अर-रहीकुल मख़्तूम  पार्ट  58 बद्र की जंग पार्ट 1


बद्र की बड़ी लड़ाई

इस्लाम का पहला निर्णायक युद्ध

लड़ाई की वजह

उशरा ग़ज़वे के ज़िक्र में हम बता चुके हैं कि कुरैश का एक क़ाफ़िला मक्का से शाम जाते हुए नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पकड़ से बच निकला था। यही क़ाफ़िला जब शाम से पलट कर मक्का वापस आने वाला था, तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने तलहा बिन उबैदुल्लाह और सईद बिन जैद रज़ि० को उसके हालात का पता लगाने के लिए उत्तर की ओर भेजा। ये दोनों सहाबी हौरा नामी जगह तक तशरीफ़ ले गए और वहीं ठहरे रहे। जब अबू सुफियान क़ाफ़िला लेकर वहां से गुज़रा, तो ये बड़ी तेज़ रफ़्तारी के साथ मदीना पलटे और अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को इसकी सूचना दी।

इस क़ाफ़िले के साथ मक्का वालों का बहुत ढेर सारा धन था, यानी एक हज़ार ऊंट थे, जिन पर कम से कम पचास हज़ार दीनार (दो सौ साढ़े बासठ किलो सोने) की क़ीमत का सामान लदा हुआ था, जबकि इसकी हिफ़ाज़त के लिए सिर्फ़ चालीस आदमी थे।

मदीना वालों के लिए यह बड़ा सुनहरा मौक़ा था, जबकि मक्का वालों के लिए इस भारी-भरकम माल से महरूमी बड़ी ज़बरदस्त, सैनिक, राजनीतिक और आर्थिक मार की हैसियत रखती थी, इसलिए अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मुसलमानों के अन्दर एलान फ़रमाया कि यह कुरैश का क़ाफ़िला माल व दौलत लिए चला आ रहा है, इसलिए निकल पड़ो। हो सकता है अल्लाह उसे ग़नीमत के भाल के तौर पर तुम्हारे हवाले कर दे।

लेकिन आपने किसी पर रवानगी ज़रूरी नहीं क़रार दी, बल्कि इसे सिर्फ़ लोगों के चाव पर छोड़ दिया, क्योंकि इस एलान के वक़्त यह उम्मीद नहीं थी कि क़ाफ़िले के बजाए कुरैशी फ़ौज के साथ बद्र के मैदान में एक ज़ोरदार टक्कर हो जाएगी और यही वजह है कि बहुत से सहाबा किराम मदीना ही में रह गए। उनका ख्याल था कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का यह सफ़र आपकी पिछली आम सैनिक मुहिमों से अलग न होगा और इसीलिए इस ग़ज़वे में शरीक न होने वालों की कोई पकड़ न की गई।

इस्लामी फ़ौज की तायदाद और कमान का विभाजन

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम रवानगी के लिए तैयार हुए तो आपके साथ कुछ ऊपर तीन सौ लोग थे। (यानी 313, या 314, या 317) जिनमें से 82 या 83 या 85 मुहाजिर थे और बाक़ी अंसार। फिर अंसार में से 61 क़बीला औस के थे और 170 क़बीला ख़ज़रज थे। इस टुकड़ी ने लड़ाई का न कोई विशेष प्रबन्ध किया था, न पूरी तैयारी। चुनांचे पूरी सेना में सिर्फ़ दो घोड़े थे। (एक हज़रत ज़ुबैर बिन अव्वाम का और दूसरा हज़रत मिक़दाद बिन अस्वद कुंदी का) और सत्तर ऊंट, जिनमें हर ऊंट पर दो या तीन आदमी बारी-बारी सवार होते थे। एक ऊंट अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम, हज़रत अली रज़ि० और हज़रत मरसद बिन अबी मरसद ग़नवी के हिस्से में आया था, जिन पर तीनों लोग बारी-बारी सवार होते थे

मदीना का इन्तिज़ाम और नमाज़ की इमामत पहले पहल हज़रत इब्ने उम्मे मक्तूम रज़ियल्लाहु अन्हु को सौंपी गई, लेकिन जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि सल्लम रौहा तक पहुंचे तो आपने हज़रत अबू लुबाबा बिन अब्दुल मुंज़िर रज़ियल्लाहु अन्हु को मदीना का व्यवस्थापक बनाकर वापस भेज दिया।

सेना इस तरह ततब दी गई कि एक दस्ता मुहाजिरों का बनाया गया और एक अंसार का ।

मुहाजिरों का झंडा हज़रत अली बिन अबू तालिब को दिया गया और उसका नाम उक़बा था। और अंसार का झंडा हज़रत साद बिन मुआज़ को दिया गया। इन दोनों झंडों का रंग काला था और जनरल कमान का झंडा, जिसका रंग सफ़ेद था, हज़रत मुसअब बिन उमैर रज़ियल्लाहु अन्हु को दिया गया। मैमना (दाहिनी तरफ़ का दस्ता) के अफ़सर हज़रत जुबैर बिन अव्वाम रज़ियल्लाहु अन्हु मुक़र्रर किए गए और मैसरा (बाईं तरफ़ का दस्ता) के अफ़सर हज़रत मिक़दाद बिन अम्र रज़ियल्लाहु अन्हु ।

और जैसा कि हम बता चुके हैं, पूरी फ़ौज में यही दोनों बुजुर्ग घुड़सवार थे। ‘ साक़ा की कमान हज़रत क़ैस बिन अबी सअसआ के हवाले की गई और कमांडर इन चीफ़ की हैसियत से जनरल कमान अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने खुद संभाली ।

