अर-रहीकुल मख़्तूम  पार्ट  58 बद्र की जंग पार्ट 7


अबू जहल का क़त्ल

हज़रत अब्दुर्रहमान बिन औफ़ रज़ियल्लाहु अन्हु का बयान है कि मैं बद्र की. लड़ाई के दिन पंक्ति के भीतर था कि अचानक मुड़ा तो क्या देखता हूं कि हूं दाहिने-बाएं दो कम उम्र नवजवान हैं। मैं उनके मौजूद रहने से सन्तुष्ट न हुआ कि इतने में एक ने अपने साथी से छिपा कर मुझसे कहा-

‘चचा जान ! मुझे अबू जहल को दिखा दीजि

मैंने कहा, भतीजे ! तुम उसे क्या करोगे ?

उसने कहा, मुझे बताया गया है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को गाली देता है। उस ज्ञात की क़सम, जिसके हाथ में मेरी जान है, अगर मैंने उसको देख लिया, तो मेरा वजूद उसके वजूद से अलग न होगा, यहां तक कि हममें जिसकी मौत पहले लिखी है, वह मर जाएगा।

वह कहते हैं कि मुझे इस पर ताज्जुब हुआ।

इतने में दूसरे व्यक्ति ने मुझे इशारे से मुतवज्जह करके यही बात कही।

उनका बयान है कि मैंने कुछ ही क्षणों बाद देखा कि अबू जहल लोगों के बीच चक्कर काट रहा है। मैंने कहा, अरे देखते नहीं, यह रहा तुम दोनों का शिकार, जिसके बारे में तुम पूछ रहे थे ।

उनका बयान है कि यह सुनते ही वे दोनों अपनी तलवारें लिए झपट पड़े और उसे मार कर क़त्ल कर दिया, फिर पलट कर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आए । आपने फ़रमाया, तुम में से किसने क़त्ल किया है ?

दोनों ने कहा, मैंने क़त्ल किया है।

आपने फ़रमाया, अपनी-अपनी तलवारें पोंछ चुके हो ?

बोले नहीं ।

आपने दोनों ही तलवारें देखीं और फ़रमाया, तुम दोनों ने क़त्ल किया है। अलबत्ता अबू जहल का सामान मुआज़ बिन अम्र बिन जमूह को दिया।

दोनों हमलावरों का नाम मुआज़ बिन अम्र बिन जमूह और मुआज़ बिन अफ़रा है। 1

1. सहीह बुखारी 1/444, 2/568, मिश्कात 2/352। कुछ दूसरी रिवायतों में दूसरा नाम मुअव्वज़ बिन अफ़रा बताया गया है। (इब्ने हिशाम 1/635) साथ ही अबू जहल का सामान सिर्फ एक ही आदमी को इसलिए दिया गया कि बाद में हज़रत मुआज़


इब्ने इस्हाक़ का बयान है कि मुआज बिन अम्र बिन जमूह ने फ़रमाया, मैंने मुश्रिकों को सुना, वे अबू जहल के बारे में, जो घने पेड़ों जैसी, नेज़ों और तलवारों की बाड़ में था, कह रहे थे कि अबुल हकम तक किसी की पहुंच न हो।

मुआज बिन अम्र कहते हैं कि मैंने यह बात सुनी तो उसे अपने निशाने पर ले लिया और उसकी ओर आंखें जमाए रहा। जब गुंजाइश मिली तो मैंने हमला कर दिया और ऐसी चोट लगाई कि उसका पांव आधी पिंडुली से उड़ गया। अल्लाह की क़सम, जिस वक़्त यह पांव उड़ा है, तो मैं उसकी मिसाल उस गुठली से दे सकता हूं जो मूसल की मार पड़ने पर छटक कर उड़ जाए।

