अर-रहीकुल मख़्तूम  पार्ट  58 बद्र की जंग पार्ट 6

जवाबी हमला

इसके बाद अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने जवाबी हमले का हुक्म दिया और लड़ाई पर उभारते हुए फ़रमाया, ‘चढ़ दौड़ो, उस ज़ात की क़सम, जिसके हाथ में मुहम्मद की जान है, उनसे जो आदमी भी डटकर, सवाब समझकर, आगे बढ़कर लड़ेगा और मारा जाएगा, अल्लाह उसे ज़रूर जन्नत में दाखिल करेगा ।

आपने लड़ाई पर उभारते हुए यह भी फ़रमाया, उस जन्नत की ओर उठो, जिसका फैलाव आसमान और ज़मीन के बराबर है।

(आपकी यह बात सुनकर ) उमैर बिन हमाम ने कहा, बहुत खूब, बहुत खूब । अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया, तुम बहुत खूब, बहुत खूब क्यों कह रहे हो ?

उन्होंने कहा, नहीं, खुदा की क़सम ! ऐ अल्लाह के रसूल ! कोई बात नहीं सिवाए इसके कि मुझे उम्मीद है कि मैं भी उस जन्नत वालों में से हूंगा। आपने फ़रमाया, तुम भी उस जन्नत वालों में से हो।

इसके बाद वह अपने तोशादान से कुछ खजूरें निकालकर खाने लगे, फिर बोले, अगर मैं इतनी देर तक ज़िंदा रहा कि अपनी ये खजूरें खा लूं, तो यह तो लम्बी ज़िंदगी हो जाएगी।

चुनांचे उनके पास जो खजूरें थीं, उन्हें फेंक दिया, फिर मुश्किों से लड़ते-लड़ते शहीद हो गए।

1. मुस्लिम, 2/139, मिश्कात 2/331

इसी तरह प्रसिद्ध महिला अफ़रा के बेटे औफ़ बिन हारिस ने मालूम किया कि ऐ अल्लाह के रसूल सल्ल० ! पालनहार अपने बन्दे की किस बात से (खुश होकर) मुस्कराता है, आपने फ़रमाया-

‘इस बात से कि बन्दा खाली जिस्म (बिना हिफ़ाज़ती हथियार पहने) अपना हाथ दुश्मन के अन्दर डुबो दे।’

यह सुनकर औफ़ ने अपने देह से कवच उतार फेंका और तलवार लेकर दुश्मन पर टूट पड़े और लड़ते-लड़ते शहीद हो गए।

जिस वक़्त अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने जवाबी हमले का आदेश दिया, दुश्मन के हमलों की तेज़ी जा चुकी थी और उनका जोश व खरोश ठंडा पड़ रहा था, इसलिए यह हिक्मत भरी योजना मुसलमानों की पोजीशन मज़बूत करने में बड़ी प्रभावी सिद्ध हुई, क्योंकि सहाबा किराम रज़ि० को जब हमलावर होने का हुक्म मिला और अभी उनका जिहादी जोश यौवन पर था, तो उन्होंने बड़ा ही तेज़ और सफ़ाया कर देने वाला हमला कर दिया।

वे पंक्तियों की पंक्तियां चीरते और गरदनें काटते आगे बढ़े। उनके हौसले और उत्साह में यह देखकर और ज़्यादा तेज़ी आ गई कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम खुद ही कवच पहने सिपाहियों जैसी शान से उछलते-कूदते तशरीफ़ ला रहे हैं और सबसे आगे निकल गए हैं। उनसे ज़्यादा मुश्किों के कोई क़रीब नहीं है’ और पूरे भरोसे और विश्वास के साथ कह रहे हैं कि—

‘बहुत जल्द यह जत्था मुंह की खाएगा और पीठ फेरकर भागेगा।’

इसलिए मुसलमानों ने पूरे उत्साह और उमंग के साथ लड़ाई लड़ी और फ़रिश्तों ने भी उनकी मदद फ़रमाई।

चुनांचे इब्ने साद की रिवायत में हज़रत इक्रिमा रज़ि० से रिवायत है कि उस दिन आदमी का सर कट कर गिरता और यह पता न चलता कि उसे किसने मारा और आदमी का हाथ कट कर गिरता और यह पता न चलता कि उसे किसने काटा।

इब्ने अब्बास रज़ि० फ़रमाते हैं कि एक मुसलमान एक मुश्कि को दौड़ा रहा था कि अचानक उस मुश्कि के ऊपर कोड़े की मार पड़ने की आवाज़ आई और एक घुड़सवार की आवाज़ सुनाई पड़ी जो कह रहा था कि हीज़ूम ! आगे बढ़ ।

