
” قیامت کے دن ب آل رسول کا صدقہ بٹے گا!تو ابلیس کیا کرے گا۔۔۔۔۔ “



*Hazrat Ammar Bin Yasir Shaitan Se Hifazat Me Hain*
Hazrat Alqama Razi Allahu Tala Anhu Se Marwi Hain Farmate Hain Me Sham (Syria) Poucha To Hazrat Abu Darda Razi Allahu Tala Anhu Aaye Kehne Lage Tum Logo Me Wo Shaks Hai Jisko Allah Pak Ne Apne Rasool ﷺ Ki Zuban e Mubarak Se Shaitan Se Mehfooz Rakha Hain, Hazrat Mugira Razi Allahu Tala Anhu Farmate Hain :- Allah Pak Ne Apne Habeeb Pak ﷺ Ki Zuban e Mubarak Se Jis Shaks Ko Shaitan Se Apni Panah Me Rakhne Ka Elaan Kiya Tha Unse Murad Hazrat Ammar Ibn Yasir Razi Allahu Tala Anhu Hain.
📚 *Reference* 📚
Sahih Bukhari, Hadees No 3287.

मुहिब्बे तिबरी ने एक रिवायत नकल फरमाई है कि हुज़ूर नबी ए करीम ﷺ ने फरमाया: अल्लाह ﷻ ने तुम (उम्मती) पर जो मेरा अज़्र मुकर्रर किया है वह मेरे अहले बैत से मुहब्बत करना है। और में कल तुमसे उनके बारे में दरयाफ्त करूंगा।”
सवाइके मुहर्रका सफ़ाह नं:753