उनका बयान है कि इधर मैंने अबू जहल को मारा और उधर उनके बेटे इक्रिमा ने मेरे कंधे पर तलवार चलाई, जिससे मेरा हाथ कट कर मेरे बाजू के चमड़े से लटकने लगा और लड़ाई में रुकावट पैदा करने लगा। मैंने उसे अपने पीछे घसीटते हुए आम वक़्तों में लड़ाई की, लेकिन जब वह मुझे कष्ट पहुंचाने लगा, तो मैंने उस पर अपना पांव रखा और उसे ज़ोर से खींचकर अलग कर दिया। 1

इसके बाद अबू जहल के पास मुअव्वज़ बिन अफ़रा पहुंचे। यह घायल था ही। उस पर ऐसी ज़बरदस्त चोट मारी कि वह वहीं ढेर हो गया, सिर्फ़ सांस आतीजाती रही। इसके बाद मुअव्वज़ बिन अफ़रा खुद भी लड़ते हुए शहीद हो गए।

जब लड़ाई खत्म हो गई, तो अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया, कौन है जो देखे कि अबू जहल का अंजाम क्या हुआ ?

इसके बाद सहाबा किराम रज़ि० उसकी खोज में बिखर गये। हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु ने उसे इस हालत में पाया कि अभी सांस आ-जा रही थी। उन्होंने उसकी गरदन पर पांव रखा और सर काटने के लिए दाढ़ी पकड़ी और फ़रमाया-

‘ओ अल्लाह के दुश्मन ! आखिर अल्लाह ने तुझे रुसवा किया ना ?’ उसने कहा, मुझे काहे को रुसवा किया। क्या जिस आदमी को तुम लोगों ने क़त्ल किया है, उससे भी बुलन्द रुत्वा कोई आदमी है? या जिसको तुम लोगों ने

(मुअव्वज़) बिन अफरा उसी लड़ाई में शहीद हो गए थे, अलबत्ता अबू जहल की तलवार हज़रत अब्दुल्लाह बिन मऊअद रजि० को दी गई, क्योंकि उन्हीं ने उस (अबू जल) का सर तन से अलग किया था।

(देखिए सुनने अबू दाऊद बाब अन अजा-ज़ अला जुरैहिन 2/373) 1. हज़रत मुआज़ बिन अम्र बिन जमूह हज़रत उस्मान रज़ि० की खिलाफत तक ज़िंदा रहे।

क़त्ल किया, उससे भी ऊपर कोई आदमी है ?

फिर बोला, काश ! मुझे किसानों के बजाए किसी और ने क़त्ल किया होता ?

इसके बाद कहने लगा, मुझे बताओ, आज जीत किसकी हुई ? हज़रत अब्दुल्लाह बिन मस्ऊद ने फ़रमाया, अल्लाह और उसके सल्ल० की।, रसूल

इसके बाद हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ि० से, जो उसकी गरदन पर पांव रख चुके थे, कहने लगा, ‘ओ बकरी के चरवाहे ! तू बड़ी ऊंची और मुश्किल जगह पर चढ़ गया। स्पष्ट रहे कि अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु मक्का में बकरियां चराया करते थे ।

ने इस बातचीत के बाद हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु उसका सर काट लिया और अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ख़िदमत में लाकर हाज़िर करते हुए अर्ज़ किया, ऐ अल्लाह के रसूल सल्ल० ! यह रहा अल्लाह के दुश्मन अबू जहल का सर । आपने तीन बार फ़रमाया, वाक़ई ! उस ख़ुदा की क़सम, जिसके सिवा कोई माबूद नहीं। इसके बाद फ़रमाया-

‘अल्लाहु अक्बर, तमाम तारीफ़ अल्लाह के लिए हैं, जिसने अपना वायदा सच कर दिखाया, अपने बन्दे की मदद फ़रमाई, और अकेले सारे गिरोहों को हरा दिया।’

