अर-रहीकुल मख़्तूम  पार्ट 64 उहुद की लड़ाई पार्ट-2

मक्का की फ़ौज, मदीने की तलैटी में

उधर मक्के की फ़ौज, जाने-पहचाने राजमार्ग पर चलती रही। जब अबवा पहुंची, तो अबू सुफ़ियान की बीवी हिन्द बिन्त उत्बा ने यह प्रस्ताव रखा कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की मां की क़ब्र उखाड़ दी जाए।

लेकिन इस दरवाज़े को खोलने के जो संगीन नतीजे निकल सकते थे, उसके डर से सरदारों ने यह प्रस्ताव मंजूर नहीं किया।

इसके बाद फ़ौज ने अपना सफ़र पहले की तरह जारी रखा, यहां तक कि मदीना के क़रीब पहुंचकर पहले अक़ीक़ की घाटी से गुज़री, फिर किसी क़दर दाहिनी ओर कतरा कर उहुद पहाड़ी के क़रीब ऐनैन नाम की एक जगह पर, जो मदीना के उत्तर में क़नात घाटी के किनारे एक ऊसर ज़मीन है, पड़ाव डाल दिया। यह शुक्रवार 06 शव्वाल सन् 03 हि० की घटना है |

मदीना की रक्षात्मक रणनीति के लिए मज्लिसे शूरा (सलाहकार समिति) की मीटिंग

मदीना के सूचना -सूत्र मक्की सेना की एक-एक खबर पहुंचा रहे थे, यहां तक कि उसके पड़ाव के बारे में आखिरी खबर भी पहुंचा दी। उस वक़्त अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़ौजी हाई कमान की मज्लिसे शूरा की मीटिंग बुलाई, जिसमें यथोचित रणनीति अपनाने के लिए सलाह-मश्विरा करना था।

आपने उन्हें अपना देखा हुआ एक सपना बतलाया। आपने क़सम खाकर बताया कि मैंने एक भली चीज़ देखी। मैंने देखा कि कुछ गाएं ज़िब्ह की जा रही हैं और मैंने देखा कि मेरी तलवार के सिरे पर कुछ टूट-फूट है और यह भी देखा कि मैंने अपना हाथ एक सुरक्षित कवच में डाल रखा है।

फिर आपने गाय का यह स्वप्नफल बताया कि कुछ सहाबा क़त्ल किए
जाएंगे। तलवार में टूट-फूट का यह स्वप्नफल बताया कि आपके घर का कोई आदमी शहीद होगा और सुरक्षित कवच का यह स्वप्नफल बताया कि इससे मुराद मदीना शहर है।

फिर आपने सहाबा किराम के सामने रक्षात्मक रणनीति के बारे में अपनी राय पेश की कि मदीने से बाहर न निकलें, बल्कि शहर के अन्दर ही क़िलाबन्द हो जाएं। अब अगर मुश्कि अपने कैम्प में ठहरे रहते हैं, तो बे-मक्सद और बुरा ठहरना होगा और अगर मदीने में दाखिल होते हैं, तो मुसलमान गली-कूचों के नाकों पर उनसे लड़ेंगे और औरतें छतों के ऊपर से उन पर ईंट-पत्थर बरसाएंगी।

यही सही राय थी और इसी राय से अब्दुल्लाह बिन उबई (मुनाफ़िक़ों के सरदार) ने भी सहमति दिखाई, जो इस मीटिंग में खजरज के एक बड़े नुमाइन्दे की हैसियत से शरीक था। लेकिन उसकी सहमति का आधार यह न था कि सामरिक दृष्टिकोण से यह बात सही थी, बल्कि उसका मक्सद यह था कि वह लड़ाई से दूर भी रहे और किसी को इसका एहसास भी न हो। ।

लेकिन अल्लाह को कुछ और ही मंजूर था। उसने यह चाहा कि यह व्यक्ति अपने साथियों सहित पहली बार भरे बाज़ार में रुसवा हो जाए और उनके कुन व निफ़ाक़ पर जो परदा पड़ा हुआ है, वह हट जाए और मुसलमानों को अपनी सबसे कंठिन घड़ी में मालूम हो जाए कि उनकी आस्तीन में कितने सांप पल रहे हैं।