नहजुल बलाग़ा (Nahjul Balagha) हज़रत अली अलैहिस्सलाम के ख़ुत्बों, ख़तों और हिकमत भरी बातों का संग्रह है, जिसे शिया विद्वान शरीफ़ रज़ी ने 4वीं सदी हिजरी में जमा किया। इसमें कई जगहों पर हज़रत अली (अस) ने ख़ुलफ़ा-ए-राशिदीन का ज़िक्र किया है, जिनमें उनके लिए इज़्ज़त, एहतिराम और तारीफ़ पाई जाती है।
यहाँ नहजुल बलाग़ा से कुछ उदाहरण दिए गए हैं, जहाँ हज़रत अली (अस) ने पहले ख़ुलफ़ा हज़रत अबू बक्र, हज़रत उमर और हज़रत उस्मान (रजि) का ज़िक्र इज़्ज़त के साथ किया:
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🌿 1. ख़ुत्बा नंबर 162 (शिकायत-ए-अश्राफ)
हज़रत अली (अस) फ़रमाते हैं:
> “सबसे बेहतर उम्मत के लोग अबू बक्र और उमर थे, जिन्होंने अपने दीन के लिए काम किया, और दुनिया से ज़ाहिद रहे। उन्होंने इंसाफ किया, और सीधी राह पर रहे।”
📚 Nahjul Balagha, Sermon 162 (some versions 164)
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🌿 2. ख़ुत्बा नंबर 126 (शिकायत और तारीख़ी बयान)
इस ख़ुत्बे में हज़रत अली (अस) उन लोगों का ज़िक्र करते हैं जो ख़ुलफ़ा की पैरवी में थे:
> “मैंने देखा कि इस्लाम को नुक़सान पहुँच सकता है, तो मैंने सब्र को ज़रूरी समझा, हालाँकि आँखों में काँटे थे और गले में हड्डी अटक रही थी।”
यहाँ इशारा उस वक़्त की सियासी मजबूरियों की तरफ़ है, लेकिन उन्होंने खुल्फ़ा की खिलाफत नहीं की — बल्कि उम्मत की भलाई के लिए सब्र किया।
📚 Nahjul Balagha, Sermon 3 (Shaqshaqiya Khutba)
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🌿 3. ख़त नंबर 62 (मालिक अल-अश्तर को हिदायत)
इसमें हज़रत अली (अस) उमर बिन ख़त्ताब की तारीफ़ करते हुए कहते हैं:
> “उमर अपने काम में मज़बूत, बात में सच्चे, हक़ में क़ायम और अल्लाह के दीन में सख़्त थे।”
📚 Nahjul Balagha, Letter 62
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✨ नतीजा:
नहजुल बलाग़ा में हज़रत अली (अस) ने खुल्फ़ा-ए-राशिदीन का ज़िक्र इज़्ज़त और अदब के साथ किया है।
वो न कभी खिलाफत के लालची थे और न ही उम्मत को फ़ितनों में डालना चाहते थे। उन्होंने हमेशा इस्लाम और उम्मत की भलाई को तरजीह दी।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम की ख़ुलफ़ा-ए-सालसा (अबू बक्र, उमर, उस्मान रजि.) के बारे में जो राय नहजुल बलाग़ा में मिलती है, वह बहुत अहम और तारीख़ी है। हालांकि नहजुल बलाग़ा का लहजा गहरा, मुख़्तसर और कभी-कभी ताबीरों में है, लेकिन कुछ जगहों पर ईमाम अली अलैहिस्सलाम की साफ़ राय नज़र आती है — कुछ में तारीफ़, कुछ में एहतियात और कुछ में तन्क़ीद।
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✦ 1. हज़रत अबू बक्र (रज़ि.) के बारे में
➤ नहजुल बलाग़ा, ख़ुत्बा 3 (शक्शकिया ख़ुत्बा)
> “ख़िलाफ़त अबू बक्र को दे दी गई, जब कि वह ख़िलाफ़त के लायक़ नहीं थे, लेकिन मैंने सब्र किया जबकि मेरी आँखों में काँटा था और गले में हड्डी अटक गई थी।”
🔹 यहाँ इमाम (अस) खुलकर कहते हैं कि अबू बक्र को ख़िलाफ़त दी गई, जबकि वह खुद को ज़्यादा हक़दार समझते थे। मगर उम्मत की भलाई के लिए बगावत नहीं की, सब्र किया।
🟢 लेकिन ईमाम ने कहीं भी अबू बक्र (रजि.) को मुनाफ़िक़ या ज़ालिम नहीं कहा, सिर्फ़ ये कि उनके मुताबिक असल हक़ उनका था।
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✦ 2. हज़रत उमर (रज़ि.) के बारे में
➤ नहजुल बलाग़ा, ख़ुत्बा 3 (जारी):
> “फिर उमर ख़लीफ़ा बने। उन्होंने बहुत सख़्त रवैया अपनाया और लोगों पर सख़्ती की। अल्लाह जाने मैंने कितना सब्र किया…”
🔹 इमाम अली (अस) उमर की सख़्ती का ज़िक्र करते हैं, लेकिन यह भी स्वीकार करते हैं कि उन्होंने इस्लाम के लिए मेहनत की।
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➤ नहजुल बलाग़ा, ख़ुत्बा 162 या ख़ुत्बा 228 (मुतअद्दिद रिवायतों में)
> “ख़ुदा अबू बक्र और उमर पर रहमत करे, उन्होंने इनसाफ किया, सीधी राह पर रहे, और दुनिया से ज़ाहिद रहे।”
📘 यह बयान कुछ नुस्खों में है और कुछ में नहीं — इसलिए शिया-ओ-सुन्नी दोनों में इस पर इख़्तिलाफ़ है। लेकिन बहुत से शिया आलिम इसे नहजुल बलाग़ा का हिस्सा मानते हैं।
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✦ 3. हज़रत उस्मान (रज़ि.) के बारे में
➤ नहजुल बलाग़ा, ख़ुत्बा 30:
> “तुम जानते हो कि मैंने उस्मान को बहुत नसीहत की… मैंने उसे अपने हाथ से पानी पिलाया, जब सबने उसे छोड़ दिया था…”
🔹 ईमाम अली (अस) ने हज़रत उस्मान (रजि.) की मदद की जब मदीना में उनके खिलाफ बगावत हो रही थी। उन्हें नसीहत भी की, और आख़िरी वक़्त तक उनका साथ दिया।
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📌 कुल नतीजा:
खलीफ़ा ईमाम अली की राय नहजुल बलाग़ा से इशारे
अबू बक्र ख़िलाफ़त का हक़ मेरा था, मगर सब्र किया ख़ुत्बा 3
उमर सख़्त मिज़ाज, मगर दीन की खिदमत की ख़ुत्बा 3, ख़ुत्बा 162
उस्मान नसीहत की, आख़िर में मदद की ख़ुत्बा 30
“मुझे मानने वालों में एक गिरोह कामयाब होगा और एक हलाक होगा” — ये अल्फ़ाज़ हज़रत अली अलैहिस्सलाम से मन्सूब हैं।
यह बात “नहजुल बलाग़ा” और दीगर शिया-सुन्नी किताबों में मुख्तलिफ अल्फ़ाज़ में मिलती है। नीचे इसका मजमून और हवाला पेश है:
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📜 नहजुल बलाग़ा — ख़ुत्बा 146
हज़रत अली (अस) फ़रमाते हैं:
> “मेरे लिए तीन गिरोह होंगे: एक मेरा सच्चा शिया जो निजात पाएगा, दूसरा मेरा दुश्मन जो हलाक होगा, और तीसरा वह जो शक़ करने वाला है, वह भी गुमराह होगा।”
📚 Nahjul Balagha, Sermon 146 (in some versions 144 or 147)
(Arabic: ثلاثٌ يُهلك فيّ رجلٌ مُحبٌّ مُفرِط، ومبغضٌ مُفتر، ومُتردِّدٌ مُرِيب)
📌 हिंदी अर्थ:
“मेरे बारे में तीन तरह के लोग हलाक होंगे:
1. जो मोहब्बत में हद से बढ़ जाए (गुलू करे),
2. जो दुश्मनी करे (बुग़ज़ रखे),
3. जो शक और शुब्हे में पड़ा रहे।”
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✨ इस हदीस/बयान से क्या साबित होता है?
हज़रत अली (अस) ने ये साफ़ कर दिया कि:
सच्चा मोमिन वही है जो मोहब्बत और अदब के साथ उनके रास्ते पर चले।
जो गुलू (अति) करता है (जैसे उन्हें खुदा कहना) — वह भी हलाक होगा।
जो बुग़ज़ और दुश्मनी रखता है, वह भी।
और जो शक और संदेह में पड़ा है, वह भी रास्ता भटक जाएगा।
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📚 दीगर कुतुब में तस्दीक़:
✅ यह बात शिया और सुन्नी दोनों किताबों में मिलती है:
शरह नहजुल बलाग़ा — इब्न अबील हदीद (सुन्नी मुफस्सिर)
किताब-ए-ग़ैबत — शेख तूस़ी
इल्ज़ाम-उल-नासिब — फज़ल इब्न रौंदी

“हज़रत मा’अज़ बिन जबल رضی اللہ تعالی عنه रिवायत करते हैँ की हुज़ूर नबी करीम علیه الصلوة والسلام ने फ़रमाया हज़रत अली کرّم اللہ وجهه الکریم की मुहब्बत ऐसी नेकी हैं की जिसके होते हुए कोई बुराई नुकसान नहीं दें सकती और बुग्ज ऐ अली ऐसी बुराई हैं जिसके होते हुए कोई नेकी नफा’ नहीं दे सकती .'”
[“Musnad Firdous Jild 2 Hadeeth Number 2725”]