अर-रहीकुल मख़्तूम  पार्ट 62

काब बिन अशरफ़ का क़त्ल

यहूदियों में यह वह आदमी था जिसे इस्लाम और मुसलमानों से बड़ी दुश्मनी और जलन थी। यह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को पीड़ा पहुंचाया करता था और आपके खिलाफ लड़ाई लड़ने की खुल्लम खुल्ला दावत देता फिरता था ।

इसका ताल्लुक़ क़बीला तै की शाखा बनू नभान से था और इसकी मां क़बीला बनी नज़ीर से थी। यह मालदार और पूंजीपति था । अरब में इसकी सुन्दरता भी बहुत मशहूर थी। यह एक विख्यात कवि भी था। इसका क़िला मदीने के दक्षिण में बनू नज़ीर की आबादी के पीछे स्थित था ।

1. इब्ने हिशाम 2/46, ज़ादुल मआद 2/91, कहा जाता है कि दासूर या ग़ौरस मुहारबी ने इसी ग़ज़वे में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को क़त्ल करने की कोशिश की थी, लेकिन सही यह है कि यह घटना एक दूसरे ग़ज़वे में घटी, देखिए सहीह बुख़ारी 2/593

इसे बद्र की लड़ाई में मुसलमानों की जीत और कुरैश के सरदारों के क़त्ल की पहली ख़बर मिली तो बेसाख्ता बोल उठा, क्या सच में ऐसा ही हुआ है ? ये तो अरब के प्रतिष्ठित लोग और लोगों के बादशाह थे, अगर मुहम्मद ने इनको मार लिया है तो धरती का पेट उसकी पीठ से बेहतर है

और जब निश्चित रूप से इस खबर का ज्ञान उसे हो गया तो अल्लाह का यह दुश्मन अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और मुसलमानों की बुराई करने और इस्लाम के दुश्मनों की तारीफ़ करने पर उतर आया और उन्हें मुसलमानों के खिलाफ़ भड़काने लगा। इससे भी उसकी भावनाएं न सन्तुष्ट हुईं तो सवार होकर कुरैश के पास पहुंचा और मुत्तलिब बिन वदाआ सहमी का मेहमान हुआ, फिर मुश्रिकों की ग़ैरत भड़काने, उनके बदले की आग तेज़ करने और उन्हें नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के खिलाफ लड़ने के लिए कविताएं कह कहकर कुरैश के उन सरदारों का नौहा व मातम शुरू कर दिया, जिन्हें बद्र के मैदान में क़त्ल किए जाने के बाद कुंएं में फेंक दिया गया था।

मक्का में उसकी मौजूदगी के दौरान अबू सुफ़ियान और मुश्रिकों ने उससे मालूम किया कि हमारा दीन (धर्म) तुम्हारे नज़दीक ज़्यादा पसन्दीदा है या मुहम्मद और उसके साथियों का ? और दोनों में से कौन-सा फ़रीक़ ज़्यादा हिदायत पाए हुए है ?

काब बिन अशरफ़ ने कहा, तुम लोग इनसे ज़्यादा हिदायत पाए हुए और बड़े हो। इसी सिलसिले में अल्लाह ने यह आयत उतारी-

‘तुमने उन्हें नहीं देखा, जिन्हें किताब का एक हिस्सा दिया गया है कि दे जिब्त और ताग़त पर ईमान रखते हैं और काफ़िरों के बारे में कहते हैं कि ये लोग ईमान वालों से बढ़कर हिदायत पाए हुए हैं।’ (4:151)

काब बिन अशरफ़ यह सब कुछ करके मदीना वापस आया, तो वहां आकर सहाबा किराम रजि० की औरतों के बारे में गन्दी कविताएं कहनी शुरू कर दीं ओर अपनी गन्दी बातों और बड़बोलों के ज़रिए बड़ी पीड़ा पहुंचाई।

यही हालात थे, जिनसे तंग आकर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया, कौन है जो काब बिन अशरफ़ से निपटे, क्योंकि उसने अल्लाह और उसके रसूल सल्ल० को पीड़ा पहुंचाई है ?

