Hazrat khabaab bin al-arat R.A ka zikr.

और उन पर शांति हो

खबाब बिन अल-अरत के ज़िक्र में:

उन्होंने खब्बाब इब्न अरत के बारे में कहा:

अल्लाह खब्बाब इब्न अल-अरत पर रहम करे, इसलिए उन्होंने स्वेच्छा से इस्लाम स्वीकार किया, आज्ञाकारी रूप से हिजरत की, कफ़्फ़ाफ़ का दामन थामा, अल्लाह से प्रसन्न हुए और मुजाहिद की तरह जीवन बिताया।

अल्लाह खबाब इब्न अरत पर अपनी रहमत फ़रमाए! उन्होंने स्वेच्छा से इस्लाम स्वीकार किया, खुशी-खुशी हिजरत की, और हर ज़रूरी चीज़ से संतुष्ट रहे, और अल्लाह के फ़ैसलों से संतुष्ट रहे, और मुजाहिद की शान से ज़िंदगी गुज़ारी।

हज़रत खब्बाब इब्न अरत पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के सबसे सम्मानित साथियों में से एक और पहले प्रवासी थे। उन्हें कुरैश के हाथों कई तरह की मुश्किलें झेलनी पड़ीं।

उन्हें चिलचिलाती धूप में खड़ा किया गया, आग में झोंक दिया गया, लेकिन किसी तरह वे पैगंबर का साथ छोड़ना नहीं चाहते थे। वह बद्र की लड़ाई और अन्य लड़ाइयों में पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के साथ थे। उन्होंने सिफ्फिन और नहरवान में कमांडर-ए-ईमान (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का साथ दिया। वह मदीना छोड़कर कूफ़ा में बस गए। इसलिए, 39 हिजरी में 73 वर्ष की आयु में यहीं उनका निधन हो गया। जनाज़ा की नमाज़ कमांडर-ए-ईमान (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने पढ़ाई और उन्हें कूफ़ा के बाहर दफ़नाया गया, और हज़रत ने उनकी क़ब्र पर खड़े होकर दया के ये शब्द कहे।

khabaab bin al-arat ke zikr mein:

unhonne khabbaab ibn arat ke baare mein kaha:

allaah khabbaab ibn al-arat par raham kare, isalie unhonne svechchha se islaam sveekaar kiya, aagyaakaaree roop se hijarat kee, kaffaaf ka daaman thaama, allaah se prasann hue aur mujaahid kee tarah jeevan bitaaya.

allaah khabaab ibn arat par apanee rahamat faramae! unhonne svechchha se islaam sveekaar kiya, khushee-khushee hijarat kee, aur har zarooree cheez se santusht rahe, aur allaah ke faisalon se santusht rahe, aur mujaahid kee shaan se zindagee guzaaree.

hazarat khabbaab ibn arat paigambar (sallallaahu alaihi va sallam) ke sabase sammaanit saathiyon mein se ek aur pahale pravaasee the. unhen kuraish ke haathon kaee tarah kee mushkilen jhelanee padeen.

unhen chilachilaatee dhoop mein khada kiya gaya, aag mein jhonk diya gaya, lekin kisee tarah ve paigambar ka saath chhodana nahin chaahate the. vah badr kee ladaee aur any ladaiyon mein paigambar muhammad (sallallaahu alaihi va sallam) ke saath the. unhonne siphphin aur naharavaan mein kamaandar-e-eemaan (sallallaahu alaihi va sallam) ka saath diya. vah madeena chhodakar koofa mein bas gae. isalie, 39 hijaree mein 73 varsh kee aayu mein yaheen unaka nidhan ho gaya. janaaza kee namaaz kamaandar-e-eemaan (sallallaahu alaihi va sallam) ne padhaee aur unhen koofa ke baahar dafanaaya gaya, aur hazarat ne unakee qabr par khade hokar daya ke ye shabd kahe.

وَ قَالَ عَلَيْهِ السَّلَامُ

في ذِكْرِ خَبَّابِ بْنِ الْآرَتُ:

خباب ابن ارت کے بارے میں فرمایا

يَرْحَمُ اللهُ خَبَّابَ ابْنَ الْآرَتْ، فَلَقَدْ أَسْلَمَ رَاغِبًا، وَهَاجَرَ طَائِعًا، وَ قَنِعَ بِالْكَفَافِ، وَ رَضِيَ عَنِ اللهِ، وَ عَاشَ مُجَاهِدًا.