फिर फ़रमाया, चलो, मुझे उसकी लाश दिखाओ ।

हमने आपको ले जाकर लाश दिखाई। आपने फ़रमाया, यह इस उम्मत का फ़िरऔन है।

ईमान की रोशन निशानियां

हज़रत उमैर बिन हम्माम और हज़रत औफ़ बिन हारिस बिन अफ़रा के ईमान भरे कारनामों का उल्लेख पिछले पृष्ठों में आ चुका है। सच तो यह है कि इस लड़ाई में क़दम क़दम पर ऐसे दृश्य देखने को मिले, जिनमें अक़ीदे की ताक़त और नियम की दृढ़ता साफ़ झलक रही थी। इस लड़ाई में बाप और बेटे में, भाई और भाई में लड़ाई हुई, नियमों के मतभेद पर तलवारें म्यान से बाहर हो गईं और मज़्लूम और मक़हूर ने ज़ालिम व क़ाहिर से टकरा कर अपने गुस्से की आग बुझाई ।

1. इब्ने इस्हाक़ ने इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत की है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सहाबा किराम से फ़रमाया, मुझे मालूम है कि बनू हाशिम वग़ैरह के कुछ लोग ज़बरदस्ती लड़ाई के मैदान में लाए गए हैं। उन्हें

हमारी लड़ाई से कुछ लेना-देना नहीं है, इसलिए बनू हाशिम का कोई आदमी निशाने पर आ जाए, तो वह उसे क़त्ल न करे और अब्दल बख्तरी बिन हिशाम किसी के निशाने पर आ जाए, तो वह उसे क़त्ल न करे और अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब किसी के निशाने पर आ जाएं तो वह भी उन्हें कत्ल न करे, क्योंकि वह ज़बरदस्ती लाए गए हैं।

इस पर उत्बा के बेटे हज़रत अबू हुज़ैफ़ा रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा, क्या हम अपने बाप, बेटों, भाइयों और कुंबे-क़बीले के लोगों को क़त्ल करेंगे और अब्बास को छोड़ देंगे? ख़ुदा की कसम ! अगर उससे मेरा आमना-सामना हो गया, तो मैं तो उसे तलवार की लगाम पहना दूंगा।

यह ख़बर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को पहुंची, तो आपने उमर बिन खत्ताब से फ़रमाया, क्या अल्लाह के रसूल सल्ल० के चचा के चेहरे पर तलवार मारी जाएगी ?

हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा, ऐ अल्लाह के रसूल सल्ल० ! मुझे छोड़िए, मैं तलवार से इस आदमी की गरदन उड़ा दूं, क्योंकि अल्लाह की क़सम ! यह आदमी मुनाफिक हो गया है।

बाद में अबू हुज़ैफ़ा रज़ियल्लाहु अन्हु कहा करते थे, उस दिन मैंने जो बात कह दी थी, उसकी वजह से मैं सन्तुष्ट नहीं हूं, बराबर डर लगा रहता है, सिर्फ यही शक्ल है कि मेरी शहादत इसका बदला बन जाए और आखिरकार वह यमामा की लड़ाई में शहीद हो ही गए।

2. अबुल बख्तरी को क़त्ल करने से इसलिए मना किया गया था कि मक्का में यह व्यक्ति सबसे ज़्यादा अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को कष्ट पहुंचाने से अपना हाथ रोके हुए था। आपको किसी भी क़िस्म की तकलीफ न पहुंचाता था और न उसकी ओर से कोई नागवार बात सुनने में आती थी और यह उन लोगों में से था, जिन्होंने बनी हाशिम और बनी मुत्तलिब के बहिष्कार का काग़ज़ टुकड़े-टुकड़े कर डाला था।

लेकिन इन सबके बावजूद अबुल बख्तरी क़त्ल कर दिया गया। हुआ यह कि हज़रत मुज्ज़िर बिन ज़ियाद बलवी से इसका टकराव हो गया। उसके साथ उसका एक और साथी भी था। दोनों साथ-साथ लड़ रहे थे।

हज़रत मुज्जिर ने कहा, अबुल बख्तरी ! अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हमें आपको क़त्ल करने से मना किया है।

उसने कहा, और मेरा साथी ?

