
28 सफ़र शहादत ईमाम हसन अलैहिस्सलाम
बनु उमय्या का इमाम हसन के जनाजे पर तीर चलाना और दफ़न के वक्त इख्तिलाफ करना 🔥
✍️ अहले सुन्नत की मोतबर किताबों में जहां एक तरफ इमाम हसन की शहादत का जिक्र है वहीं अहले सुन्नत के मोतबर किताबों में दूसरी ओर इमाम हसन के जनाजे के दफ़न होने पर जो इख्तिलाफ और झगड़े का माहौल बना- वो भी लिखा है।
किताबों में यह है कि इमाम हसन के ख्वाहिश के मुताबिक जब इमाम हसन को नबी करीम सल्ल० के साथ दफन करना चाहा तो बनी उमय्या ने दफ़न ना होने दिया तो आखिरकार लड़ाई झगडे का माहौल बन गया..फिर जब झगड़ा फसाद का माहौल बना तो इमाम हसन को वहां से वापिस ले जाकर दूसरी जगह दफन किया गया।
इस मामले में दो जगहों पर इख्तिलाफ मिलता है कि-
जब लड़ाई झगड़े का माहौल बना तो इमाम हसन के गिरोह पर मुखालिफत करने वालों ने तीर चलाया तो चीर इमाम हसन के जनाजे में भी लगा या नहीं…👇
इसमें कोई इख्तिलाफ नहीं कि जब दफन करने से मना किया गया तो झगड़े का माहौल बना फिर अगर दोनों गिरोह के बीच तनाव की वजह से चीर चला तो कोई हैरत की बात नहीं है.. क्योंकि रोजातुस शफा में यहां तक है कि चीर चला और इमाम हसन के जनाजे में जा लगा आखिरकार इमाम हसन को नबी करीम सल्ल० के पास दफन ना होने दिया और दूसरी जगह दफन किया गया।
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अहले सुन्नत की किताबों से चंद मिशाल देखकर यह बात साबित होता है कि इमाम हसन के जनाजे को जब नबी करीम सल्ल० के कब्र के पास दफन करने के लिए ले जाया गया तो दफन ना होने दिया और इस वजह से इख्तिलाफ हुआ…
जैसे –
📕 इमाम नुऐम बिन हमाद ने ‘अल फितन’ में लिखा है कि-
‘जब इमाम हसन के मौत का वक्त करीब आया तो उन्होंने वसीयत फरमायी कि [मेरे नाना] रसूल-अल्लाह सल्ल० के साथ दफ़न किया जाए लेकिन अगर इसपर झगड़ा या लड़ाई का खतरा हो तो आम मुसलमानों के कब्रिस्तान में ही दफ़न कर देना।
जब इमाम हसन का इंतिकाल हुआ तो मरवान बनी उमय्या की जमाआत के साथ हथियार पहने हुए आया और कहने लगा कि हसन को नबी करीम सल्ल० के साथ दफ़न नहीं किया जा सकता क्योंकि तुमने हजरत उस्मान को यहां दफ़न होने से मना किया था तो हम तुम्हें भी यहां दफ़न होने नहीं देंगे।
जिसपर लोगों को अंदेशा हुआ कि जंग हो जाएगी।
इसपर अबू हुरैरा ने फ़रमाया : तुम्हारा क्या ख्याल है ? अगर मूसा बिन उकबा का बेटा अपने बाप के साथ दफ़न किए जाने की वसीयत करता, फिर उससे रोक दिया जाता तो क्या तह जुल्म ना होता ?
रावी (अबू हाजम) ने कहा : बेशक जुल्म होता।
अबू हुरैरा ने फ़रमाया : फिर हसन तो रसूल-अल्लाह सल्ल० के बेटे (नवासे) हैं, इन्हें इनके वालिद के साथ दफ़न किए जाने से क्युं रोका जा रहा है ? इसके बाद अबू हुरैरा हजरत हुसैन रजिअल्लाह अन्हु के पास गयें , उनसे बात की और उनको अल्लाह का वास्ता देकर कहा कि आपके भाई ने यह वसीयत की है कि अगर तुम्हें कत्ल ओ किताल का अंदेशा हो तो मुझे आम मुसलमानों के कब्रिस्तान में दफ़न कर देना।
हजरत अबू हुरैरा उनसे इस मसले पर बात करते रहें आखिरकार वो ऐसा करने पर राजी हो गये और हजरत हसन का जनाजा जन्नतुल-बक़ी ले जाया गया। उस वक्त बनू उमय्या का कोई भी शख्स [इमाम हसन के नमाज ए जनाजा में] शरीक ना हुआ, सिवाय खालिद बिन वलीद के…’
– सफा नंबर 117 से 118, रकम 415.
