अर-रहीकुल मख़्तूम  पार्ट 60

. ग़ज़वा बनी क़ैनुलाअ

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मदीना तशरीफ़ लाने के बाद यहूदियों के साथ जो समझौता किया था, उसकी धाराओं का उल्लेख पिछले पृष्ठों में हो चुका है। अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पूरी कोशिश और ख्वाहिश थी कि इस समझौते में जो कुछ तै पा गया है, वह लागू रहे। चुनांचे मुसलमानों की ओर से कोई ऐसा क़दम उठाया नहीं गया जो उस

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समझौते की किसी एक धारा के खिलाफ़ हो ।

लेकिन यहूदी जिनकी तारीख धोखा, खियानत और वायदा खिलाफी से भरी हुई है, वे बहुत जल्द अपने पुराने स्वभाव की ओर पलट गए और मुसलमानों के अन्दर लगाई बुझाई, षड्यंत्र, लड़ाने-भिड़ाने और हंगामा और बेचैनी पैदा करने की कोशिशें शुरू कर दीं। लगे हाथों एक मिसाल भी सुनते चलिए।

यहूदियों की मक्कारी का एक नमूना

इब्ने इस्हाक़ का बयान है कि बूढ़ा यहूदी शाश बिन कैस, जो क़ब्र में पांव लटकाए हुए था, बड़ा ज़बरदस्त काफ़िर था और मुसलमानों से ज़बरदस्त दुश्मनी और जलन रखता था, एक बार सहाबा किराम की एक मज्लिस के पास से गुज़रा, जिसमें औस व खज़रज दोनों ही क़बीले के लोग बैठे आपस में बातें कर रहे थे। उसे यह देखकर कि अब उनके अन्दर अज्ञानता-युग की आपसी दुश्मनी की जगह इस्लाम की मुहब्बत और भाईचारा ने ले लिया है और उनकी पुरानी रंजिशों का खात्मा हो गया है, बड़ा रंज हुआ, कहने लगा-

‘ओह ! इस इलाक़े में बनूक़ैला के लोग एक हो गए हैं, ख़ुदा की क़सम ! इनके मिलन के बाद तो हमारा यहां गुज़र नहीं।’

चुनांचे उसने एक नवजवान यहूदी को, जो उसके साथ था, हुक्म दिया कि उनकी सभाओं में जाए और उनके साथ बैठ कर फिर बुआस की लड़ाई और उससे पहले के हालात का वर्णन करे और इस सिलसिले में दोनों ओर से जो काव्य कहा गया है, कुछ पद उनमें से पढ़कर सुनाए। उस यहूदी ने ऐसा ही किया ।

उसके नतीजे में औस व खज़रज में तू-तू मैं-मैं शुरू हो गई। लोग झगड़ने लगे और अपने को बड़ा बताने लगे, यहां तक कि दोनों क़बीलों के एक-एक आदमी ने घुटनों के बल बैठकर रद्द व कद्द शुरू कर दी, फिर एक ने अपने सामने के व्यक्ति से कहा, अगर चाहो, तो हम इस लड़ाई को फिर जवान करके पलटा दें। मक़सद यह था कि हम इस आपसी लड़ाई के लिए फिर तैयार हैं, जो इससे पहले लड़ी जा चुकी है।

इस पर दोनों फ़रीक़ को ताव आ गया और बोले, चलो हम तैयार हैं। हर्रा में मुक़ाबला होगा। हथियार हथियार !

और लोग हथियार लेकर हर्रा की ओर निकल पड़े। क़रीब था कि खूनी लड़ाई हो जाती, लेकिन अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को इसकी खबर हो गई। आप अपने मुहाजिर सहाबा को साथ लेकर झट उनके पास पहुंचे और फ़रमाया-

‘ऐ मुसलमानों की जमाअत ! अल्लाह ! अल्लाह ! क्या मेरे रहते हुए जाहिलियत की पुकार, और वह भी इसके बाद कि अल्लाह तुम्हें इस्लाम की हिदायत दे चुका है और इसके ज़रिए से तुमसे जाहिलियत का मामला काट कर और तुम्हें कुन से निजात दिलाकर तुम्हारे दिलों को आपस में जोड़ चुका है।’