हज़रत मुज्ज़िर ने कहा, नहीं। खुदा की क़सम, हम आपके साथी को नहीं छोड़ सकते ।

उसने कहा, ख़ुदा की क़सम ! तब मैं और वह दोनों मरेंगे। इसके बाद दोनों ने लड़ाई शुरू कर दी। मुज्ज़िर रज़ि० ने मजबूरन उसे भी क़त्ल कर दिया।

3. मक्के के अन्दर अज्ञानता युग से हज़रत अब्दुर्रहमान बिन औफ़ रज़ियल्लाहु अन्हु और उमैया बिन खलफ़ में आपस में दोस्ती थी। बद्र की लड़ाई के दिन उमैया अपने लड़के अली का हाथ पकड़े खड़ा था कि इतने में उधर से हज़रत अब्दुर्रहमान बिन औफ़ रज़ि० का गुज़र हुआ। वह दुश्मन से कुछ कवचें छीन कर लादे लिए जा रहे थे। उमैया ने उन्हें देखकर कहा, क्या तुम्हें मेरी ज़रूरत है ? मैं तुम्हारी इन कवचों से बेहतर हूं। आज जैसा दृश्य तो मैंने देखा ही नहीं। क्या तुम्हें दूध की ज़रूरत नहीं ? मतलब यह था कि जो मुझे क़ैद करेगा, मैं उसे फ़िदए में खूब दुधारी ऊंटनियां दूंगा ।

यह सुनकर अदुरहान बिन औफ़ ने कवचें फेंक दीं और दोनों को गिरफ़्तार करके आगे बढ़े।

हज़रत अब्दुर्रहान कहते हैं कि मैं उमैया और उसके बेटे के दर्मियान चल रहा था कि उमैया ने पूछा, आप लोगों में वह कौन-सा आदमी था जो अपने सीने पर शुतुरमुर्ग का पर लगाए हुए था ?

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मैंने कहा, वह हज़रत हमज़ा बिन अब्दुल मुत्तलिब थे ।

उमैया ने कहा, यही आदमी है जिसने हमारे अन्दर

तबाही मचा रखी थी।

हज़रत अब्दुर्रहमान कहते हैं कि अल्लाह की क़सम ! मैं इन दोनों को लिए जा रहा था कि अचानक हज़रत बिलाल रज़ि० ने उमैया को मेरे साथ देख लिया, याद रहे कि उमैया हज़रत बिलाल रज़ि० को मक्का में बहुत सताया करता था, हज़रत बिलाल रज़ि० ने कहा, ओहो, कुन का सर ! उमैया बिन खलफ़ ! अब या तो मैं बचूंगा या यह बचेगा ?

मैंने कहा, ऐ बिलाल ! यह मेरा क़ैदी है।

उन्होंने कहा, अब या तो मैं रहूंगा या यह रहेगा। मैंने कहा, कलौटी के बेटे ! सुन रहे हो, उन्होंने कहा, अब या तो मैं रहूंगा या यहं रहेगा ।

फिर बड़ी ऊंची आवाज़ में पुकार कर कहा, ऐ अल्लाह के अंसारो ! यह रहा कुन का सर उमैया बिन खलफ़। अब या तो मैं रहूंगा या यह रहेगा।

हज़रत अब्दुर्रहमान रज़ि० कहते हैं कि इतने में लोगों ने हमें कंगन की तरह

घेरे में ले लिया। मैं उनका बचाव कर रहा था। मगर एक आदमी ने तलवार सौंत कर उसके बेटे के पांव पर चोट लगाई। वह चकरा कर गिर पड़ा। उधर उमैया ने इतने ज़ोर की चीख मारी कि मैंने वैसी चीख कभी सुनी ही न थी। मैंने कहा, निकल भागो! मगर आज भागने की गुंजाइश नहीं। ख़ुदा की कसम ! मैं तुम्हारे कुछ काम नहीं आ सकता।

हज़रत अब्दुहमान का बयान है कि लोगों ने अपनी तलवारों से इन दोनों को काट कर उनका काम तमाम कर दिया।

