■ Hazrat Habib Aslam Rai — A Great Wali of Allah and the Story of the Protective Wolf
Prof. Dr. Muhammad Tahir-ul-Qadri narrates the story of Hazrat Habib Aslam Rai, who is counted among the great Awliya Allah (Friends of Allah). His mention can also be found in the famous book Kashf al-Mahjoob by Sayyid Ali Hujwiri, also known as Data Ganj Bakhsh.
According to the story, a respected elder once visited Hazrat Habib Aslam Rai for ziyarat (spiritual visit). He saw Hazrat Habib Aslam Rai deeply engaged in voluntary prayers and worship (nawafil). What amazed the visitor even more was that a fierce and dangerous wolf was guarding the sheep of Hazrat Habib Aslam Rai, protecting them with great care.
The observer was astonished and asked Hazrat Habib Aslam Rai, “Sheikh, what is this story? How can a dangerous animal like a wolf protect sheep, which it usually preys on? What lesson does this hold?”
Hazrat Habib Aslam Rai replied in a profound sentence:
“The shepherd has become one with his Master.”
This means that when a person attains full spiritual harmony (muwafaqat) with their Lord (Mawla), all of Allah’s creation aligns and becomes harmonious with that person. Because the faqeer (spiritual seeker) has connected deeply with Allah ﷻ, all the creatures of the universe follow his harmony, including even wild animals.
There is a narration recorded by Imam Abu Bakr Ibn Shaibah that states:
“Whoever becomes obedient to Allah, the entire universe becomes obedient to him.”
When a person humbles themselves before Allah ﷻ, Allah raises their status before all creation. But as long as a person resists submitting sincerely to Allah’s commands and remains prideful, worldly obstacles will stand firm against them.
However, when the person bows sincerely in humility and devotion before their Lord, even wild wolves will align in harmony with them — meaning the universe becomes favorable and supportive.
If you desire that the circumstances of your life become favorable, or that even difficult and unfavorable conditions turn supportive for you, it is possible. The key is to humble yourself before your Lord sincerely and wholeheartedly.
When you become truly connected with Allah ﷻ, the world itself will align in your favor.
This is beautifully summarized by Allama Iqbal’s teachings:
You belong neither to the earth nor to the sky; when you belonged only to your Lord, the whole world was yours. But when you started chasing the world and forgot your Lord, then your Lord forgot you too.
When a person chases worldly gains, the world leads them on and they run after it endlessly. But when a person turns away from the world and heads towards their Lord, the world follows them instead.
This beautifully illustrates the spiritual principle that complete devotion and harmony with Allah ﷻ brings harmony in all aspects of life, even turning enemies into protectors.
बहरहाल जब मुश्किों की सेना सामने आई और दोनों सेनाएं एक दूसरे को दिखाई पड़ने लगी, तो अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया-
‘ऐ अल्लाह ! ये कुरैश हैं, जो अपने पूरे दंभ व अभिमान के साथ तेरा विरोध करते हुए और तेरे रसूल सल्ल० को झुठलाते हुए आ गए हैं। ऐ अल्लाह ! तेरी मदद, जिसका तूने वायदा किया है। ऐ अल्लाह ! आज इन्हें ऐंठकर रख दे।’
साथ ही अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उत्बा बिन रबीआ को उसके एक ऊंट पर देखकर फ़रमाया-
‘अगर क़ौम में से किसी के पास भलाई है, तो लाल ऊंट वाले के पास है। अगर लोगों ने इसकी बात मान ली, तो यही राह पाएंगे।’
इस मौक़े पर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मुसलमानों की पंक्तियां ठीक की। पंक्तियों के ठीक करते वक़्त एक विचित्र घटना घटी। आपके हाथ में एक तीर था, जिसके ज़रिए आप पंक्ति सीधी कर रहे थे कि सवाद बिन ग़ज़ीया के पेट पर, जो पंक्ति से कुछ आगे निकले हुए थे, तीर का दबाव डालते हुए फ़रमाया, सवाद ! बराबर हो जाओ। T
सवाद ने कहा, ऐ अल्लाह के रसूल सल्ल० ! आपने मुझे कष्ट पहुंचा बदला दीजिए।
आपने अपना पेट खोल दिया और फ़रमाया, बदला ले लो।
सवाद आपसे चिमट गए और आपके पेट का बोसा लेने लगे।
आपने फ़रमाया, सवाद ! इस हरकत पर तुम्हें किसने उभारा ?