चुनांचे मान्य सहाबा की एक जमाअत ने, जो बद्र में शरीक होने से रह गई थी, बढ़कर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को मश्विरा दिया कि मैदान में तशरीफ़ ले चलें और उन्होंने अपनी इस राय पर बड़ा आग्रह किया, यहां तक कि कुछ सहाबा ने कहा, ऐ अल्लाह के रसूल सल्ल० ! हम तो इस दिन की तमन्ना किया करते थे और अल्लाह से इसकी दुआएं मांगा करते थे। अब अल्लाह ने इसका मौक़ा दिया है और मैदान में निकलने का वक़्त आ गया हैं, तो फिर आप दुश्मन के मुक़ाबले ही के लिए तशरीफ़ ले चलें। वे यह न समझें कि हम डर गए हैं।

इन अति उत्साही लोगों में खुद अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के चचा हज़रत हमज़ा बिन अब्दुल मुत्तलिब रज़ियल्लाहु अन्हु सबसे आगे थे, जो बद्र की लड़ाई में अपनी तलवार का जौहर दिखा चुके थे। उन्होंने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से अर्ज़ किया कि उस ज्ञात की क़सम ! जिसने आप पर किताब उतारी, मैं कोई खाना न खाऊंगा, यहां तक कि मदीने से बाहर अपनी तलवार के लिए उनसे दो-दो हाथ न कर लूं

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इन गर्मजोश लोगों के आग्रह पर अपनी राय छोड़ दी और आखिरी फ़ैसला यही हुआ कि मदीने से बाहर निकलकर खुले मैदान में लड़ाई लड़ी जाए।

इस्लामी फ़ौज की तर्तीब और लड़ाई के मैदान के लिए रवानगी

इसके बाद नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने जुमा की नमाज़ पढ़ाई तो वाज़ व नसीहत (उपदेश) की, जद्दोजेहद पर उभारा और बतलाया कि सब और जमाव से ही ग़लबा मिल सकता है। साथ ही हुक्म दिया कि दुश्मन से मुक़ाबले के लिए तैयार हो जाएं।

यह सुनकर लोगों में खुशी की लहर दौड़ गई ।

इसके बाद जब आपने अस्त्र की नमाज़ पढ़ी, तो उस वक़्त तक लोग जमा हो चुके थे। अवाली के लोग भी आ चुके थे। नमाज़ के बाद आप अन्दर तशरीफ़ ले गए। साथ ही अबूबक्र व उमर भी थे। उन्होंने आपके सर पर अमामा बांधा और कपड़े पहनाए। आपने नीचे-ऊपर दो कवच पहने, तलवार लटकाई और हथियार से सज कर लोगों के सामने तशरीफ़ लाए ।

लोग आपके आने के इन्तिज़ार में थे ही। लेकिन इस बीच हज़रत साद बिन मुआज़ रज़ि० और उसैद बिन हुज़ैर ने लोगों से कहा कि आप लोगों ने अल्लाह के. – रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को मैदान में निकलने पर ज़बरदस्ती तैयार किया है, इसलिए मामला आप ही के हवाले कर दीजिए।

ऐसा सुनकर सबने शर्मिंदगी महसूस की और जब आप बाहर तशरीफ़ ले आए तो आपसे अर्ज़ किया कि ऐ अल्लाह के रसूल सल्ल० ! हमें आपसे मतभेद नहीं करना चाहिए था, आपको जो पसन्द हो वही कीजिए। अगर आपको यह पसन्द है कि मदीने में रहें तो आप ऐसा ही कीजिए ।

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया, कोई नबी जब अपना हथियार पहन ले, तो मुनासिब नहीं कि उसे उतारे, यहां तक कि अल्लाह उसके दर्मियान और उसके दुश्मन के दर्मियान फ़ैसला फ़रमा दे।

इसके बाद नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़ौज को तीन हिस्सों में बांट दिया-

1. मुहाजिरों का दस्ता, इसका झंडा हज़रत मुसअब बिन उमैर अब्दरी

1. मुस्नद अहमद, नसई 3/351, हाकिम, इब्ने इस्हाक़, बुखारी ने भी इसे किताबुल एतसाम बाब 28 तर्जमतुल बाब में ज़िक्र किया है।
रज़ियल्लाहु अन्हु को दिया

2. औस क़बीले (अंसार) का दस्ता, इसका झंडा हज़रत उसैद बिन हुज़ैर रज़ियल्लाहु अन्हु को दिया।