خدا خباب ابن ارت پر اپنی رحمت شامل حال فرمائے! وہ اپنی رضا مندی سے اسلام لائے، اور بخوشی ہجرت کی اور ضرورت بھر پر قناعت کی اور اللہ تعالیٰ کے فیصلوں پر راضی رہے اور مجاہدانہ شان سے زندگی بسر کی۔

حضرت خباب ابن ارت پیغمبر ﷺ کے جلیل القدر صحابی اور مہاجرین اولین میں سے تھے۔ انہوں نے قریش کے ہاتھوں طرح طرح کی مصیبتیں اٹھائیں۔

چلچلاتی دھوپ میں کھڑے کئے گئے، آگ پر لٹائے گئے، مگر کسی طرح پیغمبر اکرم ﷺ کا دامن چھوڑنا گوارا نہ کیا۔ بدر اور دوسرے معرکوں میں رسالت مآب ﷺ کے ہمرکاب رہے۔ صفین و نہروان میں امیر المومنین علیہ السلام کا ساتھ دیا۔ مدینہ چھوڑ کر کوفہ میں سکونت اختیار کر لی تھی۔ چنانچہ یہیں پر ۷۳ برس کی عمر میں ۳۹ ہجری میں انتقال فرمایا۔ نماز جنازه امیر المومنین علیہ السلام نے پڑھائی اور بیرون کوفہ دفن ہوئے اور حضرت نے یہ كلمات ترحم ان کی قبر پر کھڑے ہو کر فرمائے۔

यज़ीद मलऊन के दरबार में हज़रत ज़ैनब (स) का ख़ुत्बा

🏴 *यज़ीद मलऊन के दरबार में हज़रत ज़ैनब (स) का ख़ुत्बा* ✊

  इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद 12 मोहर्रम को अहले हरम का क़ाफ़िला इमाम सज्जाद ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम की सरपरस्ती में करबला से कूफ़ा की ओर चला, कूफ़ा की मंज़िलों को तय करने के बाद इस क़ाफ़िले को यज़ीद के दरबार शाम (सीरिया) की ओर ले जाया गया, जब यज़ीद के दरबार में यह क़ाफ़िला पहुंच गया तो यज़ीद ने पहले दरबार में शहीदों के कटे हुए सरों को मंगवाया और फिर उबैदुल्लाह इब्ने ज़ियाद मलऊन के भेजे गए सिपाही ने यज़ीद के दरबार में तक़रीर कर के दरबारियों को बताया कि करबला वालों को कैसे शहीद किया गया, यह सब देखकर कुछ लोगों ने उसी दरबार में खड़े हो कर यज़ीद की कड़ी आलोचना की, यज़ीद चुपचाप सुनता रहा, फिर जब यज़ीद का दरबार पूरी तरह तैयार कर दिया गया तब अहले हरम को दरबार में लाया गया। (तशय्यो दर मसीरे तारीख़, मुतर्जिम सैय्यद मोहम्मद तक़ी आयतुल्लाही, दसवां एडीशन, पेज 80) 

  फिर उसी दरबार में पैग़म्बरे अकरम (स.अ) के घराने की औरतों को कनीज़ी में मांगने का सवाल उठता है, (इरशादे शैख़ मुफ़ीद, तर्जुमा मोहम्मद बाक़िर साएदी, तीसरा एडीशन, पेज 479) जिस पर हज़रत ज़ैनब (स) ने उस शख़्स और यज़ीद को भरे दरबार में ज़लील व अपमानित किया, यज़ीद ने जब सब के सामने अपने अपमान को देखा तो उसने ख़ैज़रान की लकड़ी से इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के मुबारक होंटों पर गुस्ताख़ी करना (मारना) शुरू कर दी, यही वह समय था जब इमाम अली अलैहिस्सलाम की बहादुर बेटी ने उसी दरबार में उसी के लोगों के सामने ऐसा ख़ुत्बा दिया कि यज़ीद और उसकी हुकूमत की चूलें हिल गईं।

  हम यहां पर हज़रत ज़ैनब (स) के उसी ख़ुत्बे का तर्जुमा पेश कर रहे हैं जिस ख़ुत्बे को किताब “लुहूफ़” में भी पढ़ा जा सकता है।