उन्होंने कहा, ऐ अल्लाह के रसूल सल्ल० ! जो कुछ हो रहा है, आप देख ही रहे हैं। मैंने चाहा कि ऐसे मौक़े पर आपसे आखिरी बात यह हो कि मेरी खाल आपकी खाल से छू जाए।
इस पर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उनके लिए दुआ-ए-ख़ैर फ़रमाई ।
फिर जब पंक्तियां ठीक जी जा चुकीं, तो आपने फ़ौज को हिदायत फ़रमाई कि जब तक उसे आपके अन्तिम आदेश न मिल जाएं, लड़ाई शुरू न करे। इसके बाद लड़ाई के तरीक़े के बारे में एक विशेष मार्ग-दर्शन देते हुए आपने कहा कि जब मुश्रिक जमघट करके तुम्हारे क़रीब आएं, तो उन पर तीर चलाना और अपने तीर बचाने की कोशिश करना। (यानी पहले ही से बेकार तीरंदाज़ी करके तीरों को बर्बाद न करना) जब तक वे तुम पर छा न जाएं, तलवार न खींचना 12
इसके बाद खास आप और अबूबक्र रज़ियल्लाहु अन्हु छप्पर की ओर वापस गए, और हज़रत साद बिन मुआज़ रज़ियल्लाहु अन्हु अपना निगरां दस्ता लेकर छप्पर के द्वार पर तैनात हो गए।
दूसरी ओर मुश्रिकों की स्थिति यह थी कि अबू जहल ने अल्लाह से फ़ैसले की दुआ की। उसने कहा-
‘ऐ अल्लाह ! हममें से जो फ़रीक़ रिश्ते-नातों को ज़्यादा काटने वाला और ग़लत हरकतें ज़्यादा करने वाला है, तू आज उसको तोड़ दे। ऐ अल्लाह ! हममें से, जो फ़रीक़ तेरे नज़दीक ज़्यादा प्रिय और ज़्यादा पसन्दीदा है, आज उसकी मदद फ़रमा।’
बाद में इसी बात की ओर इशारा करते हुए अल्लाह ने यह आयत उतारी- ‘अगर तुम फ़ैसला चाहते तो तुम्हारे पास फ़ैसला आ गया और अगर तुम रुक जाओ, तो यही तुम्हारे लिए बेहतर है। लेकिन अगर तुम (यानी इस हरकत की ओर) पलटोगे, तो हम भी (तुम्हारी सज़ा की ओर) पलटेंगे और तुम्हारी जमाअत, अगरचे वह ज़्यादा ही क्यों न हो, तुम्हारे कुछ काम न आ सकेगी। (और याद रखो कि) अल्लाह ईमान वालों के साथ है।’ (8/19)
इस लड़ाई का पहला ईंधन अस्वद बिन अब्दुल असद मज़ूमी था। यह आदमी बड़ा ही अड़यल और बदतमीज़ था। यह कहते हुए मैदान में निकला कि मैं अल्लाह को वचन देता हूं कि उनके हौज़ का पानी पीकर रहूंगा वरना उसे ढा दूंगा या उसके लिए जान दे दूंगा। दे
जब यह उधर से निकला तो इधर से हज़रत हमजा बिन अब्दुल मुत्तलिब बरामद हुए। दोनों में हौज़ से परे ही टकराव हो गया। हज़रत हमज़ा रज़ि० ने ऐसी तलवार मारी कि उसका पांज आधी पिंडुली से कटकर अलग हो गया और वह पीठ के बल गिर पड़ा।
उसके पांव से खून का फव्वारा निकल रहा था, जिसका रुख उसके साथियों की ओर था, लेकिन इसके बावजूद वह घुटनों के बल घसिट कर हौज़ की ओर बढ़ा और उसमें दाखिल हुआ ही चाहता था, ताकि अपनी क़सम पूरी करे। इतने में हज़रत हमज़ा रज़ि० ने दूसरा वार किया और हौज़ के अन्दर ही ढेर हो गया। लड़ाई शुरू
यह उस लड़ाई का पहला क़त्ल था और इससे लड़ाई की आग भड़क उठी। चुनांचे इसके बाद कुरैश के तीन सबसे बेहतर घुड़सवार निकले जो कि सबके सब एक ही खानदान के थे—
एक उत्बा, दूसरा उसका भाई शैबा, जो दोनों रबीआ के बेटे थे। और तीसरा वलीद जो उत्बा का बेटा था। उन्होंने अपनी पंक्ति से आगे बढ़कर लड़ने को ललकारा ।
मुक़ाबले के लिए अंसार के तीन जवान निकले—एक औफ़, दूसरे मुअव्विज़ ये दोनों हारिस के बेटे थे और इनकी मां का नाम अफ़रा था, तीसरे अब्दुल्लाह बिन रुवाहा ।
कुरैशियों ने कहा, तुम कौन लोग हो ?