इसके जवाब में मुहम्मद बिन मस्लमा, उबाद बिन बिश, अबू नाइला (जिनका नाम सलकान बिन सलामा था और जो काब के दूध-शरीक भाई थे) हारिस बिन औस और अबू हब्स बिन जब्र ने अपनी सेवाएं प्रस्तुत की। इस छोटी-सी कम्पनी के कमांडर मुहम्मद बिन मस्लमा थे।

काब बिन अशरफ़ के क़त्ल के बारे में रिवायत का सार यह है कि जब अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने यह फ़रमाया कि काब बिन अशरफ़ से कौन निपटेगा ? क्योंकि उसने अल्लाह और उसके रसूल को पीड़ा पहुंचाई है, तो मुहम्मद बिन मस्लमा ने उठकर अर्ज़ किया, ऐ अल्लाह के रसूल सल्ल० ! मैं हाज़िर हूं। क्या आप चाहते हैं कि मैं उसे क़त्ल कर दूं?

आपने फ़रमाया, हां।

उन्होंने अर्ज़ किया, तो आप मुझे कुछ कहने की इजाजत दें ?

आपने फ़रमाया, कह सकते हो।

इसके बाद मुहम्मद बिन मस्लमा, काब बिन अशरफ़ के पास तशरीफ़ ले गए, और बोले, ‘उस शख्स ने (इशारा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ओर था) हमसे सदका तलब किया है और सच तो यह है कि उसने हमें मशक्कत में डाल रखा है।’

काब ने कहा, अल्लाह की क़सम ! अभी तुम लोग और भी उकता जाओगे।

मुहम्मद बिन मस्लमा ने कहा, अब जबकि हम उसकी पैरवी करने वाले बन ही चुके हैं, तो मुनासिब नहीं मालूम होता कि उसका साथ छोड़ दें, जब तक कि देख न लें कि उसका अंजाम क्या होता है? अच्छा, हम चाहते हैं कि आप हमें एक वसक़ (एक पैमाना) या दो वसक़ अनाज दे दें।

काब ने कहा, मेरे पास कुछ रेहन रखो |

मुहम्मद बिन मस्लमा ने कहा, आप कौन-सी चीज़ पसन्द करेंगे ? काब ने कहा, अपनी औरतों को मेरे पास रेहन रख दो।

मुहम्मद बिन मस्लमा ने कहा, भला, हम अपनी औरतें आपके पास कैसे रेहन रख दें, जबकि आप अरब के सबसे खूबसूरत इंसान हैं! उसने कहा, तो फिर अपने बेटों को ही रेहन रख दो।

मुहम्मद बिन मस्लमा ने कहा, हम अपने बेटों को कैसे रेहन रख दें। अगर ऐसा हो गया तो उन्हें गाली दी जाएगी कि यह एक वसक़ या दो वसक़ के बदले रेहन रखा गया था। यह हमारे लिए शर्म की बात है। अलबत्ता हम आपके पास हथियार रेहन रख सकते हैं।

इसके बाद दोनों में तै हो गया कि मुहम्मद बिन मस्लमा (हथियार लेकर) उसके पा आएंगे।

उधर अबू नाइला ने भी इसी तरह का क़दम उठाया, यानी काब बिन अशरफ़के पास आए, कुछ देर इधर-उधर की कविताएं सुनते-सुनाते रहे, फिर बोले, भाई इब्ने अशरफ़ ! मैं इस ज़रूरत से आया हूं, उसे कहना चाहता हूं, लेकिन उसे आप रहस्य ही समझेंगे, किसी से कहेंगे नहीं।

काब ने कहा, ठीक है, मैं ऐसा ही करूंगा।

अबू नाइला ने कहा, भाई! उस व्यक्ति (इशारा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ओर था) का आना क्या हुआ, हमारे लिए आज़माइश बन गया है। सारा अरब हमारा दुश्मन हो गया है। सबने हमें एक कमान से मारा है। हमारी राहें बन्द हो गई हैं। खानदान के खानदार बर्बाद हो रहे हैं, जानों पर बन आई है। हम और हमारे बाल, बच्चे मशक़्क़तों से चूर हैं।

