे है।
हज़रत अनस रज़ियल्लाहु अन्हु से यह रिवायत भी है कि हज़रत अबू तलहा नबी सल्ल० समेत एक ही ढाल से बचाव कर रहे थे और अबू तलहा बहुत अच्छे तीरंदाज़ थे। जब वह तीर चलाते तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम गरदन उठा कर देखते कि उनका तीर कहां गिरा 22

हज़रत अबू दुजाना रजि० नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के आगे खड़े हो गए और अपनी पीठ को आपके लिए ढाल बना दिया, उन पर तीर पड़ रहे थे, लेकिन वह हिलते न थे

हज़रत हातिब बिन अबी बलतआ ने उत्बा बिन अबी वक़्क़ास का पीछा किया, जिसने नबी सल्ल० का मुबारक दांत शहीद किया था और उसे इस ज़ोर से तलवार मारी कि उसका सर छटक गया। फिर उसके घोड़े और तलवार पर क़ब्ज़ा कर लिया।

हज़रत साद बिन अबी वक़्क़ास रज़ि० बहुत ज़्यादा चाहते थे कि अपने उस भाई, उत्बा को क़त्ल करें, पर वह सफल न हो सके, बल्कि यह सौभाग्य तो हज़रत हातिब को मिलना था और मिला।

हज़रत सहल बिन हुनैफ़ भी बड़े जांबाज़ तीरंदाज़ थे। उन्होंने अल्लाह के रसूल सल्लल्ललाहु अलैहि व सल्लम से मौत पर बैअत की और इसके बाद मुश्किों को बड़ी वीरता के साथ दूर ही रखा।

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम खुद भी तीर चला रहे थे । चुनांचे हज़रत क़तादा बिन नोमान रज़ि० की रिवायत है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपनी कमान से इतने तीर चलाए कि उसका किनारा टूट गया। फिर उस कमान को हज़रत क़तादा बिन नोमान ने ले लिया और वह उन्हीं के पास रही।

उस दिन यह घटना भी घटी कि हज़रत क़तादा की आंख चोट खाकर चेहरे पर ढलक आई। नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उसे अपने हाथ से पपोटे के अन्दर दाखिल कर दिया। इसके बाद इनकी दोनों आंखों में यही ज़्यादा खूबसूरत लगती थी और इसी की रोशनी ज़्यादा तेज़ थी ।

1. सहीह बुखारी 2/581 2. सहीह बुखारी 1/406

हज़रत अब्दुर्रहमान बिन औफ़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने लड़ते-लड़ते मुंह में चोट खाई, जिससे उनके सामने का दांत टूट गया और उन्हें बीस या बीस से ज़्यादा घाव लगे, जिनमें से कुछ घाव पांव में लगे और वह लंगड़े हो गए।

अबू सईद खुदरी रज़ियल्लाहु अन्हु के पिता मालिक बिन सिनान रज़ियल्लाहु अन्हु ने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के चेहरे से खून चूस कर साफ़ किया। आपने फ़रमाया, इसे थूक 1

उन्होंने कहा, ख़ुदा की क़सम ! इसे तो मैं हरगिज़ न थूकूंगा। इसके बाद पलट कर लड़ने लगे ।

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया, जो व्यक्ति किसी जन्नती आदमी को देखना चाहता है, वह इन्हें देखे। इसके बाद वह लड़ते-लड़ते शहीद हो गए।

एक अनोखा कारनामा महिला साथी हज़रत उम्मे अम्मारा नसीबा बिन्त काब रज़ि० ने अंजाम दिया। वह कुछ मुसलमानों के बीच लड़ती हुई इब्ने कुम्मा के सामने अड़ गईं। इब्ने कुम्मा ने उनके कंधे पर ऐसी तलवार मारी कि गहरा घाव हो गया। उन्होंने भी इब्ने कुम्मा को अपनी तलवार से कई चोटें मारी, मगर कमबख्त दो कवचें पहने हुए था, इसलिए बच गया ।

हज़रत उम्मे अम्मारा रज़ि० ने लड़ते-भिड़ते बारह घाव खाए ।

हज़रत मुसअब बिन उमैर रज़ि० ने भी लड़ाई में बड़ी वीरता से हिस्सा लिया। वे इब्ने कुम्मा और उसके साथियों के ताबड़ तोड़ हमलों से अल्लाह के रसूल सल्ल० की बराबर रक्षा किए जा रहे थे। उन्हीं के हाथ में इस्लामी फ़ौज का झंडा था । जालिमों ने उनके दाहिने हाथ पर इस ज़ोर की तलवार मारी कि हाथ कट गया। इसके बाद उन्होंने बाएं हाथ में झंडा थाम लिया और मुक़ाबला करते रहे। आखिरकार उनका बायां हाथ भी काट दिया गया। इसके बाद उन्होंने झंडे पर घुटने टेक कर उसे सीने और गरदन के सहारे लहराए रखा और इसी हाल में शहीद कर दिए गए।

उनका क़ातिल इब्ने कुम्मा था। वह समझ रहा था कि वह मुहम्मद है, क्योंकि हज़रत मुसअब बिन उमैर रज़ि० आपसे मिलते-जुलते थे। चुनांचे वह मुसअब बिन उमैर रज़ि० को शहीद करके मुश्किों की ओर वापस चला गया और चिल्ला-चिल्लाकर एलान किया कि मुहम्मद क़त्ल कर दिए गए।

1. देखिए इब्ने हिशाम 2/73, 80-83, जादुल मआद 2/97