  हज़रत ज़ैनब खड़ी हुईं और ख़ुदा की हम्द और पैग़म्बरे अकरम (स) और उनके ख़ानदान पर सलवात पढ़ने के बाद फ़रमाया: अल्लाह ने सच कहा है कि जिन्होंने बुरा काम अंजाम दिया, अल्लाह की निशानियों का इन्कार किया और उनका मज़ाक़ उड़ाया उनका अंजाम बुरा है। ऐ यज़ीद! क्या तू यह सोंचता है कि तूने हमारे लिए ज़मीन और आसमान के रास्तों को तंग कर दिया है और हमें मजबूर बनाकर असीरों की तरह क़ैद कर लिया है तो इससे हम अल्लाह के नज़दीक ज़लील हो गए और तेरी इज़्ज़त बढ़ गई है और जिसकी वजह से तेरा अहंकार इतना बढ़ गया? तू ख़ुश हो रहा है कि सब कुछ तेरी इच्छानुसार हो रहा है? होश में आ! क्या तू अल्लाह का फ़रमान भूल गया कि काफ़िर यह न सोंचे कि अगर हम उनको ढील दे रहे हैं तो यह उनके फ़ायदे के लिए है, बल्कि ढील देने का मक़सद यह है कि वह और अधिक गुनाह करें और उनके लिए और दर्दनाक अज़ाब है। 

  ऐ हमारे नाना के आज़ाद किए हुए ग़ुलामों की औलाद! क्या यही इंसाफ़ है कि तूने अपनी बीवियों और कनीज़ों को पर्दे में रखा है लेकिन रसूले ख़ुदा (स) की बेटियां भरे दरबार में क़ैदी बनकर खड़ी हैं? यह कहां का इंसाफ़ है कि पैग़म्बरे अकरम (स) के घराने की औरतों के चेहरों को भरे दरबार में ज़ाहिर कर के उनका अपमान करो, उन को एक शहर से दूसरे शहर फिराओ, अपने और ग़ैर सब उनको देखें, शरीफ़ और ज़लील उनके चेहरे को देखें, जब कि उनकी हालत पर कोई तरस खाने वाला भी नहीं है? उन से उम्मीद भी क्या की जा सकती है जिन्होंने आज़ाद लोगों के कलेजे चबाए हों, (यह इस बात की ओर इशारा है कि हिंदा की औलाद से क्या उम्मीद लगाई जा सकती है) वह कैसे हम से दुश्मनी न निकालें जब कि वह बद्र और ओहद की नफ़रतें दिल में लिए बैठे हैं और उनके दिल दुश्मनी और ईर्ष्या से भरे हुए हैं।

  यज़ीद मलऊन इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के होंटों पर ख़ैज़रान की छड़ी से मारते हुए शेर पढ़ रहा था जिसमें अपने बाप दादा (मुआविया और अबू सुफ़ियान) को पुकारकर कह रहा था कि देखो मैंने क्या किया है, उसके बारे में हज़रत ज़ैनब (स) ने फ़रमाया कि ऐ यज़ीद! तू तो यह शेर पढ़ेगा ही, तू हमारे दिलों को ज़ख़्मीकर के और हमारे ख़ून को बेरहमी से बहाकर अपने बाप दादाओं को यह सोंचकर पुकार रहा है कि वह तेरी आवाज़ सुनेंगे, बहुत जल्द तू भी उनके पास पहुंच जाएगा और उस समय कहेगा कि ऐ काश गूंगा और अपाहिज होता ताकि जो कुछ कहा है और किया है वह न कहता और न करता। 

  फिर हज़रत ज़ैनब (स) अल्लाह को पुकारकर कहती हैं: ख़ुदाया! हमारा हक़ इस से छीन ले और जिस जिस ने हम पर ज़ुल्म किया है उन सब से बदला ले और जिसने भी हमारा और हमारी मदद करने वालों का ख़ून बहाया है उनको नाबूद कर दे। ऐ यज़ीद! तूने अपनी ही खाल उतारी है और अपने ही टुकड़े किए हैं और तू बहुत जल्द रसूलल्लाह (स) का ख़ून बहाने, उनके अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम का घोर अपमान करने के जुर्म में मुजरिम बनकर उनके सामने खड़ा होगा और उस समय अल्लाह उनके हक़ को तुझ से मांगेगा और ख़बरदार जो अल्लाह की राह में क़त्ल कर दिए गए हैं उनको मुर्दा मत सोंचना वह ज़िंदा हैं और अल्लाह के पास से रोज़ी हासिल कर रहे हैं, तेरे फ़ैसले के लिए अल्लाह और तुझ से बदले के लिए पैग़म्बरे अकरम (स) ही काफ़ी हैं, जबकि जिब्रईल, पैग़म्बर (स) के मददगार होंगे।

  जिस जिस ने तुझे हुकूमत पर बिठाने के लिए कोशिशें कीं वह जान लें कि ज़ालिमों का अंजाम बहुत बुरा है और सुन! हालात ने तुझ से मुख़ातिब होने पर मजबूर कर दिया, लेकिन जान ले मैं तेरी हैसियत मिट्टी में मिला दूंगी और तेरा घिनौना चेहरा पूरी दुनिया के सामने पेश करूंगी और हां! यह जो हमारा आंसू बहाना देख रहा है यह तेरे डर या तेरी ताक़त की वजह से नहीं है बल्कि हमारे दिल अपने प्यारों के लिए तड़प रहे हैं। 