इसके बाद उन्होंने भी कुछ उसी ढंग की बातें कीं, जैसी मुहम्मद बिन मस्लमा ने की थी।

बात करते-करते अबू नाइला ने यह भी कहा कि मेरे कुछ साथी हैं, जिनके विचार भी मेरे ही जैसे हैं। मैं उन्हें भी आपके पास लाना चाहता हूं। आप उनके हाथ भी कुछ बेचें और उन पर एहसान करें।

मुहम्मद बिन मस्लमा और अबू नाइला अपनी-अपनी बातों के ज़रिए जो मक्सद हासिल करना चाहते थे, उसमें कामियाब रहे, क्योंकि इस बातचीत और मामले के बाद हथियार और साथियों सहित इन दोनों के आने पर काब बिन अशरफ़ चौंक नहीं सकता था।

शुरू के इस मरहले को पूरा कर लेने के बाद 14 रबीउल अव्वल 03 हिजरी की चांदनी रात को यह छोटा-सा जत्था अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास जमा हुआ। आप बक़ीअ ग़रक़द तक उनके साथ गए, फिर फ़रमाया-

जाओ, बिस्मिल्लाह ! ऐ अल्लाह ! इनकी मदद फ़रमा ।

फिर आप अपने घर लौट आए और नमाज़ और दुआ में लग गए।

इधर यह जत्था काब बिन अशरफ़ के क़िले के दामन में पहुंचा, तो उसे अबू नाइला ने ज़रा ज़ोर से आवाज़ दी।

अवाज़ सुनकर वह उनके पास आने के लिए उठा, तो उसकी बीवी ने, (जो अभी नई नवेली दुल्हन थी) कहा, इस वक़्त कहां जा रहे हैं? ऐसी आवाज़ सुन रही हूं जिससे मानो खून टपक रहा है।

काब ने कहा, यह तो मेरा भाई मुहम्मद बिन मस्लमा और मेरा दूध का साथी अबू नाइला है ! इज़्ज़तदार आदमी को अगर नेज़े की मार की ओर बुलाया जाए,

तो उस पुकार पर भी वह जाता है। इसके बाद वह बाहर आ गया। खुशबू में बसा हुआ था और सर से खुशब की लहरें फूट रही थीं।

अबू नाइला ने अपने साथियों से कह रखा था कि जब वह आ जाएगा, तो मैं उसके बाल पकड़ कर सूंघूंगा। जब तुम देखना कि मैंने उसका सर पकड़ कर उसे काबू में कर लिया है तो उस पर पिल पड़ना और उसे मार डालना ।

चुनांचे जब काब आया तो कुछ देर बातें रहीं। फिर अबू नाइला ने कहा, इब्ने अशरफ़ ! क्यों न शेबे अजूज़ तक चलें। ज़रा आज रात बातें की जाएं।

उसने कहा, तुम लोग चाहो तो चलो।

इस पर सब लोग चल पड़े।

बीच रास्ते में अबू नाइला ने कहा, आज जैसी अच्छी खुशबू तो मैंने कभी संघी ही नहीं।

यह सुनकर काब का सीना गर्व से तन गया। कहने लगा, मेरे पास अरब की सबसे ज़्यादा खुशबू वाली औरत है।

अबू नाइला ने कहा, इजाज़त हो तो ज़रा आपका सर सूंघ लूं ? वह बोला, हां हां ।

अबू नाइला ने उसके सर में अपना हाथ डाला, फिर खुद भी सूंघा और साथियों को भी सुंघाया।