इसके बाद हज़रत अब्दुर्रहमान रजि० कहा करते थे, अल्लाह बिलाल पर रहम करे, मेरे कवच भी गए और मेरे

क़ैदी के बारे में मुझे तड़पा भी दिया। इमाम बुखारी ने अब्दुर्रहमान बिन औफ़ से रिवायत की है, उनका बयान है कि मैंने उमैया बिन खलफ़ से तै किया कि वह मक्का में मेरे माल और मुताल्लिक चीज़ों की हिफ़ाज़त करेगा। बद्र के दिन जब लोगों ने राहत महसूस की तो मैं एक पहाड़ की तरफ़ निकला कि उसे (कैदियों) में समेट लूं, लेकिन बिलाल ने उसे देख लिया और निकलकर अंसार की एक मज्लिस पर जा खड़े हुए और कहने लगे, उमैया बिन खल्फ़ है। अब या तो वह रहेगा या मैं रहूंगा। इस पर अंसार के एक गिरोह ने उनके साथ निकलकर हमारा पीछा कर लिया। जब मैंने देखा कि वह हमें पा लेंगे तो मैंने उमैया के बेटे को पीछे छोड़ दिया, ताकि वे उसी में लग जाएं मगर उन्होंने उसे क़त्ल करके फिर हमारा पीछा कर लिया। उमैया भारी भरकम आदमी था। जब उन्होंने हमें पा लिया, तो मैंने उससे कहा, बैठ जाओ। वह बैठ गया और मैंने अपने आपको उसके ऊपर डाल दिया, ताकि उसे बचा सकूं, मगर लोगों ने मेरे नीचे से तलवार मार-मारकर उसे क़त्ल कर दिया। किसी की तलवार मेरे पांव को भी जा लगी। चुनांचे अब्दुर्रहमान अपने पांव की पीठ पर उसका निशान दिखाया करते थे।

4. हज़रत उमर बिन खत्ताब रज़ियल्लाहु अन्हु ने अपने मामूं आस बिन हिशाम बिन मुग़ीरह को क़त्ल किया और रिश्तेदारी की कोई परवाह न की, लेकिन जब वापस आए, तो अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के चचा हज़रत अब्बास से—जो क़ैद में थे—कहा कि ऐ अब्बास ! इस्लाम लाइए। अल्लाह की क़सम ! आपका मुसलमान हो जाना मेरे नज़दीक खत्ताब के मुसलमान होने से ज़्यादा पसन्दीदा है और यह सिर्फ़ इसलिए कि मैंने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को देखा है कि उनके नज़दीक आपका

1. सहीह बुखारी, किताबुल वकाला, 1/308

इस्लाम लाना पसन्दीदा है।’

5. हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु ने अपने बेटे अब्दुर्रहमान को, जो उस वक़्त मुश्किों के साथ थे, पुकार कर कहा, ओ खबीस ! मेरा माल कहां है ? अब्दुर्रहमान ने कहा, हथियार, तेज रफ़्तार घोड़े और इस तलवार के सिवा कुछ बाक़ी नहीं, जो गुमराह बूढ़ों का अन्त करती है।

6. जिस वक़्त मुसलमानों ने मुश्रिकों की गिरफ़्तारी शुरू की, अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम छप्पर में तशरीफ़ रखते थे और हज़रत साद बिन मुआज़ रज़ियल्लाहु अन्हु तलवार लिए दरवाज़े पर पहरा दे रहे थे।

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने देखा कि हज़रत साद रज़ि० के चेहरे पर लोगों की इस हरकत का नागवार असर पड़ रहा है, आपने फ़रमाया, ऐ साद ! खुदा की क़सम ! ऐसा महसूस होता है कि आपको मुसलमानों का यह काम नागवार है I

