
Nabi Paak Ki Akhri Wasiyat | Mery Baad 2 Khulafa | Allama Yaseen Qadri



मुबारकबाद पेश करने वाले
इसके बाद जब आप रौहा नामी स्थान पर पहुंचे, तो उन मुसलमान सरदारों से मुलाक़ात हुई जो दोनों दूतों से जीत की खबर सुनकर आपका स्वागत करने और आपको जीत पर मुबारकबाद पेश करने के लिए मदीना से निकल पड़े थे ।
जब उन्होंने मुबारकबाद पेश की, तो हज़रत सलमा बिन सलामा रज़ि० ने कहा, आप लोग हमें किस बात की मुबारकबाद दे रहे हैं। हमारा टकराव तो ख़ुदा की क़सम, गंजे सर के बूढ़ों से हुआ था जो ऊंट जैसे थे ।
इस पर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मुस्करा कर फ़रमाया, ‘भतीजे ! यही लोग क़ौम के सरदार थे।’
इसके बाद हज़रत उसैद बिन हुज़ैर रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहना शुरू किया-
‘ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ! अल्लाह ही के लिए हैं तमाम तारीफें कि उसने आपको कामियाबी दी और आपकी आंखों को ठंडक बख्शी । खुदा की क़सम ! मैं यह समझते हुए बद्र से पीछे न रहा था कि आपका टकराव दुश्मन से होगा। मैं तो समझ रहा था कि बस क़ाफ़िले का मामला है और अगर मैं यह समझता कि दुश्मन से वास्ता पड़ेगा, तो मैं पीछे न रहता।’
अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया, सच कहते हो ।
इसके बाद आप मदीना मुनव्वरा में इस तरह विजयी सेना के रूप में दाखिल हुए कि शहर और आस-पास के सारे दुश्मनों पर आपकी धाक बैठ चुकी थी । इस विजय के कारण मदीना के बहुत से लोग इस्लाम की गोद में आ गए और इसी मौके पर अब्दुल्लाह बिन उबई और उसके साथियों ने भी दिखावे के लिए इस्लाम कुबूल किया ।
आपके मदीना आने के एक दिन बाद क़ैदियों का आना हुआ, आपने उन्हें सहाबा किराम रजि० में बांट दिया और उनके साथ सद्व्यवहार की वसीयत फ़रमाई । इस वसीयत का नतीजा यह था कि सहाबा किराम रज़ि० खुद खाते थे, लेकिन क़ैदियों को रोटी पेश करते थे। (स्पष्ट रहे कि मदीने में खजूर बे-हैसियत चीज़ थी और रोटी ज़्यादा क़ीमती
क़ैदियों की समस्या
जब अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मदीना पहुंच गए तो आपने सहाबा किराम रिज्वानुल्लाहि अलैहिम अजमईन से क़ैदियों के बारे में मश्विरा किया। हज़रत अबू बक्र रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा, ऐ अल्लाह के रसूल सल्ल० ! ये लोग चचेरे भाई और कुंबे-क़बीले के लोग हैं। मेरी राय यह है कि आप इनसे फ़िदया ले लें । इस तरह जो कुछ हम लेंगे, वह कुफ़्फ़ार के खिलाफ़ हमारी ताक़त का ज़रिया होगा और यह भी उम्मीद की जाती है कि अल्लाह उन्हें हिदायत दे दे और वे हमारे बाज़ू बन जाएं।
अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु तुम्हारी क्या राय है ? अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया, इब्ने खत्ताब !
