
पंजतन पाक (अहलेबैत अ.) की मुहब्बत का असर न सिर्फ़ आख़िरत में है बल्कि दुनियावी बीमारियों, मुसीबतों और हादसों से भी बचाव में माना गया है — और इस बारे में कई हदीसें हैं जो बताती हैं कि अहलेबैत से मुहब्बत इबादत, रहमत और हिफाज़त का ज़रिया है।
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✅ 1. रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया:
> “محبتی ومودة أهل بيتي نافع في سبعة مواطن، أيسرها: عند الموت، وفي القبر، وعند النشور، وعند الكتاب، وعند الحساب، وعند الميزان، وعند الصراط.”
“मेरी मुहब्बत और मेरे अहलेबैत की मुहब्बत सात जगहों पर नफ़ा देती है — सबसे आसान मक़ाम: मौत के वक़्त, क़ब्र में, दोबारा उठाए जाने के वक़्त, किताब मिलने के वक़्त, हिसाब में, मीज़ान (तुलने) में, और सिरात (पुल) पर।”
📚 हवाला: हाफ़िज़ अबू नईम, हिलयतुल औलिया, जिल्द 3, सफ़ा 201
📚 इब्ने हजर, सवा’इकुल मुहरिका, सफ़ा 141
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✅ 2. इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) फरमाते हैं:
> “حبنا أهل البيت يُكفّر الذنوب، ويضاعف الحسنات، ويدفع البلاء.”
“हम अहलेबैत की मुहब्बत गुनाहों को मिटा देती है, नेकियों को बढ़ा देती है और बलाओं (मुसीबतों) को दूर कर देती है।”
📚 हवाला: शेख़ सुदूक़, अल-ख़िसाल, हदीस 617
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✅ 3. हज़रत अली (अ) का क़ौल:
> “إن في حبنا أهل البيت شفاء من كل داء ونور في كل ظلمة.”
“हम अहलेबैत की मुहब्बत में हर बीमारी से शिफा है और हर अंधेरे में रौशनी है।”
📚 हवाला: इमाम काफ़ी, अल-काफ़ी, जिल्द 2, बाब “हुब्ब अहलेबैत”
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✅ 4. रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया:
> “من أحبّ أهل بيتي فهو معي في الجنة، ومن أبغضهم فليعدّ للنار وقوداً.”
“जो मेरे अहलेबैत से मुहब्बत करता है वह जन्नत में मेरे साथ होगा, और जो उनसे दुश्मनी रखता है वह जहन्नम का ईंधन बने।”
📚 हवाला: मुस्नद अहमद, हदीस 28148
📚 हाकिम, मुस्तद्रक — सहीह अला शर्त मुस्लिम
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💠 नतीजा:
अहलेबैत से मुहब्बत:
गुनाहों का कफ़्फ़ारा बनती है
मौत के वक़्त और क़ब्र में राहत देती है
बलाओं और बीमारियों से हिफाज़त करती है
जहन्नम से बचाती है
जन्नत की ज़मानत है

अहलेबैत (अलैहिमुस्सलाम) की मोहब्बत में मरने वाले के लिए बख़्शिश की बेशुमार हदीसें मौजूद हैं, और यह अकीदा कुरआन और सहीह हदीसों से साबित है कि अहलेबैत की मोहब्बत, ईमान की पहचान और जन्नत की जमानत है।
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📜 हदीस (मौला अली व अहलेबैत की मोहब्बत में मरने वाले की बख़्शिश पर):
✅ 1. हदीस-ए-रसूल ﷺ:
> قال رسول الله ﷺ:
“من مات على حب آل محمد مات شهيداً.”
(मुस्नद अहमद, मआ जमिउल अहादीस, इब्न हजर, आदि में दर्ज है)
📘 अनुवाद:
“जो शख़्स आले-मुहम्मद (अहलेबैत) की मोहब्बत पर मरे, वह शहीद मरेगा।”
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✅ 2. रसूल ﷺ ने फरमाया:
> “من مات على حب آل محمد مات مغفوراً له، ألا ومن مات على حب آل محمد مات تائباً، ألا ومن مات على حب آل محمد مات مؤمناً مستكمل الإيمان.”
— (इहया उलूमुद्दीन, ग़ायातुल-मराम, शैख़ सुलैमानी बल्खी हनफ़ी)
📘 अनुवाद:
“जो अहलेबैत की मोहब्बत पर मरा:
वह बख़्शा हुआ मरेगा,
तौबा किया हुआ मरेगा,
और ईमान के साथ, मुकम्मल ईमान पर मरेगा।”
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✅ 3. हदीस-ए-क़सा (कम्बल वाली हदीस):
इसमें जब जिब्रील अमीन ने अल्लाह का पैग़ाम दिया:
> “इन्नी मा अकूनु ह़ैसु कान फ़ातिमा व अबूहा व बअलुहा व बनूहा.”
📘 अर्थ:
“मैं वहाँ हूँ जहाँ फ़ातिमा, उनके वालिद (रसूल ﷺ), उनके शौहर (अली अ.स), और उनके बेटे (हसन व हुसैन अ.स) हों।”
📚 यह हदीस साबित करती है कि अल्लाह की रहमत, रज़ा, और नजात — अहलेबैत की महब्बत के साथ वाबस्ता है।
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📌 नतीजा:
जो अहलेबैत की मोहब्बत में मरता है,
वह शहीद, मग़फ़ूर, मुस्तहक़-ए-जन्नत, और सच्चा मोमिन मरता है।

जो शख्स अहलेबैत की मुहब्बत मे मरा वो बिस्तर पे भी मरा तो शहादत की मौत मरा, इस बात की तस्दीक़ हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा ﷺ की हदीसों से होती है कि:
> “जो अहलेबैत की मोहब्बत पर मरा, वो बिस्तर पर भी मरे तो शहीद मरता है।”
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📜 सहीह हदीस (हवाले के साथ):
✅ 1. हदीस-ए-रसूल ﷺ:
> قَالَ رَسُولُ اللهِ ﷺ:
“من مات على حب آل محمد مات شهيداً، ألا ومن مات على حب آل محمد مات مغفوراً له، ألا ومن مات على حب آل محمد مات تائباً، ألا ومن مات على حب آل محمد مات مؤمناً مستكمل الإيمان…”
📚 (हावाला: अस्बाब अल-नुज़ूल लिल वहिदी, ग़ायातुल मराम, किताब उल-हुubb लि-तबरानी)
📘 अनुवाद:
“जो शख़्स आले-मुहम्मद (अहलेबैत) की मोहब्बत पर मरे:
वह शहीद मरेगा,
बख़्शा हुआ मरेगा,
तौबा किया हुआ मरेगा,
और कामिल ईमान वाला मरेगा।”
➡️ यानी अगर वो बिस्तर पर भी मरे, तो शहादत का दर्जा मिलेगा।
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✅ 2. हज़रत इमाम जाफर सादिक़ (अ.स) से रिवायत:
> “من مات على ولايتنا، مات شهيداً، وإن مات على فراشه.”
📚 (हवाला: बहारुल अनवार, जिल्द 27, पेज 84)
📘 अनुवाद:
“जो हमारी विलायत पर मरा, वह शहीद मरा — भले ही वह अपने बिस्तर पर मरा हो।”
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📌 नतीजा:
अहलेबैत की सच्ची मोहब्बत और विलायत पर मरने वाला,
सिर्फ मग़फ़ूर ही नहीं, बल्कि शहादत के मक़ाम पर पहुंचता है —
चाहे वो मैदान-ए-जंग में मरे या बिस्तर पर।