कुछ और चले, तो अबू नाइला ने कहा, भई एक बार और ।

काब ने कहा, हां, हां ।

अबू नाइला ने फिर वह हरकत की, यहां तक कि वह सन्तुष्ट

हो गया ।

इसके बाद कुछ और चले तो अबू नाइला ने फिर कहा कि भई एक बार और उसने कहा, ठीक है। 1

अब की बार अबू नाइला ने उसके सर में हाथ डालकर ज़रा अच्छी तरह

पकड़ लिया, तो बोले, ले लो अल्लाह के इस दुश्मन को 1

इतने में उस पर कई तलवारें पड़ी, लेकिन कुछ काम न दे सकीं।

यह देखकर मुहम्मद बिन मस्लमा ने झट अपनी कुदाल ली और उसके पेडू पर लगा कर चढ़ बैठे। कुदाल आर-पार हो गई और अल्लाह का यह दुश्मन वहीं ढेर हो गया।

हमले के दौरान उसने इतनी ज़बरदस्त चीख लगाई थी कि आस-पास में हलचल मच गई थी और कोई ऐसा क़िला बाक़ी न बचा था जिस पर आग नरोशन की गई हो। (लेकिन हुआ कुछ नहीं ।)

कार्रवाई के दौरान हज़रत हारिस बिन औस रज़ि० को कुछ साथियों की तलवार की नोक लग गई थी, जिससे वह घायल हो गए थे और उनके देह से खून बह रहा था। चुनांचे वापसी में जब वह जत्था हर्रा अरीज़ पहुंचा तो देखा कि हारिस साथ नहीं हैं, इसलिए सब लोग वहीं रुक गए।

थोड़ी देर बाद हारिस भी उनके पदचिह्नों को देखते हुए आ पहुंचे। वहां से लोगों ने उन्हें उठा लिया और बक़ीअ ग़रक़द पहुंचकर इस ज़ोर का नारा लगाया कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सललम को भी सुनाई पड़ा।

आप समझ गए कि उन लोगों ने उसे मार लिया है। चुनांचे आपने भी अल्लाहु अक्बर कहा ।

फिर जब ये लोग आपकी खिदमत में पहुंचे, तो आपने फ़रमाया, ये चेहरे कामियाब रहें ।

उन लोगों ने कहा, आपका चेहरा भी ऐ अल्लाह के रसूल ! और इसके साथ ही उस ताग़त (उद्दंड बैरी) का सर आपके सामने रख दिया।

आपने उसके क़त्ल पर अल्लाह के गुणगान किए और हारिस के घाव पर अपना थूक लगा दिया, जिससे वह चंगे हो गए और आगे कभी तकलीफ़ न हुई।’

इधर यहूदियों को जब अपने सरदार काब बिन अशरफ़ के क़त्ल का इल्म हुआ तो उनके हठधर्म और जिद्दी दिलों में रौब की लहर दौड़ गई। उनकी समझ में आ गया कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जब यह महसूस कर लेंगे कि अम्न व अमान के साथ खिलवाड़ करने वालों, हंगामे और बेचैनी पैदा करने वालों और वचन को पूरा न करने वालों पर नसीहत काम नहीं कर रही है, तो आप ताक़त के इस्तेमाल से भी न चूकेंगे। इसलिए उन्होंने अपने इस तागूत के दुश्मन पर चूं न किया, बल्कि एकदम दम साधे पड़े रहे। वचन के पूरा करने का प्रदर्शन किया और हिम्मत हार बैठे, यानी सांप तेज़ी के साथ अपने बिलों में जा घुसे।

इस तरह एक मुद्दत तक के लिए अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मदीना से बाहर पेश आने वाले खतरों का सामना करने के लिए फ़ारिग़ हो गए और मुसलमान इन बहुत से अन्दरूनी झंझटों के बोझ से बच गए जिनकी आशंका उन्हें हो रही थी और जिनकी गन्ध वे कभी-कभी सूंघते रहते थे ।

1. इस घटना का विवरण इब्ने हिशाम 2/51-57, सहीह बुखारी, 1/341-425, 2/577, सुनने अबू दाऊद मय औनुल माबूद 2/42-43, और ज़ादुल मआद 2/91 से लिया गया है।