  ऐ यज़ीद! जो चाल भी चलना हो चल ले, जितनी कोशिश करना हो कर ले, जितनी ताक़त है तेरे पास सब झोंक दे, लेकिन ख़ुदा की क़सम! तू हरगिज़ हमारा नाम और हमारे चाहने वालों के दिलों से हमारी याद कभी नहीं मिटा सकता, याद रख! तू हमारे ख़ून से रंगीन अपनी आस्तीनों को कभी साफ़ नहीं कर सकता, तेरे हाथ बिकी हुई यह भीड़, तेरी यह हुकूमत बहुत जल्द नाबूद होगी और बहुत जल्द ही हक़ की आवाज़ गुंजेगी कि ज़ालिमों पर ख़ुदा की लानत हो।

  अल्लाह का शुक्र कि उसने हमारी शुरूआत सआदत और हमारा अंजाम शहादत रखा, ख़ुदा से दुआ है कि उनके सवाब को बढ़ा दे और हमारा नेक जानशीन बनाए, वह मेहरबान और रहम करने वाला ख़ुदा है, वह हमारे हर काम में हमारे लिए काफ़ी है और वही हमारा वकील है। (मक़तलुल-हुसैन अ., अबू मिख़नफ़, तर्जुमा सैय्यद अली मोहम्मद जज़ाएरी, पहला एडीशन, पेज 393)

🌹 *अस्सलामु अलल हुसैन अ.*
🌷 *व अला अली इब्नुल हुसैन अ.*
🌺 *व अला औलादिल हुसैन अ.*
🌸 *व अला असहाबिल हुसैन अ.*

🤲 *अल्लाह हुम्मा अज्जील ले वलियेकल फ़रज…*

Afzaliyate Imam Ali Alayhissalam

Afzaliyate Imam Ali Alayhissalam

Sayyedna Huzaifa Ibn al-Yaman Ne Farmaya Baad Az Nabi Afzalul Bashar Sayyedna Ali Hein.

Sayyedna Jabir Ibn Abdullah al-Ansari Ne Farmaya Khuda Ki Qasam! Ameer al-Mu’minin Sayyedna Ali Rasoolullah (ﷺ) Ke Baad Saare Logo’n Se Afzal Thae.

Sayyedna Ammar Ibn Yasir Farmate Hein Sayyedna Ali Sabse Pehle Musalman Thae Aur Sabse Zyada Allah ke Deen Ka Ilm Janne Wale Thae.

Imam Abu Bakr al-Baqillani Farmate Hein Ke Sahabae Kiram Ki Ek Jama’at Sayyedna Ali Ki Afzaliyat Sayyedna Abu Bakr Ke Samne Bhi Aur Unke Baad Bhi Zahir Kiya Karti Thi, Unmein Se Sayyedna Abdullah Ibn Abbas Jinhone Khawarij Ke Samne Ye Baat Irshad Farmayi Mein Tumhare Pas Us Shakhs Ki Taraf Se Aaya Hun Jo Sabse Afzal Hai Aur Islam Mai Sabse Pehla Musalman Hai.

(Manaqib al-A’immah al-Arba’ah, Safah-480)

Hadees e Pak Aur Muhabbat e Ahle Baith

*Hadees e Pak Aur Muhabbat e Ahle Baith*

*Farman e Mustafa ﷺ :-*

*1.* Jo Aale Muhammad ﷺ Ki Muhabbat Me Mara Wo Shaheed Mara.

*2.* Jo Ahle Baith Ki Muhabbat Me Mara Uske Tamaam Gunah Baqsh Diye Gaye.

*3.* Jo Shakhs Ahle Baith Ki Muhabbat Me Mara Wo Imaan Ke Sath Duniya Se Gaya.

*4.* Jo Aale Muhammad ﷺ Ki Muhabbat Me Mara Usko Aesi Izzat Ke Sath Jannat Me Le Jaya Jayega Jese Dulhan Ko Uske Shohar Ke Ghar Le Jaya Jata Hain.

*5.* Jo Ahle Baith Ki Muhabbat Me Mara Allah Ta’ala Uski Qabar Ko Farishto Ki Ziyaratgah Bana Dega.

*6.* Aagah Ho Jao Jo Ahle Baith Ki Muhabbat Me Mara Wo Maslak e Ahle Sunnat wal Jamaat Par Mara.

📚 *Reference* 📚
Tafseer e Kabeer, Hazrat Allama Fakharuddin Razi Rehmatullah Alaih.