उन्होंने कहा, खुदा की क़सम, मेरी वह राय नहीं है जो अबबक्र की है। मेरी राय है कि आप फ़्लां को, जो हज़रत उमर रज़ि० का क़रीबी था, मेरे हवाले करें और मैं उसकी गरदन मार दूं । अक़ील बिन अबी तालिब को अली के हवाल करें वह उसकी गरदन मारें और फ़्लां को जो हमज़ा का भाई है, हमज़ा के हवाले करें और वह उसकी गरदन मार दें, यहां तक कि अल्लाह को मालूम हो जाए कि हमारे दिलों में मुश्किों के लिए नर्म कोना नहीं है और ये लोग मुश्किों के बड़े और सरदार हैं।
हज़रत उमर रज़ि० का बयान है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अबूबक्र रज़ियल्लाहु अन्हु को बात पसन्द फ़रमाई और मेरी बात पसन्द नहीं फ़रमाई, चुनांचे क़ैदियों से फ़िदया लेना तै कर लिया गया।
इसके बाद जब अगला दिन आया, तो मैं सुबह ही सुबह अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और अबूबक्र रज़ि० की खिदमत में हाज़िर हुआ। वे दोनों रो रहे थे। मैंने कहा, ऐ अल्लाह के रसूल सल्ल० ! मुझे बताएं आप और आपके साथी क्यों रो रहे हैं? अगर मुझे भी रोने की वजह मालूम हुई तो रोऊंगा और न मालूम हो सकी तो आप लोगों के रोने की वजह से रोऊंगा।
अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया, फ़िदया कुबूल करने की वजह से तुम्हारे लोगों पर जो चीज़ पेश की गई है, उसी की वजह से रो रहा हूं।’
और आपने एक क़रीबी पेड़ की ओर इशारा करते हुए फ़रमाया, मुझ पर इनका अज़ाब इस पेड़ से भी ज़्यादा क़रीब पेश किया गया। और अल्लाह ने
1. तारीख उमर बिन खत्ताब, इब्ने जौज़ी, पृ० 36
यह आयत उतारी-
‘किसी नबी के लिए सही नहीं कि उसके पास क़ैदी हों, यहां तक कि वह धरती अच्छी तरह खरेज़ी कर ले। तुम लोग दुनिया का सामान चाहते हो और अल्लाह आखिरत चाहता है और अल्लाह ग़ालिब और हिक्मत वाला है। अगर अल्लाह की ओर से लिखी चीज़ पहले न आ चुकी होती तो तुम लोगों ने जो कुछ लिया है, उस पर तुमको सख्त अज़ाब पकड़ लेता ।’ (8: 67-68)
और अल्लाह की ओर से जो लिखा पहले आ चुका था, कहा जाता है कि वह यह था-
‘मुश्रिकों को लड़ाई में क़ैद करने के बाद या तो एहसान करो या फ़िदया ले लो।’ (474)
चूंकि इस लिखे में कैदियों से फ़िदया लेने की इजाज़त दी गई है, इसलिए सहाबा किराम को फ़िदया कुबूल करने पर अज़ाब नहीं दिया गया, बल्कि सिर्फ़ डांटा गया और डांट भी इसलिए कि उन्होंने कुफ़्फ़ार को अच्छी तरह कुचलने से पहले क़ैदी बना लिया था और कहा जाता है कि उपरोक्त आयत बाद में उतरी और जो लिखा अल्लाह की ओर से पहले आ चुका था, उससे तात्पर्य अल्लाह का यह फ़ैसला है कि इस उम्मत के लिए ग़नीमत का माल हलाल है
बहरहाल चूंकि हज़रत अबूबक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु की राय के मुताबिक़ मामला तै हो चुका था, इसलिए मुश्किों से फ़िदया लिया गया। फ़िदए की मात्रा चार हज़ार और तीन हज़ार दिरहम से लेकर एक हजार दिरहम तक थी। मक्के के लोग लिखना-पढ़ना भी जानते थे, जबकि मदीना के लोग लिखना पढ़ना नहीं जानते थे। इसलिए यह भी तै किया गया कि जिसके पास फ़िदया न हो, वह मदीना के दस-दस बच्चों को लिखना-पढ़ना सिखा दे । जब ये बच्चे अच्छी तरह सीख जाएं, तो यही उसका फ़िदया होगा।
अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कई क़ैदियों पर एहसान भी फ़रमाया और उन्हें फ़िदया लिए बग़ैर भी रिहा कर दिया। इस सूची में मुत्तलिब बिन हंतब, सैफ़ी बिन अबी रिफ़ाआ और अबू उज़्ज़ा जुम्ही के नाम आते हैं। आखिरी नाम को अगली लड़ाई में क़ैद और क़त्ल किया गया। (विस्तृत विवेचन आगे आ रहा है)
आपने अपने दामाद अबुल आस को इस शर्त पर बिना फ़िदया छोड़ दिया कि वह हज़रत ज़ैनब रज़ि० की राह न रोकेंगे। इसकी वजह यह हुई कि हज़रत ज़ैनब रज़ि० ने अबुल आस के फ़िदए में कुछ माल भेजा था, जिसमें एक हार भी
था। यह हार हक़ीक़त में हज़रत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा का था और जब उन्होंने हज़रत ज़ैनब को अबुल आस के पास विदा किया था, तो यह हार उन्हें दे दिया था।
अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उसे देखा तो आपका दिल भर आया और आपने सहाबा किराम रजि० से इजाज़त चाही कि अबुल आस को छोड़ दें। सहाबा किराम ने इसे पूरी रज़ामंदी के साथ कुबूल कर लिया और अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अबुल आस को इस शर्त पर छोड़ दिया कि वह हज़रत ज़ैनब रजि० की राह छोड़ देंगे। चुनांचे हज़रत अबुलआस ने उनका रास्ता छोड़ दिया और हज़रत ज़ैनब रजि० ने हिजरत फ़रमाई ।
अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हज़रत ज़ैद बिन हारिसा और एक अंसगी सहाबा को भेज दिया कि तुम दोनों बल याजज में रहना। जब ज़ैनब रजि० तुम्हारे पास से गुज़रें तो साथ हो लेना ।
ये दोनों तशरीफ़ ले गए और हज़रत ज़ैनब रजि० को साथ लेकर मदीना वापस आए।
हज़रत ज़ैनब रज़ि० की हिजरत की घटना बड़ी लम्बी और दुखद है ।
क़ैदियों में सुहैल बिन अम्र भी था जो बड़ा ज़ोरदार वक्ता था। हज़रत उमर रज़ि० ने कहा, ‘ऐ अल्लाह के रसूल सल्ल० ! सुहैल बिन अम्र के अगले दो दांत तुड़वा दीजिए। उसकी ज़ुबान लिपट जाया करेगी और वह किसी जगह वक्ता बनकर आपके खिलाफ़ कभी खड़ा न हो सकेगा, लेकिन अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उनकी यह विनती ठुकरा दी, क्योंकि यह अंग-भंग की श्रेणी में आता है, जिस पर क़ियामत के दिन अल्लाह की ओर से पकड़ का खतरा था ।
हज़रत साद बिन नोमान रज़ियल्लाहु अन्हु उमरा करने के लिए निकले, तो उन्हें अबू सुफ़ियान ने क़ैद कर लिया। अबू सुफ़ियान का बेटा अम्र भी बद्र की लड़ाई के क़ैदियों में था। चुनांचे अम्र को अबू सुफ़ियान के हवाले कर दिया गया और उसने हज़रत साद रज़ि० को छोड़ दिया।
क़ुरआन की समीक्षा
इसी लड़ाई के ताल्लुक़ से सूरः अनफाल उतरी जो वास्तव में उस लड़ाई पर अल्लाह की एक समीक्षा है, (अगर यह अर्थ-निरूपण सही हो) और यह समीक्षा
बादशाहों और कमांडरों आदि की विजयी समीक्षाओं से बिल्कुल ही अलग है इस समीक्षा की कुछ बातें थोड़े में इस तरह हैं-
अल्लाह ने सबसे पहले मुसलमानों का ध्यान उन कोताहियों और नैतिक त्रुटियों की ओर खींचा जो उनमें कुछ बाक़ी रह गई थीं और जिनमें से कुछ इस मौक़े पर ज़ाहिर हुई थीं। इस तवज्जोह देने का मक़सूद यह था कि मुसलमान अपने आपको इन कमज़ोरियों से पाक-साफ़ करके अपने को पूर्ण कर लें।