1 उन्होंने कहा, जी हां! ख़ुदा की क़सम, ऐ अल्लाह के रसूल सल्ल० ! यह शिर्क वालों के साथ पहली लड़ाई है जिसका मौक़ा अल्लाह ने हमें दिया है। इसलिए शिर्क वालों को बाक़ी छोड़ने के बजाए मुझे यह बात ज़्यादा पसन्द है कि उन्हें खूब क़त्ल किया जाए, और अच्छी तरह कुचल दिया जाए।

7. इस लड़ाई में हज़रत उकाशा बिन मोहसिन असदी रज़ियल्लाहु अन्हु की तलवार टूट गई। वह अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की खिदमत में हाज़िर हुए। आपने उन्हें लकड़ी का एक फट्टा थमा दिया और फ़रमाया–

‘उकाशा ! इसी से लड़ाई करो।’

उकाशा ने उसे अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से लेकर हिलाया तो वह एक लम्बी, मज़बूत और चमचम करती हुई सफ़ेद तलवार में बदल गया। फिर उन्होंने उसी से लड़ाई की, यहां तक कि अल्लाह ने मुसलमानों को जीत दिला दी। इस तलवार का नाम औन (यानी मदद) रखा गया था ।

यह तलवार स्थाई रूप से हज़रत उकाशा रज़ि० के पास रही और वह इसी को लड़ाइयों में इस्तेमाल करते रहे, यहां तक कि हज़रत अबूबक्र सिद्दीक़ रज़ि० के ज़माने में इस्लाम से विमुख (मुर्तद्द) लोगों के खिलाफ़ लड़ते हुए शहीद हो गए। उस वक़्त भी यह तलवार उनके पास ही थी।

1. इसे हाकिम ने मुस्तदरक में रिवायत किया है। (देखिए फ़हुल क़सीर शौकानी 2/327)
. लड़ाई के ख़त्म पर हज़रत मुसअब बिन उमैर अब्दरी रज़ियल्लाहु अन्हु अपने भाई अबू अज़ीज़ बिन उमैर अब्दरी के पास से गुज़रे । अबू अज़ीज़ ने मुसलमानों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी और उस वक़्त एक अंसारी सहाबी उसका हाथ बांध रहे थे। हज़रत मुसअब रज़ि० ने उस अंसारी से कहा-

‘इस व्यक्ति द्वारा अपने हाथ मज़बूत करना। इसकी मां बड़ी मालदार है, वह शायद तुम्हें अच्छा फ़िदया देगी।’

इस पर अबू अज़ीज़ ने अपने भाई मुसअब से कहा, क्या मेरे बारे में तेरी यही वसीयत है ?

हज़रत मुसअब ने फ़रमाया, (हां !) तुम्हारे बजाए यह अंसारी मेरा भाई है।

9. जब मुश्किों की लाशों को कुंएं में डालने का हुक्म दिया गया और उत्वा बिन रबीआ को कुएं की ओर घसीट कर ले जाया जाने लगा, तो अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उसके लड़के अबू हुज़ैफ़ा (रज़ि०) के चेहरे पर नज़र डाली, देखा तो दुखी थे, चेहरा बदला हुआ था।

आपने फ़रमाया, अबू हुज़ैफ़ा ! शायद अपने बाप के सिलसिले में तुम्हारे मन की कुछ भावनाएं हैं ?

उन्होंने कहा, नहीं, अल्लाह की क़सम, ऐ अल्लाह के रसूल सल्ल० ! मेरे अन्दर अपने बाप के बारे में और उसके क़त्ल के बारे में तनिक भी कोई बात नहीं, अलबत्ता मैं अपने बाप के बारे में जानता था कि उसमें सूझ-बूझ है, दूरदर्शिता और बुद्धि है, इसलिए मैं आशा किए बैठा था ये खूबियां उसे इस्लाम तक पहुंचा देंगी, लेकिन अब उनका अंजाम देखकर और अपनी आशा के विपरीत कुन पर उसका खात्मा देखकर मुझे अफ़सोस है।

इस पर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हज़रत अबू हुज़ैफ़ा रज़ि० के हक़ में दुआ फ़रमाई और उनसे भली बात कही ।