आपकी नसीहत सुनकर सहाबा को एहसास हुआ कि उनकी हरकत शैतान का एक झटका और दुश्मन की एक चाल थी। चुनांचे वे रोने लगे और औस व खज़रज के लोग एक दूसरे से गले मिले, फिर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ फ़रमांबरदार बनकर इस हालत में वापस आए कि अल्लाह ने उनके दुश्मन शास बिन क़ैस की मक्कारी की आग बुझा दी थी।

यह है एक नमूना उन हंगामों और बेचैनियों का, जिन्हें यहूदी मुसलमानों के अन्दर पैदा करने की कोशिश करते थे और यह है एक मिसाल उस रोड़े की, जिसे ये यहूदी इस्लामी दावत के रास्ते में अटकाते रहते थे। इस काम के लिए उन्होंने विभिन्न योजनाएं बना रखी थीं। वे झूठे प्रोपगंडे करते थे, सुबह मुसलमान होकर शाम को फिर काफ़िर हो जाते थे, ताकि कमज़ोर और सादा दिल क़िस्म के लोगों के दिलों में शक व शुबहे के बीज बो सकें ।

किसी के साथ माली ताल्लुक़ होता और वह मुसलमान हो जाता तो उस पर खाने-कमाने की राहें तंग कर देते। चुनांचे अगर उसके ज़िम्मे कुछ बक़ाया होता, तो सुबह व शाम तक़ाज़े करते, और अगर खुद उस मुसलमान का कुछ बक़ाया उन पर होता, तो उसे अदा न करते, बल्कि ग़लत तरीक़े पर खा जाते और कहते कि तुम्हारा क़र्ज़ तो हमारे ऊपर उस वक़्त था, जब तुम अपने बाप-दादा के दीन पर थे, लेकिन अब जबकि तुमने अपना दीन बदल दिया है, तो अब हमारे और तुम्हारे लिए कोई राह नहीं 12

स्पष्ट रहे कि यहूदियों ने ये सारी हरकतें बद्र से पहले ही शुरू कर दी थीं और इस समझौते के होते हुए शुरू कर दी थीं जो उन्होंने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से कर रखा था, मगर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और सहाबा किराम रज़ि० का यह हाल था कि वे इन यहूदियों की हिदायत पाने की उम्मीद में इन सारी बातों पर सब करते जा रहे

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2. टीकाकारों ने नमूने दिए हैं। सूरः आले इम्रान आदि की व्याख्या में उनकी इस क़िस्म की हरकतों के

थे। इसके अलावा यह भी अभिप्रेत था कि इलाक़े में सुख-शान्ति का वातावरण बना रहे।

बनू क़ैनुलाअ का वचन भंग

जब यहूदियों ने देखा कि अल्लाह ने बद्र के मैदान में मुसलमानों की ज़बरदस्त मदद फ़रमाकर उन्हें इज़्ज़त और दबदबा दिया है और उनका रौब व दबदबा दूर व नज़दीक हर जगह रहने वालों के दिलों में बैठ गया है, तो उनकी दुश्मनी और जलन की हांडी फूट पड़ी। उन्होंने खुल्लम खुल्ला दुश्मनी दिखाई और एलानिया बग़ावत और पीड़ा पहुंचाने पर उतर आए।

इनमें सबसे ज़्यादा दुश्मनी दिखाने वाला और सबसे बड़ा दुष्ट काब बिन अशरफ़ था, जिसका ज़िक्र आगे आ रहा है। इसी तरह तीनों यहूदी क़बीलों में सबसे ज़्यादा बदमाश बनू क़ैनुकाअ का क़बीला था। ये लोग मदीना के अन्दर ही रहते थे और उनका मुहल्ला इन्हीं के नाम से जाना जाता था। ये लोग पेशे के लिहाज़ से सोनार, लोहार और बरतन बनाने वाले थे। इन पेशों की वजह से इनके हर आदमी के पास भारी मात्रा में लड़ाई का सामान मौजूद था। इनके लड़ने वाले मर्दों की तायदाद सात सौ थी और ये मदीने के सबसे बहादुर यहूदी थे। इन्हीं ने सबसे पहले समझौता भंग किया। इसका विवरण इस तरह है-

जब अल्लाह ने बद्र के मैदान में मुसलमानों को विजय दिलाई, तो उनकी सरकशी और बढ़ गई। उन्होंने अपनी शरारतों, हरकतों और लड़ाने-भिड़ाने की कोशिशों में तेज़ी पैदा कर ली और हंगामा मचाना शुरू कर दिया।