मुसलमान ने मुश्कि को अपने आगे देखा कि वह चित गिरा, लपककर देखा तो उसकी नाक पर चोट का निशान था। चेहरा फटा हुआ था, जैसे कोड़े से मारा

1. मुस्नद अबू याला 1/329 हदीस न० 412


गया हो और यह सब का सब हरा पड़ गया था।

उस अंसारी मुसलमान ने आकर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से पूरा क़िस्सा बयान किया, तो आपने फ़रमाया, ‘तुम सच कहते हो, यह तीसरे आसमान की मदद थी।”

अबू दाऊद माज़नी कहते हैं कि मैं एक मुश्कि को मारने के लिए दौड़ रहा था कि अचानक उसका सर मेरी तलवार पहुंचने से पहले ही कट कर गिर गया। मैं समझ गया कि इसे मेरे बजाए किसी और ने क़त्ल किया है। 1

एक अंसारी हज़रत अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब को क़ैद करके लाया, तो हज़रत अब्बास कहने लगे, अल्लाह की क़सम मुझे इसने क़ैद नहीं किया था, मुझे तो एक बे-बाल के सर वाले आदमी ने क़ैद किया है, जो बहुत ही सुन्दर था और एक चितकबरे घोड़े पर सवार था। अब मैं उसे लोगों में देख नहीं रहा हूं ।

अंसारी ने कहा, ऐ अल्लाह के रसूल सल्ल० ! इन्हें मैंने क़ैद किया है। आपने फ़रमाया, खामोश रहो। अल्लाह ने एक बुजुर्ग फ़रिश्ते से तुम्हारी मदद फ़रमाई है।

हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि मुझसे और अबूबक्र रज़ि० से अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने बद्र के दिन फ़रमाया कि तुममें से एक के साथ जिब्रील और दूसरे के साथ मीकाईल हैं और इसराफ़ील भी एक महान फ़रिश्ता है जो लड़ाई में हाज़िर होता है। 2

मैदान से इबलीस का भागना

जैसा कि हम बता चुके हैं, लानतज़दा इबलीस सुराक़ा बिन मालिक बिन जासम मुदलजी की शक्ल में आया था और मुश्रिकों से अब तक अलग नहीं हुआ था, लेकिन जब उसने मुश्किों के खिलाफ़ फ़रिश्तों की कार्रवाइयां देखी तो उलटे पांव पलट कर भागने लगा, पर हारिस बिन हिशाम ने उसे पकड़ लिया। वह समझ रहा था कि यह वाक़ई सुराक़ा ही है, लेकिन इबलीस ने हारिस के सीने पर ऐसा घूंसा मारा कि वह गिर गया और इबलीस निकल भागा।

मुश्कि कहने लगे, सुराक़ा कहां जा रहे हो ? क्या तुमने यह नहीं कहा था

1. मुस्लिम 2/93, वग़ैरह

2. मुस्नद अहमद 1/147, बज़्ज़ार (1467), मुस्तदरक हाकिम 3/134, हाकिम ने उसे सही कहा है और ज़हबी ने साथ दिया है, साथ ही मुस्नद अबू याला 1/284 हदीस नं० 340

बादशाह जहाँगीर और उनके कान छिदवाने का कारण

**बादशाह जहाँगीर और उनके कान छिदवाने का कारण — ख़्वाजा साहब का “कान-छिदा ग़ुलाम” कहलाना**

इस अमुरदाद महीने की 8 तारीख़ को मेरी तबियत में बदलाव महसूस हुआ, और धीरे-धीरे मुझे बुखार और सरदर्द ने घेर लिया। इस डर से कि कहीं मुल्क और ख़ुदा के बंदों को कोई नुक़सान न हो, मैंने इसे अपने क़रीबी और पहचान वालों से ज़्यादातर छुपाए रखा और हकीमों और वैद्य को भी नहीं बताया। कुछ दिन इसी तरह गुज़रे और मैंने सिर्फ़ नूरजहाँ बेगम को ही यह हाल बताया, क्योंकि मुझे नहीं लगता था कि मुझसे ज़्यादा मोहब्बत कोई और करता हो। मैंने भारी खाने से परहेज़ किया और थोड़ा-बहुत हल्का भोजन लेकर रोज़ाना अपनी आदत के अनुसार दीवान-ख़ाना (आम दरबार) में गया, झरोखा और ग़ुसलख़ाना में भी पहले की तरह दाख़िल हुआ, जब तक कि मेरी त्वचा पर कमज़ोरी के निशान नज़र आने लगे।