इसके बाद इस जीत में अल्लाह की जो ताईद और ग़ैबी मदद शामिल थी, उसका उल्लेख किया। इससे अभिप्रेत यह था कि मुसलमान अपनी बहादुरी के धोखे में न आ जाएं, जिसके नतीजे में तबीयतों में दंभ और अभिमान पैदा हो जाता है, बल्कि वे अल्लाह पर भरोसा करें और उसके और पैग़म्बर के आज्ञाकारी बने रहें ।
फिर उन उच्च उद्देश्यों का उल्लेख किया गया है, जिनके लिए अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इस भयानक और खूनी लड़ाई में क़दम रखा था और इसी सिलसिले में उस चरित्र व आचरण की निशानदेही की गई है, जो लड़ाइयों में जीत की वजह बनते हैं।
फिर मुश्किों और मुनाफ़िक़ों को और यहूदियों और लड़ाई के क़ैदियों को सम्बोधित करके ऐसा ज़ोरदार उपदेश दिया गया है कि वे सत्य के सामने झुक जाएं और उसके पाबन्द बन जाएं।
इसके बाद मुसलमानों को ग़नीमत के माल के मामले में सम्बोधित करते हुए उन्हें इस समस्या के तमाम मौलिक नियम और सिद्धान्त बताए गए हैं।
फिर इस मरहले पर इस्लामी दावत को लड़ाई और समझौता के जिन क़ानूनों की ज़रूरत थी उनको स्पष्ट किया गया, ताकि मुसलमानों की लड़ाई और अज्ञानियों की लड़ाई में अन्तर किया जा सके और चरित्र व आचरण के मैदान में मुसलमानों को श्रेष्ठता मिली रहे और दुनिया अच्छी तरह जान ले कि इस्लाम मात्र एक सिद्धान्त नहीं है, बल्कि वह जिन नियमों और सिद्धान्तों की दावत देता है, उनके मुताबिक़ अपने मानने वालों की व्यावहारिक ट्रेनिंग भी करता है।
फिर इस्लामी राज्य के नियमों की कई धाराएं बयान की गई हैं, जिनसे स्पष्ट होता है कि इस्लामी राज्य की सीमाओं में बसने वाले मुसलमानों और उस सीमा से बाहर रहने वाले मुसलमानों में क्या अन्तर है।
भिन्न-भिन्न घटनाएं
सन् 02 हि० में रमज़ान का रोज़ा और सदक़ा-ए-फ़ित्र फ़र्ज़ किया गया और
अर-रहीकुल मख़्तूम
ज़कात के विभिन्न निसाबों का निर्धारण किया गया। सदक़ा-ए-फ़ित्र के फ़र्ज़ होने और ज़कात के निसाब के निर्धारण से उस बोझ और परिश्रम में बड़ी कमी आ गई. जिससे धनहीन मुहाजिरों की एक बड़ी तायदाद दोचार थी, क्योंकि वह रोज़ी की चाह में ज़मीन में दौड़-धूप की संभावनाओं से वंचित थी।
फिर बड़ा ही सुन्दर संयोग यह था कि मुसलमानों ने अपनी ज़िंदगी में पहली ईद जो मनाई, वह शव्वाल सन् 02 की ईद थी जो बद्र की लड़ाई की खुली जीत के बाद पेश आई। कितनी प्रिय थी वह मुबारक ईद, जिसका सौभाग्य अल्लाह ने मुसलमानों के सर पर विजय का मुकुट रखने के बाद दिया था और कितना ईमान बढ़ाने वाला था ईद का दृश्य, जिसे मुसलमानों ने अपने घरों से निकल कर अल्लाहु अक्बर अल्लाहु अक्बर की आवाज़ ऊंची करते हुए मैदान में जाकर अदा किया था।
उस वक़्त हालत यह थी कि मुसलमानों के दिल अल्लाह की दी हुई नेमतों और उसकी दी हुई ताईद की वजह से उसकी रहमत और रज़ामंदी के शौक़ से भरे पुरे और उसकी ओर चाहत की भावनाओं से ओत-प्रोत थे। और उनके माथे उनका शुक्र अदा करने के लिए झुके हुए थे। अल्लाह ने इस नेमत का उल्लेख इस आयत में किया है- –
‘और याद करो जब तुम थोड़े थे, ज़मीन में कमज़ोर बनाकर रखे गए थे, डरते थे कि लोग तुम्हें उचक ले जाएंगे, पस उसने तुम्हें ठिकाना दे दिया और अपनी मदद के ज़रिए तुम्हारी ताईद की और तुम्हें पाकीज़ा चीज़ों से रोज़ी दी, ताकि तुम लोग उसका शुक्र अदा करो।’ (8-26)