चुनांचे जो मुसलमान उनके बाज़ार में जाता, उसकी वे खिल्ली उड़ाते और उसे कष्ट पहुंचाते, यहां तक कि मुसलमान औरतों से भी छेड़छाड़ शुरू कर दी।

इसी तरह जब स्थिति अधिक संगीन हो गई और उनकी सरकशी बहुत ज़्यादा बढ़ गई, तो अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उन्हें जमा फ़रमाकर वाज़ व नसीहत की, और सही रास्ते की दावत देते हुए जुल्म व बग़ावत के अंजाम से डराया, लेकिन इससे उनकी बदमाशी और अहं में कुछ और बढ़ोत्तरी ही हो गई ।

चुनांचे इमाम अबू दाऊद वग़ैरह ने हज़रत इब्ने अब्बास रज़ि० से रिवायत की है कि जब अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कुरैश को बद्र के दिन परास्त किया और आप मदीना तशरीफ़ लाए तो क़ैनुकाअ के बाज़ार में यहूदियों को जमा किया और फ़रमाया-

‘ऐ यहूदियो ! इससे पहले इस्लाम कुबूल कर लो कि तुम पर भी वैसी ही

मार पड़े जैसी कुरैश पर पड़ चुकी है।’

उन्होंने कहा, ऐ मुहम्मद ! तुम्हें इस कारण भ्रम में नहीं पड़ना चाहिए कि तुम्हारा टकराव कुरैश के अनाड़ी और नातजुर्बेकार लोगों से हुआ था और तुमने उन्हें मार लिया। अगर तुम्हारी लड़ाई हमसे हो गई तो पता चल जाएगा कि हम मर्द हैं और हमारे जैसे लोगों से तुम्हें पाला न पड़ा था। इसके जवाब में अल्लाह ने यह आयत उतारी-

‘इन काफ़िरों से कह दो कि बहुत जल्द मलूब किए जाओगे और जहन्नम की ओर हांके जाओगे और वह बुरा ठिकाना है। जिन दो गिरोहों में टक्कर हुई, उनमें तुम्हारे लिए निशानी है। एक गिरोह अल्लाह की राह में लड़ रहा था और दूसरा काफ़िर था। ये उनको अपनी आंखों देखने में दोगुना देख रहे थे और अल्लाह अपनी मदद के ज़रिए, जिसकी ताईद चाहता है, करता है। इसके अन्दर यक़ीनन नज़र वालों के लिए सबक़ है।’ (3/12-13) 1

बहरहाल बनू कैनुकाअ ने जो जवाब दिया था, उसका मलतब लड़ाई का साफ़-साफ़ एलान था, लेकिन नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपना गुस्सा पी लिया और सब किया। मुसलमानों ने भी सब किया और आने वाले हालात का इन्तिज़ार करने लगे ।

इधर इस नसीहत के बाद बनू क़ैनुलाअ के यहूदियों की जुर्रत और बढ़ गई। चुनांचे थोड़े ही दिन गुज़रे थे कि उन्होंने मदीने में बलवा और हंगामा खड़ा का दिया, जिसके नतीजे में उन्होंने अपने ही हाथों अपनी क़ब्र खोद ली और अपने ऊपर जीने का रास्ता बन्द कर लिया ।

इब्ने हिशाम ने अबू औन से रिवायत की है कि एक अरब औरत बनू क़ैनुलाअ के बाज़ार में दूध लेकर आई और बेचकर (किसी ज़रूरत के लिए) एक सोनार के पास, जो यहूदी था, बैठ गई। यहूदियों ने उसका चेहरा खोलवाना चाहा, मगर उसने इंकार कर दिया।

इस पर उस सोनार ने चुपके से उसके कपड़े का किनारा उसकी पीठ पर गांठ दिया और उसे कुछ ख़बर न हुई। जब वह उठी, तो उसकी शर्मगाह खुल गई और यहूदियों ने ज़ोर का ठहाका लगाया ।

इस पर उस औरत ने चीख-पुकारं मचाई, जिसे सुनकर एक मुसलमान ने उस सोनार पर हमला किया और उसे मार डाला। जवाब में यहूदियों ने उस मुसलमान पर हमला करके उसे मार डाला।