कुछ उमरा को इसकी ख़बर लगी, और उन्होंने अपने भरोसेमंद हकीम जैसे हकीम मसीब-उज़-ज़माँ, हकीम अबुल क़ासिम, और हकीम अब्दुश-शकूर को बताया। बुखार में कोई बदलाव नहीं आया, और तीन रात तक मैंने अपनी आदत के अनुसार शराब पी, जिससे और कमज़ोरी हो गई। इस बेचैनी और कमज़ोरी के दौरान मैं ख़्वाजा साहब के मज़ार पर गया, और उस मुबारक जगह में ख़ुदा से अपनी सेहत के लिए दुआ की और नज़र और ख़ैरात देने का मन्नत की। अल्लाह तआला के फ़ज़्ल और रहमत से मुझे सेहत की ख़िलअत अता हुई, और धीरे-धीरे मैं ठीक हो गया।

सरदर्द जो बहुत तेज़ था, हकीम अब्दुश-शकूर के इलाज से कम हो गया, और बाइस दिन में मेरी हालत पहले जैसी हो गई। महल के ख़ादिम और पूरे मुल्क के लोग इस बड़ी नेमत के लिए नज़राने लाए। मैंने किसी का नज़राना क़बूल नहीं किया, और हुक्म दिया कि हर शख़्स अपने घर में जो चाहे, ग़रीबों में तक़सीम करे।

10 शाहरीवार को ख़बर आई कि ताज ख़ान अफ़ग़ान, जो ठट्टा का हाकिम था और मुल्क के पुराने उमरा में से था, का इंतिकाल हो गया।

“`बीमारी के दौरान मेरे दिल में यह ख़्याल आया कि जब मैं पूरी तरह ठीक हो जाऊँ, तो चूँकि मैं दिल से ख़्वाजा मुईनुद्दीन का “कान-छिदा ग़ुलाम” हूँ और अपनी ज़िन्दगी का कर्ज़ उन पर है, तो मैं खुले आम अपने कान छिदवाऊँ और उनके कान-छिदा ग़ुलामों में शामिल हो जाऊँ।“`
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गुरुवार, 12 शाहरीवार को, जो माह-ए-रश के मुताबिक़ था, मैंने अपने कान छिदवाए और हर कान में एक चमकता हुआ मोती पहन लिया। जब महल के  सेवक (अजमेर मैगज़ीन नया बाज़ार) और मेरे वफ़ादार दोस्तों ने यह देखा, तो जो लोग मेरी मौजूदगी में थे और जो दूर इलाक़ों में थे, सबने शौक़ और उत्साह से अपने कान छिदवाए, और सच्चाई की ख़ूबसूरती को मोतियों और यक़ूत से सजाया, जो ख़ास ख़ज़ाने में मौजूद थे और उन्हें इनाम के तौर पर दिए गए।

तारीख़: तुज़्क-ए-जहाँगीरी, 1614 ईस्वी
जब बादशाह जहाँगीर अजमेर में तीन साल तक क़यामपज़ीर रहे।
सैयद आतिफ़ हुसैन काज़मी चिश्ती, अजमेर शरीफ़

“बादशाह जहाँगीर का सोने का सिक्का जो अजमेर मिंट का है, 1023 हिजरी यानी 1614 ईस्वी का है और जिस पर “या मोईन” तहरीर करवाया गया है, जब बादशाह जहाँगीर अजमेर में ही क़यामपज़ीर थे। यह बादशाह जहाँगीर की ख़्वाजा साहब से अकीदत को दर्शाता है।
सैयद आतिफ़ हुसैन काज़मी चिश्ती

Chehlum e Imaam e Hussain Aur Auliya e Kiram Ka Tarika

*Chehlum e Imaam e Hussain Aur Auliya e Kiram Ka Tarika*

Makhdoom ul Asfiya Taj ul Fuqara Hazrat Haji Sayyed Waris Ali Shah Sahab Rehmatullah Alaih Ka Mamool Sharif Tha :- Aap Aayyam e Muharram Me Khususan Imaam Bargaho Me Hazri Dete Aur Taziya Sharif Ki Ziyarat Ko Jate The, Taziya Sharif Ki Ziyarat Ke Waqt Ek Ajeeb Kaifiyat Aapke Chehra e Mubarak Par Mulahiza Farmayi Jati Aur Dair Tak Aap Par Sukoot Ka Ek Aalam Tari Ho Jata, Ashra e Muharram Aur *Chehlum (20 Safar) Ke Din Khususan Aastana e Aaliya Par Sabeel Ka Ahtamaam Hota Tha.*

📚 *Reference* 📚
Mishkat ul Haqqaniya, Safa 110.