3. खज़रज क़बीले (अंसार) का दस्ता, इसका झंडा हुबाब बिन मुन्ज़िर रज़ियल्लाहु अन्हु को दिया।

पूरी फ़ौज में कुल एक हज़ार लड़ने वाले योद्धा थे, जिनमें एक सौ कवचधारी थे और कहा जाता है कि घुड़सवार कोई भी न था । ‘

हज़रत इब्ने उम्मे मक्तूम रज़ियल्लाहु अन्हु को इस काम पर मुक़र्रर फ़रमाया कि वह मदीने के अन्दर रह जाने वालों को नमाज़ पढ़ाएंगे।

इसके बाद कूच करने का एलान फ़रमा दिया और फ़ौज उत्तर की ओर चल पड़ी। हज़रत साद बिन मुआज़ और साद बिन उबादा रज़ियल्लाहु अन्हुमा कवच पहने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के आगे-आगे चल रहे थे 1

सनीयतुल वदाअ से आगे बढ़े तो एक दस्ता नज़र आया, जो बहुत अच्छे हथियार पहने हुए था और पूरी फ़ौज से अलग-थलग था ।

आपने मालूम किया तो बतलाया गया कि ख़ज़रज के मित्र यहूदी हैं, जो मुश्किों के खिलाफ लड़ाई में शरीक होना चाहते हैं।

आपने मालूम किया, क्या ये मुसलमान हो चुके हैं ? लोगों ने कहा, नहीं।

इस पर आपने शिर्क वालों के खिलाफ़ कुन वालों की मदद लेने से इंकार कर दिया ।

फ़ौज का मुआयना

फिर आपने शेखान नाम की एक जगह पर पहुंचकर फ़ौज का मुआयना

1. इब्ने क़य्यिम ने ज़ादुल मआद 2/92 में कहा है कि पचास सवार थे। हाफ़िज़ इब्ने हजर कहते हैं कि यह भारी ग़लती है। मूसा बिन अक़बा ने पूरे विश्वास से कहा है कि मुसलमानों के साथ उहुद की लड़ाई में सिरे से कोई घोड़ा था ही नहीं। वाक़दी का बयान है कि सिर्फ़ दो घोड़े थे। एक अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास और एक अबू बुरदा रज़ियल्लाहु अन्हु के पास । (फ़त्हुल बारी 7/350) 2. इस घटना का उल्लेख इब्ने साद ने किया है। इसमें यह भी बताया गया है कि यह बनू कैनुकाअ के यहूदी थे (2/34) लेकिन यह सही नहीं है, क्योंकि बनू कैनुकाअ को
बद्र की लड़ाई के कुछ ही दिनों बाद घर से बेघर कर दिया गया था।

फ़रमाया। जो लोग छोटे या लड़ने के क़ाबिल नज़र आए, उन्हें वापस कर दिया। उनके नाम ये हैं-

1. हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर, 2. उसामा बिन जैद, 3. उसैद बिन जुहैर, 4. जैद बिन साबित, 5. जैद बिन अरक्रम, 6. उराबा बिन औस, 7. अम्र बिन हज्म, 8. अबू सईद खुदरी, 9. जैद बिन हारिसा और 10. साद बिन हुब्बा अंसारी रज़ियल्लाहु अन्हुम। इस सूची में बरा बिन आज़िब का नाम भी लिया जाता है, लेकिन सहीह बुखारी में उनकी जो रिवायत उल्लिखित है, उससे स्पष्ट होता है कि वह उहुद के मौक़े पर लड़ाई में शरीक थे।

अलबत्ता कम उम्र होने के बावजूद हज़रत राफ़ेअ बिन खदीज और समुरा बिन जुन्दुब को लड़ाई में शरीक होने की इजाज़त मिल गई। इसकी वजह यह हुई कि हज़रत राफ़ेअ बिन खदीज बड़े माहिर तीरंदाज़ थे, इसलिए उन्हें इजाज़त मिल गई ।

जब उन्हें इजाज़त मिल गई तो हज़रत समुरा बिन जुन्दुब रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा कि मैं तो राफ़ेअ से ज़्यादा ताक़तवर हूं। मैं उसे पछाड़ सकता हूं।

चुनांचे अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को इसकी ख़बर दी गई तो आपने अपने सामने दोनों से कुश्ती लड़वाई और सचमुच समुरा ने राफ़ेअ को पछाड़ दिया। इसलिए उन्हें भी इजाज़त मिल गई।


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