बद्र की ओर इस्लामी सेना की रवानगी

रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम इस अधूरी फ़ौज को लेकर
अल्लाह करवाना हुए, तो मदीने के मुहाने से निकलकर मक्का जाने वाले राजमार्ग पर चलते हुए बेरे रौहा तक तशरीफ़ ले गए। फिर वहां से आगे बढ़े तो मक्का का रास्ता बाईं ओर छोड़ दिया और दाहिनी ओर कतरा कर चलते हुए नाज़िया पहुंचे । (मंज़िल तो बद्र थी) फिर नाज़िया के एक किनारे से गुजरकर रहक़ान घाटी पार की। यह नाज़िया और सफरा दर्रे के बीच में एक घाटी है।

इस घाटी के बाद सफ़रा दरें से गुज़रे फिर दरें से उतर कर सफ़रा घाटी के क़रीब जा पहुंचे और वहां से क़बीला जुहैना के दो आदमियों यानी बसीस बिन उमर और अदी बिन अबी जगबा को क़ाफ़िले का पता लगाने के लिए बद्र रवाना फ़रमाया ।

मक्के में ख़तरे का एलान

दूसरी ओर क़ाफ़िले की स्थिति यह थी कि अबू सुफ़ियान जो उसका सरदार था, बहुत ज़्यादा सावधान था। उसे मालूम था कि मक्के का रास्ता खतरों से भरा हुआ है, इसलिए वह हालात का बराबर पता लगाता रहता था और जिन क़ाफ़िलों से मुलाक़ात होती थी, उनसे वस्तुस्थिति मालूम करता रहता था, चुनांचे उसे जल्द ही मालूम हो गया कि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सहाबा किराम को क़ाफ़िले पर हमले की दावत दे दी है।

इसलिए उसने तुरन्त ज़मज़म बिन अम्र ग़िफ़ारी को मुआवज़ा देकर मक्का भेजा कि वहां जाकर क़ाफ़िले की सुरक्षा के लिए कुरैश में आम एलान की आवाज़ लगा दे। ज़मज़म बड़ी तेज़रफ़्तारी से मक्का आया और अरब के आम चलन के मुताबिक़ अपने ऊंट की नाक चुपड़ी, कजावा उलटा, कुरता फाड़ा और मक्का घाटी में उसी ऊंट पर खड़े होकर आवाज़ लगाई

… ‘ऐ कुरैश की जमाअत ! क़ाफ़िला क़ाफ़िला… तुम्हारा माल जो अबू सुफियान के साथ है, उस पर मुहम्मद और उसके साथी धावा बोलने जा रहे हैं। मुझे यक़ीन नहीं कि तुम उसे पा सकोगे। मदद मदद. 1 …

लड़ाई के लिए मक्का वालों की तैयारी

यह आवाज़ सुनकर हर ओर से लोग दौड़ पड़े। कहने लगे-

और उसके साथी समझते हैं कि यह क़ाफ़िला भी इब्ने हज़रमी के मुहम्मद क़ाफ़िले जैसा है ? जी नहीं, हरगिज़ नहीं। खुदा की क़सम ! इन्हें पता चल जाएगा कि हमारा मामला कुछ और है।

चुनांचे सारे मक्के में दो ही तरह के लोग थे, या तो आदमी खुद लड़ाई के लिए

निकल रहा था या अपनी जगह किसी और को भेज रहा था और इस तरह मानो सभी निकल पड़े। खास तौर से मक्का के इज्ज़तदार बड़े लोगों में से कोई भी पीछे न रहा। सिर्फ अबू लहब ने अपनी जगह अपने एक क़र्ज़दार को भेजा।

पास-पड़ोस के अरब क़बीलों को भी कुरैश ने भर्ती किया और खुद कुरैशी क़बीलों में से बनी अदी के छोड़कर कोई भी पीछे न रहा। अलबत्ता बनी अदी के किसी भी आदमी ने इस लड़ाई में शिरकत न की।

Shahadat Hazrat Sayyaduna Ammar Ibn Yasir (RA)

*09 Safar*
*Shahadat Hazrat Sayyaduna Ammar Ibn Yasir (RA)*

Hazrat Ammar Bin Yasir (RA) Ka Shumaar Jaleel-Ul-Qadr Sahaba-E-Kiram Mein Hota Hai. Aap As-Sabiqoon Al-Awwaloon (Islam Qubool Karne Wale Awaleen Momineen) Mein Se Hain. Aap Ke Walid Hazrat Yasir (RA) Aur Walida Hazrat Sumayyah (RA), Islam Ke Sab Se Pehle Shuhada Hain.

Nabi Kareem ﷺ Ne Hazrat Ammar (RA) Ke Baare Mein Farmaya:
“Afsos! Ammar Ko Aik Baghi Giroh Qatal Karega. Ammar Unhein Jannat Ki Taraf Bulaaye Ga, Aur Woh Usey Jahannum Ki Taraf Bulayenge.”

Yeh Azeem Paishgoi Jo Jang-E-Siffeen (37 Hijri) Ke Maidan Mein Harf Ba Harf Sach Sabit Hui.

Is Ma’araka-E-Haq-O-Batil Mein Ammar (RA), Ameer-Ul-Momineen Maula Ali Ibn Abi Talib (RA) Ke Lashkar Mein Shamil Hokar Jannat Ki Dawat De Rahe Thay, Jabke Baghi Aur Jahannum Ki Taraf Bulaane Wale Giroh (Jiska Sarbarah Muawiyah Ibn Abi Sufyan Tha) Ne Aap (RA) Ko Shaheed Kar Diya.