उन्होंने कहा, अंसार की एक जमाअत हैं।
कुरैशियों ने कहा, मुक़ाबले में आने वाले आप शरीफ़ लोग हैं, लेकिन हमें आपसे कोई सरोकार नहीं। हम तो अपने चचेरे भाइयों को चाहते हैं।
फिर उनके आवाज़ लगाने वाले ने आवाज़ लगाई, मुहम्मद ! हमारे पास हमारी क़ौम के बराबर के लोगों को भेजो।
अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया, उबैदा बिन
अर-रहीकुल मख़्तूम
हारिस ! उठो, हमज़ा ! उठिए, अली ! उठो। जब ये लोग उठे और कुरैशियों के क़रीब पहुंचे, तो उन्होंने पूछा, आप कौन लोग हैं?
उन्होंने अपना परिचय कराया।
कुरैशियों ने कहा, हां, आप लोग सही मुक़ाबले के हैं । इसके बाद लड़ाई शुरू हुई।
हज़रत उबैदा ने, जो सब में ज़्यादा उम्र वाले थे, उत्बा बिन रबीआ से मुक़ाबला किया, हज़रत हमज़ा ने शैबा से और हज़रत अली रज़ि० न वलीद से।’
हज़रत हमज़ा रज़ि० और हज़रत अली रज़ि० ने तो अपने-अपने मुक़ाबले वालों को झट मार लिया, लेकिन हज़रत उबैदा और उनके मुक़ाबले के बीच एक-एक वार का तबादला हुआ और दोनों में से हर एक ने दूसरे को गहरा घाव लगाया। इतने में हज़रत अली और हज़रत हमज़ा रज़ि० अपने-अपने शिकार से फ़ारिग़ होकर आ गए, आते ही उत्बा पर टूट पड़े, उसका काम तमाम कर दिया और हज़रत उबैदा को उठा लाए। उनका पांव कट गया था और आवाज़ बन्द हो गई थी, जो बराबर बन्द रही, यहां तक कि लड़ाई के चौथे या पांचवें दिन जब मुसलमान मदीना वापस होते हुए सफ़रा की घाटी से गुज़र रहे थे, उनका इंतिक़ाल हो गया।
हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु अल्लाह की क़सम खाकर फ़रमाया करते थे कि यह आयत हमारे ही बारे में उतरी-
‘ये वह दो फ़रीक हैं, जिन्होंने अपने रब के बारे में झगड़ा किया है।’ (22/19) आम भीड़
इस ललकार का नतीजा मुश्रिकों के लिए एक बुरी शुरूआत थी। वे एक ही छलांग में अपने तीन बेहतरीन घुड़सवारों और कमांडरों से हाथ धो बैठे थे, इसलिए उन्होंने गुस्से से बेक़ाबू होकर एक आदमी की तरह एक साथ हमला कर दिया।
दूसरी ओर मुसलमान अपने रब से मदद और हिमायत की दुआ करने और उसके हुज़ूर गिड़गिड़ा कर फ़रियाद करने के बाद अपनी-अपनी जगहों पर जमे और अपनी-अपनी हिफ़ाज़त का तरीका अपनाते हुए मुश्किों के ताबड़-तोड़ हमलों को रोक रहे थे और उन्हें खासा नुक्सान पहुंचा रहे थे, ज़ुबान पर ‘अहद-अहद’ का कलिमा था।
1. इब्ने हिशाम, मुस्नद अहमद और अबू दाऊद की रिवायत में है कि उबैदा ने वलीद को ललकारा, अली ने शैबा को और हमज़ा ने उत्बा को । मिश्कात 2/343
अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की दुआ
इधर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पंक्तियों को ठीक करके वापस आते ही अपने पाक परवरदिगार से मदद का वायदा पूरा करने की दुआ मांगने लगे। आपकी दुआ यह थी—
‘ऐ अल्लाह ! तूने मुझसे जो वायदा किया है, उसे पूरा फ़रमा दे। ऐ अल्लाह ! मैं तुझसे तेरा वचन और तेरे वायदे का सवाल कर रहा हूं।’
फिर जब घमासान की लड़ाई शुरू हो गई, बड़े ज़ोर का रन पड़ा और लड़ाई पूरी तरह भड़क उठी, तो आपने यह दुआ फ़रमाई—
‘ऐ अल्लाह ! अगर आज यह गिरोह हलाक हो गया तो तेरी इबादत न की जाएगी। ऐ अल्लाह ! अगर तू चाहे तो आज के बाद तेरी इबादत कभी न की जाए।’
आपने खूब खूब गिड़गिड़ा कर दुआ की, यहां तक कि दोनों कंधों से चादर गिर गई। हज़रत अबूबक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने चादर ठीक की और अर्ज़ किया-
रसूल सल्ल० ! बस फ़रमाइए। आपने अपने रब से ‘ऐ अल्लाह के गिड़गिड़ा कर दुआ फ़रमा ली।’ बहुत
उधर अल्लाह ने फ़रिश्तों को वहा की कि–
‘मैं तुम्हारे साथ हूं, तुम ईमान वालों के क़दम जमाओ, मैं काफ़िरों के दिलों में रौब डाल दूंगा।’
और अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास वह्य भेजी कि— ‘मैं एक हज़ार फ़रिश्तों से तुम्हारी मदद करूंगा, जो आगे-पीछे आएंगे।’ (8-9)
फ़रिश्तों का आना
इसके बाद अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को एक झपकी आई, फिर आपने सिर उठाया और फ़रमाया, ‘अबूबक्र खुश हो जाओ। यह जिब्रील हैं, गर्द धूल में अटे हुए। गर्द-धूल
इब्ने इस्हाक़ की रिवायत में यह है कि आपने फ़रमाया, अबू बक्र ! खुश हो जाओ, तुम्हारे पास अल्लाह की मदद आ गई। यह जिब्रील अलैहिस्सलाम हैं अपने घोड़े की लगाम थामे और उसके आगे-आगे चलते हुए आ रहे हैं और धूल-गर्द में अटे हुए हैं।
इसके बाद अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम छप्पर के
दरवाज़े से बाहर तशरीफ़ लाए। आपने कवच पहन रखी थी। आप पूरे जोश के साथ आगे बढ़ रहे थे और फ़रमाते जा रहे थे-
‘बहुत जल्द यह जत्था हार जाएगा और पीठ फेर कर भागेगा।’
इसके बाद आपने एक मुट्ठी कंकरीली मिट्टी ली और कुरैश की ओर रुख करके फ़रमाया, ‘चेहरे बिगड़ जाएं’ – और साथ ही मिट्टी उनके चेहरों की ओर फेंक दी, फिर मुश्किों में से कोई भी न था, जिसकी दोनों आंखों, नथनो और मुंहों में उस एक मुट्ठी मिट्टी में से कुछ न कुछ न गया हो। इसी के बारे में अल्लाह का इर्शाद है-
‘जब आपने फेंका, तो वास्तव में आपने नहीं फेंका, बल्कि अल्लाह ने फेंका।’