
हज़रत ख़ब्बाब बिन अरत” इस्लाम के शुरुआती दौर के अजीम सहाबा में से थे
उन्हें इस्लामी तारीख में बहुत इज़्ज़त और सब्र की मिसाल के तौर पर जाना जाता है, आप इस्लाम क़ुबूल करने वाले पहले 10 सहाबा में शुमार हैं
इस्लाम क़ुबूल करने से पहले वे मक्का के एक अमीर औरत
“उम्मे अन्नार” के ग़ुलाम थे
उम्मे अन्नार और क़ुरैश के लोग उन्हें बहुत सताते थे लोहे की सलाख़ें गर्म करके उनकी पीठ पर रखी जातीं, अंगारे पर लिटाया जाता लेकिन उन्होंने ईमान से मुँह नहीं मोड़ा
जब हज़रत ख़ब्बाब ने इस्लाम क़ुबूल किया तो उनकी मालकिन उम्मे अन्नार और क़ुरैश के लोग उनसे बहुत नाराज़ हुए।
उन्होंने उन्हें इस्लाम छोड़ने पर मजबूर करना चाहा, लेकिन ख़ब्बाब ने इंकार कर दिया। सज़ा के तौर पर उन्हें जला कर तपाए हुए लोहे और अंगारों पर लिटा दिया गया। इतना ज़ुल्म किया गया कि उनकी पीठ की खाल जल गई और पिघलकर हड्डी तक पहुँच गई। लेकिन उन्होंने कलिमा-ए-तौहीद से मुँह नहीं मोड़ा।
एक बार सहाबा ने रसूलुल्लाह से कहा “या रसूलल्लाह या आका, हमारे लिए दुआ क्यों नहीं करते कि अल्लाह हमें राहत दे?”
हज़रत ख़ब्बाब भी उनमें शामिल थे और उन्होंने अपनी जली हुई पीठ दिखाई।
आका व मौला ने फ़रमाया
“तुमसे पहले की उम्मतों पर इससे भी सख़्त आज़माइशें आईं। लेकिन वे कभी हक़ से पीछे नहीं हटे। अल्लाह की क़सम! यह दीन ग़ालिब होकर रहेगा, यहाँ तक कि सवार सनआ से हद्रमौत तक सफर करेगा और अल्लाह के सिवा किसी से न डरेगा
हज़रत मौला अली – के दौर-ए-ख़िलाफ़त में कूफ़ा में उनका इंतक़ाल हुआ
उन्हें कूफ़ा में दफ़न किया गया और वहां उनकी क़ब्र मशहूर है।