1. सुनने अबी दाऊद मय औनुल माबूद 3/115, इब्ने हिशाम 1/552
इसके बाद मक्तूल (क़त्ल किए गए) मुसलमान के घरवालों ने शोर मचाया और यहूदियों के खिलाफ मुसलमानों से फ़रियाद की। नतीजा यह हुआ कि मुसलमान और बनू क्रैनुकाअ के यहूदियों में बलवा हो गया। 1

घेराव, समर्पण और देश निकाला

इस घटना के बाद अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के सब का पैमाना लबालब भर गया। आपने मदीने का इन्तिज़ाम अबू लुबाबा बिन अब्दुल मंज़िर को सौंपा और खुद हज़रत हमज़ा बिन अब्दुल मुत्तलिब के हाथ में मुसलमानों का झंडा देकर अल्लाह की फ़ौज के साथ बनू क़ैनुकाअ का रुख किया।

उन्होंने आपको देखा तो गढ़ियों में क़िलाबन्द हो गए। आपने उनका ज़ोरदार घेराव कर लिया। यह जुमा का दिन था और शव्वाल 03 हिजरी की 15 तारीख । पन्द्रह दिन तक यानी जीक़ादा चांद के निकलने तक, घेराव जारी रहा। फिर अल्लाह ने उनके दिलों में रौब डाल दिया।

चुनांचे बनू क़ैनुलाअ ने इस शर्त पर हथियार डाल दिए कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम इनकी जान व माल, आल-औलाद और औरतों के बारे में जो फ़ैसला करेंगे, उन्हें मंजूर होगा। इसके बाद आपके हुक्म से इन सबको बांध लिया गया।

लेकिन यही मौका था जब अब्दुल्लाह बिन उबई ने अपना मुनाफ़िक़ाना पार्ट अदा किया। उसने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से पूरा ज़ोर देकर और बार-बार कहा कि आप इनके बारे में माफ़ी का हुक्म करें। चुनांचे उसने कहा, ऐ मुहम्मद ! मेरे दोस्तों के बारे में एहसान कीजिए। स्पष्ट रहे कि बनू कैनुकाअ खज़रज के मित्र थे। लेकिन अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने देर की। इस पर उसने अपनी बात दोहराई।

मगर इस बार आपने उससे अपना रुख फेर लिया। लेकिन उस व्यक्ति ने आपके कुरते के गरेबान में हाथ डाल दिया।

आपने फ़रमाया, मुझे छोड़ दो और ऐसे ग़ज़बनाक हुए कि लोगों ने गुस्से की परछाइयां आपके चेहरे पर देखीं।

फिर आपने फ़रमाया, तुझ पर अफ़सोस, मुझे छोड़ ।

लेकिन यह मुनाफ़िक़ अपना आग्रह करता रहा और बोला, नहीं, खुदा की क़सम ! मैं आपको नहीं छोडूंगा, यहां तक कि आप मेरे मित्रों के बारे में एहसान

इब्ने हिशाम, 2/47-48


फ़रमा दें। चार सौ खुले जिस्म के जवान और तीन सौ कवचधारी, जिन्होंने मुझे लाल व काले से बचाया था, आप उन्हें एक ही सुबह में काट कर रख देंगे ? अल्लाह की क़सम ! मैं ज़माने की चाल का ख़तरा महसूस कर रहा हूं।

आखिरकार अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उस मुनाफिक के साथ (जिसके इस्लाम ज़ाहिर करने पर अभी कोई एक ही महीना गुज़रा था) रियायत का मामला किया और उसके लिए इन सबकी जान बख्शी कर दी। अलबत्ता उन्हें हुक्म दिया कि वे मदीने से निकल जाएं और आपके पड़ोस में न रहें।

चुनांचे ये सब अज़रआत शाम की ओर चले गए और थोड़े ही दिनों बाद वहां अक्सर की मौत वाक़े हो गई।

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उनके माल ज़ब्त कर लिए, जिनमें से तीन कमानें, दो कवच, तीन तलवारें और तीन नेज़े अपने लिए चुन लिए और ग़नीमत के माल में से पांचवां हिस्सा निकाला। ग़नीमत का माल जमा करने का काम मुहम्मद बिन मुस्लिमा ने अंजाम दिया।

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