सफा 166 पर देखें👇
https://archive.org/details/KitabAlFitan/page/n166/mode/1up?view=theater
अरबी मतन सफा 225 पर देखें 👇
https://archive.org/details/yakubi-tarih/%D8%AA%D8%A7%D8%B1%D9%8A%D8%AE%20%D8%A7%D9%84%D9%8A%D8%B9%D9%82%D9%88%D8%A8%D9%8A%20-%202/page/n224/mode/1up?view=theater
📕 इमाम इब्ने याकूब ने तारीख ए याकूबी में लिखा है कि-
“इमाम हसन को दो बार ज़हर दिया गया मगर तीसरी बार ज़हर देने से वफात हो गया.. फिर आपकी [जनाजे को] चारपाई [पर] निकाला गया और उसे रसूल-अल्लाह सल्ल० की कब्र की तरफ ले जाना चाहा फिर मरवान और साईद बिन आस आए और उन्हें इससे [यानि दफ़न होने से] रोक दिया, क़रीब था कि फितना [यानि लड़ाई झगड़ा] पैदा हो जाता।
और कुछ लोगों का कहना है कि हजरत आईशा रजीo सफेद खच्चर पर सवार होकर आयीं और कहने लगी [कि मैं] अपने घर में किसी को [दफन होने की] इजाजत ना दूंगी।
फिर कासिम बिन मुहम्मद बिन अबी बक्र ने हज़रत आयशा रजीo आईशा के पास जाकर कहा : ऐ फेफी, हमने सुर्ख ऊंट की जंग [जंग ए जमल] के दिन से अपने सर नहीं धोए, क्या आप चाहती हैं कि [आज से] सफेद खच्चर की जंग भी बयान किया जाए।
फिर हजरत आईशा वापस चली गयीं।”
सफा 371 से 372 पर देखें 👇
https://archive.org/details/Tareekh-e-Yaqoobi/Tareekh-e-yaqoobi2of2/page/n375/mode/1up?view=theater
📕 इमाम तबरानी ने मुअज्जमुल कबीर में लिखा है कि- “इमाम हुसैन ने इमाम हसन का जनाजा निकालकर नबी करीम सल्ल० के साथ दफन करने का इरादा किया तो बनी उमय्या खड़े हुए और दफ़न करने से मनख किया और दफन ना होने दिया।”
– जिल्द 2, सफा 353, रकम 2631.
📕 इमाम अब्दुल बर्र ने ‘भजातुल मजालिस’ में लिखते हैं कि- जब हजरत हसन का इंतिक़ाल हुआ तो इन्हें नबी करीम सल्ल० के साथ दफ़न करना चाहा मगर हजरत आईशा रजीo खच्चर पर सवार होकर आयीं और लोग उनके पास जमा हुए तो हजरत आईशा ने दफन होने से मना कर दिया..”
सफा नंबर 100 पर देखें 👇
https://archive.org/details/00-66100/01-02_66100/page/n99/mode/1up?view=theater
📕 अनसाब उल अशराफ में भी है कि हजरत आईशा रजीo ने दफन होने से मना किया फिर झगड़े का माहौल बना।
अनसाब उल असराफ में सफा 298 पर देखें 👇
https://archive.org/details/0132796_202003/03_32798/page/n298/mode/1up?view=theater
📕 इसी तरह ‘अल मुख्तसर फी अखबार उल बसर’ में सफा नंबर 227 पर भी है, देखें 👇
https://archive.org/details/01_20191109_20191109_1829/01/page/27/mode/1up?view=theater
📕 इसी तरह ‘मकातिल तालिबीन’ में भी है, देखें सफा 82 पर 👇
https://archive.org/details/20200116_202001/page/n82/mode/1up?view=theater
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ईमाम हसन अलैहिस्सलाम कि शहादत को माविया के दरबारी मुसीबत नहीं समझते थे 👇🏼
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ईमाम हसन अलैहिस्सलाम कि जुबानी सुलह कि हकीकत और मुआविया का हसन अलैहिस्सलाम को गालिया देना 👇🏼
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हदीस ए सुलह इमाम हसन से माविया की कोई फजीलत साबित नहीं होता.👇🏼
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सुलह ईमाम हसन अलैहिस्सलाम से मुतल्लिक पिछली पोस्ट नम्बर वन 👇🏼
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सुलह ईमाम हसन अलैहिस्सलाम पोस्ट नम्बर दो 👇🏼
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ईमाम हसन अलैहिस्सलाम को अमीर ए शाम ने ज़हर दिलवाया 👇🏼👇🏼
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तालिमात ए अहले बैत

